कैबिनेट की बैठक बीच में छोड़कर चल दिए सीएम योगी, जानें क्या है पूरा माजरा
गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. नियम और अनुशासन के साथ नैतिकता को लेकर संवेदनशील उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत किया है। कैबिनेट की बैठक की अध्यक्षता कर फैसलों पर मुहर लगाते चले जा रहे सीएम योगी के सामने जैसे ही गोरक्षनाथ चिकित्सालय से संबंधित प्रस्ताव आया तो वह गोरक्ष मठ के प्रमुख होने के नाते बैठक छोड़कर चले गए और प्रस्ताव के फैसले में शामिल ही नहीं हुए।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में रखे गए पंद्रह प्रस्तावों में गोरखपुर में गुरु गोरक्षनाथ चिकित्सालय संचालित करने वाली संस्था की ओर से जिले के सोनबरसा गांव में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए जमीन के विनिमय (अदला-बदली) का भी प्रस्ताव था। प्रस्ताव के मुताबिक, गोरक्षनाथ चिकित्सालय का संचालन करने वाली संस्था ने विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए गोरखपुर की सदर तहसील के सोनबरसा गांव में जमीन खरीदी थी।
विश्वविद्यालय के लिए खरीदी गई जमीन के बीच में ग्राम समाज की आरक्षित श्रेणी (लोक उपयोगिता) की 0.537 हेक्टेयर भूमि भी है। उत्तर प्रस्ताव राजस्व संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2020 के प्राविधानों के अनुसार संस्था ने लोक उपयोगिता की इस भूमि का अन्यत्र स्थित अपनी 0.599 हेक्टेयर जमीन से उसी प्रयोजन के लिए विनिमय करने का प्रस्ताव दिया था। साथ ही, लोक उपयोगिता की भूमि के श्रेणी परिवर्तन के लिए नियमानुसार डीएम सर्किल रेट का 25 फीसद शुल्क (लगभग 11.5 लाख रुपये) जमा करने का भी प्रस्ताव दिया था।
जैसे ही यह प्रस्ताव कैबिनेट के समक्ष चर्चा के लिए रखा गया, वैसे ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कैबिनेट की बैठक छोड़कर चल दिए। चूंकि सीएम योगी स्वयं गोरक्ष पीठाधीश्वर हैं, इसलिए नैतिकता के आधार पर उन्होंने इससे संबंधित फैसले में शामिल होना उचित नहीं समझा। उनकी अनुपस्थिति में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कैबिनेट बैठक की अध्यक्षता की और प्रस्ताव को स्वीकृति दी गई।
हालांकि, जानकारों के मुताबिक, कानूनी रूप से भी सीएम योगी का फैसला उचित था, क्योंकि मठ प्रमुख होने के नाते वह लाभार्थी की श्रेणी में आते हैं। उल्लेखनीय है कि इससे पहले अपने पिता की मृत्यु पर अंत्येष्टि में न जाकर सीएम योगी कोरोना वायरस संक्रमण से प्रदेशवासियों को बचाने की मुहिम में जुटे रहे और कर्मयोगी के रूप में हर किसी की जुबां पर रहे थे।