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कहानी: फौजी

बहादुरी से दुश्मनों का सामना करने वाले मेजर परम के सामने एक तरफ भारतीय सीमा की जिम्मेदारी थी, तो दूसरी तरफ अपनी गर्भवती पत्नी से मिलने की तमन्ना. ऐसे में मेजर परम ने क्या किया. 

परम उस समय ड्यूटी पर था जब उसे पता चला कि वह बाप बनने वाला है. पत्नी तनु से फोन पर बात करते हुए परम का गला खुशी से भर्रा गया. उसे अफसोस हो रहा था कि वह इस समय तनु के साथ नहीं है. उस ने फोन पर ही ढेर सारी नसीहतें दे डाली कि यह नहीं करना, वह नहीं करना, ऐसे मत चलना, बाथरूम में संभल कर जाना.


कश्मीर के अतिसंवेदनशील इलाके में तैनात पैरा कमांडो मेजर परम जो हर समय कदमकदम पर बड़ी बहादुरी और जीवट से मौत का सामना करता है, आज अपने घर एक नई जिंदगी के आने की खुशी में भावुक हो उठा. न जाने कब आंखों में नमी उतर आई. आम लोगों की तरह वह इस समय अपनी पत्नी के पास तो नहीं हो सकता, लेकिन है तो आखिर एक इंसान ही. लेकिन क्या करे किसी बड़े उद्देश्य की खातिर, अपने देश की खातिर अपनी खुशियों की कुरबानियां तो देनी ही पड़ती हैं.


शाम को मेस में जा कर परम ने खुद सब के लिए सेंवइयों की खीर बनाई और सब को खिलाई. उस रात परम की आंखों से नींद कोसों दूर थी. सब कुछ सपने जैसा लग रहा था.


परम बारबार तनु को फोन कर उस से पूछता, ‘‘तनु यह सच है न?’’


तनु को हंसी आ जाती, उस के और तनु के प्यार का अंश. उन का अपना बच्चा.


तनु आज और भी ज्यादा अपनी, और भी ज्यादा प्यारी तथा दिल के और करीब लग रही थी. परम ने सुबह 6 बजे से ही तनु को फोन करना शुरू कर दिया, ‘‘क्या कर रहा है मेरा बच्चा? भूख तो नहीं लगी? जल्दी से ब्रेकफास्ट कर लो, दवा ली?’’


कैलेंडर पर 1-1 कर के तारीखें आगे बढ़ रही थीं और परम के छुट्टी पर जाने के दिन भी करीब आते जा रहे थे. वैसे तो तनु से शादी होने के बाद से परम को हर बार ही छुट्टी पर जाने की जल्दी रहती थी, लेकिन इस बार तो उसे बहुत ही ज्यादा बेचैनी हो रही थी. हर दिन महीने जितना लंबा लग रहा था.


तनु को भी रात देर तक नींद नहीं आती थी. दिन तो फिर भी कट जाता था, लेकिन रात भर वह बेचैनी से करवटें बदलती रहती. परम ने अपनी रात की ड्यूटी लगवा ली. वह रोज रात को 11 बजे से ढाई बजे या 3 बजे तक ड्यूटी करता और पूरी ड्यूटी के दौरान तनु से बातें करता रहता. हर 10-15 मिनट पर वह सिटी बजा कर अगली पोस्ट पर अपने इधर सब ठीक होने की सूचना देता और फिर जब उधर से जवाब आ जाता तो फिर तनु से बातें करने लगता. दोनों काम हो जाते. पत्नी और देश दोनों के प्रति वह पूरी ईमानदारी से अपना फर्ज पूरा कर देता.


3 बजे वह रूम में आता. हाथमुंह धो कपड़े बदल मुश्किल से डेढ़दो घंटे सो पाता कि फिर सुबह उठ रैडी हो कर ड्यूटी जाने का समय हो जाता. फिर सारे दिन की भागादौड़ी. उस की यूनिट के लोग उस की दीवानगी देख कर उस पर हंसते, लेकिन उस की देश और परिवार दोनों के प्रति गहरी निष्ठा देख कर उस की सराहना भी करते.


