कहानी: एक ही भूल
सारिका ने मोमजामे में लिपटे फोटोफ्रेम को आराम से बाहर निकाल लिया. जैसा उसे चाहिए था बिलकुल वैसा ही बन पड़ा था वह तसवीरों से सजा फोटोफ्रेम. उसे वह बैठक की दीवार पर सजाना चाहती थी.
ब्लैक ऐंड व्हाइट और रंगीन तसवीरों वाला वह पिक्चर कोलाज वाकई बहुत सुंदर लग रहा था. विनय और सारिका की तसवीरों के बीच कबीर की भी कुछ तसवीरें थीं. होंठों पर शरारती मुसकान लिए कबीर का मासूम सा चेहरा… उस ने प्यार से बेटे के फोटो को चूम लिया और फ्रेम को वहीं कालीन पर रख हथौड़ी और कील ढूंढ़ने स्टोररूम में चली गई.
वह इसे विनय के औफिस से लौटने से पहले दीवार पर सजा देना चाहती थी, उसे सरप्राइज देने के लिए. वैसे उस के दफ्तर से लौटने में अभी काफी वक्त था. तब तक कबीर भी स्कूल से लौट आएगा. लिविंगरूम की मुख्य दीवार पर उस ने उस फोटो कोलाज को टांग दिया. फिर उसे हर कोण से निहार कर पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद अपने बाकी कामों में जुट गई.
रसोई का काम निबटा कर सारिका कुछ देर सुस्ताने के लिए टीवी के सामने बैठी ही थी कि मोबाइल की घंटी बज उठी. उस ने नंबर देखा. फोन कबीर के स्कूल से था.
जल्दी से फोन रिसीव किया, ‘‘जी, मैं बस अभी पहुंचती हूं,’’ कह सारिका ने बात खत्म की और फिर हड़बड़ी में अपना पर्स उठाया. उस खबर का उस पर जैसे वज्रपात हो गया था. उसे तुरंत कबीर के स्कूल पहुंचना था.
औटो वाले को किराया दे कर सारिका स्कूल परिसर में दाखिल हुई. लगभग भागती हुई कबीर की क्लास की तरफ गई. कबीर की क्लास टीचर उसे सामने से आते दिखाई दी तो बदहवास सी बोली, ‘‘क्या हुआ है मेरे बेटे को? कहां है वह?’’ उस का मन किसी अनहोनी की आशंका से जोरजोर से धड़क रहा था.
‘‘आइए मेरे साथ,’’ कह क्लास टीचर उसे एक कमरे में ले गई. यह स्कूल का मैडिकलरूम था जहां तबीयत ठीक न होने पर बच्चों को आराम करने भेजा जाता था.
एक कोने में लगे बैड पर कबीर को लिटाया गया था. उस की आंखें बंद थीं. सारिका ने लपक कर उस के पास पहुंच उसे गोद में उठा लिया और फिर बोली, ‘‘कबीर… कबीर क्या हुआ? आंखें खोलो बेटा… देखो मम्मा आई है.’’
सारिका की आवाज सुन कर कबीर आंखें खोल कर मम्मामम्मा करते हुए उस से लिपट गया. सारिका दुविधा की स्थिति में कभी कबीर तो कभी उस की टीचर को देखने लगी. कबीर को यहां मैडिकलरूम में किसलिए लाया गया, उसे कुछ सम झ नहीं आ रहा था.
‘‘चिंता की कोई बात नहीं है… कबीर अब बिलकुल ठीक है. दरअसल, आज गेम्स पीरियड में फुटबाल खेलते वक्त अचानक बेहोश हो कर गिर पड़ा… आप के यहां पहुंचने से कुछ देर पहले ही इसे होश आया है… हम ने इसे ग्लूकोस वगैरह चढ़ा दिया है… अब आप इसे घर ले जा सकती हैं.’’
‘‘मगर यह बेहोश हुआ कैसे? पहले तो कभी इस के साथ ऐसा नहीं हुआ? सारिका हैरान थी.
‘‘शायद, खेलने की वजह से कबीर को कुछ ज्यादा थकान हो गई होगी… वैसे तो यह क्लास में एकदम चुस्त है, क्यों चैंपियन?’’ कहते हुए टीचर ने कबीर के बालों में हाथ फेरा तो वह मुसकरा दिया.
‘‘हां मम्मा अब मैं ठीक हूं,’’ नन्हा कबीर मां के चेहरे पर परेशानी के भाव देख कर तसल्ली देने लगा.
सारिका कबीर को घर ले आई. उसे उस की पसंद का खाना बना कर खिलाया, फिर जब वह टीवी पर अपना पसंदीदा कार्टून देखने में व्यस्त हो गया तो सारिका ने विनय को फोन मिलाया.
कबीर के अचानक बेहोश होने की बात जान कर विनय भी घबरा गया. फिर सारिका को उस का ध्यान रखने को कह खुद औफिस से जल्दी लौटने का वादा कर फोन रख दिया.
