कहानी: मां का दिल
एक मां का बच्चे के लिए प्यार कभी नहीं बदलता भले ही वक्त या परिस्थितियां कितनी भी क्यों न बदल जाएं.
2 साल के राजू को गोद में खिलाते हुए माला ने अपनी बहन सोनू से कहा, “सोनू, पता नहीं क्यों मुझे कभीकभी ऐसा लगता है जैसे राजू हमारी संतान नहीं.”
“पगला गई हो क्या दीदी, यह क्या कह रही हो? राजू आप की संतान नहीं तो क्या बाजार से ख़रीदा है जीजू ने?” कह कर 16 साल की सोनू जोरजोर से हंसने लगी. मगर माला के चेहरे की शिकन कम नहीं हुई.
राजू के चेहरे को गौर से देखती हुई बोली, “जरा इस की आंखें देख. तेरे जीजू से मिलती हैं, न मुझ से. आंखें क्यों पूरा चेहरा ही हमारे घर में किसी से नहीं मिलता.”
“मगर दीदी, बच्चे का चेहरा मांबाप जैसा ही हो, यह जरूरी तो नहीं. कई बार किसी दूर के रिश्तेदार या फिर जिसे आप ने प्रैग्नैंसी के दौरान ज्यादा देखा हो, उस से भी मिल सकता है. वैसे, यह अभी बहुत छोटा है, बड़ा होगा तो अपने पापा जैसा ही दिखेगा.”
“बाकी सबकुछ छोड़. इस का रंग देख. मैं गोरी, मेरी बेटी दिशा गोरी मगर यह सांवला. तेरे जीजू भी तो गोरे ही हैं न. फिर यह… ”
‘अरे दीदी, लड़कों का रंग कहां देखा जाता है. वैसे भी, यह 21वीं सदी का बच्चा है. जनवरी 2001 की पैदाइश है. इस की बर्थडेट खुद में खास है. 11 /1 / 2001 को जन्म लेने वाला यह तुम्हारा लाडला जरूर जिंदगी में कुछ ऐसा काम करेगा कि तुम दोनों का भी नाम हो जाएगा,” प्यार से राजू को दुलारते हुए सोनू ने कहा.
” वह तो मैं मानती हूं सोनू कि लड़कों का रंग नहीं देखते और फिर मां के लिए तो अपने बच्चे से प्यारा कुछ हो ही नहीं सकता पर यों ही कभीकभी कुछ बातें दिमाग में आ जाती हैं.”
” याद है दीदी, इस के जन्म वाले दिन जीजू कितने खुश थे. इसे बांहों में ले कर झूम उठे थे. बेटा हुआ है, इस बात की खुशी उन के चेहरे पर देखते ही बनती थी. मुझे तो लगता है जैसे जीजू इस पर जान छिड़कने हैं और एक तुम हो जो इसे…”
” देख सोनू, जान तो मैं भी छिड़कती हूं पर कभीकभी संदेह सा होता है. मैं तो बच्चे को जन्म दे कर बेहोश हो गई थी. बाद में तेरे जीजू ने ही इसे मेरी बांहों में डाला था.”
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सोनू ने दरवाजा खोला तो सामने अपने जीजा दिनेश को देख कर मुसकारा उठी. दिनेश की आवाज सुनते ही नन्हा राजू मां की गोद से छिटक कर बाहर भागा और बाप की बांहों में झूल गया. दिनेश ने तुरंत अपने साथ लाया हुआ चौकलेट उस के नन्हे हाथों में थमा दिया.
सोनू मुसकराते हुए बोली, “यह है बापबेटे का मिलन. दीदी, देख लो अपनी आंखों से तुम्हारा राजू अपने बापू से कितना प्यार करता है.”
माला ने एक ठंडी आह भरी और पुराने खयालों में खो गई. उसे याद आ रहा था वह दिन जब दिशा पैदा हुई थी. घरभर में एक अनकही सी उदासी पसर गई थी. सास ने बुरा सा मुंह बना लिया था. उस पर दिनेश भी खुश नहीं थे. बच्ची को गोद में उठा कर चूमा भी नहीं. बस, दूर से ही देख कर चले गए थे. माला मानती है कि घर में सब लड़के की बाट जोह रहे थे. मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि बेटी को प्यार ही न करें. उस के साथ सौतेला व्यवहार किया जाए. आज दिशा 5 साल की हो गई है. पर मजाल है कि कभी दिनेश उस के लिए चौकलेट ले कर आए हों. बेटे के पीछे ऐसा भी क्या पागलपन कि बेटी को बिलकुल ही इग्नोर कर दिया जाए.
