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कहानी: दरार

रमेश दुखी था, उदास था. उस के दिलोदिमाग में भयंकर  झंझावात चल रहे थे. न घर में मन लग रहा था न औफिस में. वह करे तो क्या करे?

ऐसे आदमी पर क्या गुजरती होगी जो अपनी पत्नी को किसी गैरमर्द के साथ रंगेहाथ पकड़ ले और रंगेहाथ भी इस तरह कि पत्नी यह बहाना भी न कर सके कि उस के साथ जबरदस्ती हो रही थी. पहलेपहल उस के पास जब फोन आया तो उसे लगा कि कोई उस के साथ भद्दा मजाक कर रहा है. उस ने फोन करने वाले को डांटाफटकारा भी. उसे कौल ट्रैस करवा कर पुलिस में देने की धमकी भी दी. लेकिन खबर देने वाला पूरी तरह गंभीर था. उस ने कहा, ‘‘आप की पत्नी के अवैध संबंध आज नहीं तो कल उजागर होंगे ही. मैं आप को पहले सूचित कर रहा हूं ताकि आप समय से पहले सचेत हो जाएं. फैलतेफैलते खबर आप तक पहुंची तो आप की ही बदनामी होगी.’’


‘‘क्या सुबूत है तुम्हारे पास?’’ उस ने प्रश्न किया.


‘‘सुबूत तलाशना मेरा काम नहीं है. आप का घर ऐयाशी का अड्डा बन चुका है. सुबूत तुम खुद तलाश करो.’’ और फोन काट दिया गया.


फोन करने वाले की बात पर उसे यकीन न आना स्वाभाविक था. 14 वर्ष हो चुके थे उस के विवाह को. एक बेटा भी था जो अभी स्कूल में पढ़ रहा था. सुखी दांपत्य था उन का. ऐसे में उस की पत्नी के बहकने का कोई कारण नहीं था. घर में सारी सुखसुविधाएं मौजूद थीं. स्वयं का घर था. अच्छा वेतन था. अच्छी नौकरी थी उस के पास. बैंक में मैनेजर था वह. लेकिन कोई उसे इस तरह फोन क्यों करेगा? उस की तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है. 13 वर्ष का बेटा था उस का. पत्नी की उम्र भी 35 वर्ष के लगभग थी. स्वयं उस की आयु 45 वर्ष थी. सुना था उस ने कि इस उम्र में औरत एक बार फिर से युवा होती है. औरत में वही लक्षण उभरते हैं जो 17-18 की उम्र में. लेकिन वह इस बात का पता कैसे लगाए? दिमाग में बैठे शक को कैसे साबित करे? पत्नी के हावभाव, व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं था. जैसी वह पहले थी वैसी अब भी है.


उस के चेहरे पर परेशानी के भाव देख कर उस के सब से घनिष्ठ मित्र रमन ने पूछा, ‘‘क्या बात है रमेश? कोई परेशानी हो तो कहो?’’


रमन उस का सब से निकटवर्ती मित्र था. दोनों अपनी परेशानियां, अपने दुख एकदूसरे को बता कर मन हलका करते थे. बचपन से साथ में पढ़ेलिखे, साथ में खेले और आज एक ही बैंक में कार्यरत थे. फर्क सिर्फ इतना था कि वह जिस बैंक में मैनेजर था, रमन उसी बैंक में अकाउंटैंट था.


‘‘कुछ नहीं, पारिवारिक कारण है,’’ रमेश ने टालने के अंदाज में कहा. बता कर करता भी क्या? थोड़ी देर के लिए मन हलका हो जाता और यह डर बढ़ जाता कि उसे बात पता चली तो वह किसी न किसी से कहेगा जरूर चाहे वह कितना भी घनिष्ठ मित्र हो. किसी से न कहने की कसम भी उठा ले तो भी ऐसी बातें आदमी अपने तक रख नहीं सकता.


