कहानी: झंझावात
बड़े बेटे की शादी के बाद रीना की शादी के बारे में सोचा, जबकि उस से बड़ा एक भाई अभी तक अविवाहित था. परंतु वह बेरोजगार था. रिटायरमैंट के बाद उन्हें जो पैसा मिला था
पैसा जब रिश्तों के बीच आता है तो सब बदल जाता है. रीना इस बात को नहीं समझ पाई थी. जब समझी, तो बहुत देर हो गई थी, बीता वक्त अब हाथ नहीं आ सकता था…
रीना के पिता गिरधारी लाल सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके थे. रिटायरमैंट के पहले इलाहाबाद में ही एक छोटा सा मकान बनवा लिया था. बड़े बेटे की नौकरी भी लगवा दी थी. लेकिन शेष दोनों बेटे और बेटी बेरोजगार ही रह गए थे. रीना बीए कर चुकी थी. वह उन की तीसरी संतान थी. उस की मां अधिक पढ़ीलिखी नहीं थी, साधारण गृहिणी थीं.
बड़े बेटे की शादी के बाद रीना की शादी के बारे में सोचा, जबकि उस से बड़ा एक भाई अभी तक अविवाहित था. परंतु वह बेरोजगार था. रिटायरमैंट के बाद उन्हें जो पैसा मिला था, उस से बेटी की शादी कर के निश्ंिचत हो जाना चाहते थे.
रीना के पिता सरकारी नौकरी में बहुत अच्छे पद पर नहीं थे, लेकिन चालाक किस्म के इंसान थे. रीना के लिए उन्होंने अनिल को पसंद किया था. वह सिविल इंजीनियर था और लोक निर्माण विभाग में असिस्टैंट इंजीनियर के पद पर तैनात था. उस के पिता नहीं थे. घर में बस उस की मां थीं. उस की चारों बहनों की शादी हो चुकी थी.
इस से अच्छा लड़का रीना के लिए कहां मिलता.
डाक्टरइंजीनियर लड़कों की दहेज की मांग बड़ी लंबी होती है. लेकिन गिरधारी लाल ने अपने दामाद और उस के रिश्तेदारों को पता नहीं क्या घुट्टी पिलाई कि रीना की शादी बिना दहेज के हो गई.
रीना जब ब्याह कर ससुराल आई, तो पति का बड़ा मकान देख कर दंग रह गई. पता चला, ससुरजी ने बनवाया था. वे भी राज्य सरकार में किसी अच्छे पद पर थे.
शादी के बाद रीना जब दूसरीतीसरी बार ससुराल आई, तो पता चला कि उस के पति की आय के कई स्त्रोत थे. हर तीसरेचौथे दिन अनिल नोटों की मोटी गड्डियां ले कर घर आता था.
उस की सास भी उस की मां की तरह बहुत पढ़ीलिखी नहीं थीं, सीधी थीं. धीरेधीरे उस ने महसूस किया कि सासुजी का झुकाव अपनी बेटियों की तरफ कुछ ज्यादा ही था. कोई न कोई बेटी सदा घर में बनी रहती, जैसे सभी ननदों ने आपस में तय कर रखा था कि बारीबारी से वे मायके आती रहेंगी.
यहां तक तो सब ठीक था. रीना को ननदों के अपने मायके आने पर एतराज नहीं था, परंतु उस ने महसूस किया कि जब भी कोई ननद आती, तो पैसों की डिमांड ले कर आती और जाते समय 10-20 हजार रुपए ले कर ही जाती. सासुजी बेटियों को पैसा देते समय यह न सोचतीं कि बेटियों की मांग जायज है या नाजायज.
उस की ननदों के बहाने भी वही गढ़ेगढ़ाए से होते, ‘वो कह रहे थे कि इस बार एक कमरा बनवा लें. 50 हजार रुपए जोड़ कर रखे हैं. अम्मा, आप कुछ मदद कर दो तो कमरा बन जाएगा.’
‘बेटे का ऐडमिशन दून स्कूल में करवाना है. कई लाख लगेंगे. अम्मा, आप कुछ मदद कर देना.’