शाम को जब विनय औफिस से घर लौटा तो उस के हाथ में कबीर के लिए खिलौने और उस की पसंद की चौकलेट्स का एक डब्बा था.
आते ही विनय ने कबीर को बांहों में भर लिया. कबीर में विनय की जान बसती थी. सारिका उन दोनों को देख कर धीमे से मुसकरा दी. कबीर की तबीयत अब ठीक लग रही थी. विनय के लाए खिलौनों और चौकलेट्स को देख कर वह खुश हो उन से खेलने लगा. सारिका ने विनय को स्कूल में हुई सारी बात बताई.
‘‘हूं, शायद धूप में खेलने की वजह से चक्कर आ गया हो. तुम फिक्र मत करो.
हो जाता है कभीकभी ऐसा,’’ विनय ने कहा. उसे मालूम था कि कबीर को फुटबाल खेलने का बहुत शौक है. इतना छोटा बच्चा गरमी और थकान बरदाश्त नहीं कर पाया होगा.
कबीर पहले की ही तरह चपलता से खेलने में मशगूल था. उसे इस तरह हंसताखेलता देख कर विनय और सारिका की जान में जान आई.
कबीर के जन्म के बाद सारिका और विनय की दुनिया ही बदल गई थी. दोनों बड़े नाजों से अपनी इकलौती औलाद को पाल रहे थे. शहर के नामी स्कूल में पढ़ा रहे थे. उस की हर छोटीबड़ी फरमाइश पूरी करते. उसे छींक भी आती तो विनय सारा घर सिर पर उठा लेता.
इस घटना के बाद कबीर फिर सामान्य रूप से अपनी दिनचर्या जीने लगा था कि एक दिन फिर यही हादसा हो गया. घर में खिलौने से खेलते कबीर को एक बार फिर बेहोशी का दौरा पड़ा. सारिका और विनय उसे तुरंत अस्पताल ले गए. उसे तेज बुखार भी चढ़ आया था. डाक्टर ने कबीर की नब्ज टटोली, स्टैथेस्कोपी से उस के दिल की धड़कनें सुनीं.
‘‘डाक्टर साहब, क्या हुआ है हमारे बेटे को? क्यों यह बारबार बेहोश हो जाता है?’’ घबराई हालत में सारिका और विनय ने पूछा.
‘‘अभी कुछ भी बता पाना मुश्किल है. इस के कुछ टैस्ट करवाने होंगे… रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ पता चल पाएगा.’’
कुछ ही देर बाद कबीर की रिपोर्ट मिली. रिपोर्ट देखने के बाद डाक्टर ने विनय को अपने कैबिन में बुलाया. सारिका कबीर के पास बैठी रही.
डाक्टर ने कहा, ‘‘देखिए, रिपोर्ट से जो पता चला है उस के लिए आप को बड़ी हिम्मत से काम लेना पड़ेगा विनय.’’
‘‘क्या बात है डाक्टर साहब? कोई चिंता की बात तो नहीं है न?’’ विनय की बढ़ती जा रही थी.
‘‘बात चिंताजनक ही है विनय पर एक डाक्टर होने के नाते हम आप से यही कहेंगे कि हिम्मत से काम लीजिए… नामुमकिन कुछ भी नहीं.’’
‘‘आखिर बताइए तो कि बात क्या है?’’ विनय का दिल जोर से धड़कने लगा था.
‘‘देखिए, आप के बेटे को रीढ़ की हड्डी का कैंसर है.’’
यह सुनते ही विनय का चेहरा सफेद पड़ गया. बोला, ‘‘यह नहीं हो सकता डाक्टर… इतने छोटे बच्चे को कैंसर कैसे… यह नहीं…’’ शब्द उस के हलक में अटकने लगे. मन ही मन सोचने लगा कि काश, यह खबर झूठ निकले… काश टैस्ट रिपोर्ट गलत हो, क्योंकि उस का मन यह मानने को कतई तैयार नहीं हो रहा था.
‘‘विनय बीमारी उम्र नहीं देखती. आप हिम्मत रखिए… यह रोग गंभीर तो है, मगर लाइलाज नहीं है… हमारे अस्पताल में हर आधुनिक सुविधा उपलब्ध है. हम आज से ही कबीर का इलाज शुरू कर देते हैं… बस आप कुछ औपचारिकताएं पूरी कर दीजिए.’’
लड़खड़ाते कदमों के साथ विनय सारिका के पास पहुंचा. कबीर आंखें मूंदे सारिका से एक कहानी सुन रहा था. उस के भोले चेहरे पर शांति थी. विनय की आहट सुन कर उस ने धीरे से आंखें खोली. बोलीं, ‘‘पापा, मु झे यहां नहीं रहना, घर जाना है,’’ और उस ने विनय का बाजू पकड़ लिया.
‘‘हां बेटे हम बहुत जल्दी घर जाएंगे,’’ विनय ने भर्राए गले से कहा और फिर कबीर को छाती से लगा लिया.
