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कहानी: मन की आंखें

बगल वाले फ्लैट में रहने वाले बूढ़े बुढि़या की बकबक से परेशान, रमेश यह चाहता था कि दोनों अचानक कहीं गायब हो जाएं और जिंदगी पुरसुकून हो जाए मगर आज उन के चले जाने पर उस की आंखों में आंसू क्यों आ रहे हैं?

सुबह 11 बजे सो कर उठा तो  काफी झल्लाया हुआ था रमेश. बगल के फ्लैट से रोज की तरह जोरजोर से बोलने की आवाजें आ रही थीं. आज संडे की वजह से अभी वह और सोना चाहता था.


‘सरकार ने एक दिन छुट्टी का बनाया है ताकि बंदा अपनी सारी थकान, आराम कर के उतार सके. पर इन बूढ़ेबुढि़या को कौन समझाए. देर रात तक जागना और मुंहअंधेरे उठ कर बकबक शुरू कर देना, पता नहीं दोनों को एकदूसरे से क्या बैर है. कभी शांति से, धीमी आवाज में बात नहीं करते आपस में, जब भी करेंगे ऊंची आवाज में चिल्ला कर ही करेंगे. बहरे हैं क्या.’ यही सब सोचता हुआ वह बाथरूम में घुस गया. नींद का तो दोनों ने सत्यानाश कर ही दिया था. चाह कर भी उसे दोबारा नींद नहीं आई.


नहाधो कर निकला तो अपने लिए चाय बनाई और पेपर ले कर पढ़ने बैठ गया. 12 बजे से इंडिया और पाकिस्तान का मैच शुरू होने वाला था. आज तो वह किसी भी हाल में घर से हिलने वाला नहीं. ऐसे में आज पूरा दिन उसे उन दोनों की बकवास सुननी पड़ेगी. यह सोच कर ही उसे घबराहट हुई.


जब उस ने इस अपार्टमैंट में फ्लैट लिया था, उसे जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह 3 महीने में ही इतनी बुरी तरह से परेशान हो जाएगा. अपना खुद का फ्लैट खरीद कर कितना खुश हुआ था वह. पर उसे क्या पता था कि उस के बगल वाले फ्लैट में जो बुजुर्ग दंपती रहते हैं उन्हें दिनरात चिल्ला कर बोलने की ‘लाइलाज बीमारी’ है. बाहर की तरफ खुलने वाली खिड़की वह हमेशा बंद कर के रखता था. पर उन की आवाजें थीं कि दीवार तोड़ कर उस के कानों से टकराती थीं. दोनों कानों में रुई डाल लेता पर सब बेकार.


मैच शुरू हो चुका था. अभी 5 मिनट भी नहीं हुए थे कि बगल वाले फ्लैट से भी मैच की आवाजें आनी शुरू हो गईं, जो इतनी तेज और साफ सुनाई दे रही थीं कि उस ने अपने टीवी के वौल्यूम को एकदम धीमा कर दिया.


‘यार, यह क्या मुसीबत है. मैच देखो अपने टीवी पर और कमैंट्री सुनो दूसरे के टीवी से,’ वह बुरी तरह अपसैट हुआ.


कभीकभी तो उस का मन करता, जा कर उन्हें इतनी खरीखरी सुनाए कि दोबारा वे दोनों तेज आवाज में बातें करनी छोड़ दें पर ऐसा कर नहीं सका. दिन की शुरुआत होती तो वह सोचता कि आज जा कर खबर लेता हूं. औफिस से रातगए थकाहारा लौटता तो उस की यह ख्वाहिश दम तोड़ चुकी होती.


पता नहीं बाकी के फ्लैट वालों को उन से क्यों कोई एतराज नहीं था. उस ने कभी किसी को उन के दरवाजे पर आते नहीं देखा और न ही दोनों को कहीं बाहर जाते. लगता था जैसे उन दोनों की दुनिया तो बस चारदीवारी के अंदर ही कैद थी.


3 महीने में उस ने कभी उन के फ्लैट का दरवाजा खुला नहीं देखा था. ‘पता नहीं, अपनी रोजमर्रा की जरूरतें दोनों कैसे पूरी करते होंगे? दूध, अंडे, सब्जी, गैस वगैरह.


पर उसे क्या, वह क्यों इतना उन के बारे में सोच रहा है, वह कौन सा दिनभर घर में बैठा उन की निगरानी करता रहता है? वह सिर झटक कर मैच देखने लगा.