‘बहुत दिनों से घर में एसी लगवाने की सोच रही थी. अम्मा, आप कहो तो लगवा लूं.’
‘अम्मा, एक नई कार आई है. 8 लाख रुपए की है. दामादजी का बड़ा मन है लेने का. वैसे तो बैंक से फाइनैंस करवा रहे हैं, परंतु 2 लाख रुपए अपनी तरफ से देने पड़ेंगे.’
सभी का आशय यही होता था कि अम्माजी पैसे दें, तो ननदों के काम हो जाएं और अम्मा भी इतनी उदार कि उन के मुंह से, बस, यही निकलता-
‘ठीक है, कर दूंगी.’ यह वे ऐसे कहतीं जैसे कि उन के पास पैसों का कोई गड़ा हुआ खजाना हो. सच भी था. अनिल सारा पैसा ले कर मां के ही हाथ में देता था. रीना का तो जैसे वहां कोई अस्तित्व ही नहीं था या वह उस घर की सदस्य ही नहीं थी.
रीना को यह अच्छा नहीं लगता था कि कोई उस के पति की कमाई पर इस तरह ऐश करे. परंतु उस की समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे इसे रोके, यह सिलसिला अपनेआप रुकने वाला नहीं था. पति से कहने में डरती थी, कहीं वे बुरा न मान जाएं. वह कशमकश में जी रही थी. शादी को अभी अधिक दिन भी नहीं हुए थे कि घर में अपना पूरा अधिकार जताए. घर के माहौल को समझने और उसे अपने पक्ष में करने के लिए सब से पहले पति को अपने काबू में करना होगा.
वह अपने पिता की तरह चालाक तो थी, परंतु खूबसूरती में थोड़ा कम थी, इसलिए अपने पति से दबती थी. अकसर वह सोचा करती, पति ने उस के साथ शादी करने के लिए हां कैसे कर दी, जबकि वे अच्छे पद पर थे और उस से ज्यादा गोरे व खूबसूरत भी. परंतु अब वह उस की पत्नी थी और इस घर की बहू.
अनिल का स्वभाव बहुत अच्छा था. किसी चीज में मीनमेख निकालने की उस की आदत नहीं थी. फिर भी पति से रीना ने कोई बात नहीं की. अगली बार जब वह मायके गई तो अपनी मम्मी से घर की एकएक बात विस्तार से बताई और अपने संशयों का समाधान पूछा.
उस की मम्मी चिंतित हो कर बोलीं, ‘‘बेटी, हम ने इसलिए नहीं तुम्हारे लिए इतना अच्छा कमाऊ पति ढूंढ़ा था कि तुम उस की संपत्ति को दूसरों के ऊपर लुटते हुए देखोगी. वह तुम्हारा घर है. वहां की हर चीज पर तुम्हारा अधिकार है. दामादजी अच्छे पद पर हैं, अच्छा कमाते हैं, परंतु वे बहुत भोले हैं. उन के इसी भोलेपन का फायदा उन की बहनें उठा रही हैं. वे अपनी मां को पटा कर अपना उल्लू सीधा कर रही हैं. ऐसा ही चलता रहा, तो तुम्हारे पति की सारी कमाई तुम्हारी ननदों के घर चली जाएगी और एक दिन तुम कंगाल हो जाओगी.’’
‘‘तो मैं क्या करूं?’’ रीना ने अनजान बन कर पूछा.
‘‘अरे, तुम एक स्त्री हो. अपने स्त्रीहठ का प्रयोग करो. पति को काबू में करो और जो भी वे कमा कर लाएं, उस को अपने हाथों में रखो. सास के हाथ में गया, तो समझो बरसात का पानी है. कहीं भी बह कर चला जाएगा.’’
‘‘उन्हें कैसे काबू में करूं?’’