कबीर ने फिर आंखें मूंद लीं. कुछ ही पलों में वह नींद के आगोश में चला गया. बीमारी से हुई कमजोरी अब उस के चेहरे पर साफ दिखने लगी थी.
खुद पर काबू करते हुए विनय ने सारिका को धीरेधीरे सब बताया. जो वज्रपात विनय पर हुआ था वही सारिका पर भी हुआ. उस ने कातर नजरों से सोए बेटे की ओर देखा.
यह कैसा मजाक किया कुदरत ने? उन्हें दुनिया में जो चीज सब से प्यारी है उसे ही छीनने की साजिश रच दी.
कुछ समय बाद कबीर को गोद में लिटाए दोनों घर आ गए. इलाज में लाखों रुपए खर्च होने थे, जिस के लिए सारिका ने अपने सारे गहने विनय के सामने ला कर रख दिए. बोली, ‘‘कुछ भी करो, मेरे बच्चे को बचा लो प्लीज विनय… मैं इस के बिना नहीं रह सकती,’’ और फिर माथा पकड़ वहीं जमीन पर बैठ जोरजोर से रोने लगी.
‘‘मैं कुछ नहीं होने दूंगा अपने बच्चे को सारिका… इस के इलाज में भले ही सबकुछ बिक जाए, मगर इसे कुछ नहीं होने दूंगा,’’ कह विनय ने सारिका को बांहों में थाम लिया.
विनय के कंधे पर सिर रख सारिका सारी रात आंसू बहाती रही. रो तो विनय भी रहा था, मगर दिल ही दिल. उस के कंधों पर एक बाप और पति होने की जिम्मेदारी जो थी. इस मुश्किल घड़ी में वह खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहता था.
कबीर रहरह कर नींद से जाग उठता था. वह उन दोनों को देखता तो दोनों झट से अपने आंसू पोंछ कर मुसकरा कर उस से बातें करने लगते.
विनय और सारिका ने अपने मन को तैयार कर लिया था. जिंदगी और मौत की इस लड़ाई को लड़ने के लिए दोनों ने हर हाल में अपने जिगर के टुकड़े को बचाने के लिए कमर कस ली थी. आएदिन दोनों कबीर को ले कर अस्पताल के चक्कर काटते. एक के बाद एक टैस्ट करवाने के लिए भागदौड़ करते.
बीमारी अपनी शुरुआत में थी. मगर इस छोटी उम्र में कोई भी लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती थी. शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता घटने की वजह से उसे संक्रमण बहुत जल्दी हो जाए, आएदिन तेज बुखार चढ़ जाता.
विनय ने सारी जमापूंजी उस के इलाज में लगा दी. दोस्तों और रिश्तेदारों से भी उधार लिया. पैसा पानी की तरह बह रहा था, मगर कबीर की हालत में मामूली सुधार था.
अस्पताल में दाखिल कबीर का कमजोर शरीर बीमारी से दिनोंदिन कुम्हलाने लगा. अब तक उस की तबीयत खास थेरैपी और दवा से स्थिर थी, मगर यह स्थायी इलाज नहीं था.
कुछ दिन बाद डाक्टर ने विनय और सारिका को बोन मैरो सर्जरी के बारे में बताया. कबीर को अपने मातापिता में से किसी एक का बोन मैरो ट्रांसप्लांट हो सकता था, जो उस जानलेवा बीमारी का एकमात्र स्थायी उपचार था.
सारिका और विनय इस के लिए तैयार थे पर दोनों के ही बोन मैरो नहीं मिल पाए. यह बेहद निराशाजनक बात थी, क्योंकि सर्जरी के लिए बोन मैरो डोनर मिलना बेहद जरूरी था.
‘‘मगर डाक्टर यह कैसे हो सकता है…हम इस के मांबाप हैं?’’ विनय ने पूछा.
‘‘जरूरी नहीं है विनय… कभीकभी मांबाप में से कोई भी डोनर नहीं बन पाता… हालांकि यह बहुत कम होता है. आमतौर पर पिता या मां का या फिर सगे भाईबहन का बोन मैरो मैच हो जाता है. खैर, हम हार नहीं मान सकते. हमें कबीर के लिए जल्द से जल्द एक डोनर ढूंढ़ना ही पड़ेगा, क्योंकि हमारे पास वक्त बहुत कम है.’’
‘एक आखिरी उम्मीद भी टूट गई थी. इतनी जल्दी कहां मिलेगा डोनर जो कबीर को नई जिंदगी दे सके,’ सोच में डूबा विनय कमरे के चक्कर लगा रहा था.
सारिका उसे चुपचाप देखती रही. उस के मन की उथलपुथल उस वक्त कोई नहीं सम झ सकता था.