वक्त यों ही गुजरता रहा. माला को 2 बेटियां और हुईं. हर बार सास और पति का मुरझाया चेहरा उसे अंदर तक तोड़ देता. राजू दादी और पापा की आंखों का तारा था. वह अब स्कूल जाने लगा था और जिद्दी भी हो गया था. स्कूल से उस की बदमाशियों की शिकायतें अकसर आने लगी थीं.
माला अकसर सोचती कि उस का बेटा तीनों बेटियों से कितना अलग है. कभीकभी मन में शक गहराता की क्या वाकई वह उस का बेटा है? फिर मन को समझा लेती कि हो न हो, यह सब उसे मिलने वाले हद से ज्यादा प्यारदुलार का नतीजा हो.
दिनेश इन शिकायतों के प्रति आंख मूंद लेता. माला कुछ कहती तो हंस कर कहता, “माला, जरा सोचो, हमारा एक ही बेटा है. इसे ही अपना सारा प्यारदुलार देना है. आखिर बुढ़ापे में यही तो हमारे काम आएगा.”
“ऐसा क्यों कह रहे हो? तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि बेटियां काम नहीं आएंगी?”
“क्यों माला, क्या तुम कभी अपनी मां के काम आ सकीं? तुम तो इतनी दूर हो मायके से, बताओ कैसे काम आओगी? इसी तरह हमारी बच्चियां भी कल को ब्याह कर बहुत दूर चली जाएंगी. जमाने की रीत है यह. फिर हम चाहेंगे तो भी उन्हें अपने पास नहीं बुला सकेंगे. हमारे लिए अपना राजू ही खड़ा होगा.”
दिनेश की बात सुन कर माला का दिल रो पड़ा. सचमुच वह अपनी मां के लिए कुछ भी नहीं कर पाई थी. उस की मां का पैर टूट गया था. वह महीनों बिस्तर पर पड़ी रही. मगर सास ने उसे बच्चों को छोड़ कर जाने की अनुमति नहीं दी. वैसे भी, तब राजू कुल 4 महीने का था. वह चाह कर भी नहीं जा सकी. दिनेश भले ही कड़वा बोल रहा था मगर कहीं न कहीं यही सच था. समाज ने बेटियों के पैरों में बेड़ियां जो डाल रखी हैं.
माला अकसर राजू को पढ़ाते हुए सोचती कि वह अपनी बेटियों को भी खूब पढ़ाएगी. बड़ी बेटी को दिनेश ने 8वीं के बाद घर पर बैठा लिया था और उस के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी थी. मगर दोनों छोटी बेटियों को आगे पढ़ाने के लिए माला अड़ गई. वक्त गुजरता गया. राजू ने 12वीं पास कर ली. बाकी विषयों में साधारण होने के बावजूद वह मैथ्स में काफी तेज निकला. पूरे खानदान में कोई भी मैथ्स में कभी इतने अच्छे नंबर नहीं लाया था. राजू के नंबर इतने अच्छे थे कि दिनेश ने उसे इंजीनियरिंग पढ़ाने की ठान ली. एक अच्छे कालेज में दाखिले और फीस के लिए बाकायदा उस ने रुपयों का इंतजाम भी कर लिया था.
मगर कुछ समय से राजू को कई तरह की शारीरिक परेशानियां महसूस होने लगी थीं. उसे आजकल आंखों से धुंधला दिखने लगा था. एक आंख की रोशनी काफी कम हो गई थी. बारबार हाथपैर सुन्न होने लगे थे. बोलने में भी कई बार कठिनाई होने लगती. उस ने घरवालों को ये सारी बातें नहीं बताई थीं. इंजीनियरिंग एंट्रेंस टैस्ट से ठीक एक दिन पहले वह अचानक लड़खड़ा कर गिर पड़ा. माला ने हड़बड़ा कर उसे उठाया तो वह रोने लगा.