‘‘हाय दहया, तू जवान है. शादीशुदा है. पति के साथ रह चुकी है. अभी भी बताना पड़ेगा कि तुझे पति को कैसे काबू में रखना है. अरे, दोचार दिन उस से दूर रह. जब भी वह पास आने की कोशिश करे, मुंह बना कर उस से दूर चली जाओ. रात में भी उसे पास मत आने दो. बस, जब वह उतावला हो जाए, तो जो चाहे करवा लो.’’
रीना हौले से शरमाते हुए मुसकराई और मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया.
इस बार जब वह ससुराल गई तो बहुतकुछ सीख कर गई थी. उस के तेवर बदले हुए थे. वह पति से बात तो करती, परंतु उस के मुख से हंसी गायब हो गईर् थी, स्वर में रुखापन आ गया था. काम की व्यस्तता के चलते पति अनिल ने महसूस नहीं किया. परंतु जब रात में उस ने उसे अपनी आगोश में लेना चाहा, तो वह छिटक कर परे हो गई. अनिल को आश्चर्य हुआ. वह एक पल रीना को देखता रहा, जो बिस्तर के किनारे मुंह दूसरी तरफ कर के लेटी थी, परंतु उस का बदन हिलोरें मार रहा था, जैसे वह किसी बात को ले कर बहुत उत्तेजित हो. अनिल ने उस की कमर को पकड़ कर अपनी तरफ घुमाने का प्रयास किया, परंतु रीना जैसे बिस्तर के किनारे चिपक गई थी.
पत्नी के नाते, तुम पर, तुम्हारे घर पर और तुम्हारी सभी चीजों पर मुझे अधिकार चाहिए. कोई तीसरा हमारे बीच में न रहे,’’ उस ने कटुता और मधुरता के मिश्रित भाव से कहा.
अनिल के स्वर में खीझ उभर आई, ‘‘यह क्या है रीना? यह बेरुखी क्यों?’’
‘‘मेरा मन नहीं है,’’ रीना ने ढिठाई से कहा.
‘‘मन नहीं है? यह कौन सी बात हुई? इस बात को तुम सीधे ढंग से, प्यार से मुसकरा कर कह सकती थी. तुम्हारा व्यवहार बता रहा है कि कोई और बात है?’’
रीना ने अपना मुंह अनिल की तरफ कर के कहा, ‘‘मैं एक इंसान हूं, मेरा भी मन है. जब मेरी इच्छा होगी. तभी तो कुछ करूंगी. बिना इच्छा के कोई काम नहीं होता.’’
‘‘यह अचानक मन और इच्छा कहां से आ गए. तुम तो मुझ से ढंग से बात भी नहीं कर रही हो. मैं तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती तो नहीं कर रहा. नहीं मन है, तो नहीं करेंगे, परंतु बात तो ठीक से करो. तुम्हें कोई परेशानी हो, तो बताओ,’’ उस ने उसे अपनी तरफ खींचा.
रीना नाटक तो कर रही थी, परंतु मन में एक डर भी बैठ गया था कि कहीं अनिल नाराज न हो जाए, सारा बनाबनाया खेल बिगड़ जाएगा. उस ने कहा, ‘‘मैं आप की कौन हूं?’’
अनिल का मुंह एक बार फिर से खुल गया, ‘‘क्या कह रही हो तुम? मेरी समझ में तुम्हारी पहेलियां नहीं आ रही हैं? जरा, खुल कर बताओ, तुम्हें क्या हुआ है? और तुम क्या चाहती हो?’’
रीना ने उस के सीने पर हाथ फिराते हुए कहा, ‘‘मैं आप की पत्नी हूं न. तो फिर इस घर में मुझे पत्नी के सारे अधिकार चाहिए.’’
‘‘मतलब…? तुम्हें कौन से अधिकार चाहिए?’’ उस की हैरानगी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी.
‘‘पत्नी के नाते, तुम पर, तुम्हारे घर पर और तुम्हारी सभी चीजों पर मुझे अधिकार चाहिए. कोई तीसरा हमारे बीच में न रहे,’’ उस ने कटुता और मधुरता के मिश्रित भाव से कहा.
अनिल समझ गया, ‘‘तुम्हारा मतलब मां से है?’’
‘‘हां.’’