रातभर रहरह उसे कुछ कचोटता रहा. ग्लानि, पछतावा, अपराधबोध या फिर कुदरत का खेल… सारिता सम झ ही नहीं पा रही थी कि अचानक उन की हंसतीखेलती जिंदगी में यह कैसा जलजला आ गया. क्यों आज वह इस दोराहे पर खुद को खड़ा पा रही जहां एक ओर कबीर की जिंदगी का सवाल है तो दूसरी ओर वह राज जो उस के सीने में आज तक दफन है. क्या करे वह क्या न करे? अजीब कशमकश थी मन में… अब कोई चारा भी तो नहीं रहा था… अब चाहे जो भी सजा मिले, अपनी औलाद की जिंदगी से बढ़ कर कुछ नहीं है उस के लिए.
सारिका रातभर सोचती रही. क्या कहेगी विनय से, किस तरह कहेगी, शब्दों को तोलती रही. कहना तो पड़ेगा ही वरना अनर्थ हो जाएगा. अब वक्त आ गया था कि वह इस राज से परदा उठा दे.
किसी फिल्म की रील की तरह सारी बातें उस के जेहन में घूमने लगीं. वह कितना खुशगवार दिन था जब वह विनय की दुलहन बन कर उस के घर आई थी. विनय जैसा प्यार करने वाला पति पा कर सारिका को मानो दुनियाभर की खुशियां मिल गई थीं. एक नए शहर में अपनी नई गृहस्थी की शुरुआत के वे खूबसूरत दिन सारिका को आज भी याद थे…
‘‘सुनो, मेरा चयन हो गया है… अगले सोमवार से मैं काम पर जाना शुरू
कर दूंगी… सुबह का नाश्ता बना जाया करूंगी,’’ सारिका को नई नौकरी मिलने की जितनी खुशी हो रही थी उस से ज्यादा चिंता विनय के खानेपीने को ले कर थी.
‘‘ठीक है बाबा, कई बार तो बता चुकी हो,’’ अपनी नईनवेली दुलहन को बांहों में भरते हुए विनय बोला.
‘‘बारबार बताना जरूरी है, क्योंकि मैं जानती हूं मेरे औफिस जाने के बाद तुम बिना कुछ खाएपीए ही औफिस निकल जाओगे, इसलिए तुम्हारा नाश्ता बना जाया करूंगी… बस ओवन में गरम कर के खा लिया करना.’’
‘‘जो हुक्म रानी साहिबा,’’ विनय ने प्यार से उस का गाल चूम लिया. एक अच्छे पति की तरह वह सारिका की सारी बातें मान लेता था.
दोनों सुबह अपनेअपने काम पर चले जाते थे. वीकैंड की छुट्टी में दोनों लौंग ड्राइव पर निकल जाते… उन की जिंदगी प्यार से लबरेज थी.
यों ही 3 साल किसी सुखद सपने से गुजर गए. फिर धीरेधीरे सारिका को एक बच्चे की चाह होने लगी. हमउम्र सहेलियां 1 या 2-2 बच्चों की मांएं बन चुकी थीं. उन्हें देख कर सारिका का भी दिल चाहता कि उस के आंगन में भी बच्चे की किलकारियां गूंजें.
‘‘अब हमें भी 2 से 3 होने के बारे में सोचना चाहिए… मेरा बहुत मन करता है कि हमारे घर में भी एक नन्हा बिलकुल तुम्हारी तरह प्यारा सा हो,’’ उस ने एक दिन विनय की नाक खींचते हुए कहा.
विनय को अपनी कंपनी से प्र्रमोशन मिलने वाली थी. आजकल वह रातदिन अपनी परफौर्मैंस बेहतर बनाने में जुटा था. यह प्रमोशन उस के सुनहरे भविष्य के सपने को पूरा कर सकती थी. मगर औफिस में उस के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाले और भी बहुत थे. ऐसे में उसे अपने को सर्वश्रेष्ठ साबित कर के किसी भी तरह इस प्रमोशन को पाना था.
विनय सारिका की हर बात से इत्तफाक रखता था. मगर इस वक्त उस के जीवन में बच्चे से ज्यादा जरूरी उस का कैरियर था. वह इस समय बच्चे की जिम्मेदारी बिलकुल नहीं लेना चाहता था.
विनय ने सारिका को कुछ और वक्त तक इंतजार करने को कहा. इस तरह 1 और साल बीत गया. विनय तरक्की की सीढि़यां चढ़ रहा था और सारिका बच्चे की चाह में दिनबदिन और बेचैन होने लगी. उस ने कई बार कोशिश की मगर हर बार असफलता ही हाथ आती. लाख चाहने के बावजूद वह मां नहीं बन पा रही थी.
‘‘हिम्मत मत हार. मेरी एक परिचित मशहूर लेडी डाक्टर हैं, मैं तु झे उन के क्लीनिक का पता दे देती हूं. तू उन से मिल… कोई न कोई रास्ता जरूर निकल जाएगा,’’ एक दिन उस की एक सहेली ने कहा.