“क्या हुआ बेटे?” माला ने घबरा कर पूछा तो उस ने बड़ी मुश्किल से अपनी सारी तकलीफ़ों के बारे में विस्तार से बताया. तब तक दिनेश भी आ गया था. उस ने देर नहीं की और तुरंत बेटे को डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने कई तरह के टैस्ट लिख दिए. जांच के बाद पता चला कि उसे मल्टीपल स्क्लेरोसिस की समस्या है.
मल्टीपल स्क्लेरोसिस एक औटोइम्यून डिजीज है जिस में सैंट्रल नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है. इस में देखने, बात करने, चलने और ध्यान एकाग्र करने से जुड़ी समस्याएं पैदा होती हैं. इंसान अपना संतुलन खो बैठता है. इस से पीड़ित व्यक्ति कई बार लकवे का शिकार भी हो जाता है. डाक्टरों के मुताबिक, राजू के शरीर का एक हिस्सा आंशिकरूप से लकवाग्रस्त भी हो गया था. यह बीमारी कभी भी पूरी तरह ठीक नहीं हो पाती.
राजू की बीमारी काफी गंभीर हालत में पहुंच चुकी थी और लाखों रुपयों का खर्च आना था. राजू पूरी तरह ठीक हो सकेगा या नहीं, इस बारे में भी श्योर नहीं कहा जा सकता था.
इस बीच डाक्टर ने दिनेश और माला का डीएनए टैस्ट कराने की बात की. यह टैस्ट राजू की बीमारी बेहतर ढंग से समझने और सही इलाज के लिए जरूरी था. माला तो तुरंत तैयार हो गई मगर दिनेश टैस्ट कराने से आनाकानी करने लगा. माला ने लाख कहा मगर वह तैयार नहीं हो रहा था. बाद में जब डाक्टर ने इस टैस्ट की आवश्यकता बताते हुए दिनेश को समझाया तो वह हार कर टैस्ट कराने को तैयार हो गया.
जब टैस्ट की रिपोर्ट आई तो सब दंग रह गए. रिपोर्ट के मुताबिक, दिनेश और माला राजू के मांबाप नहीं थे. माला ने सवालिया नजरों से पति की तरफ देखा तो दिनेश अनजान बनते हुए वहां से चला गया. शाम को घर लौटा तो माला ने एक बार फिर पति से राजू के जन्म का राज पूछा. तो दिनेश फूटफूट कर रोने लगा.
माला ने उसे सहारा दिया तो उस के कंधों पर सिर रखता हुआ दिनेश बोला, “माला, मां की बहुत इच्छा थी कि हमारा भी एक बेटा हो. ऐसा ही कुछ मैं भी चाहता था. मगर दूसरी बेटी को जन्म दे कर जब तुम बेहोश हो गईं तो मैं ने देखा कि उसी वार्ड में एक महिला ने बेटे को जन्म दिया था. उस के 2 बेटे पहले से थे. मेरा मन डोल गया. मैं ने उस बच्चे के बाप से बात की. बेटी के बदले बेटा लेना चाहा तो उस ने साफ इनकार कर दिया. फिर मैं ने एक मोटी रकम का लालच दिया. थोड़ा सोचविचार कर वह तैयार हो गया. हम दोनों ने जल्दीजल्दी अपने बच्चे बदल लिए.
“मेरी गोद में राजू आ गया. उसे पा कर मैं बहुत खुश था. मुझे उस की जाति की परवा थी और न खानदान की. मेरे लिए तो इतना ही काफी था कि वह एक लड़का है और अब से मेरा बेटा कहलाएगा.”
यह कहतेकहते दिनेश फिर से रोने लगा और माफी मांगता हुआ आगे बोला, “माला, मुझे माफ कर दो. बेटे की चाह में मैं बावला हो गया था. अपनी बिटिया किसी और को सौंप कर दूसरे का बच्चा घर ले आया. शायद, इसी बात की सजा मिली है मुझे.”
“ऐसा मत कहो दिनेश, अब जो हो गया सो हो गया. शायद इसी वजह से मुझे अकसर संदेह होता था कि यह बच्चा मेरा नहीं. बचपन में इसे सीने से लगाने पर वह आत्मिक तृप्ति नहीं मिलती थी जो अपने बच्चे को लगाने पर मिलती है. तुम ने जो भी किया सासुमां की खुशी के लिए किया. मगर याद रखो, खुशी खरीद कर नहीं मिल सकती. जो हमें मिला है हमें उसी में खुश रहना चाहिए.”
