Today Breaking News

जान खतरे में डालकर लौट रहे प्रवासी मजदूर, हवाई जहाज जितना किराया में ट्रक की सवारी

गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी। गैर प्रांतों में रोजगार, भोजन एवं घर से महरूम हो चुके हजारों प्रवासी अपने गांव लौट रहे। उनमें कोरोना का खौफ है तो भोजन व भविष्य की चिंताएं भी हैं। थके-मांदे बच्चों का हाथ पकड़े, पैदल या ट्रकों में ठूंसकर अपने गांव को लौटने को मजबूर हर प्रवासी की मंजिल सिर्फ एक। किसी तरह अपने गांव पहुंच जाएं। कम से कम खाने,रहने की चिंता तो नहीं रहेगी। लौट रहे प्रवासी मजदूरों की अपनी दास्तां है। बुझे हुए चेहरे दर्द बयां कर रहे। दिहाड़ी मजदूरी करके जो कुछ कमाया उसे किराया में दे दिया। हाइवे से गुजर रहे इन प्रवासी मजदूरों ने गुरुवार को ‘हिन्दुस्तान’ से अपनी परेशानियों को साझा किया। 

पिकअप ने लाकर मझधार में छोड़ा 
बिहार के औरंगाबाद निवासी मंगल साहनी, पत्नी सरिता व दो बच्चों के साथ मुंबई में दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। बोले, मुम्बई में कोरोना का सबसे अधिक खौफ है। लॉकडाउन में सब बंद है। ऐसे में कई दिनों तक घर में ही पड़े रहे। खाने का सामान खत्म हो गया। कुछ दिन तक पास-पड़ोस के लोगों ने खाना दिया। मगर कब तक मांगकर खाते। पता चला एक पिकअप बनारस जा रही है। किराया प्रतिव्यक्ति तीन हजार रुपए लेगा। सोचा यहां मरने से अच्छा है घर चलें। लेकिन पिकअप वाले ने बनारस छोड़ दिया। 

जहाज का किराया जितना ट्रक की सवारी 
लॉकडाउन में पैदल घर लौट रहे लोगों की लाचारी का फायदा ट्रक चालक उठा रहे। मुम्बई से बनारस पहुंचे बिहार के दुर्गेश पांडेय, अंगद तिवारी समेत आठ लोगों की दास्तां सुनकर हर कोई हैरान है। दुर्गेश पांडेय बताते हैं कि नासिक तक पैदल आए। वहां एक ट्रक वाला मिला। बनारस जाने का किराया मांगा छह हजार रुपए प्रति व्यक्ति। किसी तरह सौदा पांच हजार पर तय हुआ। इनमें कुछ के पास इतने पैसे नहीं थे। चालक का हाथ-पैर जोड़कर मनाया। पूरे रास्ते कहीं भी भोजन तक नसीब नहीं हुआ। 48 घंटे बाद मोहनसराय पहुंचे। भूख से बेहाल लोगों को दुकानदारों ने खाना खिलाया। 

मुम्बई से बाइक से पहुंचे बनारस 
रेस्टोरेंट में काम करने वाले छपरा के रंजीत सुमन व गोविंद की कहानी अलग है। लॉकडाउन में रेस्टोरेंट बंद हुआ तो भूखे रहने की नौबत आ गई। कई दिनों तक इधर-उधर मांगकर गुजारा किया। बाद में एक दोस्त की बाइक ली और निकल पड़े गांव की ओर। 12 मई को मुम्बई से चले। मध्य प्रदेश जबलपुर में रात रूके। वहां से मोहनसराय पहुचे तो बाइक बिगड़ गई। करीब दो घंटे बाद बाइक बनने पर फिर अपने मंजिल की ओर निकल पड़े। बोले, मुम्बई की स्थिति बहुत खराब है। मरने से अच्छा है अपने गांव में रहें। थोड़ा खायेंगे लेकिन जिंदगी तो बची रहेगी। 

दौ सौ किमी पैदल चले तब मिला वाहन 
आजमगढ़ निवासी सतीश, प्रदीप, आकाश, धीरज दिल्ली में एक कंपनी में काम करते हैं। तीनों पांच दिनों पहले पैदल चल दिए अपने घर। करीब दो सौ किमी पैदल चलने के बाद एक ट्रक मिला। डेढ़ हजार रुपए देकर कानपुर पहुंचे। वहां से पैदल चले और कुछ दूरी पर बनारस जाने केलिए ट्रक मिला। उसने तीन हजार रुपए देने की बात कही। आखिर करते भी क्या। जो पैसा बचाकर रखे थे उसे दे दिया। यहां से पैदल आजमगढ़ जाने के लिए निकल पड़े। 
ट्राली पर गृहस्थी का सामान और आठ मासूम बच्चे 
पिंडरा। भूख और लाचारगी जो न करा दे। मिर्जापुर एक फैक्ट्री में ट्राली से माल ढुलाई करने वाला रामकिशोर की कहानी कुछ ऐसी ही है। फैक्ट्री बंद हो गई तो मालिक ने भी हाथ खड़े कर लिए। दो भाइयों के साथ आठ मासूम बच्चों को लेकर आखिर कहां जाता। दिहाड़ी मजदूरी करने वाले रामकिशोर ने बताया कि  मकान का किराया दो महीने से बाकी है। लिहाजा घर जाने के लिए ट्राली पर गृहस्थी का सामान बांधा। बच्चों को बैठाया और निकल पड़ा। मिर्जापुर से पैदल ट्राली चलाते पिंडरा बाजार पहुंचा तो बच्चों की भूख देख तड़प उठा। पास में रखा गुड़ दिया। भला गुड़ से किसी का पेट भरता है। बच्चे रोने लगे तो कुछ लोगों बताया कि बाजार में गरीबों को खाना बंट रहा है। बच्चों को लेकर पहुंचा और भूख मिटाई। 

20 दिनों बाद मुम्बई से पैदल गांव पहुंचे 
जक्खिनी। मुंबई में तीन भाइयों के साथ कारखाने में मजदूरी करने वाले पनियरा गांव के मो. वकील 20 दिनों बाद गांव पहुंचे। बताया कि पहले कारखाना मालिक ने कुछ दिनों तक खाने की व्यवस्था की। दूसरी बार लॉकडाउन बढ़ने पर मालिक ने हाथ खड़े कर लिए। कहा कि गांव चले जाओ। आखिर वहां क्या करता। वाहन सभी बंद थे। लिहाजा पैदल ही घर के लिए चल दिए। रास्ते में जो कुछ मिला खा लिया। इसी तरह मुकुंदीलाल मुम्बई में आटो चालक हैं। चार दिनों तक बाइक चलाकर घर पहुंचे। बोले, अब यहीं काम करुंगा। मुम्बई नहीं जाऊंगा। 

 
 '