मुख्तार अंसारी पर पहली बार 1988 में लगा हत्या का आरोप और फिर एक दशक में बना पूर्वांचल का नामी बाहुबली
बीते कुछ महीनों में लिए गए सख्त एक्शन से अपराधियों की चूलें हिल गई हैं. इस कार्रवाई में सबसे ज्यादा अगर कोई नाम चर्चा में रहा तो वह है मऊ की सदर सीट से बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी. प्रशासन मुख्तार और उसके गुर्गों की काली कमाई से बनाई गईं अवैध सम्पत्तियों को चुन-चुन कर जमींदोज कर रहा है.आइए जानते हैं मुख्तार अंसारी ने अपराध की दुनिया में कब और कैसे कदम रखा..
Ghazipur News Team. Ghazipur - उत्तर प्रदेश की योगी सरकार प्रदेश के बाहुबली अपराधियों पर लगातार शिकंजा कसती जा रही है. बीते कुछ महीनों में लिए गए सख्त एक्शन से अपराधियों की चूलें हिल गई हैं. इस कार्रवाई में सबसे ज्यादा अगर कोई नाम चर्चा में रहा तो वह है मऊ की सदर सीट से बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी. प्रशासन मुख्तार और उसके गुर्गों की काली कमाई से बनाई गईं अवैध सम्पत्तियों को चुन-चुन कर जमींदोज कर रहा है. पुलिस हर उस शख्स तक पहुंच रही है जिसके तार मुख्तार अंसारी से जुड़े हुए हैं. वह अभी रोपड़ जेल में बंद है.
मुख्तार के दोनों बेटों उमर और अब्बास पर सरकारी जमीन कब्जाने के आरोप में एफआईआर दर्ज है. तब से ही दोनों फरार हैं और अब तो पुलिस उनके सिर 25-25 हजार का इनाम भी घोषित कर चुकी है. वहीं पत्नी आफसा और सालों शहजाद और सरजील के खिलाफ भी अवैध जमीन कब्जे के आरोप में एफआईआर दर्ज है. गाजीपुर गैंगस्टर कोर्ट ने तीनों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया है. फिलहाल ये फरार चल रहे हैं. आइए हम जानते हैं मुख्तार अंसारी ने अपराध की दुनिया में कब और कैसे कदम रखा...
पहली बार 1988 में लगा हत्या का आरोप
मुख्तार अंसारी ने जुर्म की दुनिया में पहली दस्तक 1988 में दी जब उसका नाम हत्या के केस में सामने आया. 90 के दशक की शुरूआत में उसने जमीन कारोबार, कोयले के ठेकों को अपनी हनक से हासिल किया. इसके बाद उसके नाम का सिक्का पूर्वांचल के गाजीपुर, बनारस, मऊ, जौनपुर में चलने लगा. उसने इन जिलों में अपनी आपराधिक छवि के दम पर ऐसा दबादबा कायम किया कि पूरे इलाके में उसके नाम की दहशत फैल गई.
मुख्तार ने 1995 में राजनीति में रखा कदम
मुख्तार अंसारी ने पूर्वांचल में अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए राजनीति का दामन थामा. उसने 1995 में राजनीतिक पारी शुरू की और 1996 में बहुजन समाज पार्टी (BSP) के टिकट पर मऊ सदर से चुनाव लड़कर विधायक बन गया. इसके बाद वह इस सीट से 5 बार का विधायक है. इसमें दो बार बसपा, दो बार निर्दलीय और एक बार कौमी एकता दल से जीत हासिल की. वर्तमान में वह बसपा से विधायक है. गौरतलब है कि पिछले लगभग 15 सालों से वह जेल में बंद है बावजूद इसके चुनावों में वह लगातार जीत दर्ज कर रहा है. बसपा ने 2010 में मुख्तार के आपराधिक छवि को स्वीकारते हुए उसे पार्टी से निकाल दिया. मुख्तार ने जिसके बाद अपने भाइयों के साथ कौमी एकता दल नाम से नई पार्टी बनाई और 2012 में मऊ सदर सीट से विधानसभा चुनाव भी जीता. वर्ष 2014 में मुख्तार अंसारी ने यह तक घोषणा कर दी कि वह बनारस से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेगा लेकिन बाद में उसने अपना फैसला वापस ले लिया. यूपी के 2017 विधानसभा चुनाव के पहले एक बार फिर मुख्तार की बसपा में वापसी हुई और वह 5 वीं बार विधायक बना.
पूर्वांचल में शुरू हुआ गैंगवार
90 के दशक में पूर्वांचल में दो गैंग मुख्य रूप से सक्रिय थे. मकनु सिंह गैंग और साहिब सिंह गैंग. मुख्तार अंसारी मकनु सिंह के गैंग में शामिल हुआ और साहिब सिंह गैंग से उसकी पहली भिड़ंत सैदपुर में एक प्लॉट को लेकर हुई और यहीं से दोनों गैंग्स के बीच खूनी खेल की शुरूआत हो गई. दोनों ही गैंग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए. कभी साहिब सिंह गैंग का हिस्सा रहे ब्रजेश सिंह ने गाजीपुर में ठेकेदारी और गुंडागर्दी शुरू कर दी. फिरौती, रंगदारी, किडनैपिंग और ठेकेदारी को लेकर मुख्तार और ब्रजेश सिंह के बीच कई बार भिड़ंत हुई.