रमेश दुखी था, उदास था. उस के दिलोदिमाग में भयंकर  झं झावात चल रहे थे. न घर में मन लग रहा था न औफिस में. वह करे तो क्या करे? इस सचाई का पता कैसे लगाए? किसी को तो बताना पड़ेगा. तभी तो कोई रास्ता मिलेगा और मन हलका भी होगा. आखिर कब तक वह अंदर ही अंदर घुटता रहेगा. फिर समाधान निकलेगा कैसे? नहीं… किसी को बताने, पूछने से पहले उसे इस बात को प्रत्यक्ष देखना होगा. कभीकभी आंखें भी धोखा खा जाती हैं, फिर यह तो किसी की फोन पर दी गई खबर मात्र है जो गलत हो सकती है.


रमेश अब बिना बताए टाइमबेटाइम घर आने लगा और घर भी इस तरह आता जैसे दबेपांव कोई चोर घुसता है. अचानक घर आने से रमेश की पत्नी के चेहरे पर बेचैनी सी दिखाई देने लगी. हालांकि घर में उस समय कोई नहीं था. लेकिन पत्नी विभा के चेहरे पर आई हड़बड़ाहट ने उस के शक को यकीन में बदल दिया. विभा ने पूछा, ‘‘अचानक, कैसे? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’


‘‘क्यों, क्या मु झे अपने घर आने के लिए इजाजत लेनी पड़ेगी?’’


‘‘पहले तो कभी नहीं आए दोपहर में. वह भी बैंक के समय पर.’’


‘‘मेरे आने से तुम्हें कोई तकलीफ है?’’


‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. पहले कभी नहीं हुआ ऐसा, इसलिए पूछ लिया.’’


‘‘पहले तो बहुतकुछ नहीं हुआ, जो अब हो रहा है,’’ रमेश ने कड़वाहटभरे स्वर में कहा. विभा ने कोई उत्तर नहीं दिया.


रमेश ने बारीकी से बैडरूम का आंखों से मुआयना किया. लेकिन सबकुछ ठीक था अपनी जगह पर. वह पलंग पर लेट गया. शायद किसी अन्य व्यक्ति का, कुछ देर पहले होने का, उस के जिस्म की गंध का कुछ अनुमान मिले. किंतु वह स्त्री नहीं था. इन बातों को औरत की छठी इंद्रिय भाप लेती है. तभी उसे तकिए के पास एक मोबाइल नजर आया. यह मोबाइल किस का हो सकता है. रमेश ने मोबाइल उठाया ही था कि अचानक चाय ले कर विभा कमरे में आ गई. उस ने तीव्रता से मोबाइल यह कह कर ले लिया कि मेरी सहेली का मोबाइल है. जल्दी में छोड़ गई होगी.


‘‘अगर तुम्हारी सहेली का मोबाइल है तो चील की तरह  झपट्टा मार कर क्यों छीना?’’


‘‘मैं ने  झपट्टा नहीं मारा. सहज ही लिया है. तुम तिल का ताड़ बनाने लगे हो आजकल,’’ विभा ने संभल कर उत्तर दिया.


‘‘तुम्हारी सहेली आई थी?’’


‘‘हां.’’


‘‘तुम ने बताया नहीं?’’


‘‘वह तो अकसर आती है. इस में बताने वाली क्या बात है?’’ विभा ने सहज हो कर उत्तर दिया. रमेश पूछने ही वाला था कि तुम्हारी सहेली का नाम क्या है? लेकिन वह यह सोच कर चुप हो गया कि पूछताछ से पत्नी को शक हो सकता है. फिर वह सावधान हो जाएगी.


रमेश बैंक में अपनी सीट पर काम कर रहा था. तभी मोबाइल की घंटी बजी. उस तरफ से वही स्वर सुनाई दिया.


‘‘बहुत चालाक है तुम्हारी बीवी. उसे पकड़ना है तो ऐसा समय चुनो जब तुम्हारा बेटा स्कूल में हो.’’


‘‘यदि इतने शुभचिंतक हो तो तुम्हीं बता दो कि कौन, कब आता है?’’


‘‘बीवी तुम्हारी बेवफाई करे और जानकारी मैं दूं?’’


