कहानी: मोहमोह के धागे
घर में गहरी उदासी छाई थी. रणवीर की मां को अभी तक यकीन नहीं हो रहा था कि उस का लाड़ला दुनिया से विदा हो चुका है. वे रो नहीं रही थीं बल्कि विस्फारित आंखों से देख रही थीं.
वीर प्रताप के घर के सामने रिश्तेदार, पड़ोसियों और दूरदराज के सभी जानने वालों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. दुखद सन्नाटा पसरा था. लोग सिर झुकाए खड़े थे. बीचबीच में महिलाओं के दिल दहलाने वाली रोने की आवाजें बाहर तक आ जाती थीं. दरअसल, कल ही वीर प्रताप का बड़ा बेटा रणवीर, जम्मू के पास कुछ आतंकवादियों के साथ होने वाली मुठभेड़ में शहीद हो गया था. खबर मिलते ही लोग जमा होने लगे.
जब रणवीर का पार्थिव शरीर ले कर घर पहुंचे तो हाहाकार मच गया. एक ओर शहीद रणवीर की जयजयकार से आसपास का सारा इलाका गुंजित हो रहा था, दूसरी ओर उस के पार्थिव शरीर को देखते ही घर में रुदन, चीखपुकार का दृश्य दिल दहला रहा था. शाम होतेहोते पूरे राजकीय सम्मान के साथ रणवीर का अंतिम संस्कार हो गया.
घर में गहरी उदासी छाई थी. रणवीर की मां को अभी तक यकीन नहीं हो रहा था कि उस का लाड़ला दुनिया से विदा हो चुका है. वे रो नहीं रही थीं बल्कि विस्फारित आंखों से देख रही थीं. कुछ महिलाएं उन्हें रुलाने की असफल कोशिश कर रही थीं.
सब से दयनीय हालत शहीद रणवीर की पत्नी रेवती की थी. रेवती सिर्फ 3 वर्षों पहले इस घर में सजीले रणवीर की बहू बन कर आई थी. राजपूती कदकाठी, चेहरे पर नूर, आंखों में अथाह मस्तीभरी थी. इन्हीं गुणों को देख रणवीर ने पहली बार देखने पर ही विवाह की हामी भर दी थी. दानदहेज न मिलने की आशंका पहले से ही थी. रेवती पितृविहीन थी. घर में मां और छोटा भाई था. रेवती के बहू बन कर आते ही घर में उजाला सा हो गया. रणवीर 2 महीने की छुट्टी पर आता. घर में रौनक हो जाती थी.
दोनों भाई मिल कर रेवती से हंसीमजाक करते थे. रेवती हाजिरजवाब थी. उस के खुशमिजाज स्वभाव से सारा घर गुलजार रहता. वही रेवती आज पति की मृत्यु के गहरे आघात से बेहोश पड़ी थी. विवाह के 2 महीने बाद ही रणवीर चला गया था. रेवती ने ससुराल में बड़ी बहू की जिम्मेदारी को बड़ी कुशलता से संभाल लिया था. रणवीर साल में एक या दो बार आता. परिवार को साथ नहीं रख सकता था. इसलिए रेवती ससुराल में ही रही.
जिस रेवती के रूपशृंगार से सारा घर दमकता था, उसी शृंगार को उजाड़ने के लिए रूढि़वाद समाज डट कर खड़ा हो गया. रिश्तेनाते, पड़ोस की महिलाएं बेहोश रेवती को पानी डालडाल कर होश में ला रही थीं. उन में से कुछ बड़ी बेदर्दी से उस की चूडि़यां तोड़ने, मांग का सिंदूर, बिंदी मिटाने, मंगलसूत्र, पायल, और बिछुए जैसी सुहाग की निशानियां उतारने के लिए बड़ी तत्परता से जुटी थीं. रेवती के ऊपर अमानवीय अत्याचार इस पढ़ेलिखे समाज के सामने होते रहे. परंतु कहीं से कोई विरोध का स्वर नहीं उठा.
देखतेदेखते चौथे की बैठक भी हो गई. थोड़ी सी जयजयकार करवा कर बेचारा रणवीर पत्नी को निसंतान छोड़ कर दुनिया से चला गया. पीछे अनेक ज्वलंत समस्याएं रह गईं जो अभी पत्नी और परिवार वालों को सुल झानी शेष थीं.
