डाइबिटीज को करें नियंत्रित नहीं तो किडनी व हृदय पर पड़ेगा गलत प्रभाव : सीएमओ
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. जिला अस्पताल के सभागार में शनिवार की सायं विश्व मधुमेह दिवस पर कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसकी थीम डब्ल्यूएचओ के द्वारा सेवा एवं डायबिटीज रखी गई थी। इसमें मधुमेह जागरूकता, जीवन शैली में परिवर्तन, नियमित जाच व उपचार के साथ ही व्यायाम करने के संबंध में चर्चा की गई।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. जीसी मौर्य ने बताया कि मधुमेह से पीड़ित लोगों को इस रोग से पीड़ित होने पर भूख ना लगना, लगातार वजन में कमी होना, बार बार पेशाब लगना, आखों से कम दिखने जैसी समस्या आ जाती है, जो ब्रेन, हार्ट, रेटिना, किडनी के साथ ही ब्लड प्रेशर को प्रभावित करता है। इस दौरान मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने कार्यशाला में आई हुई आशा वर्करों को निर्देश दिया कि वह गृह भ्रमण के दौरान इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए ऐसे लक्षण वाले व्यक्तियों को उचित परामर्श के साथ ही चिकित्सा सुविधा के लिए प्रेरित करें। उन्होंने बताया कि बहुत सारे लोग डाक्टर के द्वारा इंसुलिन लिखे जाने पर इंसुलिन लेने से हिचकते हैं उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।
जिला अस्पताल के फिजिशियन डा. राजेश सिंह ने बताया की डाइबिटीज आज के समय की विकट समस्या हैं, जिसने पूरी दुनिया में अपना आतंक फैला रखा हैं। मधुमेह पर नियंत्रण तो किया जा सकता हैं, पर इसे जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता। डाइबिटीज को अगर नियंत्रित ना किया जाये, तो इसका असर किडनी (गुर्दा), आख, हृदय तथा ब्लड प्रेशर पर पड़ता हैं। डायाबिटिज की बीमारी में शरीर में ब्लड शुगर या ब्लड ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। ऐसा तब होता है, जब शरीर में हार्मोन इन्सुलिन की कमी हो जाती है या वो इन्सुलिन हमारे शरीर के साथ सही ताल मेल नहीं बिठा पाते।
प्रभारी सीएमएस डा. तनवीर ने बताया की मधुमेह के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय मधुमेह दिवस की शुरुआत की गई। साल 1991 वह साल था जब विश्व में सभी का ध्यान इस बीमारी के बढ़ते प्रकोप पर गया, और उन्होंने लोगों को इसके संबंध में जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 14 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय मधुमेह दिवस मनाने की घोषणा हुई।
एसीएमओ डा. प्रगति कुमार ने बताया की विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले समय में मधुमेह रोगियों की संख्या बढ़ना तो चिंता की बात है ही, लेकिन चिंता का असली कारण है कि किस उम्र के लोगों को यह बीमारी अधिक हो रही है। पश्चिम में अधिकतर लोगों को उम्र के छठवें दशक में मधुमेह होता है, जबकि भारत में 30 से 45 वर्ष की आयु में ही इस बीमारी की दर सबसे अधिक है।
कार्यशाला में डा. केके भास्कर, अर्बन मैनेजर अशोक कुमार, एनसीडी परामर्शदाता रविशकर चौरसिया, लेखाकार अमित राय के साथ ही स्टाफ नर्स और अमन की आशा वर्कर मौजूद रहीं।