मांबाप की ये सारी बातें कमरे के बाहर खड़ी माला की छोटी बिटिया ने सुन ली. उस ने बड़ी बहन को भी सारी बातें बता दीं. दोनों बेटियां चुपकेचुपके कमरे में दाखिल हुईं.
दिनेश ने उन्हें अपनी बांहों में भरते हुए कहा, “माला, जो हुआ उसे भूल जाओ. मगर मैं अब अपने किए का प्रायश्चित्त करना चाहता हूं. अब तक अपनी दोनों बेटियों का हक़ मारता रहा, मगर अब और नहीं. राजू के इलाज पर लाखों रुपए खर्च होंगे. वे रुपए हमारी बच्चियों के हक के हैं. वह कभी ठीक हो सकेगा या नहीं, यह भी श्योर नहीं कहा जा सकता. हमें राजू को अपनी जिंदगी से निकाल देना चाहिए. यही सब के लिए अच्छा होगा.”
माला दिनेश का चेहरा देखती रह गई. दोनों बेटियों ने भी पिता की हां में हां मिलाई, “जब राजू भैया हमारे अपने भाई हैं ही नहीं तो फिर हमारे घर में क्यों हैं?”
“चुप कर, नैना,” अचानक माला चीखी. फिर पति की तरफ देखती हुई बोली, “यह क्या कह रहे हो तुम? एक गलती सुधारने के लिए उस से बड़ी गलती करना चाहते हो? इतना बड़ा अपराध करना चाहते हो? क्या ऐसा करने पर तुम्हारा दिल तुम्हें कोसेगा नहीं? जिस बच्चे को आज तक हम अपना बच्चा मान कर इतने लाड़प्यार से पालते आ रहे हैं, आज अचानक वह पराया हो गया? क्या उस की बीमारी का बहाना बना कर हम उसे अकेला छोड़ देंगे?”
बड़ी बेटी ने कंधे उचकाते हुए कहा, “देखो न मां, आज तक हमारे हिस्से का लाड़प्यार और सुखसुविधाएं भी भाई को मिलतीं रहीं. भाई को आप ने अलग कमरा दिया. अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ाया. ट्यूशन लगवाया. उन की हर जरूरत बढ़चढ़ कर पूरी की. मगर सब बेकार गया न. अब तो वे उम्रभर उठ ही नहीं सकेंगे. फिर इलाज का क्या फायदा? जाने दो भाई को. कहीं छोड़ आओ उन्हें. वे आप का खून भी नहीं, फिर बेकार घर में रख कर इलाज में रुपए लगाने का क्या फायदा?”
“वाह बेटे, आप तो इतने बड़े हो गए कि हर चीज में फायदा देखने लगे. मैं भी फायदा देखती तो बेटियों को पढ़ाती ही नहीं. फायदा क्या है, वे तो ससुराल चली जाएंगी न. बचपन से जिस भाई की कलाई में राखी बांधती आ रही हो, आज वह पराया हो गया? रिश्ते क्या केवल खून के होते हैं? भाई से तुम लोगों का दिल का कोई रिश्ता नहीं?”
“मां, ऐसी इमोशनल बातें कह कर हमें उलझाओ मत. सच यही है कि भाई हमारा नहीं है और अब उम्रभर हमें उस की सेवा करनी पड़ेगी. वह उठ भी नहीं सकेगा. ऐसे में लौजिक क्या कहता है? यही न, कि इन्हें कहीं छोड़ आओ.”
बेटी की बातें माला के कानों में जहर जैसी चुभ रही थीं. बेटी के गालों पर एक तमाचा जड़ती हुई वह चीखी, “खबरदार जो किसी ने मेरे बेटे के खिलाफ एक शब्द भी कहा. वह मेरे पास रहेगा और मेरे दिल का टुकड़ा बन कर रहेगा.”
“पर माला अब राजू ठीक होगा, इस बात का कोई भरोसा नहीं है. हमारे पास इतने पैसे भी नहीं हैं. उस के इलाज में सारे रुपए खर्च हो जाएंगे तो फिर हमारी बेटियों का क्या होगा?”