इधर 2-3 ऐनकाउंटरों में मिलिटैंट्स के मारे जाने के बाद से पूरे सैक्टर में खामोशी सी छाई थी. लेकिन परम को हमेशा लगता रहता कि यह किसी जोरदार धमाके के पहले की शांति हो सकती है. हो सकता है अचानक जबरदस्त हमले का सामना करना पड़े. वह अपनी तरफ से हर समय चौकन्ना रहता. लेकिन पूरा महीना शांति से बीत गया. परम की छुट्टी मंजूर हो गई. अब उस की बेचैनी और ज्यादा बढ़ गई. दिन काटे नहीं कटते.


घर जाने के लिए यूनिट से सवा घंटा बस से जम्मू. जम्मू से ट्रेन पकड़ कर अजमेर और फिर अजमेर से दूसरी ट्रेन पकड़ कर अहमदाबाद पूरे


2 दिन का सफर तय कर वह अहमदाबाद बस स्टैंड पहुंचा.


टैक्सी ले कर 1 बजे अपने घर तनु के सामने खड़ा था.


तनु का चेहरा अपने हाथों में थाम कर परम ने उस का माथा चूम लिया. 2 मिनट तक वह उसे एकटक देखता रहा. उस का प्यारा चेहरा देख कर परम की पिछले कई महीनों की थकान दूर हो गई, सारा तनाव खत्म हो गया. तनु के साथ जिंदगी एक बार फिर से प्यार भरी थी, खुशनुमा थी.


दूसरे दिन तनु का अल्ट्रासाउंड होना था. परम उसे क्लीनिक ले गया. उस ने डाक्टर से रिक्वैस्ट की कि वह तनु के साथ अंदर रहना चाहता है, जिसे डाक्टर ने स्वीकार लिया. मौनिटर पर परम बच्चे की छवि देखने लगा. खुशी से उस की आंखें भर आईं.


रात में जब दोनों खाना खाने बैठे तो परम को महसूस हो रहा था जैसे वह पता नहीं कितने बरसों के बाद निश्चिंत हो तनु के साथ बैठा है. एकदम फुरसत से. कितना अच्छा लग रहा है… दिमाग में तनाव नहीं… मन में कोई हलचल नहीं. सब कुछ शांत. सुव्यवस्थित ढंग से चलता हुआ. परम ने एक गहरी सांस ली कि काश, जीवन ऐसा ही होता शांत, सुव्यवस्थित, निश्चिंत. बस वह तनु, उन का बच्चा और घर. रात में नीचे किचन में जा कर परम अपने लिए कौफी और तनु के लिए दूध ले आया.


‘‘वहां भी ड्यूटी यहां भी ड्यूटी… आप को तो कहीं पर आराम नहीं है… वहां से इतना थक कर आए हैं और यहां भी चैन नहीं है,’’ तनु दूध का गिलास लेते हुए बोली.


‘‘इस ड्यूटी के लिए तो कब से तरस रहा था. भला तेरे लिए कुछ करने में मुझे थकान लग सकती है क्या?’’ परम प्यार से बोला.


‘‘कितना चाहते हो मुझे?’’ तनु विह्वल स्वर में बोली.


‘‘तू मेरी सांस है. तेरे प्यार के सहारे ही तो जी रहा हूं,’’ परम बोला.


सुबह उठते ही परम ने तनु से पूछा, ‘‘क्या खाएगा मेरा बच्चा आज?’’


‘‘कौर्नफ्लैक्स,’’ तनु बोली.’’


परम ने फटाफट दूध गरम कर उस में बादाम, पिस्ता डाल कर कौर्नफ्लैक्स तैयार कर के चाय की ट्रे के साथ बाहर बगीचे में ले आया. दोनों झूले पर बैठ गए. सुबह की ठंडी हवा चल रही थी. सामने सूरजमुखी के पीले फूलों वाला टी सैट था. साथ में तनु थी और वह पैरा कमांडो जो रातदिन देश की सुरक्षा की खातिर आतंकवादियों का पीछा करते मौत से जान की बाजी खेलता रहता, आज की खुशनुमा सुबह अपने घर पर था.