‘‘मां विधवा हैं. वे इस उम्र में कहां जाएंगी?’’
‘‘नहीं, आप नहीं समझे. मैं मां को घर से निकालने के लिए नहीं कह रही, परंतु उन को बुढ़ापे में आराम करने दीजिए. घर की जिम्मेदारी मुझे संभालने दीजिए. वैसे भी, आप बहुत भोले हैं. आप को पता नहीं, जो कुछ आप कमा कर लाते हैं, वह कहां जाता है?’’
‘‘कहां जाता है?’’
‘‘आप की बहनें किसी न किसी बहाने लूट कर ले जाती हैं.’’
‘‘तो क्या हुआ? उन को जरूरत होती है, तो ले जाती हैं.’’
‘‘न जाने आप को अक्ल कब आएगी? उन की जरूरतें कभी खत्म नहीं होंगी और आप हमेशा इसी तरह लुटते रहेंगे. जरा सोचिए. क्या कल हमारे बच्चे नहीं होंगे? उन की शिक्षा पर पैसा खर्च नहीं होगा? क्या आप उन के लिए कुछ जोड़ कर नहीं रखेंगे? हमारे खर्च हमेशा इतने ही नहीं रहेंगे, बढ़ेंगे. जमाने को देखते हुए नया घर, बंगला और कार…क्या, यह सब नहीं चाहिए?’’
अनिल सोच में पड़ गया, फिर बोला, ‘‘परंतु मां के रहते घर की सारी जिम्मेदारी तुम्हें सौंपना ठीक नहीं रहेगा. उन के मन पर क्या गुजरेगी? पिताजी के मरने पर किस तरह उन्होंने मेरी शिक्षा के लिए कष्ट उठाए. कहांकहां से पैसे का प्रबंध किया, मैं ही जानता हूं. मैं उन्हें बुढ़ापे के सुख से वंचित नहीं कर सकता. रुपयापैसा उन्हीं के हाथ में रहेगा, बाकी घर की सारी जिम्मेदारियां तुम संभाल लो.’’
अनिल के निर्णय से रीना का दिल टूट गया. वह क्या सोच कर आई थी, क्या हो गया था? उस का मनचाहा नहीं हुआ, तो उस के मन में और ज्यादा कटुता भर गई. उस ने अनिल के साथ संबंध बनाए, परंतु बेमन से. उन के दांपत्य जीवन के लिए यह शुभ लक्षण नहीं था.
रीना ने फोन पर अपनी मम्मी से सलाह ली, तो उन्होंने बताया, ‘‘वहां रह कर तू कुछ नहीं कर पाएगी. किसी तरह पति को मना कर उन का ट्रांसफर इलाहाबाद करवा ले,’’ इलाहाबाद रीना का मायका था.
‘‘क्या वे मान जाएंगे?’’
‘‘तू अगर मनवाएगी तो क्यों नहीं मानेंगे?’’
‘‘ठीक है, कोशिश करती हूं?’’
इस बार रीना ने रूठने और मनाने की प्रक्रिया नहीं दोहराई. उस ने दूसरा ही शस्त्र अपनाया. उस ने अपने स्वभाव और व्यवहार को आवश्यकता से अधिक मृदु बना लिया. पति को इतना लाड़प्यार करती कि आश्चर्यचकित रह जाता कि रीना के हृदय में प्रेम का इतना लंबाचौड़ा सागर अचानक कहां से उफानें मारने लगा. वह मन ही मन सोचता और इंतजार करता कि आगे क्या होगा? वह प्यार के मजे लूट रहा था.
एक रात प्यार के सम्मोहन में डूबे
अनिल से रीना ने कहा, ‘‘क्या
आप का ट्रांसफर नहीं हो सकता?’’
‘‘ट्रांसफर? क्यों?’’
‘‘मुझे मम्मीपापा की बहुत याद आती है. मैं चाहती हूं, जब तक हमारे कोई बच्चा न हो, तब तक के लिए आप अपना तबादला इलाहाबाद करवा लो. मैं अपने मम्मीपापा और भाइयों के करीब रह लूंगी. बाद में जो होगा, देखा जाएगा.’’