हर साल देश में आतंकवाद के नाम पर, नक्सलवादियों के हमलों में निर्दोष जवान शहीद होते हैं. चंद दिनों की जयजयकार कर समाज उन्हें भुला देता है और उन के परिवारों को असहाय हाल में छोड़ दिया जाता है. उन को किनकिन संकटों से गुजरना पड़ता है, यह तो उन की विधवाएं या परिवार ही जानते हैं. परिवार वाले क्याक्या कुर्बानियां देते हैं, यह कोई नहीं जानता.
रेवती के इस उजड़े रूप को देखना सभी के लिए मुश्किल था. सहसा देख कर विश्वास नहीं होता कि यह वही रेवती है जो राजस्थान की परंपरागत पोशाक लहंगाचुनर, जो चटकीले रंगों के होते हैं, लाख की चूडि़यां, माथे पर बोरला, पैरों में पायल पहने छमछम करती घर में घूमा करती थी.
अभी 2 महीने पहले ही तो रणवीर के छोटे भाई राजवीर की शादी में कितना नाची थी. सारे रिश्तेदार देखते ही रह गए. कभी घूमरघूमर कर पद्मावती की तरह नाचती, तो कभी ‘मोरनी बागा में बोले आधी रात में…’ गाने की धुन पर नाचती. रणवीर को भी पकड़ कर साथ नाचने के लिए बाध्य करती. रोशनी से नहाई कोठी आज रणवीर की शहादत के बाद अंधेरे में डूबी सी उदास खड़ी थी.
कुछ दिनों बाद दुनिया पहले की तरह चलने लगी. राजवीर का औफिस उसी शहर में था. उस ने औफिस जाना शुरू कर दिया. देवरानी भी एक स्कूल में लग गई. रेवती को कुछ समय के लिए मायके भेज दिया गया. मायके में मां और भाईभाभी ही थे. मायके में जा कर रेवती का मन और व्यथित हो गया. रणवीर के साथ, या राखी, भाईदूज पर जब वह आती तो मां, भाईभाभी मानो बिछबिछ जाते. पूरे सजधज में जब वह आती तो महल्ले के लोग भी उस को देख रश्क करते. मां बचाई जमापूंजी से अच्छी से अच्छी खातिर करने की कोशिश करतीं. रेवती सब के लिए उपहार और मिठाई ले कर जाती. इस बार हालात बदल चुके थे.
रेवती का ऐसा उजड़ा रूप, मुख पर गहरी उदासी देखी नहीं जा रही थी. उस के मायके में पहुंचते ही एक बार फिर रुदनविलाप के स्वर गूंजे. बहुत नजदीकी पड़ोस वाले भी आ कर जमा हो गए. कुछ महिलाएं आत्मीयता और सहानुभूति दिखाने के लिए स्वर में स्वर मिला रोेने लगीं. कुछ पड़ोसिनें तो बजाय रेवती को दिलासा देने के, उस के बुरे समय के किस्से कहने लगीं. कुछ देर बाद मातमपुरसी को आई महिलाओं को हाथ जोड़ते हुए विदा किया गया. रेवती एक मूर्ति की तरह अंदर सिर झुका कर बैठ गई.
मायके में कुछ दिन निकल गए. पर अब रेवती को अपने प्रति सब का बदला हुआ व्यवहार महसूस होने लगा. मां की डोर भी भाईभाभी के हाथ में थी. विधवा बेटी के लिए कुछ नहीं कर पातीं. उधर, भाभी का फुसफुसाते हुए उस के बारे में बातें करना वह कितनी बार सुन चुकी थी. जब भाभी तैयार हो कर घूमने या किसी आयोजन में जातीं, तो रेवती से छिप कर निकलतीं. मां भी इशारोंइशारों में रेवती को संकेत दे चुकी थीं कि शुभ अवसरों पर कमरे के अंदर ही बैठना.
रेवती का मन अब मायके से उचाट हो गया था. जाए तो कहां जाए? जब तक ससुराल से कोई बुलाए नहीं, वहां भी तो नहीं जा सकती. एक दिन अचानक देवर लेने आ गया. उसे कुछ तसल्ली हो गई. दरअसल, रणवीर के औफिस में कुछ जरूरी कागजात पर साइन करने के लिए रेवती को बुलाया गया था. रेवती उसी दिन ससुराल के लिए लौट गई. मां या भाईभाभी किसी ने भी उसे दोबारा आने को नहीं कहा. रेवती का दिल अंदर ही अंदर टुकड़ेटुकड़े हो गया. इसी मायके के लिए वह कैसी उतावली रहा करती थी.
