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चीन का मुकाबला करने के लिए तैयार 'त्रिशूल'

गाजीपुर न्यूज़ टीम, बरेली: भारत-चीन बॉर्डर पर सेनाओं के बीच हिसक झड़प और तनातनी का माहौल है। ऐसे में भारतीय सेना की ताकत का एहसास होना भी जरूरी है। इसमें बरेली का नाम भी शामिल होता है। यहां बने वायु सेना के एयरबेस के पास सुखोई जैसे दुनिया के अग्रिम पंक्ति के लड़ाकू विमान हैं। जिससे चीन यानी ड्रैगन का मुकाबला करने और मुंहतोड़ जवाब देने की पर्याप्त क्षमता हमारे पास है। जल्द ही ब्रह्मोस मिसाइल भी सुखोई की ताकत में शुमार हो सकती है। इसका सफल ट्रायल पहले ही हो चुका है। त्रिशूल वायुसेना स्टेशन सुखोई लड़ाकू विमान के सबसे बड़े एयरबेस में शुमार है। सोमवार-मंगलवार को पूर्वी लद्दाख में बॉर्डर पर हिसक झड़प में हमारे सैनिक शहीद हुए। इसके बाद से देश की तीनों सेनाएं और इनके हेडक्वार्टर या एयरबेस और ज्यादा सतर्क हैं। हालांकि अभी रक्षा मंत्रालय से कोई आदेश यहां नहीं आए हैं।

1963 में हुई थी त्रिशूल की स्थापना
वर्ष 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के बाद मध्य क्षेत्र में वायुसेना बेस बनाने की जरूरत महसूस की गई। जिससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश और आसपास के अन्य राज्य से होते हुए देश की सरहद को वायु सुरक्षा मुहैया कराई जा सके। 14 अगस्त 1963 को वायुसेना स्टेशन बरेली की स्थापना हुई। इस एयरबेस से पहाड़ी क्षेत्रों में थल सेना कीयूनिटों को भी वायु सहायता दी जा सकती है।

एयरबेस बढ़ा देता है लड़ाकू विमानों की उड़ान
एयरबेस की एक और बड़ी ताकत फ्लाइट रीफ्यूलिंग की है। अमूमन जहां लड़ाकू विमान ढाई से तीन घंटे तक उड़ान भरते हैं। वहीं, बरेली में त्रिशूल एयरबेस होने और री-फ्यूलिंग की वजह से इनकी उड़ान क्षमता तीन गुना तक बढ़ जाती है।

एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर यूनिट भी यहां
त्रिशूल एयरबेस पर ही एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच) यूनिट है। जिसे रेस्क्यू ऑपरेशन और रसद वगैरह पहुंचाने के काम में लगाया जाता है। इसके अलावा यहां सिग्नल यूनिट भी है, जिससे लड़ाकू विमानों को जरूरी सिग्नल और संदेश दिया जा सके। इसी उद्देश्य से बनाए एयरबेस का मुख्य लक्ष्य सíवलास, दुर्घटना के दौरान राहत और बचाव कार्य की जिम्मेदारी निभाना है। इसके अलावा सैन्य यूनिटों को लॉजिस्टिक सपोर्ट भी देने में एयरबेस की भूमिका महत्वपूर्ण है।

रक्षा मंत्रालय या सेना की ओर से मूवमेट के कोई आदेश फिलहाल नहीं आए हैं। हालांकि सेना हमेशा ही अलर्ट मोड पर रहती है।- गार्गी मलिक, डिफेंस पीआरओ, लखनऊ

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