बनारस में खुला स्वर्णमयी अन्नपूर्णा का दरबार, खजाना पाने को उमड़े भक्त
गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. काशी पुराधिपति महादेव को भी अन्नदान देने वाली अन्नपूर्णेश्वरी कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी यानी धनतेरस पर खजाना बांटना शुरू कर देती हैं। इस बार भी उनसे खजाना लेने वालों की भीड़ उमड़ी है। काशी विश्वनाथ के आंगन में विराजमान माता दरबार के प्रथम तल पर स्थित स्वर्ण अन्नपूर्णेश्वरी के पट धनतेरस पर सुबह छह बजे खुल गए। रात ग्यारह बजे तक माता के दर्शन होंगे और अन्न धन का खजाना भी प्रसाद स्वरूप मिलेगा।
चार दिनों यानी अन्नकूट तक भोर में चार बजे से रात ग्यारह बजे तक दर्शन होंगे। माता के दर्शन को लेकर भक्त देर रात से ही कतारबद्ध हो गये थे। एक लाइन गोदौलिया तो दूसरी तरफ थाना चौक तक लाइन लगी थी। जैसे-जैसे समय पास आ रहा था पूरा परिक्षेत्र मां के जयकारे से गुलजार हो रहा था। गुरुवार की सुबह 5.55 पर आम भक्तों के लिए पट खोल दिया गया।
इस बार खास यह कि इसमें दर्शनार्थियों को कोरोना नियमों का पूरी तरह पालन करना हो रहा है। बिना मास्क लगाए प्रवेश प्रतिबंधित है। दर्शनार्थियों को गेट नंबर एक से प्रवेश दिया जा रहा है। निकासी राम मंदिर होते कालिका गली से हो रही है। इस दौरान शारीरिक दूरी के नियमों का पालन भी कराया जा रहा है।
एक दिन पहले ही मंदिर पहुंचे एसएसपी ने आने-जाने वाले मार्गों का निरीक्षण किया। अधिकारियों से कहा कि मंदिर में बने कंट्रोल रूम के माध्यम से आने वाले भक्तों पर नजर रखी जाए और ध्वनि विस्तारक यंत्र से लगातार कोविड-19 महामारी के संदर्भ में दर्शनार्थियों को जागरूक किया जाय।
साल में केवल चार दिन होता है दर्शन
मान्यता है कि काशी नगरी के पालन-पोषण को देवाधिदेव मां की कृपा पर ही आश्रित हैं। अन्नदात्री मां की ममतामयी छवियुक्त ठोस स्वर्ण प्रतिमा कमलासन पर विराजमान और रजत शिल्प में ढले भगवान शिव की झोली में अन्नदान की मुद्रा में है। दायीं ओर मां लक्ष्मी और बायीं तरफ भूदेवी का स्वर्ण विग्रह है।
इस दरबार के दर्शन वर्ष में सिर्फ चार दिन धनतेरस से अन्नकूट तक ही होते हैं। इसमें पहले दिन धान का लावा, बताशा के साथ मां के खजाने का सिक्का प्रसादस्वरूप वितरित किए जाने की पुरानी परंपरा है। इसमें काशी ही नहीं, देश-विदेश से आस्थावानों का रेला उमड़ता है। अन्य दिनों में मंदिर के गर्भगृह में स्थापित प्रतीकात्मक प्रतिमा की दैनिक पूजा होती है।
माना जाता है कि बाबा से पहले ही देवी अन्नपूर्णा यहां विराजमान थीं। वर्ष 1775 में काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तब पाश्र्व में देवी अन्नपूर्णा का मंदिर था। मां की स्वर्णमयी प्रतिमा की प्राचीनता का उल्लेख भीष्म पुराण में भी है। महंत रामेश्वरपुरी के अनुसार, वर्ष 1601 में मंदिर के महंत केशवपुरी के समय में भी प्रतिमा का पूजन हो रहा था।