‘‘अरे, इतनी तेज आवाज में मैच क्यों देख रहे हो? तुम बहरे हो, इस का यह मतलब नहीं कि बिल्ंिडग वाले सभी बहरे हैं,’’ बोल कर बुढि़या जोर से खांसने लगी.


‘‘सिर पर क्यों खड़ी है मेरे, जा कर अपना काम देख. मैच भी शांति से नहीं देखने देती,’’ बूढ़े ने भी जोर से हांफते हुए कहा, ‘‘कम्बख्त मरती भी नहीं कि मुझे चैन मिले.’’


‘‘क्या कहा, मेरे मरने की दुआएं


मांग रहे हो? याद रखो, मर कर भी तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूंगी और मैं क्यों मरूं? मरें मेरे दुश्मन,’’ बुढि़या ने बूढ़े की तरफ हाथ लहराया.


‘‘हांहां, मैं ही मर जाता हूं. ऊपर जा कर कम से कम सुकून से तो रहूंगा,’’ बूढ़े ने अपनी लाठी जोर से पटकी.


‘‘ज्यादा खुश मत हो बूढ़े मियां, मैं वहां भी तुम्हारे पीछे चली आऊंगी. मुझ से पीछा छुड़ाना आसान नहीं,’’ बुढि़या ने आंखें नचाईं.


‘‘तू मेरे पीछे कैसे आएगी. तेरा तो टिकट कहीं और के लिए कटेगा,’’ बूढ़ा बोल कर हंसा, हंसने से ज्यादा खांसने लगा.


अब फोन की घंटी बजने की आवाज आई और उन का टीवी बंद हो गया. शायद उन के बेटे का फोन था. दोनों बात करने के लिए आपस में लड़ने लगे. इंटरवल के पहले बुढि़या ने बूढ़े की पोल खोली. इंटरवल के बाद बूढ़े की बारी आई. उस ने भी पेटभर बुढि़या के कारनामों का बखान किया पर फिल्म का क्लाइमैक्स नहीं हो सका. उधर से फोन कट हो गया था.


‘इन की फुजूल हरकतों की वजह से ही लगता है इन्हें अपने साथ ले कर नहीं गया होगा बेचारा,’ उसे बेटे की हालत पर अफसोस हुआ.


‘‘अपने बेटे की खैरियत पूछने के बजाय तू शिकायत की पोटली ले कर बैठ गई. इसलिए फोन काट दिया उस ने,’’ बूढ़े ने बुढि़या पर गुस्सा निकाला.


‘‘और तुम ने क्या किया. परसों वाली बात भी उसे बता दी कि मैं ने मलाई चुरा कर खाई थी और मेरे पेट में दर्द हो गया था,’’ बुढि़या तमतमा कर बोली.


‘‘तू ने भी तो मेरी कल वाली शिकायत लगा दी कि मैं अकेला ही सारी खीर खा गया और मुझे बदहजमी हो गई थी,’’ उस ने ताल से ताल मिला कर कहा.


उन की खट्टीमीठी शिकायतें सुनने के चक्कर में उस के जाने कितने चौकेछक्के और कैच छूट गए. उसे बहुत कोफ्त हुई.


वह रोज सुबह 8 बजे घर से निकलता और रात 8 बजे घर लौटता था. औफिस जाने में 1 घंटा लगता. नाश्ताखाना वहीं कैंटीन में ही करता. रात के लिए बाहर से कुछ ले कर आता और दोनों कानों में रुई डाल कर सो जाता. पर हर 1 घंटे पर दोनों की चिल्लाने की आवाजें आती रहती थीं.


‘चलो एक फायदा है, दोनों के जागते रहने से उन के और अगलबगल के फ्लैटों में चोरी नहीं हो सकती,’ वह सोच कर मुसकराया और सोने की कोशिश करने लगा.


सुबह उठ कर वह फ्रैश महसूस नहीं करता था. उस की नींद पर असर  पड़ने लगा था. आंखें चढ़ी हुई और लाल रहने लगी थीं. दोस्त मजाक बनाते कि रातभर जाग कर वह क्या करता है. इस से काम पर भी असर पड़ने लगा था. बौस की डांट अलग से खानी पड़ती. कुल मिला कर वह पूरी तरह ‘डिप्रैस्ड’ हो चुका था.


एक अच्छी नींद के लिए तरस रहा था. मन ही मन दोनों को बुराभला कहता, कोसता और गालियां देता. इस के अलावा कर भी क्या सकता था. किराए का फ्लैट होता तो कब का खाली कर के, कहीं और शिफ्ट हो जाता. दिन में काम और रात में ‘रतजगा’ कर के जिंदगी गुजर रही थी.


