सावन के पांचवें सोमवार बाबा विश्वनाथ दरबार में लगी कतार, सैकड़ों कांवरियां भी पहुंचे
गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी। सावन के पांचवें और अंतिम सोमवार बाबा विश्वनाथ के दरबार में भक्तों की भीड़ दिखाई दी। इस बार सैकड़ों की संख्या में कांवरियां भी जलाभिषेक के लिए पहुंचे। इससे माहौल पूरी तरह शिवमय बन गया। गंगा घाट से लेकर विश्वनाथ दरबार तक हर हर बम बम गूंजता रहा। अयोध्या में राममंदिर भूमिपूजन को देखते काशी में भी सतर्कता बढ़ा दी गई है। यलो जोन के आउटर सर्कल में भी रविवार से ही वाहनों पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई थी। पैदल आने वालों की भी गहन चेकिंग होती रही। गलियों में विशेष पुलिस टीमों को लगाया गया है। दूध और जल लेकर आने वालों को भी सतर्कतावश चेक किया जाता रहा।
सावन में पांच सोमवार पांच से छह साल में एक बार ही आता है। इससे इस दिन का महत्व बढ़ जाता है। पिछले कई सोमवार से बंदी और पाबंदियों के कारण भी जो लोग काशी विश्वनाथ नहीं पहुंच सके वह इस बार दिखाई दिये हैं। हालत यह रही है कि जहां पहले सुबह नौ बजे तक एक से डेढ़ हजार दर्शनार्थी ही पहुंचते थे इस बार तीन हजार से ज्यादा लोग दर्शन कर चुके थे।
सुबह दस बजे गेट नंबर एक पर श्रद्धालुओं की कतार ढुढिराज गणेश से होते हुए बांसफाटक और वहां से केसीएम मॉल तक दिखाई दी। एक बार यह कतार गोदौलिया तक पहुंच गई थी। इसी तरह ज्ञानवापी पर कतार चित्रा सिनेमा तक पहुंच गई थी। दर्शन करने वालों में इस बार बड़ी संख्या में युवा दिखाई दिये। सभी के हाथों में फूल माला की जगह जल और दूध का पात्र रहा।
गंगा घाट पर भी हर बार से ज्यादा भीड़ दिखाई दी। श्रावणी उपाकर्म के कारण भी घाटों पर भीड़ रही। कांवरियां बड़ी संख्या में दिखाई दिये। घाट पर हर बार की तरह किसी तरह की रोक-टोक नहीं होने से श्रद्धालुओं को राहत मिली। मंगला आरती के बाद करीब पौने पांच बजे आम श्रद्धालुओं के लिए मंदिर खोल दिया गया। मंगला आरती के दौरान करीब 50 लोग मौजूद रहे।
अंतिम सोमवार के कारण मंदिर को भी आकर्षक फूलों और पत्तियों से सजाया गया था। अंतिम सोमवार बाबा का झुलनोत्सव श्रृंगार होता है। उसकी भी तैयारियां मंदिर में चलती रहीं। शाम में बाबा की पंचबदन प्रतिमा को पूर्व महंत के आवास से पालकी पर लाने के बाद गर्भगृह में झूले पर बैठाकर पूजा अर्चना की परंपरा का निर्वहन किया जाएगा। पूर्व महंत के आवास पर तीन दिवसीय झुलनोत्सव शनिवार से ही शुरू हो चुका है।
प्रशासन के निर्देशों के तहत सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन होता रहा। गर्भगृह में किसी को जाने की इजाजत नहीं थी। तीनों गेटों पर लगे पात्रों के सहारे बाबा को जल और दूध का अर्पण होता रहा। सेनिटाइजेशन और थर्मल स्कैनिंग के बाद ही मंदिर में प्रवेश मिला।
हर सोमवार की तरह तीनों रास्तों से श्रद्धालुओं को प्रवेश मिलता रहा। मैदागिन की ओर से आने वाले श्रद्धालु गेट नंबर चार के पांचों पांडव द्वार से रानी भवानी होते हुए गर्भ गृह के पूर्वी द्वार पर दर्शन कर दूसरे मार्ग से बाहर आते रहे। दूसरा मार्ग भी गेट नंबर चार पर छत्ता द्वार के पास ही बनाया गया है। इस मार्ग से प्रवेश करने वाले श्रद्धालु बद्रीनाथ द्वार से प्रवेश कर गर्भगृह के उत्तरी द्वार से बाबा का झांकी दर्शनकर उसी दरवाजे से बाहर शृंगार गौरी की तरफ से वापस आ रहे हैं। तीसरे मार्ग बांसफाटक से कोतवालपुरा होते हुए ढुंढिराज गणेश से प्रवेश करने के बाद अन्नपूर्णा मंदिर होते हुए अविमुक्तेश्वर द्वार से मंदिर में प्रवेश और निकासी हुई।