अपनी सहेली के बताए पते पर पहुंच कर सारिका डाक्टर से मिली. सारिका से बहुत सी बातें पूछने के बाद डाक्टर ने उसे पति के साथ आ कर कुछ टैस्ट करवाने को कहा.
यह जानते हुए भी कि सारिका मां बनने के लिए बहुत उतावली है, विनय का रवैया इस मामले में बेहद ठंडा था.
‘‘क्या जरूरत थी बेकार में डाक्टर के पास जाने की? आज नहीं तो कल बच्चा हो ही जाएगा. तुम बिना बात इतना परेशान हो रही हो बच्चे के लिए,’’ विनय बोला.
‘‘तुम नहीं सम झोगे विनय… मैं मां बनने के लिए तरस रही हूं… और कितना इंतजार करेंगे हम? कब से तो कोशिश कर रहे हैं. और यह भी तो हो सकता है शायद मु झ में या फिर तुम में कोई कमी हो… टैस्ट से सब पता चल जाएगा.’’
विनय के चेहरे से लगा उसे सारिका की बात चुभ गई कि सारिका का मतलब कहीं यह तो नहीं कि मेरे अंदर पिता बनने की क्षमता नहीं है.
‘‘तुम यह कैसे कह सकती हो मेरे अंदर कोई कमी है? ऐसा नहीं हो सकता. मु झ में कोई कमी नहीं है,’’ अपनी मर्दानगी पर आघात लगता देख विनय का लहजा कड़वा हो उठा.
सारिका चुप लगा गई. उसे विनय का कटु व्यवहार बहुत खला. इस बात को ले कर दोनों में कुछ दिनों तक मनमुटाव चलता रहा. न जाने कितने पापड़ बेले सारिका ने किसी भी तरह विनय को टैस्ट के लिए राजी करने के लिए.
भोर होने में अभी देर थी. कबीर के सिरहाने बैठा विनय नींद की बो िझलता से ऊंघने लगा. सारिका ने जा कर उस पर कंबल डाला तो वह उठ बैठा.
कबीर धीमेधीमे सांसें भर रहा था. दोनों की नजरें उस की उठतीगिरती छाती पर थीं. दोनों एकदूसरे की नजरों से छिप कर चुपकेचुपके रो पड़ते. वक्त जैसे रेत की तरह मुट्ठी से फिसलता जा रहा था.
‘‘तुम थोड़ी देर आराम कर लो सारिका,’’ विनय बोला.
‘सारिका अब वक्त नहीं बचा. बता दो विनय को सच… शायद इस सच से ही कबीर की जिंदगी बच जाए,’ सारिका सोच रही थी. उस के लिए अब और सहना मुश्किल हो गया था.
‘‘विनय,’’ उस ने अचानक पुकारा.
‘‘बोलो.’’
‘‘कबीर को डोनर मिल सकता है.’’
‘‘अच्छा… कौन है वह? तुम जानती हो क्या उसे? फिर तो कबीर का जल्द से जल्द इलाज हो सकेगा,’’ विनय के चेहरे पर उम्मीद की रोशनी चमकी.
‘‘हां, मैं जानती हूं, मगर तुम नहीं जानते उसे. तुम्हें उसे ढूंढ़ने में मेरी मदद करनी पड़ेगी. करोगे न?’’
‘‘हां सारिका, अपने कबीर के लिए मैं कुछ भी करूंगा.’’
सारिका ने अपनी अलमारी में साडि़यों की तहों के बीच छिपा कर रखी उस पुरानी फाइल को बाहर निकाला.
विनय के साथ वह उसी क्लीनिक में गई जिस का पता उस की सहेली रोमा ने दिया था. उस ने हाथ जोड़ कर डाक्टर को सारी बातें बता कर मदद करने के लिए कहा.
विनय कुछ समझ नहीं पा रहा था. लेडी डाक्टर ने उन्हें मदद का भरोसा दिया और दूसरे दिन ही सारिका को फोन कर के क्लीनिक में मिलने बुलाया.
‘‘सारिका यों तो हम अपने क्लाइंट की प्राइवेसी मैंटेन रखते हैं, मगर तुम्हारी परेशानी गंभीर है, इसलिए डोनर से इजाजत ले कर ही मैं तुम्हें यह पता और फोन नंबर दे रही हूं. तुम जा कर मिल लो. मु झे उम्मीद है तुम्हारे बेटे का इलाज हो जाएगा.’’
‘‘अब तो बताओ यह क्या माजरा है? हम किसे ढूंढ़ रहे हैं?’’ विनय बेचैन स्वर में बोला. उस के साथ गाड़ी में बैठी सारिका बारबार विषय बदल रही थी.
कबीर को फिर से तेज बुखार चढ़ आया था, जिस के लिए उसे फिर से अस्पताल में रखना पड़ा था.
उस फ्लैट के दरवाजे पर नेम प्लेट लगी थी. यही पता था. सारिका ने घंटी दबा दी. विनय को उस ने गाड़ी में ही इंतजार करने के लिए बोला.
