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काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी परिसर में मिले पांच सौ साल पुराने मंदिर के अवशेष

गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मैदान में करीब पांच सौ साल पुराने मंदिर के अवशेष मिले हैं। यह अवशेष उस वक्त मिला जब गुरुवार की शाम काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर निर्माण के लिए ज्ञानवापी मैदान में शृंगार गौरी के पास खोदाई की जा रही थी। 
पुरातत्व के जानकारों की मानें तो प्राप्त अवशेष को देख कर सहज ही कहा जा सकता है कि यह 16वीं सदी के मंदिरों की स्थापत्य शैली से मेल खाते हैं। अवशेष में कलश और कमल के फूल स्पष्ट दिख रहे हैं। इस प्रकार के कलश और कमलदल 15वीं-16वीं शताब्दी के हिंदू देवी-देवताओं के मंदिरों में देखने को मिलते हैं। 

ज्ञानवापी के पश्चिमी हिस्से में जिस स्थान पर यह अवशेष मिला है, वहीं एक सुरंग नुमा बड़ा सुराख भी देखा गया है। जानकारों के मुताबिक जब तक गहन जांच नहीं कर ली जाती तब तक कहना मुश्किल है कि वहां सुरंग है अथवा नहीं, लेकिन पत्थर के जो अवशेष मिले हैं, नि:संदेह वह चार सौ से पांच सौ साल पुराने हो सकते हैं। अवशेष का विधिवत परीक्षण करके ही उसकी प्राचीनता के बारे में सटीक जानकारी जुटाई जा सकती है। हो सकता है यह अवशेष उससे भी अधिक पुराने किसी मंदिर का हो। 

उल्लेखनीय है कि करीब दो वर्ष पूर्व ज्ञानवापी के पूर्वी हिस्से में की प्राचीन दीवार को हटाने के समय भी कुछ पुरातन इमारत के अवशेष मिले थे। इनमें कुछ नक्काशीदार ढांचे और कुछ सीढ़ियां थीं। पूर्व मंडलायुक्त नितिन रमेश गोकर्ण के कार्यकाल में मिले उन अवशेषों की जांच के लिए केंद्रीय एव राज्य पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के साथ ही भारत कला भवन के तत्कालीन निदेशक को भी बुलाया गया था। उन अवशेषों की प्राचीनता भी लगभग इतनी ही बताई गई थी। इस बात की संभावना भी जताई जा रही है कि गुरुवार शाम को मिले पत्थर का नक्काशीदार अवशेष उसी मंदिर का हिस्सा हो जो दो वर्ष पूर्व ज्ञानवापी के पूर्वी हिस्से में मिला था। 

जिला पुरातत्व अधिकारी सुभाष चंद्र यादव का कहना है कि पत्थर के अवशेष के स्थापत्य की शैली देख कर प्रतीत होता है कि यह 15वीं-16वीं शताब्दी के आसपास का है। जहां तक सुरंग का प्रश्न है तो उसकी जांच किए बिना कुछ भी कह पाना संभव नहीं है। वहीं श्रीकाशी विश्वनाथ विशिष्ट विकास परिषद के सीईओ गौरांग राठी ने कहा कि गुरुवार की शाम ज्ञानवापी मैदान वाले हिस्से में एक पुराना स्ट्रक्चर मिला है। इसके बारे में विस्तार से जानकारी के लिए पुरातत्व विभाग और बीएचयू के विशेषज्ञों की टीम चार सितंबर को ज्ञानवापी आएगी।

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