ससुराल में भी जा कर मन को शांति न मिली. 3-4 दिन ससुर के साथ रणवीर के औफिस जाने में बीत गए. जो पैसा मिला, उस की रेवती के नाम की एफडी बनवा दी गई. पहले सास और बहू मिल कर घर के काम पूरे कर लिया करती थीं. शाम को देवरानी भी साथ देती थी. अब सास एकदम कमजोर हो गई थीं. बातचीत भी कम ही करतीं. ससुर सारा दिन अखबार या टीवी देख समय बिताते. देवरदेवरानी सुबह से गए, शाम को घर आते.
देवरानी रसोई में आ कर रेवती का हाथ बंटाती. वह अपनी स्कूल की दिनचर्या, सहकर्मियों के साथ की गई बातचीत, बच्चों की मासूम शरारतों के बारे में बताती रहती. रेवती के पास तो कुछ भी नहीं होता बताने को. वह मन मसोस कर काम में लगी रहती. सोचती, एक बच्चा ही होता तो जिंदगी कट जाती. अब सास तो शारीरिक कमजोरी की वजह से कहीं आतीजाती न थीं. घर में ही सोच में पड़ी रहतीं. किसी विशेष दिन या त्योहार पर रेवती ही परिवार की ओर से मंदिर में चढ़ावा, दान आदि देने जाने लगी.
एक दिन रेवती ने सुना कि मंदिर में एक बहुत पहुंचे हुए साधु महाराज 10 दिन के लिए आने वाले हैं. वह कई सालों में से किसी घने अरण्य में तपस्या में लीन थे. उन्हें सिद्धि प्राप्त हो गई है. अब वे मानव कल्याण हेतु विभिन्न मंदिरों में जा कर प्रवचन देंगे और भक्तों की समस्याओं का निदान करेंगे. यह सुन रेवती को मानो राह मिल गई. उस ने सोचा, साधुमहाराज से अपने कष्टों के निवारण के लिए उपाय पूछेगी.
अगले दिन रेवती ने जल्दी ही घर के काम निबटा लिए. वह मंदिर में जा कर साधुमहाराज के दर्शन के लिए खड़ी हो गई. कुछ ही देर में एक फूलों से सजी जीप में अपने अनुयायियों के साथ एक युवा साधु उतरे. उन के उतरते ही वहां खड़ी भीड़ ने फूलों की वर्षा के साथ गगनभेदी जयजयकार से पूरा इलाका गुंजित कर दिया. मंदिर के अन्य सेवकजनों ने उन्हें बड़े सम्मान से अंदर ले जा कर एक ऊंची गद्दी पर विराजमान कर दिया.
रेवती भी भीड़ में धक्के खाती अंदर जा श्रद्धालुओं के साथ साधुमहाराज के सामने नीचे बिछी दरी पर जा बैठी. एक लोटा ताजा जूस पी कर साधुमहाराज ने अपना प्रवचन देना आरंभ कर दिया. बीचबीच में वे भजन भी गाते जिस में जनता उन का अनुकरण करती. रेवती तो साधुमहाराज के बिलकुल सामने बैठी थी. वह तो ऐसी मंत्रमुग्ध हुई कि आंखों से अविरल आंसू बह निकले. प्रसाद ले अभिभूत सी घर पहुंची.
बहुत दिनों बाद आज न जाने कैसे वह सासससुर से बोली, ‘‘आप दोनों का खाना लगा दूं?’’ दोनों ने हैरानी से हामी भर दी. रणवीर की मृत्यु के बाद रेवती एकदम चुप हो गई थी. घर में किसी से बात न करती. बेमन से खाना बना अपने कमरे में चली जाती. देवरदेवरानी अपने काम पर चले जाते. दोपहर को ससुर कांपते हाथों से खाना गरम कर पत्नी को देते और खुद भी खा लेते. रेवती बहुत कम खाना खाती. कभी कोई फल, कभी दही या छाछ पी लेती. उस की भूख मानो खत्म सी हो गई थी. उस ने जल्दी से खाना गरम किया और दोनों की थालियां लगा लाई. यही नहीं, पास बैठ कर मंदिर में सुने प्रवचन के बारे में भी बताने लगी.
