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दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज केस से देश में बढ़ा कोरोना संक्रमण - सीएम योगी

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ। कोरोना कैरियर के रूप में सामने आए तब्लीगी जमाती लगातार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निशाने पर रहे हैं। उन्होंने एक बार फिर दोहराया है कि दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज का मामला सामने आने के बाद देश में व्यापक पैमाने पर कोरोना का संक्रमण बढ़ा है। यह बात सीएम योगी ने शनिवार को आईआईटी एल्युमिनाई रीच फॉर इंडिया फाउंडेशन के सीएम पैनल के वेबिनार में कही। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जिन प्रवासी श्रमिक-कामगारों को प्रदेश में काम दिया गया है, उनमें से पांच-सात फीसद को छोड़ दिया जाए तो बाकी दूसरे राज्य नहीं जाना चाहते।

आईआईटी एल्युमिनाई रीच फॉर इंडिया फाउंडेशन के वेबिनार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कोविड-19 के खिलाफ भारत सुरक्षित स्थिति में है। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। उन्होंने कहा कि कोरोना के रूप में उत्तर प्रदेश के सामने सबसे बड़ा चैलेंज था। यहां देश की 17 फीसद यानी 24 करोड़ आबादी है। जिसे कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए हमें काम करना था। इस दौरान कई चुनौतियां हमारे सामने आईं। उनके अनुसार रणनीति बनाई।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि बहुत सी घटनाओं को टाल नहीं सकते थे, नजरअंदाज नहीं कर सकते थे। लॉकडाउन 25 मार्च को लगा। 27-28 मार्च को दिल्ली व अन्य प्रदेशों से यूपी-बिहार के लिए भारी संख्या में प्रवासी मजदूर पैदल चल पड़े। हमने 48 घंटे में उन्हें गंतव्य तक पहुंचाया। हम यह काम कर ही पाए थे कि दिल्ली के मरकज का मामला सामने आ गया, जिसके कारण पूरे देश में व्यापक पैमाने पर कोविड का संक्रमण हुआ। हमने समय से आगे की कार्रवाई की। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के लगभग 12 हजार छात्र राजस्थान के कोटा में पढ़ाई कर रहे थे। वह वहां फंसे थे। उन्हें सुरक्षित लाए। प्रयागराज में फंसे छात्रों को सुरक्षित उनके घरों तक पहुंचाया। 40 लाख प्रवासी श्रमिक-कामगारों को सुरक्षित उत्तर प्रदेश लाए। समय से उठाए गए कदम बाद में कैसे राहत प्रदान करते हैं, इसके बेहतर परिणाम हमने देखे हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस दौरान तैयार किए गए चिकित्सा ढांचा, गरीब-मजदूरों के लिए योजनाएं, कृषि क्षेत्र के लिए सहयोग आदि की चर्चा की। साथ ही कहा कि प्रदेश सरकार ने सवा करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार-स्वरोजगार से जोड़ा। खास बात है कि उप्र में जिन प्रवासी श्रमिक-कामगारों को काम दिया गया है, उनमें से पांच-सात फीसद को छोड़ दिया जाए तो बाकी कोई वापस दूसरे राज्य नहीं जाना चाहता।

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