वर्ष 2002 में मुख्तार और ब्रजेश गैंग के बीच जमकर गोलियां चलीं, जिसमें मुख्तार गैंग के तीन सदस्य मारे गए. खबरें चलीं कि ब्रजेश सिंह मारा गया, लेकिन वह जख्मी हो गया था. वह कुछ दिन के लिए अंडरग्राउंड हो गया. इस मौके का फायदा उठाकर पूर्वांचल मे मुख्तार ने अपना वर्चस्व कायम कर लिया. जब ब्रजेश सिंह वापस आया तब तक इस कहानी में तीसरी कड़ी बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय के रूप में जुड़ गई थी. कृष्णानंद राय ने मुख्तार के बड़े भाई अफजाल को 2002 के विधानसभा चुनाव में हरा दिया. चुनाव में ब्रजेश सिंह ने कृष्णानंद राय का समर्थन किया. पूर्वांचल के गाजीपुर-मऊ जिलों में हिंन्दू-मुस्लिम वोट बैंक बनने लगे और आए दिन सांप्रदायिक लड़ाईयां होने लगीं. ऐसे ही एक मामले में मुख्तार गिरफ्तार हो गया.
कृष्णानंद राय की हत्या
मुख्तार 2005 में जेल में बंद था. लेकिन कहा जाता है कि उसने जेल से ही कृष्णानंद राय की दिनदहाड़े हत्या करवा दी. कई AK-47 बंदूकों से करीब 400 राउंड गोलियां चलीं जिसमें कृष्णानंद राय समेत 7 लोग मारे गए. कृष्णानंद राय की पत्नी ने मुख्तार और उसके गैंग के खिलाफ FIR फाइल की और 2006 में जांच शुरू हुई. 2006 में ही शशिकांत राय की हत्या कर दी गई, जो इस मामले में गवाह थे. कहा जाता है कि शशिकांत राय ने मुख्तार और उसके साथी मुन्ना बजरंगी के खिलाफ कोर्ट में गवाही देने वाले थे, इसके चलते उनकी हत्या कराई गई. लेकिन पुलिस ने आत्महत्या बताकर मामले को खत्म कर दिया.सबूतों के आभाव में 2019 में मुख्तार को कृष्णानंद राय हत्या केस में कोर्ट से बाइज्जत बरी कर दिया गया. मुख्तार अंसारी पर हत्या, किडनैपिंग और रंगदारी जैसे दर्जनों संगीन जुर्म के आरोप लगे हैं. उस पर 40 से ज़्यादा मुकदमें दर्ज हैं. इसके बावजूद वह जेल से चुनाव जीतने में सफल होता है.
गरीबों का नजर में बना रॉबिनहुड
जुर्म के कारोबार के साथ-साथ उसने गरीबों को भी अपने पाले में कर रखा है. जिसके दम पर उसने अपनी सल्तनत खड़ी की. कहा जाता है कि गरीबों के बीच उसकी छवि रॉबिनहुड जैसी है.वह अमीरों से लूटकर उसे गरीबों में भी बांटता है. मऊ में उसके समर्थक कहते हैं कि बतौर विधायक मुख्तार अंसारी ने अपने इलाके में काफी काम किया है. सड़कों, पुलों, अस्पतालों और स्कूल-कॉलेजों पर ये रॉबिनहुड अपनी विधायक निधी से 20 गुना ज़्यादा पैसा खर्च करता है.
खेलों में रखता है दिलचस्पी
मुख्तार अंसारी खेल में बेहद रुचि है उसको हॉकी, फुटबॉल और क्रिकेट बहुत पसंद है. उसे पहाड़ों की सैर करना बेहद पसंद है. फिल्मों में उसकी कम दिलचस्पी है, लेकिन गुलजार की फिल्म ‘माचिस’ उसे बहुत पसंद आई.
बेहद प्रतिष्ठित परिवार से नाता रखता है मुख्तार अंसारी
बाहुबली मुख्तार अंसारी का परिवार भारत की आजादी तक में अहम योगदान दे चुका है. मुख्तार के दादा डॉ मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान 1926-27 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और वे गांधी जी के बेहद करीबी माने जाते थे.जिनकी याद में दिल्ली की एक रोड का भी उनके नाम पर है.महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान मुख्तार अंसारी मुख्तार के नाना थे. जो 1947 में भारत की ओर से लड़ते हुए शहीद हो गए थे.इसके साथ-साथ भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी मुख्तार के रिश्ते में चाचा लगते हैं.