Ghazipur : विद्युतकर्मियो ने सदर विधायिका को सौपा पत्रक, कर्मी बोले- निजीकरण को व्यापक जनहित में किया जाये रद्द
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर। शुक्रवार को विजली कर्मचारी एव अधिकारियों ने जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन देकर अपनी मांग रखते हुवे कहा कि हमारी प्रमुख मांगे पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के प्रस्तावित विघटन निजीकरण को व्यापक जनहित में निरस्त किया जाए। संघर्ष समिति गाजीपुर के जिला संयोजक निर्भय नारायण सिंह के निर्देशनुसार आज सह संयोजक ई0 शिवम राय, ई0 संतोष मौर्या के नेतृत्व में जिले के सदर विधायिका संगीता बलवंत को निजीकरण के विरोध में पत्रक दिया गया।
एवम जिले के सभी विधायकों एवं सांसदों को संज्ञान में डालते हुए कहां की पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को तीन टुकड़ों में विभाजित कर संपूर्ण विद्युत वितरण का निजीकरण करने के प्रदेश सरकार के प्रस्ताव के विरोध में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश द्वारा चलाए जा रहे ध्यानाकर्षण अभियान के अनुसार प्रदेश के सभी ऊर्जा निगमों के तमाम बिजली कर्मचारी जूनियर इंजीनियर व अभियंता विगत 1 सितंबर से लगातार शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं किंतु प्रबंधन का हठवादी व दमनात्मक रवैया बना हुआ है.
जिससे बिजली कर्मियों में भारी गुस्सा है इस संबंध में हमलोग आपसे निमृत निवेदन करना चाहते हैं कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण किसी भी प्रकार से प्रदेश आम जनता के हित में नहीं है और निजी कंपनी मुनाफे के लिए काम करती है जबकि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम बिना भेदभाव के किसानों और गरीब उपभोक्ताओं को निर्बाध बिजली आपूर्ति कर आ रही है निजी कंपनी अधिक राजस्व वाले वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं को प्राथमिकता पर बिजली देगी जो ग्रेटर नोएडा और आगरा में हो रहा है ग्रेटर नोएडा और आगरा में निजी करण की विफलता को देखते हुए पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव हर हाल में रद्द किया जाना चाहिए।
निजी कंपनी लागत से कम मूल्य पर किसी भी उपभोक्ता को बिजली नहीं देगी अभी किसानों गरीबी रेखा के नीचे और 500 यूनिट प्रतिमाह बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को पावर कारपोरेशन घाटा उठाकर बिजली देता है जिसके चलते इन उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली मिल रही है अब निजीकरण के बाद स्वभाविक तौर पर इन घटनाओं के लिए बिजली महंगी होगी एवं उत्तर प्रदेश में बिजली की लागत का औसत 7 रूपया 90 पैसे प्रति यूनिट है और निजी कंपनी द्वारा एक्ट के अनुसार कम से कम 16 % मुनाफा लेने के बाद ₹9 50 पैसा यूनिट से कम दर पर बिजली किसी को नहीं मिलेगी। इस प्रकार एक किसान को लगभग 8000 प्रति माह और घरेलू गुप्ता को 8000 से 10000 प्रति माह तक बिल देना होगा निजी वितरण कंपनियों को कोई घाटा ना हो.
