वाराणसी में गंगा किनारे आकार लेने लगा PM मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट
गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी। वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ धाम (कॉरिडोर) तेजी से आकार लेने लगा है। लॉकडाउन में कुछ दिन काम बंद रहने के बाद इसके निर्माण में तेजी आ गयी है। मंदिर परिसर और चौक, श्रद्धालु विश्राम गृह, भोगशाला, यात्री सुविधा केंद्र-2, पुजारी-सेवादार के कार्यालय, ललिता घाट पर नये घाट व जेटी का निर्माण, मणिकर्णिका घाट पर टूरिस्ट फैसिलिटी सेंटर और लकड़ी के स्टोररूम आदि का काम युद्धस्तर पर चल रहा है। मंदिर परिसर और मंदिर चौक आकार लेने लगा है।
पीएम मोदी ने पिछले साल 8 मार्च को इसका शिलान्यास किया था। यहां इस समय इंजीनियर, सुपरवाइजर और मजूदरों को मिलाकर करीब 350 लोग काम लगाए गए हैं। गुरुवार को बड़ी मशीनों के जरिए ढलाई और बेसमेंट का काम चल रहा था। गंगा में बढ़ाव को देखते हुए ललिता घाट पर जेटी निर्माणरोक दिया गया है। नदी किनारे से हटाकर मशीनों को कॉरिडोर के निर्माण स्थल पर पहुंचा दिया गया है।
339 करोड़ रुपये से काशी विश्वनाथ मंदिर से गंगा तट तक बनने वाले विश्वनाथ धाम का छह फीसदी काम हो चुका है। यह धाम मंदिर से गंगा तट के बीच 50 हजार वर्ग मीटर में विकसित हो रहा है। सरकार ने परियोजना को मार्च 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है। मंडलायुक्त दीपक अग्रवाल ने बताया कि लॉकडाउन के बाद काम में तेजी लायी गयी है। पिछले दो माह से अधिक दिनों तक रूके रहे कार्यों को तेजी से करने का निर्देश दिया गया है।
पहले चरण में मंदिर परिसर और दूसरे चरण में गंगा घाट क्षेत्र को विकसित किया जाएगा। तीसरे चरण में नेपाली मंदिर से लेकर ललिता घाट, जलासेन घाट और मणिकर्णिका घाट के आगे सिंधिया घाट तक का हिस्सा विकसित होगा। एक किलोमीटर लंबे इस क्षेत्र से श्रद्धालु स्नान करके आसानी से मंदिर तक दर्शन पूजन के लिए जा सकेंगे। यहां दुकानें, वेद विज्ञान शाला, कम्युनिटी हाल, सोविनियर शॉप, हेल्प डेस्क, कार्यालय, कंट्रोल रूम, संग्रहालय, यज्ञशाला का निर्माण होना है। साथ ही मुमुक्षु भवन का निर्माण और अन्य सुविधाएं भी होंगी।
परियोजना के अंतर्गत सभी भवनों/दुकानों इत्यादि को सहमति के आधार पर क्रय किया गया है, जिसमें निवसित 500 परिवारों को आपसी सहमति से विस्थापित किया गया है। इन भवनों को क्रय एवं रिक्त कराने के उपरांत प्राप्त सभी मंदिर प्राचीन धरोहर हैं, जो इन भवनों से आच्छादित थे। उन्हें भवनों को ध्वस्त कर मलवा निस्तारण के उपरांत जनसामान्य को दर्शन पूजन हेतु सुलभ कराया गया है। इन मंदिरों के जीर्णोद्धार एवं सुंदरीकरण का भी कार्य कराया जा रहा है। इन मंदिरों को इस परियोजना का भाग बनाकर इस क्षेत्र को एक अद्भुत संकुल का रूप दिया जाएगा।
परियोजना में मंदिर प्रांगण का विस्तार कर इसमें विशाल द्वार बनाए जाएंगे तथा एक मंदिर चौक का निर्माण किया जाएगा। जिसके दोनों तरफ़ विभिन्न भवन जैसे कि विश्रामालय, संग्रहालय, वैदिक केंद्र, वाचनालय, दर्शनार्थी सुविधा केंद्र, व्यावसायिक केंद्र, पुलिस एवं प्रशासनिक भवन, वृद्ध एवं दिव्यांग हेतु एक्सीलेटर एवं मोक्ष भवन इत्यादि निर्मित किए जाएंगे। परियोजना अंतर्गत 330.00 मीटर लम्बाई एवं 50.00 मीटर चौड़ाई एवं घाट से एलिवेशन 30 मीटर क्षेत्र में निर्माण कराया जाएगा।
आनंद कानन में होगा रूद्र वन
विश्वनाथ कॉरिडोर में आने वालों को काशी नगरी के धार्मिक और सांस्कृतिक स्वरूप के दर्शन तो होंगे ही, आनंद कानन और रूद्र वन की परिकल्पना भी साकार होगी। इस लिहाज से कॉरिडोर एरिया में सिर्फ 30 फीसदी क्षेत्र में निर्माण होगा। धार्मिक और पौराणिक स्वरूप को प्रदर्शित करने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। कल्चरल सेंटर, वैदिक केंद्र, टूरिस्ट फैसिलिटेशन सेंटर, सिटी म्यूजियम, जप-तप भवन, भोगशाला, मोक्ष भवन और दशनार्थी सुविधा केंद्र अधिकतम दो मंजिला ही बनेंगे। इनकी ऊंचाई विश्वनाथ मंदिर के शिखर से उपर नहीं होगी। रूद्र वन में रुद्राक्ष के 350 से ज्यादा पौधे लगाए जाने की योजना है।
पिंक सिटी की तरह चमकेगा
विश्वनाथ धाम में दो परिसर होंगे। मुख्य परिसर मंदिर के चारों ओर होगा और चार प्रवेश द्वार होंगे। घाट और मंदिर परिसर को जोड़ने के लिए एक विशाल प्रवेश द्वार होगा। इसे पार करते ही मंदिर चौक सामने होगा। यहां से घाट तक बनने वाले कॉरिडोर में फर्श से लेकर दीवारों तक में गुलाबी पत्थरों का उपयोग किए जाने से यह पिंक सिटी की तरह चमकेगा। मार्बल और ग्रेनाइट भी लगेगा, लेकिन यह भवनों के भीतरी हिस्से में होगा। कॉरिडोर से जुड़ने वाले ललिता घाट पर वृद्ध एवं दिव्यांगों के लिए एस्केलेटर की सुविधा होगी वहीं मणिकर्णिका घाट के ऊपर विशाल मंच होगा। यहां से मंदिर परिसर को जोड़ने केलिए पाथवे बनेगा।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार अंतिम बार इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में कराया था। वर्ष 1785 में प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग के आदेश पर तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट मोहम्मद इब्राहिम खान ने मंदिर के सिंहद्वार के सामने नौबत खाना बनवाया था। यहां प्रतिदिन भोग के समय नगाड़ा और शहनाई बजती थी। पंजाब केसरी महाराणा रणजीत सिंह ने 1839 में इस मंदिर के शिखर को स्वर्ण मंडित करवाया। 28 जनवरी 1983 को उत्तर प्रदेश सरकार ने मंदिर का अधिग्रहण किया और इसके प्रबंध का कार्य ट्रस्ट की कार्यपालक समिति को सौंप दिया गया।