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उत्तर प्रदेश का सिर्फ एक शहर ही अकेले चीन को हर साल दे सकता है ढाई हजार करोड़ का झटका

गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी। चीन के साथ खूनी संघर्ष में भारतीय सेना के 20 जवानों के शहीद होने के बाद चीनी सामानों के बहिष्कार की मांग तेजी से हो रही है। चीन की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए जरूरी है कि भारत में चीनी सामानों का बहिष्कार किया जाए। ऐसे में केवल काशीवासी ठान लें तो चीन को हर साल ढाई हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। 

रोजमर्रा में इस्तेमाल की वस्तुओं के सस्ता होने के कारण बनारस में चीनी सामान का अच्छा बाजार है। लेकिन ऐसा नहीं कि इसका कोई विकल्प नहीं है। भारतीय कंपनियों के अलावा एशिया और यूरोप के अन्य देशों में बने उत्पाद भी बेहतर विकल्प हैं और ये सामान चीन के मुकाबले थोड़े महंगे भले ही दिखते हों, लेकिन गुणवत्ता में बेहतर हैं।  चीन से रेशम, इलेक्ट्रॉनिक्स व इलेक्ट्रिकल वस्तुएं, गिफ्ट आइटम, बेयरिंग, रेडीमेड कपड़े, फर्नीचर काफी मात्रा में आते हैं। लेकिन बाजार में इन सभी का विकल्प मौजूद है। 

रेशम
पावरलूम पर परंपरागत रूप से चीनी रेशम का इस्तेमाल हो रहा है। बनारस में 90 हजार पावरलूम बुनकर पंजीकृत हैं। ये बुनकर हर साल 600 टन चीनी रेशम की खपत करते हैं। पहले इसका विकल्प न होने के कारण लोग इस पर निर्भर थे। जबकि अब कुछ महीनों से वियतनाम के रेशम का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। पावरलूम पर मजबूत रेशम की जरूरत होती है। बेंगलुरु के रेशम का इस्तेमाल हैंडलूम में होता रहा है। पर अब पावरलूम की जरूरतों के अनुसार बेंगलुरु में भी रेशम का उत्पादन हो रहा है, जिससे चीनी रेशम की मांग घट रही है। चीनी रेशम की कीमत प्रति किलोग्राम 3400 रुपये है, जबकि वियतनाम के रेशम का दाम 3100 रुपये है। हर साल बनारस में 300 करोड़ रुपये का चीनी रेशम आता है। 

इलेक्ट्रॉनिक्स व इलेक्ट्रिकल
इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार में इलेक्ट्रिक प्रेस से लेकर एलईडी टीवी, वाशिंग मशीन, फ्रिज आदि चीनी सामान उपलब्ध हैं। साथ ही उपकरणों की भी भरमार है। लेकिन भारतीय कंपनियों के उत्पाद भी बेहतर गुणवत्ता के साथ उपलब्ध हैं। साथ ही जापान, कोरिया के सामान चीनी उत्पादों को टक्कर देते हैं। मोबाइल फोन व एसेसरीज में चीनी कंपनियों का दबदबा है। लेकिन कोरिया, फिलीपींस और भारत की कंपनियों के उत्पाद भी उपलब्ध है। 
वहीं इलेक्ट्रिकल वस्तुओं में एलईडी बल्ब, पंखे, झूमर, फॉल्स सीलिंग लाइट, मेडिकल उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले बल्ब चीनी कंपनियों के अलावा भारतीय कंपनियां भी बना रही हैं। कुछ साल पहले तक चीन का इन उत्पादों के बाजार में प्रभुत्व था, लेकिन अब हॉलैंड व जर्मनी के उत्पादों ने अपना वर्चस्व बढ़ाया है। इलेक्ट्रॉनिक्स व इलेक्ट्रिकल उत्पादों में चीनी वस्तुओं का कारोबार हर साल 1000 करोड़ रुपये का है। 

बेयरिंग
साइकिल से लेकर कार और छोटी बड़ी मशीनों में बेयरिंग का इस्तेमाल होता है। 90 फीसदी तक चीनी बेयरिंग का इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन यदि ग्राहक चाह लें कि उसे चीन की बेयरिंग नहीं खरीदनी है तो चीन को बड़ा झटका दिया जा सकता है। बेयरिंग के मामले में बनारस की अलग पहचान है। चेतगंज में बनी बेयरिंग एक दशक पहले तक देश के अन्य राज्यों में जाती थी। लेकिन चीनी बेयरिंग सस्ती होने के कारण देशी कारोबार प्रभावित हुआ। चेतगंज में अब भी 50 परिवार बेयरिंग बनाते हैं, जिसकी गुणवत्ता कहीं बेहतर है। हर साल बनारस में 50 से 60 करोड़ की चीनी बेयरिंग बिकती है। 

खाद्य वस्तुएं
बिस्किट, आइस्क्रीम, शर्बत, मुरब्बा आदि बनाने के लिए चीन से कच्चा माल मंगाया जाता है। बिस्किट बनाने में अमोनिया का इस्तेमाल होता है, जो सस्ता होने के कारण ज्यादा बिकता है। मुंबई, कोलकाता में भी भारतीय कंपनियां ये सामान बनाती हैं, जो दो से 10 फीसदी महंगा जरूर हैं, लेकिन क्वालिटी में बेहतर हैं। इसके अलावा साइट्रिक एसिड, ग्लिसरीन का इस्तेमाल बहुत होता है, जो काफी मात्रा में चीन से आता है। खाद्य वस्तुओं में चीनी कच्चेमाल का इस्तेमाल हर साल 400 करोड़ रुपये का है। 

आर्टिफिशियल ज्वेलरी, फर्नीचर, खिलौने
चीन से काफी मात्रा में बनारस प्लास्टिक के खिलौने, आर्टिफिशियल ज्वेलरी व प्लास्टिक के फर्नीचर आते हैं। प्लास्टिक की कुर्सियां, टेबुल, डायनिंग टेबुल सहित अन्य उत्पादों का यहां बाजार है। 100 करोड़ रुपये के चीनी फर्नीचर की खपत बनारस में हर साल होती है। वहीं आर्टिफिशियल ज्वेलरी, गिफ्ट आइटम व खिलौनों का चीनी बाजार भी सालाना 600 करोड़ रुपये का है। लेकिन इन सभी व्यापार में गिने चुने उत्पादों को छोड़कर भारतीय कंपनियों के उत्पाद भी उपलब्ध हैं, जिनकी खरीदारी कर चीन को चोट पहुंचाई जा सकती है।

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