‘‘तो फिर फोन कर के खबर क्यों देते हो?’’


‘‘रंगेहाथ पकड़ोगे तो कोई बहाना नहीं बना पाएगी, वरना स्त्री चरित्र है, रोधो कर स्वयं को सच्चा और जमाने को  झूठा साबित कर देगी.’’


‘‘रास्ता साफ है. गाड़ी चालू नहीं हो रही थी. पैदल ही निकल गए. लेकिन जरा चौकस रहना. मुझे लगता है उसे शक हो गया है. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’

‘‘तुम क्या मेरे घर की चौकीदारी करते हो? तुम्हें कैसे पता कि मेरे घर में कौन आता है, क्यों आता है?’’ रमेश ने चिढ़ कर कहा. दूसरी तरफ से हंसी की आवाज आई और फोन कट गया.


रमेश सोचता रहा, सोचता रहा और एकदम से उस के दिमाग में आइडिया आया. विभा को लगे कि वह घर पर नहीं है, किंतु हो वह घर पर ही.


दूसरे दिन सुबह उस ने अपनी   योजना को अमलीजामा पहनाना  शुरू कर दिया. उस ने कार स्टार्ट की, फिर बंद की. फिर स्टार्ट की, फिर बंद की. इस तरह उस ने कई बार किया. फिर  झल्ला कर कहा, ‘‘कार स्टार्ट नहीं हो रही है. मैं बाहर सड़क से औटो ले लूंगा.’’


विभा उस वक्त बाथरूम में पहुंच चुकी थी. उस ने कहा, ‘‘दरवाजा अटका कर चले जाना. मैं बाद में बंद कर लूंगी. रमेश ने जोर से दरवाजा खोला, फिर जोर से खींच कर बंद किया और बाहर जाने के बजाय बैडरूम में रखी बड़ी अलमारी के पीछे छिप गया. अपने ही घर में छिपना कितना पीड़ादायक होता है अपनी पत्नी को गैरपुरुष के साथ रंगेहाथ पकड़ना. बेटा तरुण पहले ही स्कूल जा चुका था. अब उसे सांस रोके छिप कर खड़े इंतजार करना था उस भीषण दृश्य का.


रमेश ने मन ही मन सोचा यदि उस की पत्नी ने उसे देख लिया तो क्या सोचेगी उस के बारे में. और यदि यह सच न हुआ, तो वह अपनी ही नजरों में गिर जाएगा. विचारों के ऊहापोह में उसे पता भी न चला कि उसे दम साधे खड़े हुए कितना वक्त गुजर चुका है. काफी समय तक उसे अपनी पत्नी के इस कमरे में आनेजाने की आहट मिलती रही. फिर पत्नी के मोबाइल की रिंगटोन सुनाई दी. विभा ने मोबाइल उठाया. उस तरफ से कौन बोल रहा था, क्या बोल रहा था, यह उसे विभा की बात से सम झ आ गया.


‘‘रास्ता साफ है. गाड़ी चालू नहीं हो रही थी. पैदल ही निकल गए. लेकिन जरा चौकस रहना. मु झे लगता है उसे शक हो गया है. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’


फिर विभा गुनगुनाने लगी. थोड़ी देर बाद दरवाजे की घंटी बजी. फिर एक  30-32 वर्ष के आकर्षक गौरवर्ण युवक ने बैडरूम में प्रवेश किया. दोनों लिपट गए. फिर दोनों के मध्य रतिक्रिया आरंभ हुई. दोनों निढाल हो कर बिस्तर पर लेट गए.


‘तुम घबराना मत,’’ युवक ने उसे धैर्य बंधाया, ‘‘रास्ते का कांटा बनेगा तो कांटे को निकाल फेंकना मु झे आता है.’’


‘‘तुम हत्या कर दोगे? इतना प्यार करते हो मुझे,’’ विभा ने लिपटते हुए कहा.