कम उम्र दिखने वाले एक युवक ने दरवाजा खोला. सारिका झट उसे पहचान गई. एक आखिरी उम्मीद मन में लिए सारिका उस नौजवान के सामने सोफे पर बैठी थी. एक मां की ममता उस से क्याक्या नहीं करवाती. दोनों के बीच कोई रिश्ता नहीं था, फिर भी दोनों का अंश कबीर में मौजूद था.
जिस दिन विनय को प्रमोशन मिली उस की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था. सारिका को अपनी गोद में उठा कर उस ने सारे घर में घुमा दिया. खुश तो सारिका भी बहुत थी विनय के लिए, मगर कुछ और भी था जिस की उसे शिद्दत से चाह थी. विनय कामयाबी के नशे में इतना चूर हो गया कि उसे सारिका के भीतर का खालीपन दिख कर भी नहीं दिख पा रहा था.
टैस्ट की रिपोर्ट आने से पहले ही वह 2 सालों के लिए अमेरिका चला गया था. रिपोर्ट देखने के बाद डाक्टर से उसे पता चला कि सारिका अब तक मां इसलिए नहीं बन पाई क्योंकि विनय कभी पिता नहीं बन सकता था. सारिका के ऊपर जैसे यह सुन कर गाज गिर पड़ी कि मातृत्व सुख से वंचित रहने के पीछे उस के पति की नपुंसकता है. विनय की यह शारीरिक कमी कैसे बता पाएगी सारिका उसे… वह इस बात से कितना आहत होगा, इस बात से सारिका बखूबी वाकिफ थी.
‘‘तो क्या मेरे मां बनने के सारे रास्ते बंद हैं?’’ सारिका ने कातरता से पूछा.
‘‘ऐसी बात नहीं है सारिका. तुम कोई बच्चा गोद ले कर भी मां बनने का सुख भोग सकती हो.’’
‘हां, यह भी एक तरीका हो सकता है. वह और विनय किसी बच्चे को गोद ले कर अपनी जिंदगी में खुशियां ला सकते हैं… अधिकांश बेऔलाद दंपती यही तो करते हैं,’ उस ने मन ही मन सोचा.
वह फिर सोचने लगी कि कमी तो विनय में थी उस में नहीं. तो वह क्यों इस सुखद से वंचित रहे? उस के मन में जो चाह थी कि अपनी कोख से एक नई जिंदगी को जन्म दे, वह मधुर पीड़ा जो एक मां जन्म देते समय झेलती है, वह खुशी जो अपने प्रतिरूप को अपने भीतर महसूस करने की होती है तो क्या उस की इन ख्वाहिशों का कोई मोल नहीं था? क्या एक पति इतना संवेदनशील बन पाएगा जो पत्नी की इन भावनाओं को सम झ सके?
‘‘तुम्हारी यह चाहत पूरी हो सकती है सारिका… आज के युग में कुछ भी नामुमकिन नहीं. यदि तुम चाहो तो किसी और के स्पर्म से गर्भवती हो सकती हो,’’ डाक्टर ने कहा.
सारिका को दुविधा में देख कर डाक्टर ने उसे आश्वस्त किया कि यह पूरी तरह से एक मैडिकल प्रक्रिया है, जिस में बिना किसी परपुरुष संसर्ग के उसे गर्भ ठहर सकता है.
चक्की के 2 पाटों के बीच पिस कर रह गई थी सारिका की जिंदगी. सच बताने से पति के अभिमानी पौरुष को ठेस पहुंचती थी और चुप रहने से उस के अंदर की औरत घुटघुट कर मर जाती.
बड़े मानमनौअल के बाद ही विनय संतानप्राप्ति के लिए मैडिकल टैस्ट करवाने पर राजी हुआ था. बिना टैस्ट रिपोर्ट का इंतजार किए ही उस ने अमेरिका की उड़ान भर ली थी. सारिका और विनय के सपने अब अलगअलग थे. एक को सफलता की ऊंचाई छूने की चाह थी तो दूसरे के मन में ममता का सागर हिलोरें मार रहा था.
कितनी साहसी बन गई थी सारिका अपनी लालसाओं के स्वार्थ में. झूठ का सहारा ही तो लिया था उस ने अपने सपने को पूरा करने के लिए और फिर एक के बाद एक झूठ बोलती चली गई थी.
एक ही भूल थी उस की कि लाख चाहने के बाद भी वह विनय को सच नहीं बता पाई. जब भी वह विनय को कबीर से प्यार लड़ाते देखती, बात उस की जबां तक आतेआते रुक जाती. मन में छिपे डर ने उसे विनय का गुनहगार बना दिया था.
समीर एक बेहद आकर्षक नौजवान था. स्पर्म डोनर बन कर जो कुछ भी पैसे वह कमाता था उन से अपने शौक पूरे करता था.
