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कैसे और किसे मिलता है हथियार का लाइसेंस? जानिए क्‍या हैं शस्त्र लाइसेंस के नियम और आवेदन का तरीका

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. पुलिस, सेना, सुरक्षा बलों और सिक्‍योरिटी एजेंसियों से जुड़े लोगों के पास तो हथियार होते हैं लेकिन क्‍या बतौर आम नागरिक आप भी अपने पास हथियार रख सकते हैं? इस सवाल का जवाब है-हां। बिल्‍कुल रख सकते हैं लेकिन सबसे पहले अपने आप से आपको यह पूछना होगा कि क्‍या आपको इसकी जरूरत है? क्‍या आप किसी शख्‍स से किसी और वजह से खुद की या फैमिली की जान को लेकर कोई खतरा महसूस करते हैं? यदि हां तो फिर आपके पास पुलिस से अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग के अलावा एक विकल्‍प आत्‍म रक्षार्थ हथियार रखने का भी है। बशर्ते आपको ऐसा हथियार रखने की इजाजत डीएम या जहां पुलिस कमिश्नरेट है वहां पुलिस कमिश्‍नर दे दें। 

अब सवाल उठता है कि डीएम या पुलिस कमिश्‍नर से ऐसी इजाजत यानी हथियार का लाइसेंस पाने की प्रक्रिया क्‍या है। इसके नियम क्‍या हैं। जानिए विस्‍तार से-


हमारा कानून भारत के हर नागरिक को आत्‍मरक्षा के लिए हथियार के लिए लाइसेंस पाने का अधिकार देता है। आर्म्स एक्ट, 1959 के तहत इसका प्रावधान किया गया है। हालांकि यह अधिकार कुछ शर्तों के तहत है। राज्‍य के गृह मंत्रालय, जिले के डीएम या पुलिस कमिश्‍नर में लाइसेंस देने की शक्ति निहित है। जानते हैं कि किन हालात में लाइसेंस पाने के लिए आवेदन किया जा सकता है। 


आत्‍मरक्षा के लिए हथियार के लाइसेंस का आवेदन किया जा सकता है लेकिन ऐसा लाइसेंस पाने का मतलब यह नहीं है कि आप अपने हथियार से दूसरों पर हमला कर दें या दूसरों को धमकाने लगें या सार्वजनिक रूप से इनका प्रदर्शन शुरू कर दें। 


हथियार के लाइसेंस के लिए डीएम या कमिश्‍नर के ऑफिस में निर्धारित फार्मेट पर आवेदन करना होता है। जांच में यदि आवेदन सही पाया जाता है तो लाइसेंस दे दिया जाता है। 


आवेदन के साथ लगने वाले जरूरी दस्‍तावेज 

एड्रेस प्रूफ

आयु प्रमाण पत्र

चरित्र प्रमाण पत्र

इनकम सर्टिफिकेट

संपत्ति की जानकारी

मेडिकल सर्टिफिकेट

लोन या उधार ले रखा है तो उस बारे में जानकारी

नौकरी या बिजनेस की जानकारी

निशानेबाजी जैसे खेलों में शामिल खिलाडि़यों को अपने आवेदन में अपने खेल के बारे में जानकारी देनी होती है। 

सुरक्षाबलों से सेवानिवृत लोगों को अपने संस्थान से ‘नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट’ (एनओसी) लेना होता है। 

कौन सा हथियार चाहिए। आवेदन के साथ ही आपको यह बताना होगा कि आप कौन सा हथियार खरीदना चाहते हैं। जैसे रिवॉल्‍वर, पिस्‍टल, राइफल या बंदूक। यहां यह जान लेना जरूरी है कि कुछ बड़े और अत्‍याधुनिक स्‍वचालित हथियार आपको नहीं मिल सकते। यानी यदि आप मशीनगन के लिए अप्‍लाई कर दें तो यह आपको नहीं मिलेगी। हथियारों के दो प्रकार होते हैं नॉन प्रॉहिबिटेड बोर और प्रॉहिबिटेड बोर। नॉन प्रॉहिबिटेड बोर में .22 बोर की रिवॉल्‍वर, 312 बोर की राइफल और .45 बोर की पिस्तौल जैसे हथियार आते हैं। इनके लाइसेंस मिल सकते हैं। जबकि प्रॉहिबिटेड बोर में .303 राइफल, 9 एमएम पिस्‍टल, मशीनगन और एके-47 जैसे सेमी और फुली ऑटोमैटिक अत्‍याधुनिक हथियार आते हैं। ऐसे हथियारों के लाइसेंस सामान्‍य लोगों को नहीं मिल सकते। ये सेना, पुलिस या सुरक्षा बलों के पास ही होते हैं। 


लाइसेंस पाने की यह है प्रक्रिया 

1.सबसे पहले डीएम या कमिश्‍नर के ऑफिस में आवेदन करना होता है। आवेदन के साथ ही हथियार की जरूरत यानी वजह बतानी होती है। 