रमेश का खून खौलने लगा. उस के दिल में आया कि कहीं से एक रिवौल्वर का इंतजाम करे और दोनों को गोली से उड़ा दे. यही सजा है दोनों की. किंतु खौलता हुआ रक्त उसे जमता हुआ जान पड़ा. उस के हाथपैर कांपने लगे.  झूठ की ताकत का भी जवाब नहीं, कितनी बेवफाई और ताकत से भरा हुआ था. बेचारा सच अपने ही घर में छिपा हुआ दोनों की प्रणयलीला देख रहा था. फिर मिलने का वादा कर के युवक चला गया और विभा ने कमरा ठीकठाक किया व बिस्तर पर लेट गई. लेटते ही उस के खर्राटे कमरे में गूंजने लगे.


दरवाजे को आहिस्ता से खोल कर रमेश बाहर निकल गया. जो उस ने देखा, जो उस ने भोगा, उस मृत्युतुल्य कष्ट में उस की सम झ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. खत्म कर दे दोनों को और जेल चला जाए जीवनभर के लिए या खुद को खत्म कर ले और पीछा छुटाए अपने इस टूटे, हारे, धोखा खाए जीवन से? किंतु दोनों ही स्थितियों में उस के बेटे का क्या होगा? इन लोगों का क्या है इन्हें तो खुली छूट मिल जाएगी किंतु सजा भुगतेगा उस का बेटा. नष्ट हो जाएगा उस के बेटे का भविष्य.


उसे लगा कि अब चाहे जो भी हो, उसे रमन से बात करनी चाहिए कि वह आगे क्या करे? ऐसा ही चलने दे? आंख पर पट्टी बांध कर जीना शुरू कर दे? सब बातों से अनजान बना रहे? उसे लगा कि रमन को बता देना चाहिए. कोई तो हो इस दुर्दांत घड़ी में अपना. उस ने रमन को सबकुछ बता दिया. उस की आंखों से आंसू बहते रहे. उस का कहना जारी रहा और रमन ने सब सुनने के बाद अफसोस जताते हुए कहा, ‘‘हर समस्या का हल है. तुम क्या चाहते हो?’’


‘‘मु झे कुछ सम झ में नहीं आ रहा है,’’ रमेश ने विषादभरे स्वर में कहा.


‘‘तो, चलो मेरे साथ,’’ रमन ने कहा और बिना प्रश्न पूछे रमेश उस के पीछे छोटे बच्चे की तरह चल पड़ा. रमेश को रमन एक कौफीहाउस में ले गया और उस से कहा, ‘‘मैं जो पूछूं, सचसच बताना. मैं तुम्हारा दोस्त हूं, एक अच्छा समाधान निकालने की कोशिश करूंगा.’’


‘‘पूछो.’’


‘‘तुम्हारे अंदर कोई कमी है. मेरा मतलब…’’


‘‘कमी होती तो मेरे साथ वह इतना लंबा समय न बिताती. मत भूलो कि मैं एक बच्चे का बाप हूं.’’


‘‘यह सब कब से चल रहा है.’’


‘‘मु झे पता नहीं.’’


‘‘तुम्हें शक कैसे हुआ?’’


‘‘किसी ने फोन पर जानकारी दी.’’


‘‘जो सही निकली.’’


‘‘हां.’’


‘‘तुम क्या चाहते हो?’’


‘‘मैं उन दोनों का कत्ल करना चाहता हूं.’’


‘‘यह मूर्खता होगी.’’


‘‘तो तुम बताओ, क्या करूं मैं?’’


‘‘मेरे खयाल से तुम्हारा इस संबंध में अपनी पत्नी से बात करना उचित नहीं होगा. यदि तुम बिना सुबूत के तलाक देने की बात करोगे, तो हो सकता है तुम्हारी पत्नी तुम्हें दहेज प्रताड़ना के केस में अंदर करवा दे. मेरा एक मित्र है जो जासूसी का काम करता है. उस के पास चलते हैं. एक बार सुबूत हाथ लग गए तो फिर तुम जैसा चाहे, करो.’’


‘‘तो चलते हैं तुम्हारे जासूस मित्र के पास.’’