दोपहर का खाना दोनों ने मिल कर बनाया. छुट्टियों में तनु के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने के उद्देश्य से परम दोनों समय खाना बनाने में उस की मदद करता. बीच में बिरहा के बादल छंट जाते और प्यार की कुनकुनी धूप दोनों के बीच खिली रहती. दोपहर में वह उसे कोई कौमेडी फिल्म दिखाता, वही उस की पसंद के फल काट कर खिलाता. फिर खाना भी अपने हाथ से परोसता.


‘‘अरे मैं नीचे आ जाती न…. आप ऊपर क्यों ले आए खाना? कितने चक्कर लगाओगे?’’ तनु बोली.


‘‘तुम्हारे लिए अभी बारबार सीढि़यां चढ़नाउतरना ठीक नहीं है, इसलिए मैं खाना ऊपर ही ले आया,’’ परम थाली में खाना परोसते हुए बोला, ‘‘आप का पति आप की सेवा में हाजिर है.’’


‘‘कितनी सेवा करोगे जी?’’


‘‘हम तो सेवा करने के लिए ही पैदा हुए हैं जी. ड्यूटी पर भारत माता की सेवा करते हैं और छुट्टी में पत्नी की,’’ परम तनु को एक कौर खिलाते हुए बोला.


बीचबीच में परम अपनी पोस्टिंग की जगह भी फोन कर वहां के हालचाल पता करता रहता. आखिर वह एक कमांडो था और कमांडो कभी छुट्टी पर नहीं होता. हर बार पोस्टिंग की जगह से फोन आने पर उस का दिल डूबने लगता कि कहीं वापस तो नहीं बुला रहे… कहीं किसी इमरजैंसी के चलते छुट्टी कैंसिल तो नहीं हो गई. कुल 22-23 दिन वह तनु के साथ रह पाता है, उस में भी हर पल मन धड़कता रहता कि कहीं छुट्टी कैंसिल न हो जाए, क्योंकि पैरा कमांडो होने के कारण उस की जिम्मेदारियां बहुत ज्यादा थीं.


परम की छुट्टियां खत्म होने को थीं. अब रोज रात को वह अफसोस से भर जाता कि तनु के साथ का एक और दिन ढल गया.


ऐसे ही दिन सरकते गए. परम रात में गैलरी में खड़ा सोचता रहता कि इस बार तनु को छोड़ कर जाना जानलेवा हो जाएगा. वह इस दौर में पूरा समय तनु के साथ रहना चाहता था. अपने बच्चे के विकास को महसूस करना चाहता था. इस बार सच में उस का जरा भी मन नहीं हो रहा था जाने का. उस ने मन ही मन कामना की कि कम से कम अगली पोस्टिंग ऐसी जगह हो कि वह 2 साल तो अपनी पत्नी और बच्चे के साथ रह पाएं.


परम को एक और चिंता थी. अगर वह 3 महीने बाद फिर से छुट्टी पर आता है, तो अपने बच्चे के जन्म के समय तनु के पास नहीं रह पाएगा. इस का मतलब उसे बीच में छुट्टी लेने से बचना होगा तभी 2 महीनों की इकट्ठी छुट्टी ले पाएगा. यही सब सोच कर वह और परेशान हो जाता. ऐसे हालात में वह बीच के पूरे 5 महीनों तक तनु को देख नहीं पाएगा. वह जिस जगह पर है वहां तनु को किसी भी हालत में ले जाना असंभव है. फिर इस हालत में तो उस का सफर करना वैसे भी ठीक नहीं है, और वह भी इतनी दूर.


एक पुरुष अपने प्यार और फर्ज के बीच कितना बेबस, कितना लाचार हो जाता है. छुट्टी के आखिरी दिन वह सुबह तनु को डाक्टर के यहां ले गया. उस का चैकअप करवाया. सब नौर्मल था. घर आ कर उस ने पैकिंग की. इस बार अपनी पैकिंग के साथ ही उसे तनु के सामान की भी पैकिग करनी पड़ी, क्योंकि अब वह तनु को अकेला नहीं रख सकता. उसे उस के मातापिता के घर पहुंचा कर जाएगा. सामान बैग में भरते हुए उस ने कमरे पर नजर डाली. अब पता नहीं कितने महीनों तक वह अपने घर, अपने कमरे में नहीं रह पाएगा. उस की आंखें भीग गईं. उस ने चुपचाप शर्ट की बांह से आंखें पोंछ लीं.