सासससुर दोनों ने सांत्वना की सांस ली, चलो, अच्छा हुआ बहू का किसी ओर ध्यान तो लगा. वे इतने नए एवं उच्च विचारों के नहीं थे कि बहू की दूसरी शादी के बारे में सोचते अथवा आगे पढ़ाई करवाने की सोचते. राजस्थान के परंपरागत रूढि़वादी परिवार के थे जो इतना जानते थे कि पति की मृत्यु के साथ उस की पत्नी का जीवन भी खत्म हो गया. पति की आत्मा की शांति हेतु आएदिन व्रतअनुष्ठान चलते रहे. बहू का पूजापाठ में रु झान देख कर दोनों ने उस की प्रशंसा करते हुए रोज समय पर मंदिर जाने की सलाह दी.
साधु महाराज ने उसे हिदायत दी, ‘‘देवी, ध्यान रखना यह बात हमेशा गुप्त रखना वरना मेरी ज्ञानध्यानशक्ति कमजोर पड़ जाएगी. मैं फिर तुम्हारे लिए कुछ न कर पाऊंगा. जाओ, अब घर जाओ.’’
अब रेवती का उत्साह बढ़ गया. अगले दिन उतावली हो समय से पहले ही मंदिर में जा बैठी. साधुमहाराज पुजारी के साथ जब प्रवचन हौल में पधारे तो उन की नजर गद्दी के ठीक सामने अकेली बैठी रेवती पर पड़ी.श्वेत वस्त्र, सूनी मांग, सूनी कलाइयां देख उन्हें सम झते देर न लगी कि कोई विधवा है. वे धीमे स्वर में पुजारी से रेवती का सारा परिचय पता कर आंखें बंद कर गद्दी पर विराजमान हो गए. देखतेदेखते हौल खचाखच भर गया.
प्रवचन के बीच आज उन्होंने एक ऐसा भजन गाने के लिए चुना जब कृष्ण गोपियों से दूर चले जाते हैं. गोपियां उन के विरह में रोती हुई गाती हैं- ‘आन मिलो आन मिलो श्याम सांवरे, वन में अकेली राधा खोईखाई फिरे…’ लोग स्वर से स्वर मिलाने लगे. रेवती की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे. अंत में प्रसाद वितरण के बाद लोग चले गए तो रेवती भी उठ खड़ी हुई. अचानक उस ने देखा साधुमहाराज उसे रुकने का संकेत कर रहे हैं. वह असमंजम में इधरउधर देख खड़ी हो गई.
साधुमहाराज ने उसे अपनी गद्दी के पास बुला कर बैठने को कहा. डरती, सकुचाती रेवती बैठ गई तो उन्होंने रेवती के बारे में जो पुजारी से जानकारी हासिल की थी, सब अपने ज्योतिष ज्ञान के आधार पर रेवती को कह डाली. भोली रेवती हैरान हो उठी. उन के कदमों पर लोट गई, बोली, ‘‘यह सब सत्य है.’’
साधु महाराजजी ने कहा, ‘‘जब मैं पूजा के समय गहरे ध्यान में था तो एक फौजी मु झे ध्यानावस्था में दिखाई देता है. मानो कुछ कहना चाहता हो. अब सम झ में आया वह तुम्हारा शहीद पति ही है जो मेरे ध्यान ज्ञान के जरिए कोई संदेश देना चाहता है. कल जब मैं ध्यान में बैठूंगा तो उस से पूछूंगा.’’
भोलीभाली रेवती उस के शब्दजाल में फंसती गई. रेवती ने साधु के पैर पकड़ लिए, बोली, ‘‘महाराज, मेरा कल्याण करो.’’
साधु महाराज ने उसे हिदायत दी, ‘‘देवी, ध्यान रखना यह बात हमेशा गुप्त रखना वरना मेरी ज्ञानध्यानशक्ति कमजोर पड़ जाएगी. मैं फिर तुम्हारे लिए कुछ न कर पाऊंगा. जाओ, अब घर जाओ.’’
प्रसाद ले कर रेवती घर पहुंची. उस ने सासससुर को बड़े आदर से खाना परोसा. रणवीर की शहादत के बाद वह अवसाद की ओर चली गई थी. अब खुद ही उस से निकलने लगी है. इस का कारण मंदिर जाना, पूजापाठ में मन लगाना ही सम झा गया. दिन बीतते जा रहे थे. एक दिन प्रवचन के बाद साधुमहाराज ने एकांत में रेवती को बुलाया और कहा, ‘‘मु झे साधना के दौरान तुम्हारे पति ने दर्शन दिए. उस ने कहा, ‘मैं रेवती को इस तरह अकेला असहाय अवस्था में छोड़ आया था. अब मैं फिर उसी घर में जन्म ले कर रेवती का दुख दूर करूंगा.’’’