आज बहुत जरूरी फाइल उसे कंप्लीट करनी थी. फाइल घर पर ही ले कर आ गया और रात में खाने के बाद फाइल खोल कर बैठ गया.


किसी भी तरह इसे पूरा करना है. नहीं तो कल बौस की डांट पक्की खानी पड़ेगी. काम की वजह से उस का औफिस में इंप्रैशन खराब होने लगा है. उस ने यह सोचते हुए घड़ी देखी. रात के 11 बज रहे थे. वह पूरी तरह से काम में डूब गया.


‘‘ले, यह दवा पी ले, तबीयत ठीक नहीं है तेरी,’’ बूढ़े की जोर की आवाज आई.


रमेश को लगा मानो उसे ही दवा पीने को कह रहा है कोई. वह चौंक गया.


‘‘मुझे नहीं पीनी, खुद ही पी लो,’’ टनाक से जवाब आया.


‘‘सुबह से देख रहा हूं, कुछ कमजोर लग रही है.’’


‘‘तुम्हें इस से क्या, मैं मरूं या जीऊं. तुम्हारी बला से.’’


‘‘जिद मत कर, दवा पी ले. फिर बेटे से शिकायत न करना कि दवा नहीं दी.’’


‘‘नहीं करती, जाओ. बड़े आए दवा पिलाने वाले. हुम्म,’’ बुढि़या ने कहा.


‘‘मत पी, जा मर. मैं भी नौकर नहीं तेरा, खुशामद करूं, सेवा करूं,’’ बूढ़े ने आंखें तरेरीं.


‘‘मुझे तुम से अपनी सेवा करवानी भी नहीं. ऊपर वाले ने मुझे 2 हाथ, 2 पैर दिए हैं,’’ बुढि़या बिदक कर बोली.


‘‘हां, ठीक है. ऊपर वाले ने मुझे भी लंगड़ालूला नहीं बनाया है. तू भी अब कभी मुझे दवा पिलाने मत आइयो.’’


‘‘नहीं आती, जाओ. दवा दो, मैं खुद पी लूंगी,’’ उस ने अपने झुर्री वाले कांपते हाथ लहराए.


‘‘ला, अपना हाथ बढ़ा, गिरा तो नहीं देगी. संभाल के पी.’’


‘‘2 आंखें हैं मेरे पास,’’ उस ने अपनी धंसी हुई पलकें पटपटाईं.


‘‘मालूम है मुझे. 2 आंखें हैं तेरे पास. किसी के 4 नहीं होतीं, मेरे भी 2 ही आंखें हैं,’’ वह भी अपनी गड्ढे में धंसी हुई आंखों को मटका कर बोला.


‘‘हुर्र, अब जाओ यहां से, मेरा सिर मत खाओ,’’ बुढि़या ने हांक लगाई.


‘‘फुर्र तू यहां से,’’ पोपले मुंह से हवा उड़ाई. फिर थक कर दोनों खांसने लगे और देर तक खांसते रहे.


इधर, वह सोचने लगा कि बिना वजह कितना लड़ते हैं दोनों. बुढ़ापा है ही सब मुसीबतों की जड़. रोज उन दोनों को सुनते हुए, जीते हुए और महसूस करते हुए उसे लगा कि वह भी 70-80 साल का एक जवान बूढ़ा है. सिर्फ एक जवान बुढि़या की कमी है.


उसे भी जोर की खांसी आई. अब तीनों एकसाथ इकट्ठे खांस रहे थे.


सुबह औफिस जाते हुए वह अपनी धुन में सीटी बजाता दरवाजे को लौक कर रहा था.


‘‘ठीक से बंद कर.’’


वह बुरी तरह  चौंक कर इधरउधर देखने लगा.


‘‘हां, करती हूं. सब्र नहीं तो खुद ही खिड़की बंद कर दो,’’ बुढि़या डगडग हिलती हुई बोली.


उस ने एक ठंडी सांस छोड़ी. ये बुड्ढेबुढि़या एक दिन मेरी जान ले कर रहेंगे. अचानक बढ़ी हुई धड़कनें अब कुछ शांत हुईं.


‘‘बूढ़ी बीबी, टपक गई क्या? सुनो मेरी बात जरा.’’


‘‘मरी नहीं, अभी जिंदा हूं, बूढ़े मियां, सुनाओ अपनी बात जरा,’’ बुढि़या ने अपनी लाठी को जमीन पर जोर से पटका.


‘‘मैं कह रहा था, कमरे की सब खिड़कियां बंद कर दे. आज जोरदार बारिश होने वाली है,’’ बूढ़े ने भी जवाब में अपनी लाठी जोर से पटकी.


