उत्तर प्रदेश पुलिस में नियम विरुद्ध दे दिया 932 पीएसी जवानों को प्रमोशन, आरक्षी बनाकर भेजे गए वापस
गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. उत्तर प्रदेश में पुलिस महकमे पर नियम-कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी है, उसी ने अपने विभाग के नियमों की धज्जियां उड़ा दीं। सिर्फ ड्यूटी के लिए सिविल पुलिस में भेजे गए 932 पीएसी जवानों को जुगाड़ और सेटिंग से पुलिस के कोटे में ही प्रमोशन दे डाला। पीएसी के ही एक जवान ने हाई कोर्ट में याचिका डाली तो पूरे महकमे की कलई खुल गई। इन 932 में से 14 तो अपनी सेवा भी पूरी कर चुके हैं। बाकी 896 के प्रमोशन निरस्त कर 22 आरक्षी समेत सभी को मूल संवर्ग पीएसी में आरक्षी के पद पर वापस कर दिया है।
उत्तर प्रदेश में पीएसी के आरक्षी जितेंद्र कुमार ने अपना प्रमोशन नागरिक पुलिस में मुख्य आरक्षी पद पर न होने पर हाई कोर्ट में 2019 में याचिका डाली। उसमें आरक्षी से मुख्य आरक्षी पद पर प्रमोशन पाए पीएसी संवर्ग के ही सुनील कुमार यादव, दिनेश कुमार चौहान और देव कुमार सिंह का उल्लेख किया गया। न्यायालय छह सप्ताह में याची के प्रत्यावेदन पर निर्णय के आदेश पुलिस मुख्यालय को दिए। उसके बाद पुलिस महानिदेशक ने चार सदस्यीय समिति बनाकर जांच कराई तो रिपोर्ट में सारा खेल उजागर हो गया।
रिपोर्ट में कहा गया कि पीएसी और नागरिक पुलिस अलग-अलग संवर्ग हैं। संवर्ग परिवर्तन का कोई नियम या शासनादेश ही नहीं है। पीएसी से पुलिस में ड्यूटी पर आए पीएसी के आरक्षियों को नागरिक पुलिस में वरिष्ठता क्रम में पदोन्नति दी ही नहीं जा सकती। इसके बाद पुलिस मुख्यालय ने जिलों से ब्योरा जुटाना शुरू किया तो पीएसी से पुलिस ड्यूटी पर आकर यहां रुक गए और नियम विरुद्ध तरीके से प्रमोशन वाले कुल 932 आरक्षी मिले। इनमें से 14 तो अपनी सेवा भी पूरी कर चुके हैं। शेष 918 को आरक्षी के पद पर मूल संवर्ग पीएसी में वापस किया जा रहा है। इनमें 22 अभी पुलिस में भी आरक्षी ही थे। इन सभी को पीएसी मुख्यालय लखनऊ भेजा गया है।
एडीजी स्थापना पीयूष आनंद का कहना है कि करीब डेढ़ दशक पहले व्यवस्था के तहत पीएसी के जवानों को ड्यूटी के लिए नागरिक पुलिस में भेजा गया। इन्हें जिलों व विभिन्न इकाइयों में तैनाती दी गई। इनकी तैनाती व्यवस्था के तहत है, संवर्ग परिवर्तन या पुलिस कोटे में प्रमोशन का कोई नियम नहीं है। एक आरक्षी द्वारा हाई कोर्ट में याचिका लगाने पर विभाग ने जांच कराई तो मामला सामने आया कि इन सभी आरक्षियों ने नियम विरुद्ध तरीके से प्रमोशन पाया। सभी के प्रमोशन निरस्त कर मूल संवर्ग में भेजा जा रहा है।
जांच में यह मिली रिपोर्ट
- आरक्षी से उपनिरीक्षक : 6
- आरक्षी से मुख्य आरक्षी : 890
- आरक्षी ही बनकर रुके : 22
- सेवाकाल पूरा कर चुके : 14
जवाब मांगते सवाल
- क्या डेढ़ दशक तक महकमे में कोई ऐसा अधिकारी स्थापना विभाग में ऐसा नहीं आया, जो नियम विरुद्ध प्रमोशन पर रोकता?
- क्या जुगाड़-सेटिंग से प्रमोशन देने का कोई नेटवर्क काम कर रहा था, जो लखनऊ से जिलों तक फैला था?
- कहा जा रहा है कि पीएसी जवानों ने अपना नाम गलत तरीके से वरिष्ठता सूची में शामिल करा लिया। क्या इन जवानों के चाहने भर से प्रमोशन मिल गया?
- प्रमोशन हुए? तो पत्रावलियां भी निकली होंगी। क्या उनमें नहीं लिखा था कि यह कब और किस संवर्ग में भर्ती हुए?
- क्या सरकार भ्रष्टाचार के इस बड़े खेल की जांच कराएगी?
- क्या पीएसी में रहते हुए इतने समय में यह आरक्षी अपने संवर्ग में प्रमोशन नहीं पाते? क्या मूल संवर्ग में पदोन्नति पाएंगे?