इस समय रमेश और रमन टाइगर डिटैक्टिव एजेंसी में बैठ कर जासूस टाइगर को सारी बात सुना रहे थे. पूरी बात सुनने के बाद जासूस टाइगर ने अपनी फीस 10 हजार रुपए एडवांस बताई और सुबूत मिलने के बाद 30 हजार रुपए. जो रमेश ने मंजूर कर ले…


‘‘लेकिन आप सुबूत जुटाएंगे कैसे?’’ रमेश ने पूछा.


‘‘एक बात पूछूं टाइगर भाई,’’ रमेश ने दीनता से कहा, ‘‘ऐसा कोई कानून नहीं है जिस में पत्नी को चरित्रहीनता के आधार पर सजा दिलवाई जा सके?’’

रमेश ने सोचा क्यों न सब से पहले विभा के आशिक की पत्नी को सच बताया जाए. जब उस की पत्नी को अपने पति की करतूतों के बारे में पता चलेगा तो वह अपने पति के विरुद्ध कठोर कदम उठाएगी. हो सकता है इस से विभा और उस के आशिक के संबंध टूट जाएं. नहीं भी टूटते, तो कम से कम जो तकलीफ मैं ने सही है, यही उस के आशिक को भी भुगतनी पड़ेगी. उस ने मेरा घर तोड़ने की कोशिश की, मैं उस का घर तोड़ कर कुछ तसल्ली तो महसूस करूंगा. और वह जासूस के दिए पते पर विभा के आशिक के घर पहुंचा.


विभा के आशिक का नाम सुमेरचंद था. कालेज में वह विभा के साथ पढ़ता था. उस की पत्नी घरेलू महिला थी. उस की 2 बेटियां थीं. वह कालेज में प्रोफैसर था. विभा से उस का प्रेम कालेज में था. शादी के बहुत बाद फेसबुक के जरिए यह प्रेम, अवैध संबंधों में परिणत हो चुका था. रमेश को टाइगर द्वारा दी गई जानकारी से यह भी पता चला था कि दोपहर में सुमेरचंद कालेज में या उस के घर में होता है. बैंक में एक घंटे काम करने के बाद रमेश सुमेरचंद के घर पहुंचा.


दरवाजा सुमेरचंद की पत्नी ने खोला. रमेश ने अपना परिचय दे कर थोड़ा समय मांगा. इस थोड़े से समय में उस ने सीडी दिखाई और सारी जानकारी दी. सुमेरचंद की पत्नी विभा से अधिक सुंदर और शिक्षित थी. रमेश द्वारा दी गई जानकारी से उस का चेहरा उदास और गुस्से में बदल गया.रमेश और रमन वापस आ गए. दूसरे दिन रमेश टाइगर को अपना मित्र बना कर घर ले गया. उस की पत्नी विभा जब किचन में गई, तब टाइगर ने खुफिया कैमरा लगा दिया. दूसरे दिन की शाम को रमेश ने कैमरा टाइगर को सौंप दिया. तीसरे दिन टाइगर ने सुबूत बना कर रमेश को सीडी सौंप दी. उस के आशिक का नाम, कामधाम सब का ब्योरा बना कर दिया. रमेश ने बकाया 30 हजार रुपए धन्यवाद सहित जासूस टाइगर को सौंपे. सुबूत और जानकारी हाथ लगते ही रमेश को अंदर ही अंदर तसल्ली मिली और साथ में ताकत भी.


‘‘जैसे आप बैंक में मैनेजरी करते हैं. अरे भाई, मेरा यही तो काम है. यही मेरा पेशा है. आप मु झे अपने घर किसी बहाने से ले जाएंगे. मैं घर में, तुम्हारे बैडरूम में कैमरा लगा दूंगा, गोपनीय तरीके से. फिर दूसरे दिन तुम्हें कैमरा निकाल कर मु झे वापस करना है. मैं तुम्हें, तुम्हारी पत्नी और उस के आशिक की पूरीपूरी जानकारी दूंगा. इस सुबूत के आधार पर तुम्हें जो कदम उठाना हो, उठा सकते हो. तलाक लेना हो, चाहे पत्नी को सुबूत दे कर सुधरने के लिए एक मौका देना हो.’’