परममूर्खा और भावुक रेवती पांखडी साधुमहाराज की बातें सुन कर आंसुओं में डूब गई.
साधुमहाराज ने आगे कहा, ‘‘पर उसे दोबारा उसी घर में जन्म लेने से बुरी शक्तियां रोक रही हैं. उस के लिए मु झे बड़ी पूजा, यज्ञ, साधना करनी पड़ेगी. इस सब के लिए बहुत धन की जरूरत है जो तुम जानती हो हम साधुयोगियों के पास नहीं होता. अगर तुम कुछ मदद करो तो तुम्हारे पति का पुनर्जन्म लेना संभव हो सकता है.’’
यह सुन रेवती गहरी सोच में डूब गई. रेवती को इस तरह चुप देख साधु बोले, ‘‘नहींनहीं, इतना सोचने की जरूरत नहीं है. अगर नहीं है, तो रहने दो. मैं तो तुम्हारे पति की भटकती आत्मा की शांति के बारे में सोच रहा था.’’
रेवती को पता था 4-5 हजार रुपए उस की अलमारी में रखे हैं या फिर खानदानी गहने जो देवर की शादी के समय निकाले गए थे. कुछ व्यस्तता और बाद में रणवीर की मृत्यु के बाद किसी को बैंक में रखवाने की सुधबुध न रही. रेवती ने सोचा पति ही नहीं, तो गहने किस काम के. यह सोच कर बोली, ‘‘महाराज, रुपए तो नहीं, पर कुछ गहने हैं? वह ला सकती हूं क्या?’’
मक्कार संन्यासी बोला, ‘‘अरे, जेवर से तो बहुत दिक्कत हो जाएगी, पर क्या करूं बेटी, तुम्हें असहाय भी नहीं छोड़ना चाहता. चलो, कल सवेरे 8 बजे मैं यहां से प्रस्थान करूंगा, तुम जो देना चाहती हो, चुपचाप यहीं दे जाना.’’
रेवती पूरी रात करवट बदलती रही. उसे सवेरे का इंतजार था. उस ने रात को ही एक गुत्थीनुमा थैली में सारे गहने और 4 हजार रुपए रख लिए थे. वह पाखंडी साधुमहाराज से इतनी प्रभावित थी कि इस सब का परिणाम क्या होगा, एक बार भी नहीं सोचा. सवेरे उठ जल्दी से काम पूरा कर साधु को विदा देने मंदिर पहुंच गई. साधुमहाराज जीप में बैठ चुके थे. रेवती घबरा गई. वह बिना सोचेसम झे भीड़ को चीरती हुई जीप के पास पहुंच गई और पैरों में पोटली रख, पैर छू बाहर निकल आई.
रेवती, नीता की इस घोषणा से सतर्क हो गई. उस के दिमाग में साधु ने जो बातें भरी थीं वे घर बना चुकी थीं. रातरातभर वह गहरी सोच में डूबी रहती.
कुछ दिनों बाद ही एक दिन देवरानी को चक्कर और उलटियां आ रही थीं. डाक्टर ने मुआयना कर के 2 माह के गर्भ की सूचना दी. घर में थोड़ी सी खुशी की लहर घूम गई. रेवती की खुशी का ठिकाना न रहा. वह सम झी, साधु की साधना का फल है. वह दिनरात देवरानी की सेवा में लग गई. सभी संतुष्ट थे.
9वें महीने में रेवती की देवरानी नीता ने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया. घर में छाई मुर्दनी धीरेधीरे तिरोहित होती गई. जहां तक रेवती का सवाल, उस में अलग सा परिवर्तन आ गया था. अब देवरानी से उस का ध्यान हट कर सारा ध्यान बच्चे की ओर लग गया था. नीता को भी देखभाल की जरूरत थी. रेवती सारा दिन बच्चे को गोद में लिए बैठी रहती. कभी मालिश करती, कभी स्नान करवा के डेटौल में उस के कपड़े धो कर डालती. बच्चा दूध के लिए रोता तो जा कर नीता को देती. नीता को अब खलने लगा था.