डाक्टर की देखरेख में कुछ ही हफ्तों बाद सारिका को गर्भ ठहर गया. उस के अंदर का अंकुर दिनोंदिन बड़ा होने लगा. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था… इस अनुभव से गुजरना बहुत सुखद लग रहा था, जिस के लिए वह आज तक तरसती आई थी. उस की कोख में पलती नन्ही सी जान उसे संपूर्णता का एहसास करा रही थी.
विनय को यह अचरजभरी खुशखबरी मिली तो वह भी अपने बाप बनने की खुशी में दिन गिनने लगा. कुछ महीनों बाद ही उसे अमेरिका से वापस आना था.
सारिका ने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया. उन की जिंदगी में रंग भरने के लिए ही शायद कबीर का जन्म हुआ था. जो विनय पहले बच्चे के नाम से ही तुनकता था वह अब एक पल के लिए भी कबीर को अपने से अलग नहीं करता था.
मगर कुदरत भी कितनी जालिम थी. सच जान कर भी क्या विनय कबीर को इतना ही प्यार कर पाएगा? इस सवाल का जवाब सारिका के पास नहीं था. वह इस कड़वी सचाई को कब का अपने मन में दफन कर इतमीनान से जी रही थी, मगर उसे क्या मालूम था कि एक दिन उसे कठघरे में खड़ा होना ही पड़ेगा और आज वह दिन आ ही गया था.
अपने बेटे की जिंदगी की खातिर गिड़गिड़ाती हुई उस मां को समीर खाली हाथ नहीं लौटा पाया. कबीर का जैविक पिता होने के कारण बहुत हद तक संभावना थी कि कबीर से उस का बोन मैरो मैच हो जाए.
नतीजा उम्मीदजनक निकला. कबीर का औपरेशन कर उस के शरीर में समीर का बोन मैरो डाल दिया गया.
औपरेशन थिएटर के बाहर इंतजार कर रहे उन तीनों के ही मन में उथलपुथल मची थी. एक अजनबी जो अनचाहा पिता था, एक मां जिस के माथे पर बेवफाई का कलंक था और एक पिता जिस का आज भरोसा टूटा था… समीर को सारिका से जोड़ कर देखना ही विनय के लिए हृदयघात जैसा था.
कबीर का औपरेशन सफल रहा था. जिंदगी और मौत की लड़ाई में जीत जिंदगी को मिली. मगर सारिका और विनय के बीच बहुत कुछ बदल गया.
विनय जैसे सारिका के लिए एक ही पल में अजनबी बन गया. उस की आंखों का वह ठंडापन सारिका को भीतर तक सिहरा गया.
दोनों के बीच एक खामोशी की दीवार थी जिसे तोड़ पाना अब मुमकिन नहीं था. सारिका जानती थी अब विनय उस का कोई भी सच नहीं सुनना चाहेगा.
वह विनय की आंखों में नफरत का सैलाब देख कर सहम गई थी. वह प्रकट में शांत था, मगर सारिका सम झ चुकी थी कि विनय अंदर ही अंदर झुलस रहा है.
कुछ दिन बाद ही कबीर पूरी तरह स्वस्थ हो कर घर आ गया. इतने लंबे अंतराल के रोग ने उसे अब कुछ गंभीर भी बना दिया था. वह अधिकतर चुप ही रहता. मगर पिता को अपने से दूरी बनाते देख अधीर हो उठता था.
‘‘पापा अब मेरे साथ पहले जैसे क्यों नहीं खेलते मम्मा? वे क्यों मु झे हर वक्त तुम्हारे पास जाने को कहते हैं? बोलो न मम्मा?’’
‘‘पापा आजकल औफिस में बिजी रहते हैं न इसलिए,’’ सारिका बस इतना ही कह पाती.
विनय ने खुद को औफिस और अपने कमरे तक सीमित कर लिया था. वह किसी से कोई बात नहीं करता था. सारिका और कबीर जैसे अब उस के कुछ नहीं लगते थे. देर रात लड़खड़ाते कदमों से घर लौटता, शराब पी कर उस ने अपना गम भुलाना शुरू कर दिया था.
सारिका उसे दिनबदिन इस तरह घुलते नहीं देख पा रही थी. आखिरकार उस ने एक फैसला किया. विनय को इस दुख से आजाद करने का एक ही तरीका था कि वह कबीर को ले कर खुद ही विनय की जिंदगी से कहीं दूर चली जाए. वे खुद को कुसूरवार सम झती थी और उस की नजरों में उस के गुनाह की यही एक वाजिब सजा थी.
सारिका ने एक बैग में अपने और कबीर के कपड़े रखे और फिर अपनी मां को अपने आने की सूचना दे दी.
‘‘मम्मा हम कहां जा रहे हैं?’’ कबीर ने उसे बैग में सामान रखते देख पूछा.
‘‘कबीर, हम नानी के घर जा रहे हैं. तुम जल्दी से तैयार हो जाओ,’’ सारिका कबीर की छोटीमोटी चीजें समेटते हुए बोली.
‘‘हुर्रे, हम नानी के घर जाएंगे,’’ नानी के घर जाने की बात सुन कर कबीर बेहद खुश हो उठा.