‘‘एक बात पूछूं टाइगर भाई,’’ रमेश ने दीनता से कहा, ‘‘ऐसा कोई कानून नहीं है जिस में पत्नी को चरित्रहीनता के आधार पर सजा दिलवाई जा सके?’’


टाइगर ने रमेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘नहीं, दोस्त. ऐसा कोई कानून नहीं है जिस में शादीशुदा स्त्री की चरित्रहीनता पर कानून की कोई धारा लग सके.’’


‘‘आप अपने पति को क्या सजा देंगी, मैडम?’’ रमेश ने मासूमियत से पूछा.


कुछ देर शांत रह कर सुमेरचंद की पत्नी रीमा ने कहा, ‘‘घरवालों की मरजी के खिलाफ मैं ने लवमैरिज की थी. अब किस मुंह से अपने पति की करतूत बताऊंगी. शादी के कुछ समय बाद ही मु झे अपने पति के चरित्र के बारे में पता चल गया था, लेकिन मैं क्या कर सकती थी और अभी भी क्या कर सकती हूं. मेरी 2 बेटियां हैं. मु झे अपना घर भी बचाना है.’’


‘‘आप तलाक दे सकती हैं,’’ रमेश ने कहा.


‘‘मैं अपने पति को तलाक की गोली से मारूं या बंदूक की गोली से, घर तो मेरा ही टूटना है. मेरा विवेक तो यही कहता है कि सुबह का भूला शाम को घर आ ही जाएगा. ज्यादा से ज्यादा मैं कुछ दिन नाराज रह सकती हूं, पति को मार तो नहीं सकती. तलाक के बाद मैं क्या करूंगी? 2 बेटियों को अकेले पालना संभव नहीं है मेरे लिए. किंतु आप तो मर्द हैं. अच्छीखासी नौकरी है आप के पास. आप क्यों नहीं छोड़ देते अपनी पत्नी को.’’


‘‘मेरा भी एक बेटा है,’’ रमेश ने कहा.


‘‘जब आप पुरुष हो कर सह सकते हैं अपने बेटे की खातिर, तो मैं तो स्त्री हूं.’’


बातचीत का जो नतीजा रमेश चाहता था, वह नहीं निकला. रमेश इस वादे के साथ विदा हुआ कि उन के मध्य जो बातचीत हुई, उस के जिक्र में रमेश का नाम न आए, क्योंकि उसे कुछ तो करना ही है अपनी पत्नी को सजा देने के लिए. मालूम पड़ने पर कहीं वे सतर्क और बेरहम न बन जाएं उस के प्रति.


रमेश जैसे लोग बंदूक चलाने के लिए दूसरे का कंधा तलाशते हैं. ऐसे लोग प्रत्यक्ष हमला करने से डरते हैं चाहे उस की जान पर क्यों न बन आए. सुमेरचंद की पत्नी रीमा से उस के मिलने की यही वजह थी कि रीमा कुछ ऐसा करे पति की बेवफाई से नाराज हो कर सुमेरचंद का घर टूट जाए. लेकिन रीमा के उत्तर से उस का यह दांव खाली गया. अब उस ने दूसरा तरीका यह अपनाया कि वह अपने ससुर लखनपाल से इस बाबत बात करने पहुंचा. सब से पहले उस ने सीडी की एक कौपी थमा कर कहा, ‘‘बाबूजी, यह रहा विभा के विरुद्ध ठोस सुबूत. आप की बेटी ने मु झे धोखा दिया है. मेरे साथ विश्वासघात किया है. आप बताइए, मैं क्या करूं?’’


रमेश को यहां से भी निराशा हाथ लगी. पिता ने अपनी बेटी को फोन पर समझाया कि अपना घर, अपना पति, बच्चे, एक औरत के लिए सबकुछ होना चाहिए.