2.इसके बाद आपका आवेदन पुलिस जांच के लिए एसपी के ऑफिस में भेजा जाता है। वहां से यह आपके क्षेत्रीय थाने में पहुंचता है। 


3.थाने से आवेदक का सत्‍यापन किया जाता है। इसमें उसके स्थायी पते, पृष्‍ठभूमि, कामकाज और आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में पूरी जानकारी पुलिस पता लगाती है। 


4.सत्‍यापन के बाद आवेदन को जिला क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में भेजा जाता है। वहां आवेदक के आपराधिक रिकॉर्ड का पता लगाया जाता है। थाने से आई रिपोर्ट को दोबारा चेक किया जाता है। इसके बाद आवेदन रिपोर्ट के साथ वापस एसपी ऑफिस भेज दिया जाता है। 


5.कुछ आवश्‍यक कागजी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद एसपी ऑफिस से आवेदन डीएम या पुलिस कमिश्‍नर के आफिस आ जाता है। 


6.इसके साथ ही आवेदक के बारे में एलआईयू (लोकल इंटेलिजेंस यूनिट) भी जांच करता है। 


7. पुलिस और एलआईयू से मिली रिपोर्ट के आधार पर डीएम यह तय करते हैं कि आवेदक को हथियार लाइसेंस दिया जाए या नहीं। यह काफी कुछ डीएम के स्‍वविवेक पर भी निर्भर करता है। यानी हो सकता है कि पुलिस और एलआईयू की रिपोर्ट में सब कुछ सही होने के बाद भी आपको लाइसेंस नहीं मिले। 


यदि लाइसेंस मिल गया तो 

लाइसेंस मिल जाने के बाद सरकार की ओर से अधिकारिक दुकान से हथियार खरीद सकते हैं। लाइसेंस में हथियार के आकार प्रकार आदि के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है। हथियार खरीदने के बाद इसे प्रशासन के पास ले जाना होता है। वहां पर लाइसेंस और खरीदे गए हथियार के विवरण का मिलान करके रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है। इसके साथ ही सम्‍बन्धित थाने के रजिस्‍टर में भी यह जानकारी दर्ज करानी होती है। इतना सब करने के बाद ही आप हथियान अपने साथ घर ले जा सकते हैं। 


एक बार में खरीद सकते हैं इतनी गोलियां 

हथियार के लाइसेंस के आवेदन के साथ ही गोलियां के लिए भी आवेदन करना होता है। हथियार के लाइसेंस के साथ गोलियों की खरीद की भी इजाजत मिलती है लेकिन एक फिक्‍स कोटा के तहत। फिलहाल केंद्र सरकार ने एक साल में 200 गोलियों का कोटा निर्धारित कर रखा है। राज्य सरकारें अपने हिसाब से इसे कम या ज्यादा कर सकती हैं। एक लाइसेंस पर एक व्‍यक्ति एक बार में अधिकतम सौ गोलियां ले सकता है। 


गोलियां खत्‍म हो गईं तो नई गोलियां लेते वक्‍त पुरानी गोलियों के बारे में पूरी जानकारी देनी होती है। यानी आपने गोली कहां चलाई यह बताना होगा। 


समय निर्धारित नहीं 

आवेदन से लेकर लाइसेंस मिलने की प्रक्रिया तक कितना समय लगेगा यह निर्धारित नहीं है। वास्‍तव में यह प्रक्रिया काफी जटिल है। इसमें एक महीने से लेकर एक साल और कभी-कभी तो उससे भी ज्‍यादा का वक्‍त लग सकता है।


लाइसेंस की वैधता

पांच साल। इसके बाद इसका रिनिवल कराना होता है। रिनिवल के दौरान भी लाइसेंस धारक की पूरी जांच-पड़ताल होती है। 


अधिकतम दो हथियार 

नियम के मुताबिक एक व्‍यक्ति को अधिकतम दो हथियारों के लिए लाइसेंस मिल सकता है। 


कहां नहीं ले जा सकते हथियार

आमतौर पर लाइसेंस जिला स्तर के होते हैं। यानी दूसरे जिले या राज्य में नहीं ले जाया जा सकता। ऐसा करने के लिए अलग से आवेदन करना होता है। इसके लिए भी पूरी जांच-पड़ताल की जाती है। डीएम की सिफारिश के बाद गृह मंत्रालय लाइसेंस को अन्‍य जिले या राज्‍य के लिए विस्‍तारित कर सकते हैं। इसके अलावा नेशनल ऑर्म्‍स लाइसेंस भी जारी किए जाते हैं लेकिन यह सिर्फ सांसद, केन्द्रीय मंत्री, सेना के सेवानिवृत अधिकारियों, सभी सेवाओं के अधिकारियों और खिलाड़ियों को ही दिए जा सकते हैं। पब्लिक सेक्टर की कंपनी के अधिकारियों और व्‍यापारियों को भी जरूरत दिखाने पर ये लाइसेंस मिल सकते हैं।

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