रीता ने 6 महीने की मैटरनिटी लीव ले रखी थी. अब वह चलनेफिरने लगी थी. अपने बच्चे का काम करना चाहती थी. पर रेवती उसे मौका नहीं देती. किचन का काम अधूरा पड़ा रहता. चायनाश्ता, लंच का कुछ समय न रहा था. सब की प्रश्नवाचक निगाहें रेवती पर उठने लगीं. कुछ समय तो परिवार वाले रेवती में आए इस बदलाव का कारण जानने की कोशिश करते रहे लेकिन किसी नतीजे पर न पहुंच पा रहे थे. मान लिया नवजात बच्चे के काम कर उसे संतुष्टि मिलती थी पर अब वह अपनी देवरानी नीता के मां बनने की खुशियों में बाधा बन रही थी.
एक दिन तो हद ही हो गई. रेवतीकिचन का सारा काम अधूरा छोड़, बच्चे को ले मंदिर चली गई. बच्चा भूख के मारे रोने लगा. पर वह पूरे मंदिर परिसर की परिक्रमा करती रही. नीता नहा कर निकली, तो बच्चा नदारद. वह घबरा गई. सभी लोग रेवती और बच्चे को खोजने लगे. करीब आधे घंटे बाद रेवती भूख से बिलबिलाते, रोते बच्चे को ले कर जब घर आई तो नीता, जो सदैव जेठानी की इज्जत करती थी, उन के ऊपर हुए वैधव्य के वज्रपात के कारण ऊंची आवाज में बात न करती थी, गुस्से में फट पड़ी. उस ने रेवती की गोद से बच्चा छीनते हुए खरीखोटी सुना डाली.
रेवती को यह उम्मीद न थी. वह स्तब्ध रह गई. नीता ने चिल्ला कर कहा कि आज के बाद आप मेरे बच्चे को हाथ नहीं लगाएं. यह सुन रेवती के दिमाग में पाखंडी साधु की बात याद आई. जब तुम्हारा पति पुनर्जन्म लेगा तो बहुत लोग उसे तुम से दूर करने का प्रयास करेंगे. तुम हिम्मत न हारना. अब रेवती का दिमाग गुस्से से भर गया. वह चिल्लाने लगी, ‘‘किस का बच्चा, कौन सा बच्चा? यह बच्चा मेरे पति रणवीर हैं जिन्होंने इस घर में पुनर्जन्म लिया है. यह मेरा बच्चा है, मेरा रहेगा.’’ यह कह वह बच्चे को छीनने लगी. घरवालों ने बड़ी कठिनाई से दोनों को अलगअलग किया.
साधु महाराज ने उसे हिदायत दी, ‘‘देवी, ध्यान रखना यह बात हमेशा गुप्त रखना वरना मेरी ज्ञानध्यानशक्ति कमजोर पड़ जाएगी. मैं फिर तुम्हारे लिए कुछ न कर पाऊंगा. जाओ, अब घर जाओ.’’ सारे परिवार में खलबली मच गई. सब नीता को सम झाने लगे. रेवती की ओर से माफी मांगने लगे. नीता सम झदार लड़की थी. वह ससुराल वालों की आज्ञा की अवहेलना नहीं करना चाहती थी. सो, चुप्पी लगा गई.
रेवती, नीता की इस घोषणा से सतर्क हो गई. उस के दिमाग में साधु ने जो बातें भरी थीं वे घर बना चुकी थीं. रातरातभर वह गहरी सोच में डूबी रहती. उस के दिमाग में एक अजीब सी हलचल शुरू हो गई. वह दिमागी रुग्णता का शिकार हो गई.
एक दिन सासससुर किसी आयोजन में गए हुए थे. राजवीर औफिस गया था. नीता बच्चे को पालने में सुला कर नहाने चली गई. रेवती ने मौका पा एक बैग में कुछ कपड़े, दूध की बोतल रखी. कुछ रुपए उस के पास थे. वह बच्चे को एक चादर में लपेट कर दबेपांव घर से निकल गई. उसे स्वयं पता नहीं था कि कहां जाना है. सामने जाते हुए औटो को रोक स्टेशन चलने को कह दिया. स्टेशन आने पर हरिद्वार का टिकट ले लोगों से पूछतीपूछती प्लेटफौर्म नंबर-2 पर आ गई. उस ने साधुमहाराज के मुंह से हरिद्वार, ऋषिकेश का नाम बारबार सुना था.
