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मऊ जिले की 'भेली' पायेगी जीआइ टैग, आजादी के पहले भी रही खास गुड़ की एकमात्र मंडी

गाजीपुर न्यूज़ टीम, मऊ. अपने निराले स्वाद व सोंधी महक के लिए प्रसिद्ध गोंठा की भेली (गुड़) भी जीआइ (ग्लोबल इंडीकेशन) टैग पाएगी। इसकी प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसका भूगोल तो तय है लेकिन इतिहास खंगाला जा रहा है। लिपिबद्ध किया जा रहा और साक्ष्य जुटाए जा रहे हैैं। इसमें खास गुड़ की प्राचीनता, विशेषता और तैयार करने की विशेषज्ञता तक को समाहित किया जा रहा है। इसका डाक्यूमेंटेशन पूरा होने के साथ आवेदन फाइल कर दिया जाएगा। जीआइ टैग मिलने के बाद यह मऊ के गोठा गांव की संपदा के नाम से दर्ज हो जाएगी।  

इसके लिए विचार तो पहले से चल रहा था लेकिन हाल ही में लखनऊ में प्रदेश सरकार की ओर से गु़ड़़ महोत्सव आयोजन के बाद पूर्वांचल के इस विशिष्ट गंवई उत्पाद को पुनर्जीवन का प्रयास तेज हो गया है। उद्देश्य यह कि संबंधित क्षेत्र के किसानों को उनकी थाती पर हक मिले, कुटीर उद्योग पहले की तरह अपने पंख पसारे और गन्ना उत्पादक किसानों की आय बढ़े।


दरअसल, गोंठा की भेली अपने आकार व स्वाद के लिए ख्यात है। तीन दशक पूर्व तक इसकी मंडी लगती थी। इसमें यूपी के साथ ही मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, राजस्थान आदि के व्यापारी आते थे। स्थानीय मोटल में ठहरने वाले जापान, सिंगापुर, मलेशिया, श्रीलंका, जर्मनी आदि देशों के विदेशी पर्यटक भी एक बार चख लेते तो अपने देश ले जाना नहीं भूलते थे, लेकिन समय के साथ वो बात न रही। घोसी में चीनी मिल खुलने के बाद क्षेत्र के गन्ना उत्पादकों की रुचि गुड़ में कम रह गई और मंडी में व्यापारियों की भीड़ घटती गई। मिल से ससमय भुगतान न होने ने किसानों ने गन्ना की बोआई ही कम कर दी। आज कभी पूर्वाचल की समृद्ध मंडियों में शुमार गोठा की गुड़ मंडी छोटे से बाजार से ज्यादा अहमियत नहीं रखती। माना जा रहा है जीआइ टैग मिलने के बाद गोंठा की भेली कारोबार के दिन बहुरेंगे और मंडी की चहल-पहल लौट आएगी।


सुंदरता, स्वाद और सुगंध सबमें निराली

गोंठा में बिकने वाली भेली की डली सुंदरता, स्वाद व सुगंध में निराली होती है। कांच की गोली के समान चमकती, चिकनी साफ और मात्र 5-10 ग्राम वजन की होती है। स्वाद ऐसा कि सुगंध से ही मुंह में पानी आ जाय। स्वाद मुंह से लग गया तो एक साथ चार-पांच भेली खाई जा सकती है। इसे बसारथपुर, फरसरा, सियरहीं, सरंगुआ, हरिपरा, पोखरापार, अपडडिय़ा, बिशुनपुरा, डंगियापार, कुरंगा, नगरीपार, शक्करपुर, छपरा, रेवरी नरहरपुर, गोंफा, मुहम्मदपुर, महाबलचक, पिड़सुई, बसियाराम आदि गांवों में कई परिवार इसे विशेष विधि से बनाते हैं।


अब तक 13 जीआइ

जीआइ विशेषज्ञ पद्मश्री डा. रजनीकांत के अनुसार पूर्वांचल में अब तक 13 उत्पादों को अपनी पहचान मिल चुकी है। इसमें लगभग सभी हस्तशिल्प से संबंधित हैैं। जल्द ही पांच के प्रमाण पत्र आएंगे। अन्य चार के लिए जीआइ आवेदन फाइल कर चुके हैैं। अब गोठा भेली समेत खाद्य उत्पादों की बारी है।

 
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