‘मां, मैं अभी आता हूं’ कहकर चला गया था कृष्णा, लौटकर आया तो सर से उठ चुका था साया
गाजीपुर न्यूज़ टीम, ‘मां, मैं अभी आता हूं।’ यह कहकर छह वर्ष का कृष्णा लघुशंका के लिए अभी चला ही था कि पीछे से तेज रफ्तार आ रहे एक लोडर ने उस आटो को उड़ा दिया जिसमें उसके मां-बाप बैठे थे। इतनी बड़ी दुनिया में कृष्णा अब अकेला है। वह अपने आटो चालक पिता अशोक चौधरी और मां छोटी के साथ हरियाणा के झज्जर से बिहार के दरभंगा के लिए निकला था। आटो में ईंधन खत्म हो गया तो अशोक साथ लेकर निकले तेल को टंकी में डालने लगे जब आगरा एक्सप्रेसवे पर उन्नाव के निकट यह दुर्घटना हुई और कृष्णा के मासूम सपने सड़क पर खील खील हो गए।
मजदूर राजनीति का मोहरा हो गए : अनाथ कृष्णा अब किससे हिसाब ले। कोरोना तो बात करने से रहा। बिहार उसके मां बाप को रोजी रोटी नहीं दे सका और हरियाणा उन्हें संभाल नहीं सका। इस घटना के अलावा शनिवार को ही 26 अन्य मजदूरों की बलि औरैया में चढ़ गई। मजदूर राजनीति का मोहरा हो गए हैं। हर राज्य उन्हें अपने यहां से ढकेल रहा है। मानवता को एक बार भूल भी जाइए तो भी कोई राज्य यह नहीं सोच पा रहा कि जिन उद्योगों को चलाने का वह दावा कर रहा है, बिना मजदूर वे चलेंगे कैसे।
मुसीबत में आदमी घर ही भागता है : कोरोना संकट ने पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की आर्थिक विषमताओं को बुरी तरह उघाड़ कर रख दिया है। परदेसिया वाले लोकगीतों को सुनकर कुलीन वर्ग ताली तो पीटता है लेकिन, इन बेबस, निरीह और निरपराध श्रमिकों को रोजगार नहीं दे पाता। देश के हर राज्य से इन दिनों यूपी, बिहार के लिए मजदूरों का तांता लगा है। कभी कल्पना भी नहीं की गई होगी लेकिन, अब तो मुंबई से आटो बहुत लंबा सफर करके बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश पहुंच रहे हैं। पुलिस उन्हें रोक नहीं रही और प्रशासन उन्हें खाना नहीं खिला पा रहा। मुसीबत में आदमी घर ही भागता है तो हताश निराश मजदूर भी वही कर रहे।
उत्तर प्रदेश के लिए ये प्रवासी बड़ी चुनौती : सड़कों पर उमड़े लाचारगी के दृश्य व्यवस्था पर तीखा प्रश्न हैं। आए दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं और मजदूरों की जान जा रही है। भूख प्यास से बिलखते मजदूरों को शारीरिक दूरी का ज्ञान रास नहीं आ रहा। इसमें संदेह नहीं कि जहां वे थे, उन्हें वहीं रुकना चाहिए था लेकिन, कोई रोकने वाला भी तो हो। उत्तर प्रदेश के लिए ये प्रवासी बड़ी चुनौती बने हैं। यहां बसें लगाकर उन्हें उनके घर भेजा रहा है। इस समस्या का दूसरा पहलू भी है। भारी संख्या में और हर कोने से आ रहे सभी मजदूरों की जांच कराना अपने में बड़ी चुनौती है। जांच हो नहीं पा रही लिहाजा गांवों तक कोरोना पहुंचने लगा है। इससे वे लोग हैरान हैं जो पचास दिनों से घर में रहने का अनुशासन माने हुए हैं।
सरकार रोजगार देने की योजना पर कर रही काम : क्या यह संभव है कि प्रवासी श्रमिकों को लौटकर न जाना पड़े और उन्हें उनके शहरों के आसपास ही काम मिल जाए। अच्छी बात है कि उत्तर प्रदेश में इसकी कोशिश शुरू हो गई है। योगी सरकार ने 11 लाख श्रमिकों को काम देने की योजना बनाई है। एक खाका तैयार किया गया है जिसके अनुसार अलग-अलग विभागों में रोजगारों की संख्या तय की गई है। सबसे अधिक करीब तीन-तीन लाख रोजगार राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन और समाज कल्याण विभाग में निकल सकते हैं। कौशल विकास मिशन, खादी ग्रामोद्योग बोर्ड और मनरेगा में सरकार एक-एक लाख लोगों को रोजगार देने की योजना पर काम कर रही है। इसी प्रकार एक जिला एक उत्पाद योजना में 40 हजार रोजगार देने की कोशिश हो रही है। ऐसे ही और विभाग भी तय किए गए हैं। यह अभियान महत्वाकांक्षी है लेकिन, यदि सिरे चढ़ गया तो पूर्वी उत्तर प्रदेश दो सौ वर्ष पुराने अभिशाप से मुक्त हो जाएगा। हालांकि बात फिर वहीं आती है। यदि ऐसा होना है तो उत्तर प्रदेश की नौकरशाही को हिलना डुलना होगा।
बीते हफ्ते लखनऊ की थोक मंडियों में टमाटर पांच रुपये किलो बिक गया। और भी सब्जियों के भाव रसातल में पहुंचे हुए हैं। इस समय सब्जी और फल के बाजार ही चल रहे हैं लेकिन, फिर भी टमाटर ने तो इतना नीचे गिरकर कमाल ही कर दिया। खुद के लिए भी और कड़ी मेहनत से उसे उगाने वाले किसानों के लिए भी। सोचिए भला क्या गया होगा किसान की जेब में..!