बैग तैयार कर सारिका अपने जाने की सूचना देने के लिए विनय के पास गई. उस ने धीरे से कमरे के अंदर झांका. विनय आंखें मूंदे बिस्तर पर लेटा था. इस थोड़े से ही अंतराल में उस का शरीर एकदम दुबला हो गया था. आंखों के इर्दगिर्द पड़े स्याह घेरे, बढ़ी दाढ़ी और फीका चेहरा, खुद को रातदिन शराब में डुबो कर विनय ने अपना क्या हाल बना लिया है… उसे देख कर सारिका का दिल रो पड़ा. बस विनय तुम्हें अब ये सब नहीं सहना पड़ेगा.
उसे सोया जान कर उस ने दरवाजे पर दस्तक दी. धीरे से विनय ने आंखें खोलीं. सारिका को वहां देख कर बस एक पल के लिए उस के चेहरे पर कुछ भाव आए, फिर अगले ही पल घृणा से नजरें फेर लीं.
‘‘विनय मैं बस यह बताने आई हूं कि मैं कबीर को ले कर हमेशा के लिए तुम्हारी जिंदगी से दूर जा रही हूं.’’
विनय किसी मूर्ति की तरह अविचलित बैठा रहा. जब उस ने सारिका को दोषी करार दे ही दिया था तो फिर कुछ कहनेसुनने की गुंजाइश ही कहां बची थी.
मगर आज सारिका ने ठान लिया था कि वह विनय को सारी सचाई बता कर ही रहेगी. जब उसे विनय की जिंदगी से हमेशा के लिए दूर होना ही है तो यह मलाल क्यों दिल में रहे. अत: उस के मन में जो कुछ था वह सब उस ने विनय के सामने बोल दिया.
‘‘विनय, तुम्हें यही लगता है न कि तुम्हारे जाने के बाद मैं ने किसी और से संबंध बना कर कबीर को जन्म दिया? मगर यह बात सच नहीं है. तुम्हारे सिवा मेरे जीवन में कोई और कभी नहीं आया. मैं यह भी जानती हूं कि तुम कबीर में हमेशा किसी और की परछाईं ढूंढ़ोगे तो इस से अच्छा है कि मैं अपने बेटे को ले कर हमेशा के लिए तुम से दूर चली जाऊं,’’ सारिका ने बात खत्म की.
वह इस कशमकश के साथ अब और नहीं जीना चाहती थी. विनय को सारी सचाई बता कर उस का मन कुछ हद तक हलका हो गया था.
विनय उसी तरह चुपचाप बैठा रहा. उस ने नजर उठा कर सारिका की तरफ देखा तक नहीं. उस की कोई प्रतिक्रिया न पा कर सारिका टूटे दिल से भारी कदमों के साथ कबीर का हाथ पकड़ कर घर से निकल गई.
तभी अचानक कबीर ने अपना हाथ छुड़ा लिया.
‘‘यह क्या कबीर? कहां जा रहे हो? हमें देर हो रही है.’’
‘‘मम्मा मैं अभी आया, पापा को गुडबाय बोल कर,’’ बेचारा कबीर जानता ही नहीं था कि वह अब विनय से कभी नहीं मिल पाएगा.
सारिका ने उसे जाने दिया. वह वहीं खड़ी उस का इंतजार करने लगी. टैक्सी हौर्न बजाने लगी. सारिका ने कलाई में बंधी घड़ी देखी. ट्रेन छूटने में कम ही वक्त रह गया था.
बहुत देर हो गई थी कबीर को गए. सामान वहीं रख सारिका विनय के कमरे में गई, ‘‘कबीर, चलो बेटा देर हो रही है.’’
उस ने देखा विनय ने कबीरको अपनी गोद में बैठा रखा था और वह रो रहा था.
‘‘मैं तु झे कहीं नहीं जाने दूंगा कबीर. मैं अपने बेटे के बगैर नहीं जी सकता,’’ विनय ने कबीर को कस कर सीने से लगा रखा था. वह पागलों की तरह बारबार कबीर का माथा और गाल चूम रहा था. कबीर भी विनय के साथ रो रहा था.
सारिका बुत बनी दोनों को देखती रही. आंसू तो उस के भी बह रहे थे, मगर आज ये आंसू सुकून के थे.
अगले दिन विनय के साथ बाजार में घूमते हुए उस की नजर एक दुकान पर गई जहां एक से बढ़ कर एक आकर्षक फ्रेम्स वाली बहुत सी तसवीरें लगी थीं. उन खूबसूरत तसवीरों को देख कर उस से रहा नहीं गया और फिर झटपट दुकानदार को अपने लिए भी एक फ्रेम तैयार कर घर भेजने को बोल दिया.
‘‘वह इस कशमकश के साथ अब और नहीं जीना चाहती थी.
विनय को सारी सचाई बता उस का मन कुछ हद तक हलका हो गया था…’’