कांग्रेस, सपा और बसपा में कमीशनखोरी और दलाली का लगा है राष्ट्रीय रोग : केशव प्रसाद मौर्या
गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य मंगलवार को वाराणसी में किसानों को संंबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन के बहाने कांग्रेेस सपा, बसपा जैसी पार्टियां राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। इन पार्टियों में कमीशनखोरी व दलाली का राष्ट्रीय रोग लगा है। नई कृषि नीति में इनकी दलाली बंद हो रही है। इसलिए यह बौखलाए हैं। किसानों के कंधे पर बंदूक चलाने का काम कर रहे हैं। यदि दम है तो यह विपक्षी दल अपने झंडे और डंडे के साथ विरोध करें और आंदोलन में अपना चेहरा साफ करें।
किसानों के कंधे पर आंदोलन करना उचित नहीं है। जो काम कांग्रेस सरकार 60 सालों में नहीं कर सके वह काम पीएम मोदी ने कर दिखाया। इससे कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल बौखला गए हैं। नई कृषि नीति से किसान अपने उत्पादों को देश के किसी बाजार में भेज सकता है । सरकार के स्तर पर ऐसी व्यवस्था की जा रही है। जिसमें किसानों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार भी उपलब्ध हो रहे हैं। यदि नई कृषि नीति को लेकर किसानों को कोई आशंका है तो वार्ता के लिए सरकार के दरवाजे खुले हैं। सुझाव दें ताकि उचित होने पर सरकार उसे स्वीकार करते हुए कृषि बिल में संशोधन कर सके लेकिन यह नहीं हो सकता कि किसानों के हितों से जुड़ा यह बिल वापस लिया जा सके यह मांग विपक्षी दलों का गलत है।
केशव मौर्य ने कहा कि कृषि बिल में यह स्पष्ट है कि सरकारी तौर पर होने वाली खरीद बंद नहीं की जाएगी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों के उत्पादों की खरीद होगी। साथ ही मंडियों का भी संचालन होगा कृषि बिल में किसानों को यह सुविधा दी जा रही है कि वह अपने उत्पाद मंडी में भी कह सकता है और अपने खेत में भी जहां उसे उचित मूल्य मिले वहां अपने उत्पाद बेचे यह किसानों के हित में है। जिस प्रकार कोई व्यापारी कोई नौकरी पैसा वाला अपना जीवन बेहतर कर लेता है उसी प्रकार किसान भी अपने जीवन को बेहतर कर सकेगा। अब किसान का बेटा किसान बनने में गौरव महसूस करेगा अपनी सारी जरूरतों को कृषि उत्पादों का बिक्री कर अपनी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होगा।
कहा कि मैं किसानों से अनुरोध कर रहा हूं कि किसान विपक्षी दलों की राजनीति के चलते बहकावे में ना आएं।कृषि बिल सिर्फ दो राज्यों के लिए नहीं है, यह पूरे देश के लिए है देश के किसी भी राज्य में रहने वाले किसानों के हितों से जुड़ा है। पिछले 20 दिनों से चल रहे किसान आंदोलन को देखें तो सिर्फ दो राज्यों में ही सिमट कर रह गया है। यदि कृषि बिल किसान हित में ना होता तो अन्य राज्यों में भी किसान विरोध करते नजर आते हैं। क्योंकि, इन राज्यों के राजनीतिक दलों में मौजूद दलालों की दलाली बंद हो रही है, इसलिए किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर आंदोलन किया जा रहा है।