World Tourism Day 2020: पूर्वांचल का पर्यटन दिल-दिमाग को करता है तरोताजा
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गोरखपुर. कोरोना वायरस के खौफ ने सुकून छीन लिया है। तनाव और अवसाद ने दिमाग की चूलें हिला दी हैं। ऐसे कठिन समय में संयम और शांति की जरूरत पूरी दुनिया महसूस कर रही है। हम खुशनसीब है कि हमारी मिट्टी का कण-कण दुनिया को शांति और समरसता की सीख देता है। यह धरती दुनिया को शांति और अहिंसा की शिक्षा देने वाले भगवान बुद्ध की है। रुद्रावतारी गुरु गोरक्षनाथ ने यही धूनी रमाई थी। इसी तपोभूमि पर उन्होंने दिव्य समाधि ली थी। यहीं महाप्रयाण कर संत कबीर ने भक्त और भगवान के बीच भावों को नए खांचे में स्थापित किया। इस पर्यटन दिवस के बहाने हिन्दुस्तान ने पूर्वांचल के उन प्रमुख केंद्रों से आपको रूबरू कराने की कोशिश की है जिनकी आध्यात्मिक चेतना को महसूस कर पूरी दुनिया आलोकित होती रही है।
गोरखनाथ मंदिर
मान्यता के अनुसार सभी युगों और कालखंडों में विद्यमान गुरु गोरखनाथ की तपस्थली गोरखनाथ मंदिर में हर साल मकर संक्रांति के मौके पर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु खिचड़ी चढ़ाने आते हैं। सामान्य दिनों में भी रोज हजारों श्रद्धालु और देशी-विदेशी पर्यटक दर्शन करने आते हैं। योग साधना का क्रम यहां अनवरत चलता रहता है। मान्यता है कि गुरु गोरखनाथ ज्वालादेवी के स्थान से भ्रमण करते हुए राप्ती किनारे के इस स्थान पर पहुंचे थे। उन्होंने यहां दिव्य समाधि लगाई थी। वर्तमान गोरखनाथ मंदिर वहीं स्थित है। आज भी गुरु गोरखनाथ द्वारा जलाई गई पवित्र धूनी प्रज्ज्वलित हो रही है। डीडीयू में प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.पद्मजा सिंह बताती हैं, 'गुरु गोरखनाथ, नाथ पंथ के प्रवर्तक हैं। उन्होंने अपनी अलौकिक आध्यात्मिक गरिमा से इस स्थान को पवित्र किया। उनकी तपस्थली पर पहुंचने वाले पर्यटकों को अद्भुत शांति मिलती है। मंदिर परिसर में भीम सरोवर के किनारे बैठकर या नौका विहार कर सुकून के पल बिताते लोगों को कभी भी देखा जा सकता है।'
कुशीनगर
गौतम बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर में कई देशों के सुंदर बौद्ध मन्दिर हैं। यह स्थान अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर चमकता है। यहां दुनियाभर के बौद्ध अनुयायी वर्ष भर आते रहते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर एक महीने तक लगने वाले मेले में बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं। इस दौरान रात में कुशीनगर की साज-सज्जा और रोशनी से जगमगाते मंदिर देखते ही बनते हैं। सैर-सपाटे के साथ यहां की फिजाओं में शांति और अहिंसा का अहसास भी कराता है।
मगहर
यहां संत कबीर ने धूनी रमाई थी। उनके शिष्यों में हिन्दू और मुसलमान दोनों थे। संत कबीर की मजार और समाधि अगल-बगल स्थित हैं। समाधि के भवन की दीवारों पर कबीर के संदेश उकेरे गए हैं। पास में ही एक मंदिर भी है जिसे कबीर के हिन्दू शिष्यों ने सन् 1520 ईस्वी में बनवाया था। मजार सन् 1518 ईस्वी में बनी हुई बताई जाती है। मगहर में 12-16 जनवरी तक मगहर महोत्सव और कबीर मेला मेला लगता है। माघ शुक्ल एकादशी को तीन दिवसीय कबीर निर्वाण दिवस समारोह होता है और कबीर जयंती समारोह मनाया जाता है। यहां आने वाले ज्यादा देशी पर्यटक होते हैं। लोग परिसर में बैठकर समाधि और मंदिर का दर्शन कर काफी सुकून महसूस करते हैं।
कपिलवस्तु
यह शाक्यगण की राजधानी थी। गौतम बुद्ध का प्रारम्भिक जीवन यहीं गुजरा था। उनका जन्म स्थान यहां से सिर्फ 10 किलोमीटर दूर लुंबिनी में है। दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों के लिए कपिलवस्तु, लुम्बनी और कुशीनगर सबसे बड़े तीर्थ स्थलों में से हैं। इसे बुद्ध की क्रीड़ास्थली के तौर पर जाना जाता है।
उम्मीदों से भरा भविष्य
2021 को लेकर पर्यटन उद्योग उम्मीदों से भरा नज़र आ रहा है। गोरक्षपीठ, बौद्ध सर्किट और मगहर में पर्यटकों को आकर्षित करने वाली करोड़ों की परियोजनाओं और आधारभूत सुविधाओं के विकास का काम तेजी से जारी है। कुशीनगर में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बन रहा है। गोरखपुर में हवाई अड्डे का विस्तार हो रहा है। लिहाजा, होटल, टूर एंड ट्रैवल्स और पर्यटन से सम्बन्धित रोजगार के अन्य क्षेत्रों में काम करने वालों को उम्मीद है कि कोरोना वैक्सीन के आते ही ग्रहण हटेगा और पूरी दुनिया की तरह पूर्वांचल के पर्यटन उद्योग को चार चांद लग जाएंगे।
तीन गुना बढ़ सकता है पर्यटन
- कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से 30 नवम्बर तक उड़ान शुरू होने की सम्भावना है।
- अंतरराष्ट्रीय उड़ान से कुशीनगर में पर्यटन उद्योग तीन गुना बढ़ जाने की सम्भावना है
- बौद्ध सर्किट में पर्यटन बढ़ेगा तो टूरिस्ट गाइड, होटल उद्योग, टूर एंड ट्रैवल्स को भी गति मिलेगी
- बौद्ध सर्किट में श्रीलंका, वर्मा, नेपाल, चीन, जापान, वियतनाम, कोरिया, थाईलैंड, ताईवान, इंडोनेशिया, सिंगापुर के अलावा अमरीका और रूस से भी पर्यटक आते हैं।
- बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, आसाम और त्रिपुरा के सैलानी भी आते हैं
- बौद्ध पर्यटक अभी तक वाराणसी को केंद्र बनाकर भारत भ्रमण करते हैं। अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट चालू हो जाने के बाद अब कुशीनगर ही उनका केंद्र बनेगा