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कोरोना वैक्सीन के बाद भी मास्क लगाना रहेगा जरूरी, जानें क्यों

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. कोरोना वायरस से बचाव के लिए दो से तीन डोज देनी पड़ सकती है। तीन से चार सप्ताह के अंतराल पर यह वैक्सीन लगाई जाएगी। लगाने के बाद यदि वैक्सीन काम नहीं करेगी तो बूस्टर डोज भी लगाना पड़ सकता है। वैक्सीन लगवाने के बाद भी कोरोना से बचाव के लिए मास्क लगाना होगा। यह वैक्सीन की तरह ही काम करता है। लिहाजा इसे लंबे समय तक लगाना पड़ सकता है। कोविड प्रोटोकॉल से लोगों को सबसे आखिर में निजात मिल सकती है। ये बातें इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने कहीं।

केजीएमयू में शनिवार को कोरोना प्रबंधन विषय पर वेबिनार हुआ। आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने कहा कि वैक्सीन के निर्माण में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। अगले साल जुलाई तक 30 करोड़ लोगों के वैक्सिनेशन का लक्ष्य है। उसके बाद आगे की रूपरेखा तय की जाएगी। भारत सिर्फ अपने ही नहीं बल्कि 60 फीसदी विकासशील देशों के लिए वैक्सीन विकसित कर सकेगा। यहां 24 मैन्युफैक्चरिंग और19 कंपनियों में काम होगा। कोरोना को हराने के लिए भारत में आईसीएमआर ने प्लाज्मा ट्रायल और बीसीजी टीके का ट्रायल कराया है। बीसीजी के टीके में शुरुआती परिणाम सकारात्मक हैं। मरीजों में एंटीबॉडी पाई गईं। पूरी रिपोर्ट आने के बाद आगे कुछ कहा जा सकेगा।


लंबे समय तक लगाना होगा मास्क

मास्क क्लाथ वैक्सीन की भूमिका में है। लिहाजा इसे किसी भी सूरत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। देशवासियों को जल्द ही कोरोना से बचाव की वैक्सीन मिलेगी। मौजूदा समय में भारत में पांच वैक्सीन पर ट्रॉयल चल रहा है। इनमें दो वैक्सीन भारतीय और तीन विदेशी हैं। कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए सिर्फ वैक्सीन काफी नहीं है। वायरस की चेन तोड़ने के लिए कोविड प्रोटोकॉल का पालन जरूरी है।


दोबारा लॉकडाउन की जरूरत नहीं

संक्रमण के बाद ठीक हो चुके मरीजों में एंटीबॉडी और मास्क अहम होगा। इससे वायरस की चेन तोड़ने में मदद मिलेगी। महानिदेशक ने कहा कि देश में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। पर लॉकडाउन जैसी स्थिति नहीं है। इसलिए मास्क जरूर लगाएं। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें।


हर्ड इम्युनिटी से दूर हैं

डॉ. बलराम भार्गव ने कहा कि सामुदायिक संक्रमण और हर्ड इम्युनिटी का पता लगाने के लिए देश में दो सीरो सर्वे कराए जा चुके हैं। तीसरा सर्वे कराया जा रहा है। पहला सीरो सर्वे मई और जून में कराया गया। इसमें .7 प्रतिशत लोगों में एंटीबॉडी मिली। जबकि दूसरा सीरो सर्वे अगस्त में हुआ। इसमें सात फीसदी लोगों में एंटीबॉडी पाई गई। तीसरा सर्वे दिसंबर में पूरा होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि हर्ड इम्युनिटी के लिए कम से कम 40 से 70 प्रतिशत लोगों में एंटीबॉडी मिलनी चाहिए। वेबिनार में हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. नरेश त्रेहन ने कोरोना के दौरान प्राइवेट हॉस्पिटल की चुनौतियों पर चर्चा की। केजीएमयू कुलपति डॉ. बिपिन पुरी समेत अन्य विशेषज्ञ मौजूद थे।


वायरस पहुंचा रीढ़ में

कोरोना वायरस सिर्फ फेफड़ों पर ही हमला नहीं कर रहा है। रीढ़ की हड्डी में पहुंचकर मरीज की हालत को गंभीर बना रहा है। वेबिनार में केजीएमयू संक्रामक रोग यूनिट प्रभारी डॉ. डी हिमांशू ने भर्ती गंभीर मरीजों पर शोध प्रदर्शित किया। डॉ. हिमांशु के मुताबिक बेहोशी की हालत में भर्ती एक मरीज में ब्रेन के संक्रमण की जांच कराई गई। जांच के लिए रीढ़ की हड्डी से तरल पदार्थ लिया गया। चिकित्सा विज्ञान में इस तरल पदार्थ को सेरिब्रो स्पाइनल फ्लूड (सीएसएफ) कहते हैं। जांच के दौरान तरल पदार्थ में वायरस की पुष्टि हुई। हालांकि विभिन्न देशों में भी सीएसएफ में वायरस पहुंचने की पुष्टि हो चुकी है। केजीएमयू में पहले मरीज में पाया गया।

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