लखनपाल ने कहा, ‘‘तुम मेरे दामाद हो. मैं तुम से अपनी बेटी की हरकतों के लिए माफी मांगता हूं. किंतु बेवफाई मेरी बेटी ने नहीं, तुम्हारी पत्नी ने की है. शादी के बाद बेटी पराई हो जाती है. मैं अपनी बेटी तुम्हें सौंप चुका हूं और इस बात को 15 वर्ष हो चुके हैं. तुम्हारी सास अब इस दुनिया में नहीं है. नहीं तो उस से कहता बेटी से बात करने को. मैं पिता हूं, मेरा इस मसले को ले कर बेटी से कुछ कहना ठीक नहीं होगा. अपनी पत्नी को कैसे राह पर लाना है, उस के बहके हुए कदमों को कैसे संभालना है, यह तुम्हारी जिम्मेदारी है. फिर भी तुम कहते हो, तो मैं उसे सम झाऊंगा.’’


रमेश को यहां से भी निराशा हाथ लगी. पिता ने अपनी बेटी को फोन पर सम झाया कि अपना घर, अपना पति, बच्चे, एक औरत के लिए सबकुछ होना चाहिए. तुम जिस रास्ते पर चल रही हो, वह विनाश का रास्ता है. अभी भी वक्त है, मृगतृष्णा के पीछे मत दौड़ो. लेकिन वासना में डूबा व्यक्ति कहां सम झ पाता है? विभा को सम झ में आ गया कि उस के पति को उस के अवैध संबंधों की पूरी जानकारी है. उस ने अंतिम फैसले के उद्देश्य से सुमेरचंद को फोन लगा कर संबंधों की खुलती पोल के विषय में जानकारी देते हुए कहा, ‘‘तुम मु झ से कितना प्यार करते हो?’’


‘‘बहुत.’’


‘‘क्या तुम मु झ से शादी कर सकते हो?’’


‘‘मैं शादीशुदा हूं. मेरी 2 बेटियां हैं. तुम भी शादीशुदा हो और एक बच्चे की मां. मेरी पत्नी को भी हमारे संबंधों की जानकारी हो चुकी है.’’


‘‘तुम अगर सच में मु झ से प्यार करते हो तो मेरे प्यार की खातिर छोड़ दो सबकुछ. मैं भी तुम्हारे लिए सब छोड़ने को तैयार हूं. भगा ले जाओ मु झे और कर लो मु झ से शादी.’’


‘‘मैं अपनी पत्नी और बेटियों को नहीं छोड़ सकता. हां, मैं तुम से प्यार करता हूं, लेकिन शादी नहीं कर सकता.’’


‘‘जब शादी नहीं कर सकते, तो संबंधों को आगे बढ़ाया क्यों?’’


‘‘मैं ने शादी का कभी तुम से वादा नहीं किया. न हमारे बीच में कभी कोई शादी की बात हुई. संबंध रखना हो तो ठीक. अन्यथा ऐसे रिश्ते को समाप्त कर लो.’’


‘‘फिर मैं तुम्हारी क्या हुई? रखैल? मन बहलाने का साधन?’’


‘‘जैसा तुम सम झो. तुम्हारे लिए मैं अपना घर नहीं तोड़ सकता. दिल बहलाना और बात है, शादी करना बहुत बड़ी बात है.’’


‘‘तुम मु झे धोखा दे रहे हो?’’


‘‘मैं तुम्हें नहीं. अपनी पत्नी को धोखा दे रहा हूं और तुम अपने पति को. जब तुम अपने पति की नहीं हुईं तो मैं तुम से कैसे वफा की उम्मीद रखूं. मैं तुम से अभी और इसी वक्त संबंध तोड़ता हूं,’’ इतना कह कर सुमेरचंद ने अपना मोबाइल बंद कर दिया.


उफ, यह मैं ने क्या कर दिया? बहके हुए जज्बातों ने पूरे जीवन पर ग्रहण लगा दिया. कैसे सामना करूंगी अपने पति का. एक गलत कदम ने अर्श से फर्श पर ला पटका मु झे. न मैं अच्छी मां बन सकी, न अच्छी पत्नी. अब क्या होगा? कौन सी विपत्ति आती है, इस का, बस, इंतजार किया जा सकता है. पति के पास मेरी चरित्रहीनता के पूरे सुबूत हैं. यह क्या कर दिया मैं ने. अपने हाथों से अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार दी. अपने हाथों से अपना ही घर जला दिया.