उधर, नीता ने जब घर में बच्चे और रेवती को न देखा तो उसे रेवती की सारी योजना सम झ आ गई. उस ने बिना समय गंवाए पुलिस स्टेशन जा कर बच्चे और रेवती की फोटो दे कर सारी बात बताई. पुलिस सक्रिय हो गई. उस ने फिर पति, सास, ससुर रेवती के मायके में सब को सूचित किया. देखतेदेखते पुलिस ने बस अड्डे, टैक्सी स्टैंड, रेलवे स्टेशन खबर व फोटो भिजवा दीं. नीता की सू झबू झ और पुलिस की दौड़भाग से रेवती को हरिद्वार जाने वाली गाड़ी के प्लेटफौर्म से पकड़ लिया गया.
रेवती ने पुलिस को देख हंगामा कर दिया. वह किसी तरह भी बच्चा सौंपने को तैयार नहीं थी. उस ने एक ही रट लगा रखी थी कि यह मेरा रणवीर है. साधुमहाराज की तपस्या के बल पर मु झे वापस मिला है. जबरन लेडी कांस्टेबल ने बच्चे को उस की पकड़ से छुटकारा दिलवाया. रेवती अनर्गल प्रलाप करते हुए बेहोश हो गई.
लगभग एक महीने तक रेवती का मानसिक रोगों के अस्पताल में इलाज हुआ. डाक्टरों की स्नेहपूर्ण काउंसलिंग से उसे वास्तविकता से रूबरू करवाया गया. धीरेधीरे उसे अपनी नामस झी का भान हुआ. ससुराल वालों को जब रेवती द्वारा गहने देने की बात पता चली तो सब स्तब्ध रह गए. रेवती की नाजुक हालत को देख वे सब खून का घूंट पी कर रह गए. राजवीर ने मंदिर जा कर उस पाखंडी साधु की काली करतूत से सब को अवगत कराया. किसी के मोबाइल में साधु की प्रवचन करते समय की फोटो थी. उस ने प्रिंटआउट निकलवा पुलिस स्टेशन में दे कर गहने लूटने की घटना बना कर रिपोर्ट लिखवाई, पुलिस एक बार फिर अपने काम में जुट गई.
अब रेवती बहुत शर्मिंदा थी. वह नए सैशन में ऐडमिशन ले कर आगे पढ़ना चाहती थी. इस के लिए उस ने डरतेडरते सासससुर से कहा. वे दोनों पहले ही उस की नामस झी से नाखुश थे. पहले तो उन्होंने गहने गंवाने के कारण रेवती को खरीखोटी सुनाई, उस के बाद कालेज में ऐडमिशन की मांग को सिरे से खारिज कर दिया. रेवती एक बार फिर निराशा के अंधकार में डूब गई. उस दिन छुट्टी होने के कारण राजवीर घर पर ही था.
रेवती का पढ़ाई का प्रस्ताव रखना, मातापिता द्वारा खारिज करना ये सब बातें राजवीर सुन रहा था. वह नए जमाने के क्रांतिकारी विचारों का युवक था. रणवीर केवल उस का भाई ही नहीं, वरन पक्का दोस्त भी था. उसे यह सब नागवार गुजरा. वह रेवती भाभी की पीड़ा और अकेलेपन से वाकिफ था. वह भाभी के भविष्य को सुधारने के लिए कुछ करना चाहता था. अचानक ऐसा संयोग बना कि उसे रेवती को इस घोर निराशा से बाहर निकालने का मौका हाथ लगा.
राजवीर का एक दोस्त समीर था, जिस की पत्नी अचानक प्रसव के समय एक प्यारी सी बच्ची को जन्म दे कर चल बसी. पति पर तो दुख और मुसीबत का मानो पहाड़ ही टूट गया. घर में कोई न था जो बच्ची को संभाल लेता. बच्ची को जब तक कोई संभालने वाला न मिल जाता, नर्स उसे संभाल रही थी. उस ने दोस्त से अपनी रेवती भाभी के लिए पूछा. दोस्त समीर ने तुरंत हामी भर दी. वह राजवीर का शुक्रिया करते नहीं थक रहा था पर इस में भी राजवीर को एक आशंका थी कि रेवती को उस बिना मां की बच्ची को संभालने की अनुमति उस के रूढि़वादी मातापिता की ओर से मिलेगी या नहीं.