” पैसा है या नहीं, यह बात महत्त्वपूर्ण नहीं. हम उस की सेवा करेंगे. उस का खयाल रखेंगे. वैसे, बहुत सी बीमारियां प्राकृतिक जड़ीबूटियों या घरेलू उपायों से भी ठीक हो जाती हैं. जरूरत पड़ी तो किसी बड़े नहीं लेकिन छोटे अस्पताल में तो इलाज करा ही लेंगे. लेकिन इस तकलीफ के समय उसे अकेला नहीं छोड़ेंगे. यदि राजू सच में हमारा बच्चा होता तो भी क्या तुम उसे ऐसे छोड़ देते? नहीं न. तो फिर अब क्यों? राजू मेरी बेटियों का हक नहीं मार रहा. उसे अब तक अपना बच्चा मान कर पालापोसा है, तो आगे भी वह मेरा ही बेटा रहेगा. भूले से भी मुझे मेरे बच्चे से जुदा करने की बात न सोचना. और हां, तुम में से कोई भी राजू से इस सचाई के बारे में नहीं बताएगा,” माला ने अपना फैसला सुना दिया था.
दूसरे कमरे में लेटा राजू सबकुछ सुन रहा था. एक तरफ आत्मग्लानि, दूसरी तरफ बीमारी का दर्द और उस पर पिता व बहनों की इस सोच ने उसे अंदर तक तोड़ दिया था. वह खुद को बहुत असहाय महसूस कर रहा था. मगर मां की बातें उस के जख्मों पर मरहम लगाने का काम कर रही थीं. सारा दर्द उस की आंखों से पानी बन कर बह निकला था. उसे बचपन से अब तक की अपनी जिंदगी के लमहे याद आ रहे थे. छोटा सा था वह जब मां के आंचल में छिप कर शरारतें करता. जैसेजैसे बड़ा हुआ वैसेवैसे जिद्दी होता गया. जो भी जिद करता, घरवाले उसे पूरा करते. घर में अपनी मरजी चलाता. बहनों को डांटता, तो कभी प्यार भी करता. आज वे सारे रिश्ते बेगाने हो चले थे.
अचानक ही वह तड़प कर चीखा, “मां, इधर आओ मां.”
माला दौड़ी गई. पीछेपीछे पिता और बहनें भी उस के कमरे में आ गए. राजू मां का हाथ थाम कर रोते हुए टूटेफूटे शब्दों में कहने लगा, “मां, आज तक मैं ने जितनी भी गलतियां कीं उन के लिए आप सब मुझे माफ कर दो और मां, मेरी बहनों पर आप नाराज न होना. मेरी बहनें जो कह रही हैं और पापा ने जो कहा है वह सही है. कहीं छोड़ आओ मुझे. किसी धर्मशाला या आश्रम में पड़ा रहूंगा. आप लोगों को परेशान नहीं करना चाहता. मेरी बहनों को हर खुशी मिलनी चाहिए. उन के रास्ते में बाधा नहीं बनना चाहता.”
“चुप हो जा मेरे बच्चे,” मां ने प्यार से उस का माथा सहलाते हुए कहा, “तू बड़ा भाई है. तेरी बहनों को खुशी तभी मिलेगी जब उन के पास तेरा प्यार और आशीर्वाद रहेगा. तू वादा कर हमेशा मेरी आंखों के आगे रहेगा.”
दोनों बहनें भी भाई के प्यार को महसूस कर रही थीं. दोनों बेटियां मां के गले लग गईं और बोलीं, “मां, आप बिलकुल सही हो. हम अपने भाई को कहीं भी जाने नहीं देंगे.”
दिनेश को भी अपनी गलती का एहसास हो गया था. दिनेश ने माला का हाथ थामते हुए कहा, “माला, मां के दिल जैसा कोई दिल नहीं होता. मुझे गर्व है कि तुम मेरी पत्नी हो. मैं गलत था. आज के बाद ऐसी बात मेरे जेहन में नहीं आएगी. हम सब मिल कर हमेशा राजू का साथ देंगे. मुझे माफ कर दे राजू बेटा. मैं बहुत स्वार्थी हो गया था. पर तेरी मां ने मेरी आंखें खोल दीं.”
बेटियों ने भी हामी में सिर हिलाया, तो माला की आंखों में खुशी के आंसू आ गए.