कभी फुटपाथ पर सोते थे मुकेश, अब बॉलीवुड व भोजपुरी फिल्म में मिलने जा रही पहचान
गाजीपुर न्यूज़ टीम, नई दिल्ली. मायानगरी मुंबई में सैकड़ों लोग कलाकार बनने का सपना लेकर जाते हैं। कुछ के सपने पूरे भी होते हैं तो कुछ के हाथ सिवाए निराशा के कुछ नहीं लगता। ऐसे ही करीब 20 वर्ष पहले बॉलीवुड में एक्टिंग करने का सपना लेकर सीमापुरी में रहने वाले मुकेश पाल भी गए। उत्तर-प्रेदश के गोंडा में जन्में मुकेश एक गरीब किसान परिवार से थे। वह 10वीं की परीक्षा देकर दिल्ली आ गए और यहां गुजारा करने के लिए नौकरी करने लगे। उनका सपना सिर्फ और सिर्फ एक्टिंग करना ही था इसलिए वह दिल्ली आए।
मुकेश का गांव से दिल्ली और दिल्ली से मुंबई तक का सफर दुख व संघर्षों से भरा रहा, पर उन्होंने कभी हार नहीं मानी। दिल्ली में दस वर्ष थिएटर अस्मिता ग्रुप के साथ भी जुड़े रहे और कई थिएटर में काम करने का मौका मिला। इतने वर्षों के संघर्ष के बाद अब मुकेश को फिल्मी दुनिया में एक पहचान मिलने जा रही है।
10वीं की परीक्षा देकर आंखो में कलाकार बनना का सपना लिए आ गए दिल्ली
मुकेश ने बताया कि 1996 में जब वह दिल्ली आए तब शुरुआती दिनों में पैसे न होने के कारण कई कई दिन भूखे भी रहे और फुटपाथ पर दिन व रात गुजारनी पड़ी। कभी काम मिलता कभी नहीं इससे परेशान होकर आत्महत्या की भी कोशिश की, लेकिन वह अपने सपने को जीना चाहते थे, इसलिए फिर 2001 में हार न मानने का प्रण लेते हुए एक नई उड़ान और ऊर्जा के साथ आखिरकार उन्होंने मुंबई की ओर रुख किया।
जैसे तैसे वहां पहुंच तो गए पर रहने के लिए जेब में पैसे नहीं थे। फिर कई दिन मुंबई बांद्रा के फुटपाथ पर गुजारे। उनकी किस्मत खुली और एक दिन बांद्रा में उनकी मुलाकात एक भिखारी से हुई, जिसका सलमान खान के गेलैक्सी अपार्टमेंट में आना जाना था। उन्होंने उस भिखारी के साथ रहते-रहते बहुत से ऑडिशन भी दिए। रोज सुबह निकलते प्रोडक्शन हाउस के चक्कर लगाते पर कुछ काम नहीं मिलता।
ऐसे ही कुछ महीने बीतते चले गए, फिर जाकर थोड़ा बहुत काम मिलना शुरू हुआ। लेकिन इसी बीच उनके पिता की मृत्यु हो गई फिर उन्हें वापस गोंडा लौटना पड़ा और घर का बड़ा बेटा होने के नाते सारी जिम्मेदारियां उन पर आ गयी। वह घर की जिम्मेदारियां तो निभाने लगे पर उनके अंदर का कलाकार खत्म नहीं हुआ। जब घर के हालात कुछ पटरी पर आए तो वह फिर दिल्ली आ गए और नौकरी के साथ साथ थिएटर, मॉडलिंग व भोजपुरी फिल्मों में काम करने लगे। दिल्ली में ही काम करते करते उन्हें एक पहचान और नाम मिला।
अब मिलने जा रही मुकेश को पहचान
मुकेश ने कभी हार नहीं मानी, वह किस्मत से लड़ते लड़ते आखिरकार जीत ही गए। मायानगरी में उन्होंने नेपोटिज्म से लेकर कासटिंग काउच का भी सामना करना पड़ा। कई बार निराशा हाथ लगी पर उनके कदम नहीं डगमगाए और आज वर्षों बाद उनका सपना पूरा हुआ और अब वह एक बॉलीवुड और एक भोजपुरी फिल्म में नजर आएंगें, जोकि अच्छी पारिवारिक फिल्में हैं। बॉलीवुड फिल्म 'राम नगीना' व भोजपुरी फिल्म 'मैं हूं मजनू तेरा' में मुकेश काम कर रहे हैं जिनके निर्माता शंभू पांडेय व उदय सिंह हैं और निर्देशक रुस्तम अली चिश्ती व सहायक निर्देशक कुमार अभिषेक सम्राट व पूजा यादव हैं।