दूसरी समस्या यह थी कि रेवती और उस के परिवार को बच्ची को संभालने के लिए समीर के घर जा कर रहना मान्य होगा या नहीं. पहली समस्या का हल तो निकल गया. रेवती को बच्ची संभालने की अनुमति तो मिल गई पर रेवती और परिवार को समीर के घर जा कर रहना मान्य नहीं था. मातापिता की त्योरियों में भी बल पड़ गए. राजवीर को भी खरीखोटी सुननी पड़ी.
खैर, रेवती बच्ची को ले कर आ तो गई पर घर के कामों के चलते बच्ची को संभाल नहीं पा रही थी. घर में हर समय 2-2 बच्चों के काम, उन के रोने के शोरगुल के कारण कामकाज में लापरवाही होते देख राजवीर ने एक घरेलू हैल्पर रख ली. रेवती ने देखा कि सभी का ध्यान राजवीर के बेटे की ओर था. बच्ची की उपेक्षा हो रही थी. बच्ची रोती रहती, रेवती काम में लगी रहती. हैल्पर भी दूसरों के काम करती रहती. उस की बात पर ध्यान नहीं देती थी. रेवती को बच्ची से बहुत लगाव हो गया था. अब उस ने हिम्मत कर के बच्ची की केयरटेकर के रूप में समीर के घर रहने का फैसला कर लिया.
समीर एक शरीफ और सम झदार लड़का था. घरभर के एतराज के बावजूद राजवीर, रेवती को समीर के घर ले गया. समीर सवेरे ही औफिस निकल जाता, शाम को आ कर थोड़ी देर अपनी बच्ची से खेलता. जब वह सो जाती तो रेवती उसे अपने कमरे में ले जाती. रेवती के कुशल हाथों ने समीर के अस्तव्यस्त घर को संभाल लिया. बच्ची को पिता का भी भरपूर प्यार मिलने लगा. रेवती संतुष्ट थी. वह दिल की गहराइयों से बच्ची को प्यार करने लगी थी.
देखतेदेखते बच्ची 5 साल की हो गई. बच्ची के 5वें जन्मदिन पर राजवीर ने समीर से मिल कर एक योजना बनाई. समीर रेवती के लिए गुलाबी साड़ी और चूडि़यां लाया और बोला, ‘‘रेवतीजी, इन 5 सालों में आप ने मेरे घर और बच्ची के लिए इतना कुछ किया जिस का मैं उपकार जीवनभर नहीं उतार सकता. क्षमा चाहता हूं. मेरे घर और बच्ची को आप ने जैसे संभाला, वह कोई अपने घर का सदस्य ही संभाल सकता है. मैं आप को केयरटेकर न मान कर बहुत ऊंचा दर्जा देता हूं. आप भी आज इस समाज की वर्जनाओं को तोड़ कर चाहें तो इस साड़ी और चूडि़यों को पहन कर मेरे मन की बात मान सकती हैं.
‘‘अब मैं आप को अपने जीवनसाथी के रूप में देख कर समाज के रूढि़वादी बंधनों को तोड़ना चाहता हूं. अगर आप को मंजूर नहीं, तो कोई बात नहीं. मु झे बुरा नहीं लगेगा. बच्ची 5 साल की हो चुकी है, मैं इसे होस्टल में भेजने का इंतजाम कर लूंगा.’’
रेवती भी जिंदगी में इतने कटु अनुभव झेल चुकी थी कि और कुछ सहने की हिम्मत न थी. समीर की सज्जनता, सादगी और चरित्र की महानता वह परख चुकी थी. उसे भी इस घर और बच्ची के साथ समीर से भी मोह हो चुका था. ससुराल और मायके में राजवीर एकमात्र हितैषी था. उस के मन में खुशी की एक लहर सी उठी. अगले दिन बच्ची के जन्मदिन की शाम को रेवती ने पूरे घर को सजा कर समीर की दी गुलाबी साड़ी और चूडि़यां पहन लीं. मेहमानों के आने से पहले घर में यह गाना गूंजने लगा, ‘ये मोहमोह के धागे, तेरी उंगलियों से जा उल झे…’
समीर केक ले कर आया तो रेवती का यह बदला रूप देख आश्चर्य और खुशी में डूब गया. उस ने खुशी से बच्ची को गोद में उठा गोलगोल घुमाना शुरू कर दिया. रेवती ने जब उसे ऐसा करते देखा, तो भागती हुई आई, बोली, ‘‘अरे, मेरी बच्ची को चक्कर आ जाएंगे.’’ और दोनों जोर से हंस पड़े.