उत्तर प्रदेश के 290 विकास खंडों में भूजल दोहन पर रोक से मचा हड़कंप
गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. भूगर्भ जल के अंधाधुंध दोहन से नाराज एनजीटी के आदेश के चलते प्रदेश के 290 अति दोहित, क्रिटिकल व सेमी क्रिटिकल विकास खंडों सहित देश के सभी संकटग्रस्त विकास खंडों में औद्योगिक व व्यवसायिक गतिविधियों के लिए भूजल दोहन के लिए अनुमति देने पर लगी रोक से जिम्मेदार महकमों में हड़कंप है। एक ओर ऐसे गंभीर क्षेत्रों में भूजल दोहन ना कर पाने से उद्योगों व व्यवसायिक गतिविधियां फिलहाल थम गई हैं। वहीं, इन क्षेत्रों में भूजल प्रबंधन के वैज्ञानिक आधार पर ठोस इंतजाम ना कर पाने में विफल केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के भी पसीने छूट रहे हैं।
विगत 20 जुलाई को दिए गए एनजीटी के आदेश के चलते इन सभी विकास खंडों में केंद्रीय भूजल प्राधिकरण को वाटर मैपिंग के साथ पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (इआइए) करना होगा। यही नहीं आदेशों के अनुसार सीमित समय के लिए ही दोहन अनुमति दी जा सकेगी। वहीं दोहन की मात्रा भी तय की जाएगी। साथ ही हर साल भूजल आंकड़ों को ऑनलाइन डाला जाएगा।
समस्या यह है कि केंद्रीय भूजल प्राधिकरण सहित राज्यों के पास एनजीटी के आदेशों का अनुपालन करने के लिए फिलहाल ना तो पर्याप्त तैयारी है और ना ही आवश्यक भू वैज्ञानिक अध्ययन। इसके चलते एनजीटी के आदेशों के आधार पर फिलहाल उद्योगों,व्यवसायिक इकाइयों, इंफ्रास्ट्रक्चर व खनन कार्यों में भूजल दोहन की मंजूरी दे पाना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।
यहां लागू है आदेश
उत्तर प्रदेश के जिन क्षेत्रों में एनजीटी के आदेश लागू हैं, उनमें 280 अतिदोहित, क्रिटिकल एवं सेमी क्रिटिकल विकास खंडों के साथ लखनऊ ,कानपुर, प्रयागराज,वाराणसी ,आगरा सहित 10 शहर भी शामिल हैं। एनजीटी की ओवरसाइट कमेटी के अध्यक्ष जस्टिस एसवीएस राठौर द्वारा 24 जुलाई 2020 की अपनी जांच रिपोर्ट में रामपुर जिले के कुछ उद्योगों के खिलाफ एनजीटी के उक्त आदेशों का हवाला देते हुए कड़ी कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं। यह वह उद्योग हैं जिनकी भूजल दोहन की मियाद खत्म हो गई है और उसके बाद भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। कमेटी ने रिपोर्ट में कहा है कि भूजल दोहन की स्थिति काफी गंभीर होती जा रही है। जरूरत इस बात की है कि राज्य स्तर पर तत्काल ठोस कदम उठाए जाएं।
एनजीटी के आदेशों के तहत कार्रवाई के मुख्य बिंदु --
- बगैर पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन कराए सामान्य रूप से भूजल दोहन की अनुमति कतई न दी जाए।
- सभी संकटग्रस्त क्षेत्रों की वाटर मैपिंग करा कर देखा जाए की इन विकास खंड क्षेत्रों में भूजल दोहन की क्षमता कितनी बची है। इसी आधार पर दोहन की मंजूरी दी जाए।
- सभी क्षेत्रों की जल प्रबंधन योजना बने तथा यह तय किया जाए कि कितने समय के लिए और कितनी मात्रा में भूजल दोहन की अनुमति दी जानी है। अनुपालन न करने वालों से पर्यावरण क्षतिपूर्ति वसूली जाए।
- हर साल इन क्षेत्रों का वॉटर ऑडिट हो और जलस्तर में कितना सुधार हुआ, इनसे जुड़े सारे आंकड़े पारदर्शिता हेतु जनता के सामने ऑनलाइन रखे जाएं।
- देश में भूजल स्तर गिरावट की प्रभावी रोकथाम व अवैध दोहन रोकने के लिए एक स्पष्ट रेगुलेटरी मैकेनिज्म तत्काल लागू की जाए।
- सुप्रीम कोर्ट की जिस मंशा के अनुरूप केंद्रीय भूजल प्राधिकरण का गठन 1997 में हुआ,जल शक्ति मंत्रालय उसके अनुसार कार्यवाही सुनिश्चित कराए।