पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट मिनी ग्रिड सोलर पावर प्लांट पर लगा ग्रहण
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. खानपुर: जनपद के पश्चिमी छोर पर बसे तेतारपुर गांव में जब पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट मिनी ग्रिड सोलर पावर प्लांट का शुभारंभ किया गया तब पूरे क्षेत्र सहित सात हजार की आबादी वाले गांव के लोग झूम उठे थे, लेकिन आज तक इसका उद्घाटन ही नहीं हो पाया। इससे लोगों को इस प्लांट से बिजली सप्लाई नहीं मिल पाती है।
जनवरी 2016 में दो करोड़ 30 लाख रुपये की लागत से बना सोलर प्लांट आज खुद अंधेरे में रहकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। इस प्लांट को ऊर्जा देने वाले सूर्य पिछले चार सालों से रोज उगते और अस्त होते रहे लेकिन इस सोलर प्लांट का अंधेरापन दूर नहीं कर पाए। गांव वाले इस सोलर प्लांट के लगने पर फूले नहीं समा रहे थे। ग्रामीणों का कहना है कि 100 किलोवाट की क्षमता का पावर प्लांट शुरू होने पर तेतारपुर ग्रामसभा के लोगों को बिजली की समस्या से निजात मिल सकती है।
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण (नेडा) की ओर से वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए मिनी ग्रिड सोलर पावर प्लांट योजना के तहत उस समय पूर्वांचल का इकलौता और उत्तरप्रदेश का दूसरा ग्रामीण सोलर पावर प्लांट लगाया गया था। बिजली व्यवस्था से परेशान गांव तेतारपुर जिला मुख्यालय से करीब 65 किमी दूर गोमती नदी के किनारे बाढ़ प्रभावित गांव है। जो गोमती नदी द्वारा तीन तरफ से घिरा हुआ है।
गांव के निवासी हाईकोर्ट अधिवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि हम लोग उत्साहित थे कि सोलर प्लांट लगने के बाद गांव में पेयजल योजना और घरेलू विद्युत आपूर्ति बहाल की जाएगी और घरेलू उपयोग के लिए कनेक्शन भी मिल जाएंगे। सोलर प्लांट स्थापित होने पर गांव के लोगों को अब बिजली की समस्या नहीं सताएगी। बनकर तैयार और उद्घाटन का इंतजार करने वाले इस प्लांट को शुरू कराने के लिए युवा धीरज सिंह ने स्थानीय एमएलसी, विधायक सहित मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा लेकिन मामला 'ढाक के तीन पात, तेतारपुर के साथ विश्वासघात'वाला रहा।
पूर्वांचल का पहला पावर प्लांट
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा कन्नौज जिले के फकीरपुर के बाद विधायक सुभाष पासी को दिया गया दूसरा नायाब उपहार सोलर पावर प्लांट अंधकार में डूब गया है। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से सात हजार लोगों की आबादी वाले एक हजार घरों में रोशनी के लिए बल्ब और छोटे पंखे चलते और दिन में तीन से चार ट्यूबेल और कुछ आटा चक्कियां भी चलतीं।