‘‘लो, सुनो बात. आज ही बारिश नहीं होगी, अगले 2 दिनों तक होती रहेगी.’’


‘‘हां, जानता हूं, बूढ़ी बीबी. तुम्हें तो सब पता रहता है. आज शाम को गरमगरम पकौड़ी तल देगी,’’ बूढ़ा पोपले मुंह से जुगाली करता हुआ बोला.


‘‘और सुन लो बात, बारिश हुई नहीं. अभी से बूढ़े मियां की लार टपकने लगी,’’ बुढि़या खांसी मिली हुई हंसी हंसने लगी.


वह अपार्टमैंट के बाहर आया. खिली हुई धूप थी. आकाश एकदम साफ नजर आ रहा था, कहीं से भी बारिश के आसार दिखाई नहीं दे रहे थे. हवा थोड़ी ठंडी बह रही थी.


ऊपर वाला भी कमाल के नमूने बना कर नीचे भेजता है, दूसरों की नींद हराम करने के लिए. खुद तो बड़े आराम से मजे ले कर लंबी तान के सो रहा होगा. उस ने मन ही मन कुढ़ते हुए बाइक स्टार्ट की. इन्हें तो सरकार की तरफ से मैडल मिलना चाहिए. घर बैठे मौसम विभाग की जानकारी दे रहे हैं.


औफिस से लौटते हुए वह पूरी तरह से बारिश में भीग चुका था. उस ने सोचा कि शायद सुबह तक बारिश रुक जाए. पर दूसरे दिन भी बारिश अपने पूरे शबाब पर थी. पता नहीं उसे क्यों थोड़ी बेचैनी महसूस होने लगी. शायद इतनी बारिश उस के बाहर जाने के खयाल से हो रही होगी. उस ने सिर झटका पर खुशी भी थी, जिस शहर जाना था वहां उस के मांबाप रहते थे. इसी बहाने उन के साथ दोचार दिन रह भी लेगा. अचानक देख कर खुश हो जाएंगे वे.


घर वाले उस पर लगातार शादी का प्रैशर बना रहे थे. पर वह बहाने से टालता जा रहा था. शादी के बाद वाइफ के साथ इस फ्लैट में कैसे रह सकेगा? नई जिंदगी की शुरुआत बगल वाले बुजुर्गों के साथ कैसे करेगा? उसे सोच कर कुछ और बेचैनी महसूस हुई पर हिम्मत कर के घर से बाहर निकल गया.


बगल वाले फ्लैट पर नजर गई, दरवाजा रोजाना की तरह बंद था. अंदर से हमेशा की तरह जोर से बोलने की आवाजें आ रही थीं. नजर नेमप्लेट पर गई. ‘मिस्टर यूसुफ किदवई ऐंड मिसेज किदवई’ नाम बुदबुदाता हुआ वह तेजी से आगे बढ़ गया. 4 घंटे का सफर था. उसे हैरत हुई कि 3 दिन तक बारिश लगातार होती रही थी. चौथे दिन जा कर मौसम साफ हुआ. खिल कर धूप निकली थी. उसी दिन वह लौटा.


अपार्टमैंट के पास आया तो फिर वही बेचैनी महसूस होने लगी. चारों तरफ अफरातफरी मची हुई थी. लोग बदहवासी में आजा रहे थे. दिल तेजी से धड़कने लगा. सीढि़यां चढ़ता हुआ सैकंड फ्लोर पर पहुंचा. लिफ्ट में कुछ प्रौब्लम हो गई थी. मि. यूसुफ किदवई के फ्लैट का दरवाजा आज पहली बार खुला हुआ था.


पुलिस भी आई हुई थी. बेचैनी कुछ और बढ़ गई. उस ने उन दोनों बुजुर्गों को आज तक नहीं देखा था. सिर्फ उन को सुना था. आज पहली बार उन्हें देखेगा, उन से मिलेगा, सोचता हुआ आगे बढ़ा.


तभी स्ट्रेचर पकड़े 4 लोग उन के फ्लैट से बाहर निकले. खून से लथपथ लाश थी. सफेद चादर से ढकी हुई, ऊपर से नीचे तक. चादर पर खून के लाल धब्बे दिख रहे थे.


फिर 4 लोग दूसरा स्ट्रेचर ले कर निकले. खून से लथपथ लाश थी. सफेद चादर से ढकी हुई, ऊपर से नीचे तक. दोनों के हाथ आपस में जुड़े हुए थे. अकड़ी हुई, सख्ती से उंगलियां आपस में फंसी हुई थीं.