तभी फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, ‘‘हैलो.’’


दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘पति छोड़ दे, तो मैं तुम्हें रखने को तैयार हूं.’’


उस ने फोन जोरों से पटक दिया और चीखी, ‘‘मैं वेश्या नहीं हूं.’’


‘‘तो क्या हो?’’ आवाज की दिशा में पलट कर देखा विभा ने. सामने रमेश खड़ा था और पूछ रहा था, ‘‘तो क्या हो?’’


विभा पति के पैरों पर गिर गई. उस ने रोते हुए कहा, ‘‘मु झे बहका दिया था सुमेर ने. माफ कर दो मु झे.’’


‘‘तुम कोई दूध पीती बच्ची नहीं हो, जो किसी ने कहा और तुम ने मान लिया,’’ रमेश ने क्रोध से चीख कर कहा, ‘‘तुम ने जो किया, अपनी मरजी से किया.’’


‘‘मु झे माफ कर दीजिए. मु झे एक मौका दीजिए,’’ विभा गिड़गिड़ाई.


‘‘तुम ने मेरे घर को अपनी ऐयाशी का अड्डा बना दिया. मैं तुम्हें कभी माफ नहीं कर सकता.’’


‘‘अपने बेटे की खातिर मु झे माफ कर दीजिए.’’


‘‘बेटे का खयाल होता तो ऐसी गिरी हुई हरकत न करतीं.’’


‘‘मैं आप से माफी मांगती हूं. आप के पैर पड़ती हूं.’’


‘‘तुम ने मेरा विश्वास तोड़ा है. तुम ने बेवफाई की है मु झ से. तुम ने प्रेम की, घर की, परिवार की मर्यादा को नष्ट किया है. तुम क्षमा के योग्य नहीं हो.’’


विभा क्षमा मांगती रही. रमेश उसे खरीखोटी सुनाता रहा. तभी बेटा स्कूल से आ गया. पिता को गुस्से में और मां को रोते देख बेटा रोने लगा, ‘‘क्या हुआ मम्मी? पापा आप क्यों गुस्से में हैं?’’


बेटे का चेहरा सामने पड़ते ही रमेश का गुस्सा शांत हो गया. विभा ने बेटे को सीने से लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, अपने पापा से कहो, मु झे माफ कर दें. पत्नी को न सही, मां को ही माफ कर दें.’’ मां को रोते देख बेटे ने अपने पिता से रोते हुए कहा, ‘‘पापा, मम्मी को माफ कर दीजिए. अगर आप का गुस्सा शांत न हो तो मेरी पिटाई कर दीजिए. मु झे डांट लीजिए.’’


बेटे को रोता देख पिता पिघल गया. विभा बेटे को खाना खिलाने ले गई. थोड़ी देर बाद चाय बना कर पति को दी. रमेश ने कहा, ‘‘हमारा बेटा हम दोनों के बीच सेतु है. एक छोर पर तुम, दूसरे छोर पर मैं. मैं तुम्हें बेटे की खातिर तलाक नहीं दूंगा. क्योंकि मैं जानता हूं बेटे को हम दोनों की जरूरत है. लेकिन, मैं तुम्हारी बेवफाई भूल नहीं सकता. मैं तुम्हारी चरित्रहीनता को चाह कर भी नहीं भूल पाऊंगा. हम एक ही छत के नीचे तो रहेंगे, लेकिन वह प्रेम, वह विश्वास अब संभव नहीं है मेरे लिए.’’


विभा फिर से घर को घर बनाने में जुट गई. गुजरते वक्त के साथ मन के भेद मिटे तो सही काफी मात्रा में, लेकिन रमेश के मनमस्तिष्क में एक दरार बन गई हमेशा के लिए.

 
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