इसलिए निजीकरण के प्रस्ताव के अनुसार पूर्वांचल में 3 वर्ष में ट्यूबवेल के फीडर अलग कर ट्यूबवेल को अलग सौर ऊर्जा से जोड़ देने की योजना है। अभी सरकारी कंपनी घाटा उठाकर किसानों और उपभोक्ताओं को बिजली देती है निजीकरण के प्रस्ताव के अनुसार सरकार निजी कंपनियों को 5 साल से 7 साल तक परिचालन व अनुरक्षण हेतु आवश्यक धनराशि भी देगी। साथ ही निजी कंपनियों को विद्युत वितरण सौंपने के समय तक के सभी घाटे का उत्तरदायित्व पावर कारपोरेशन अपने ऊपर ले लेगा जिससे निजी कंपनियों को क्लीन स्लेट मिले। केंद्र सरकार द्वारा 20 सितंबर को जारी निजीकरण के बिडिंग दस्तावेज में इन सभी बातों का स्पष्ट उल्लेख है।
महोदय निजीकरण और फ्रेंचाइजी के जरिए निजी क्षेत्र को विद्युत वितरण सौपने प्रयोग उत्तर प्रदेश के लिए नया नहीं है यह ग्रेटर नोएडा और आगरा में पूरी तरह विफल रहा है पूरे देश में भी ऐसे प्रयोग विफल हो चुके हैं और वांछित परिणाम न दे पाने के कारण अन्य प्रदेशों में लगभग सभी फ्रेंचाइजी करार रद्द कर दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश आगरा में जो पावर कंपनी की लूट चल रही है और कंपनी करार की कई शर्तों का उल्लंघन कर रही है सीएजी ने भी टोरेंट कंपनी के घोटाले का पर्दाफाश किया किंतु टोरेंट की ऊंची पहुंच होने के कारण कोई कार्यवाही नहीं हुई और वर्तमान में पावर कारपोरेशन घाटा उठाकर आगरा में कंपनी को ₹ 4 रूपया 45 पैसे प्रति यूनिट बिजली दे रहा है जबकि आगरा में बिजली का औसत टैरिफ ₹ 7 रूपया 65 पैसे प्रति यूनिट है इसी प्रकार निजी करण से पावर कारपोरेशन को अरबों खरबों रुपया का घाटा हो रहा है जबकि टोरेंट कंपनी भारी मुनाफा कमा रही है
टोरेंट कंपनी ने पावर कारपोरेशन का 2500 करोड़ से अधिक का राजस्व का बकाया दबा रखा है और 10 साल बाद भी नहीं दिया है। निजीकरण का यही प्रयोग पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम में दोहराया जा रहा है जिससे बिजली कर्मियों में भारी रोष व्याप्त है एवं यह की पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण किए जाने की दशा में निगम में कार्यरत कर्मियों की सेवा शर्तें बुरी तरह प्रभावित होगी। जिससे उनके भविष्य पर बुरा प्रभाव पड़ने के साथ ही उनका आर्थिक मानसिक एवं सामाजिक शोषण होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
जो कि विद्युत सुधार अधिनियम 1999 एवं विद्युत अधिनियम 2003 के आर्टिकल 23(7) में उल्लेखित व्यवस्थाओं का उल्लंघन होने के साथ ही वर्ष 2000 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद के विघटन के समय उत्तर प्रदेश सरकार ऊर्जा प्रबंधन एवं विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश के साथ लिखित समझौता कि ” राज्य विद्युत परिषद के विघटन के पश्चात कार्मिकों की सेवा शर्तें कदापि कमतर नहीं होगी “का खुला उल्लंघन होगा। अतः हमारा आपसे अनुरोध है कि प्रभावी हस्तक्षेप कर माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी व माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के समक्ष बिजली कर्मियों का यह अनुरोध रखने की कृपा करें कि निजीकरण किसी भी प्रकार जनहित में नहीं है अतः इसे तत्काल निरस्त किया जाए कोविड-19 महामारी के बीच प्रदेश में निर्बाध विद्युत आपूर्ति बनाए रखने वाले बिजली कर्मियों पर सरकार भरोसा रख कर सरकार सुधार के कार्यक्रम चलाएं जिसमें हम सदा की तरह पूर्ण सहयोग करेंगे और निजीकरण का प्रस्ताव निरस्त किया जाए।
पत्रक देने वालो में मुख्य रूप से पूर्वांचल अध्यक्ष जूनियर इंजीनियर संगठन शत्रुघ्न यादव,अधिशासी अभियंता ई0 आदित्य पांडेय,महेंद्र मिश्रा आदि लोग उपस्थित रहे।