‘‘अंतिम सांस एकदूसरे का हाथ पकड़ कर ही ली होगी,’’ एक देखने वाले ने कहा.


‘‘अब दिल्ली अकेले रहने लायक नहीं रही बुजुर्गों के लिए,’’ दूसरे ने कहा.


‘‘बेटा कब से अपने साथ अमेरिका ले जाना चाहता था पर बुढ़ापे में दरबदर नहीं होना चाहते थे. चले जाते तो ऐसी मौत तो नहीं मरते,’’ तीसरे ने कहा.


‘‘अपना देश, अपनी मिट्टी का लगाव छोड़ कर जाना नहीं चाहते थे बेचारे,’’ एक महिला आंसू पोंछते हुए बोली.


‘‘किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं थी, बेटा सारे इंतजाम कर के गया था.’’


‘‘उन कसाइयों का कलेजा नहीं कांपा इन्हें मारते हुए. रुपएपैसे लूट लेते पर जान तो बख्श देते,’’ एक औरत भर्राए गले से बोली.


‘‘2 दिन पुरानी लाश है. इसलिए अकड़ गई है. हाथ छुड़ाते नहीं छूटता. वह तो आज इन का राशन वाला आया था. घंटी बजाता रहा. जब दरवाजा नहीं खुला तो उसे शक हुआ.’’


‘‘दोनों अंधे, लाचार बुजुर्गों को मारने वालों को कहीं भी जगह न मिलेगी. एकदूसरे का सहारा थे दोनों, मन की आंखों से एकदूसरे को देखते थे,’’ औरत रोंआसी हो आई.


‘‘पूरी जिंदगी साथ जिए, मरे भी साथ ही. बिल्ंिडग सूनी हो गई इन के बगैर. अपनी मिसाल खुद थे दोनों.’’


जितने मुंह उतनी बातें. एंबुलैंस धूल उड़ाती उन्हें ले कर चली गई. सब लोग भी वापस अपने माचिस के डब्बे में बंद हो गए.


पर वह अकेला नीचे खड़ा रहा. उसे तो सिर्फ यही सुनाई दे रहा था, ‘मन की आंखों से देखते थे एकदूसरे को.’


इन 6 महीनों में उस ने भी तो हमेशा यही चाहा था कि काश, कुछ ऐसा हो कि वे दोनों बूढ़ाबूढ़ी अचानक कहीं गायब हो जाएं और उस की जिंदगी पुरसुकून हो जाए.


जो चाहता था वही तो हुआ था. अचानक गायब हो गए थे दोनों.


फिर आंखों में ये आंसू बारबार क्यों आ रहे हैं? होंठों पर थरथराहट क्यों है? और सीने में गरम लावे से क्यों धधक रहे हैं? वे दोनों कौन लगते थे उस के? या वह कौन लगता था उन का? कोई भी तो नहीं. फिर ये तड़प क्योंकर हो रही है उस  को. हां, शायद एक रिश्ता उन का आपस में था, इंसानियत का.


पूरी बिल्ंिडग यह सचाई जानती थी  कि दोनों बुजुर्ग दंपती अंधे थे. देख नहीं सकते थे. पर वह तो आंख रहते हुए भी दिल और दिमाग से अंधा था. बस, उन्हें लड़तेझगड़ते और चिल्लाते सुनता रहा. सिर्फ अपने बारे में ही सोचता रहा. कभी उन के बारे में जानने की कोशिश नहीं की. अगलबगल फ्लैट में रहते भी अनजान बना रहा. 6 महीने का साथ था उन का. दोनों कल तक थे पर आज नहीं हैं.


उस के दिल ने क्यों एक बार भी नहीं कहा कि उन के डोर की कौलबैल बजाए. कोई तो दरवाजा खोलता, कुछ बातें होतीं, एक अनाम सा रिश्ता बनता. वे दोनों उसे जानते, वह भी उन की मुश्किलों को समझता. पर उन के फ्लैट का दरवाजा तो हमेशा बंद रहता था. तो क्या हुआ? उस ने भी तो अपने मन के दरवाजे को मजबूती से बंद कर रखा था. सिर्फ उन्हें सुनता रहा, आंखों से देखने की जरूरत ही महसूस नहीं की.


बहरहाल, किसी तरह खुद को ढोता हुआ वह अपने फ्लैट में आया. बगल वाले फ्लैट के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था. आवाजें अब भी आ रही थीं.


‘ओ बूढ़े मियां, ओ बूढ़ी बीबी, जरा हाथ तो बढ़ाना,’ उस ने अपने दोनों कान जोर से बंद कर लिए.

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