‘‘क्या हुआ जी?’’ तनु ने तड़प कर पूछा.


‘‘कुछ नहीं,’’ परम ने भरे गले से जवाब दिया.


‘‘इधर आओ मेरे पास,’’ तनु ने उसे अपने पास बुलाया और फिर उस का सिर अपने सीने पर रख कर उस के बाल सहलाने लगी. परम बच्चों की तरह बिलख कर रो पड़ा.


‘‘यह क्या… ऐसे दिल छोटा नहीं करते.


ये दिन भी बीत जाएंगे जी,’’ तनु उसे दिलासा देती रही.


वापस जाते हुए परम ने एक भरपूर नजर अपने घर को देखा और फिर तनु के साथ कार में बैठ गया. तनु के पिता का ड्राइवर उसे बस स्टैंड पहुंचाने आया था. वही वापसी में तनु को अपने मातापिता के घर पहुंचा देगा.


बसस्टैंड पहुंच कर परम ने अपना सामान निकाला और बस में चढ़ा दिया. वह चेहरे पर भरसक मुसकराहट ला कर तनु से बात कर रहा था औैर उसे तसल्ली दे रहा था. तनु अलबत्ता लगातार आंसू पोंछती जा रही थी. लेकिन परम तो पुरुष था न जिसे प्रकृति ने खुल कर रोने और अपना दर्द व्यक्त करने का भी अधिकार नहीं दिया है.


कोई नहीं समझ सकता कि कुछ क्षणों में एक पुरुष कितना असहाय हो जाता है. कितना टूट जाता है अंदर से जब दिल दर्द से तारतार हो रहा होता है और ऊपर से आप को मुसकराना पड़ता है, क्योंकि आप पुरुष हैं जो पौरुषेय और भावनात्मक मजबूती व स्थिरता का प्रतीक है. रोना आप को शोभा नहीं देता.


परम भी तनु को समझाता, सहलाता खड़ा रहा. बस चलने को हुई. बस ड्राइवर ने ऊपर चढ़ने का इशारा किया. तब परम ने तनु को गले लगाया और तुरंत पलट कर बस में चढ़ गया. सीट पर बैठ कर वह तनु को तब तक बाय करता रहा जब तक कि वह आंखों से ओझल नहीं हो गईं.


परम ने अपना मोबाइल निकाला. मोबाइल के पारदर्शी कवर के अंदर एक छोटी सी रंगीन नग जड़ी बिंदी थी जो तनु के माथे से निकल कर न जाने कब रात में तकिए पर चिपक गई थी. परम ने उसे मन से सहेज कर अपने मोबाइल के कवर के अंदर चिपका लिया था. अब यही उस के साथ बिताई यादों का खजाना था जो अगल 3-4 या न जाने कितने महीनों तक उसे संबल देता रहेगा. रात के अंधेरे में अब कोई उस की कमजोरी देखने वाला नहीं था. एक पुरुष को रोते देख कर आश्चर्य करने या हंसने वाला कोई नहीं था. अब वह खुल कर अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकता था. जी भर कर रो सकता था… परम मोबाइल कवर के अंदर से झांकती तनु की बिंदी पर माथा रख कर बेआवाज रोने लगा… आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे.


अपनी पत्नी से विदा ले कर एक फौजी ने वापस उस दुनिया के लिए यात्रा शुरू कर दी जहां कदमकदम पर सिर पर मौत मंडराती है. जहां से उसे नहीं पता कि वह कभी वापस आ कर पत्नी और बच्चे को कभी देख भी पाएगा या नहीं. बस हर पल जेब में सिंदूर की डिबिया रखे वह कुदरत से कामना करता रहता है कि बस इस बिंदी और उस अजन्मे बच्चे की खातिर उसे वापस भेज देना.

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