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जानें भारत के एक ऐसे प्रधानमंत्री के बारे में जिनके पास नहीं था अपना घर, कर्ज़ लेकर खरीदी थी कार

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. लाल बहादुर शास्‍त्री, वो नाम है जिसने पाकिस्‍तान को उसके घर में घुसकर मारा था। उनके ही कार्यकाल में भारतीय फौज ने पाकिस्‍तान को जंग का करारा जवाब दिया और लाहौर तक पर अपना झंडा लहराया था। इसके अलावा वो इतने नेकदिल इंसान भी थे कि बाद में जीती हुई सारी भूमि पाकिस्‍तान को वापस कर दी थी। उन्‍होंने जय जवान जय किसान का नारा दिया। जब देश को भीषण अकाल का सामना करना पड़ा पड़ा तब उनके कहने पर ही देश के लोगों ने एक दिन का उपवास रखना शुरू किया था। उनके कहने पर लोगों ने पाकिस्‍तान से हुए युद्ध के लिए दिल खोलकर दान दिया था। सार्वजनिक जीवन में उनके जैसी ईमानदारी बहुत ही कम देखने को मिलती है। उन्‍होंने अपने रेल मंत्री के कार्यकाल में हुई रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्‍मेदारी लेते हुए पद से इस्‍तीफा दे दिया था। आधुनिक भारत के इतिहास उनका पूरा जीवन सादगी और ईमानदारी की मिसाल रहा है।

सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी के तहत उनको 50 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती थी। एक बार उन्‍होंने अपनी पत्‍नी से पूछा कि कितने में घर का खर्च चल जाता है। तब उनकी पत्‍नी ने 40 रुपये बताए। इसके बाद उन्‍होंने खुद आर्थिक सहायता को कम करने की मांग की थी। शास्‍त्री कभी निजी इस्‍तेमाल के लिए सरकारी कार का इस्‍तेमाल नहीं करते थे। एक बार जब उनके बेटे ने इसका इस्‍तेमाल निजी तौर पर किया तो उन्‍होंने किलोमीटर के हिसाब से पैसा सरकारी खाते में जमा करवाया दिया था। जब वो देश के पीएम बने तब उनके पास अपना ना घर था और न ही कोई कार। उनके खाते में इतने पैसे भी नहीं थे कि वो कार खरीद सकें। बाद में बच्‍चों के कहने पर उन्‍होंने बैंक से लोन लेकर एक कार खरीदी थी। वो इस कार का ऋण पूरा उतार भी नहीं पाए थे कि उनका तााशकंद में देहांत हो गया। इसके बाद तत्‍कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने उनका ऋण माफ करने की सिफारिश की थी, लेकिन उनकी पत्‍नी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया।


इस घटना के चार साल बाद तक उनकी कार के ऋण की अदायगी बिना सरकारी मदद के की गई थी। ये कार आज भी दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल में रखी है। 1966 में ताशकंद में हुए समझौते के बाद भारत ने पाकिस्तान हाजी पीर और ठिथवाल भूक्षेत्र वापस कर दिया था। उनके इस कदम की आलोचना भी हुई। उनकी पत्‍नी भी इस कदम से नाराज थीं। उनकी एक और घटना काफी दिलचस्‍प है। प्रधानमंत्री बनने के बाद शास्त्रीजी एक बार पत्नी के लिए साड़ी खरीदने गए थे। दुकानदार ने उन्‍हें कई महंगी साडि़यां दिखाईं। शास्‍त्री जी ने विनम्रता से कहा कि वो इतनी महंगी साड़ी नहीं ले सकते हैं। इस पर दुकानदार ने साड़ी गिफ्ट करने की बात कही, जिस पर शास्‍त्री जी ने साफ इनकार कर दिया।


भारत के इस सपूत का जन्‍म 2 अक्टूबर सन् 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। उनको घर में सबसे छोटे होने के नाते प्यार से 'नन्हें' बुलाया जाता था। बचपन में ही पिता का साया सिर से उठजाने की वजह से उन्‍होंने मिर्जापुर में अपने नाना के यहां पर प्राथमिक शिक्षा हासिल की। पैसे के अभाव में वो नदी को तैर कर पार करते और स्‍कूल जाते थे। काशी विद्यापीठ से संस्कृत की पढ़ाई करने के बाद उन्हें 'शास्त्री' की उपाधि दी गई। बेहद कम उम्र में ही वो गांधी जी के साथ असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। आजादी के बाद वो दिल्ली आ गए और केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों में काम किया। उन्होंने रेल मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री समेत कई मंत्री पद संभाले। उन्होंने 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में अंतिम सांस ली थी।

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