मुख्यमंत्री किसान व सर्वहित बीमा योजना दावा मियाद 3 साल घोषित, हाईकोर्ट ने कहा- 3 माह वक्त मनमानापूर्ण
गाजीपुर न्यूज़ टीम, प्रयागराज. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुख्यमंत्री किसान व सर्वहित बीमा योजना में दावा दाखिल करने की अधिकतम तीन माह की मियाद को मनमानापूर्ण व कानून के विपरीत करार देते हुए रद कर दिया है। कोर्ट ने बीमा कंपनी को आदेश दिया है कि प्रदेश मे जितने भी दावे तीन साल के भीतर दाखिल किये गए हैं उन्हें समय से दाखिल मानकर गुणदोष पर तय करें। दावा करने की तीन साल की मियाद किसान की मौत या दावा आंशिक या पूर्णरूप से निरस्त होने की तारीख से मानी जाएगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति शशिकांत गुप्ता व न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की खंडपीठ ने गौतम यादव की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि बीमा कंपनी की ओर से दावा निरस्त करने के खिलाफ सिविल वाद दायर करने की मियाद तीन साल है। ऐसे में कल्याणकारी राज्य की सामाजिक लाभ देने की योजना के लिए दावा करने की अवधि को सीमित करना उसको विफल करना है।
मुख्य सचिव को भेजें आदेश की प्रति : कोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश की प्रति इस आशय से भेजने का निर्देश दिया है कि सरकार योजना मियाद में संशोधन कर सकें। कोर्ट ने जिलाधिकारी जौनपुर को याची के बीमा दावे को समय के भीतर मानते हुए तीन माह में उचित निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
जुलाई में मौत अक्टूबर में हुआ दावा : याची के किसान पिता की तीन जुलाई 2018 को दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी। याची ने योजना के तहत 20 अक्टूबर 2018 को बीमा पैसा के लिए दावा किया। उसे जिलाधिकारी जौनपुर ने कालबाधित करार देते हुए निरस्त कर दिया। उसे कोर्ट में चुनौती दी गई। बीमा कंपनी का कहना था कि दावा करने की मियाद दो माह है। जिलाधिकारी को एक माह की अवधि बढ़ाने का अधिकार है, इसलिए दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता।
तीन माह का समय योजना को विफल करने वाला : कोर्ट ने कहा कि गरीब किसानों को लाभ देने की कल्याणकारी राज्य की योजना है। सरकार व बीमा कंपनी के बीच करार होता है। सरकार प्रीमियम देती है। भारतीय समाज में मृत्यु संस्कार में समय लगता है। ऐसे में तीन माह की अवधि योजना को विफल करने वाली और कानून के विपरीत है। बीमा कंपनी के दावा निरस्त करने के खिलाफ सिविल वाद दायर करने की मियाद तीन साल है। यह कानून बीमा कंपनी सहित सभी पर लागू है। सरकारी नीति भी कानून के विपरीत नहीं बनायी जा सकती। ऐसे में तीन साल की अवधि के भीतर दाखिल सभी दावों पर विचार किया जाए।