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बीएचयू में गंभीर मरीजों का प्लाज्मा थेरेपी से होगा इलाज, जानिये तकनीक के बारे में सबकुछ

गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में भी प्लाज्मा थेरेपी से इलाज किया जाएगा। कोरोना से निबटने में कई राज्यों में रामबाण मानी जा चुकी इस तकनीक से गंभीर मरीजों की जान बचाई जा सकेगी। प्लाज्मा थेरेपी से इलाज की शुरुआत के लिए बीएचयू में तैयारियां हो गई हैं। गुरुवार से प्लाजा बैंक की शुरुआत करते हुए कोरोना के निगेटिव हो चुके मरीजों से ब्लड डोनेट करने की गुजारिश की जाएगी। अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद 28 दिन का समय पूरा कर चुका कोई भी मरीज अपना ब्लड दान कर सकता है। 

बीएचयू में बुधवार को बीएचयू प्रशासन और कमिश्नर व जिलाधिकारी की बैठक में कोरोना की सबसे महत्वपूर्ण दवा मानी जा रही रेमदेसीविर को भी बनारस में ही उपलब्ध कराने पर चर्चा हुई। बीएचयू की अमृत और उमंग फार्मेसी इस बारे में कंपनी को अप्लाई करने के लिए कहा गया है। फिलहाल गंभीर मरीजों के लिए रेमदेसीविर दिल्ली से मंगाना पड़ रहा है। 

आइये समझिये क्या है यह तकनीक

पहले जानिये क्या होता है प्लाज्मा
प्लाज्मा खून में मौजूद पीले रंग का तरल होता है। रेड ब्लड सेल, वाइट ब्लड सेल और प्लेट्लेट्स आदि को अलग करने के बाद प्लाज्मा बचता है। प्लाज्मा को आप शरीर का एक ऐसा शूरवीर मान सकते हैं, जो वायरसों को मार भगाता है। यह वायरसों के खिलाफ एंटीबॉडी बनाता है और फिर वायरस का काम तमाम होना शुरु होता है।

प्लाज्मा थेरपी की क्या जरूरत है
दरअसल कोरोना अटैक के बाद मरीज के शरीर में प्लाज्मा के जरिए एंटिबॉडी बनने की ताकत सीमित या खत्म हो जाती है। इसलिए इस थेरपी की जरूरत पड़ती है।

कोरोना मरीजों में कैसे होती है प्लाज्मा थेरपी
प्लाज्मा थेरेपी तकनीक के तहत कोविड-19 से ठीक हो चुके मरीजों के खून से एंटीबॉडीज लेकर उनका इस्तेमाल गंभीर रूप से संक्रमित मरीजों के इलाज में किया जाता है। किसी मरीज के ठीक होने के बाद भी एंटीबॉडी प्लाज्मा के साथ शरीर में रहती हैं, फिर बीमार के शरीर में यह स्वस्थ प्लाज्मा फिर ये नए एंटिबॉडी पैदा करने लग जाता है, जिससे माना जा रहा है कि कोरोना हार जाता है।

दिल्ली में मिली उत्साहजनक कामयाबी
तमिलनाडु, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, गुजरात में इस थेरेपी से इलाज चल रहा है। दिल्ली में प्लाज्मा थेरपी के उत्साहजनक नतीजे मिले हैं। इससे पहले ICMR ने भी इसका परीक्षण देखा और पाया गया कि बेहतर नतीजा रहा। प्लाज्मा थेरपी के ऐसे ही एक अध्ययन में गंभीर रूप से बीमार 10 लोगों में 200 मिलीलीटर प्लाज्मा चढ़ाया गया और तीन दिन में उनकी हालत में सुधार दिखा।

130 साल पुरानी तकनीक
प्लाज्मा थेरेपी कोई नया इलाज नहीं है। यह 130 साल पहले यानी 1890 में जर्मनी के फिजियोलॉजिस्ट एमिल वॉन बेह्रिंग ने खोजा था। इसके लिए उन्हें नोबेल सम्मान भी मिला था। यह मेडिसिन के क्षेत्र में पहला नोबेल था।
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