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आप भी जानिए इस युवा किसान का कमाल, ताईवान के इस फल को उगाकर मचाया धमाल

गाजीपुर न्यूज़ टीम, अमरोहा. नगलिया गांव के सचिन ने युवाओं के सामने आत्मनिर्भर बनने की नई तस्वीर पेश की है। उन्होंने एमएनसी की नौकरी छोड़कर खेती को एक नए नजरिए से देखा। उन्होंने दस बीघे जमीन में ताईवान से पपीते का बीज मंगाकर बोया। सिंचाई के लिए ड्रिप तकनीक अपनाई। नतीजा उनके खेत में होने वाला पपीता सामान्य पपीते के मुकाबले दोगुनी कीमत में बिका। वे केवल न खुद कामगार बने बल्कि बीस और किसानों को इससे जोड़ा। अब इलाके में 50 बीघे में पपीते की खेती होने लगी है। आर्थिक मजबूती पाने के साथ ही दूसरे किसानों को भी उन्होंने बेहतरी की राह दिखाई है। 

गजरौला से करीब छह किलोमीटर दूर नगलिया बहादुरपुर गांव निवासी सचिन कलेर (पुत्र मेहर सिंह) ने पीजीडीसीए की पढ़ाई करने के बाद नोएडा की एक कंपनी में मैनेजर के पद पर नौकरी की। करीब चार साल पहले उन्होंने नौकरी छोड़ी और अपना ही कुछ काम करने की ठानी। उन्होंने गांव के नजदीक ही अपना धर्मकांटा खोल लिया। इससे सचिन को अपना सपना साकार होता नहीं दिखा तो पिता के साथ खेती के काम में भी हाथ बटाना शुरू दिया। धान, गेहूं की पारंपरिक खेती में मुनाफा तो दूर लागत निकालना तक मुश्किल देख वैज्ञानिक तरीके से खेती करने का निर्णय लिया। ताईवान के पपीते की खेती करनी शुरू कर दी। तकनीक भी वहां की इस्तेमाल की। इस खेती से उन्हें अपना सपना साकार होता दिख रहा है। दूसरे युवा किसानों के लिए भी सचिन नजीर बने हैं। पिछले बार सचिन ने पांच बीघा पपीते की फसल की थी। इस बार उन्होंने दस बीघा पपीते की फसल लगाई है। 


ये है ताईवानी तकनीक

इस पपीते का बीज ताईवान से मंगाया जाता है। यहां इसकी पौध तैयार की जाती है। क्षेत्र में अमूमन खेतों में क्यारी बनाकर पानी देते हैं जबकि ताईवान में ड्रिप विधि से पपीते के पौधे को बूंद-बूंद करके पानी दिया जाता है। सचिन ताईवान की इसी तकनीक को यहां अपनाते हैं। उनका मानना है कि ड्रिप विधि से पपीते के पेड़ को जरूरत के अनुसार पानी मिलता है। पानी ज्यादा दिए जाने पर फसल नष्ट होने का खतरा रहता है।


दूर जिलों तक सचिन की कामयाबी की गूंज 

सचिन ने बताया कि अपने गांव के तीन किसानों के अलावा संभल जिले के गोहरनगर, नगला समेत कई गांवों के करीब 20 किसानों को उन्होंने पपीते की फसल के उत्पादन के लिए प्रेरित किया। वह उन किसानों के संपर्क में भी रहते हैं। समय-समय पर उनकी खेती देखने भी जाते हैं। उधर, सचिन के द्वारा की जा रही पपीते की खेती का कृषि विभाग ने भी सर्वे किया है। सचिन के मुताबिक पपीते का पेड़ तीन से चार फीट की दूरी पर लगता है। इसके बीच में खाली जगह में दूसरी खेती भी की जा सकती है। उन्होंने स्वयं पपीते के साथ खरबूज व मक्का की फसल भी काटी ली है। 


ऐसे मिला आइडिया 

सचिन कहते हैं कि रसूलपुर गांव निवासी मेरे रिश्तेदार कपिल कुमार छत्तीसगढ़ में पपीते की खेती करते हैं। उन्होंने ही मुझे पपीते की खेती करने के लिए प्रेरित किया। अब मुझे इसमें सफलता मिलती नजर आ रही है। युवाओं को सामान्य तरीके से अलग हटकर खेती करनी चाहिए। इससे उनकी आय जरुर बढ़ेगी।

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