‘‘तुम जबतब इलाहाबाद जाती ही रहती हो. क्या यह कम है?’’
‘‘जानू, जबतब जाने और किसी के पास रहने में फर्क है. आप क्या मेरे लिए इतना नहीं कर सकते? आखिर जीवनभर हमें साथ रहना है. एकदूसरे की इच्छा का सम्मान करना हमारा धर्म है.’’
‘‘परंतु मां कहां रहेंगी?’’
‘‘मां के लिए आप क्यों परेशान होते हैं. आप की कोई न कोई बहन हमेशा यहां रहती है. वे अकेली थोड़े रहेंगी. तब भी ननदें आतीजाती रहेंगी. आप उन के खर्च के लिए पैसे देते रहिएगा. फिर लखनऊइलाहाबाद में दूरी ही कितनी है. चाहे तो हर संडे को आप मां से आ कर मिल सकते हैं.’’
अनिल के मन को बात जंच गई. वह कुछ दिन पत्नी के साथ एकांत में बिताना चाहता था. इस घर में कोई न कोई रिश्तेदार बना ही रहता था. गांव से दूरी बहुत कम थी. सगे रिश्तेदारों के अलावा दूर के रिश्तेदार भी आते रहते थे. गांव से किसी का भी काम लखनऊ में पड़ता, रात रुकना होता, तो वह धमकता हुआ अनिल के घर आ जाता. गांव के रिश्ते ऐसे होते हैं कि किसी को मना भी नहीं किया जा सकता.
अनिल मान गया. अगले दिन ही उस ने अपने तबादले के लिए लिख कर दे दिया. वह जिस विभाग में था, वहां तबादले आसानी से नहीं होते थे. सारे लोग कमाते थे, इसलिए ट्रांसफर में भी पैसा चलता था. उस ने हैडऔफिस जा कर संबंधित क्लर्कों और इंजीनियरों की मुट्ठी गरम की, तब जा कर उस का ट्रांसफर हुआ.
जिस दिन तबादले का और्डर उसे मिला, रीना की खुशी का ठिकाना नहीं था. परंतु अनिल की मां दुखी हो गईं, बोलीं, ‘‘बेटा, बुढ़ापे में यही दिन देखना बदा था.’’
अनिल ने बात बनाते हुए कहा, ‘‘मां, नौकरी का मामला है, जाना ही पड़ेगा, परंतु आप चिंतित न हों. मैं हर इतवार को आता रहूंगा. और फिर दीदी लोग बारीबारी से आती ही रहती हैं, आप अकेली नहीं रहोगी. मैं भी उन को बोल दूंगा कि आप का खयाल रखें.’’
अनिल ने इलाहाबाद में जौइन कर लिया. दोचार दिन गैस्टहाउस में रहा, कुछ दिन ससुराल में डेरा डाला. एक महीने के ही अंदर सिविल लाइंस एरिया में उसे सरकारी मकान मिल गया. वह रीना के साथ अपने नए घर में शिफ्ट हो गया. नए घर को सजानेसंवारने में रीना की मां का बहुत योगदान था. नया फर्नीचर, नए परदे आदि सबकुछ खरीद कर लाया गया. बाहरी कामों के लिए रीना के दोनों बेरोजगार भाइयों ने बहुत भागदौड़ की. अनिल केवल पैसे खर्च कर रहा था. सारा काम उस के सालों और सास ने संभाल लिया.
घर सज गया, तो रीना को लगा, अब वह इस घर की रानी थी. यहां उस के जीवन में दखल देने वाला कोई नहीं था. वह चाहे जो कर सकती थी, जैसे चाहे रह सकती थी अपने पति के साथ, अपनी खुशियों के साथ. उस की खुशियों को पंख लग गए.
इलाहाबाद में अनिल के जीवन में कुछ दिन शांति रही. जब नया प्रोजैक्ट मिला, तो फिर से घर में पैसे की आमद शुरू हुई. पहली बार जब नोटों की मोटी गड्डी ला कर अनिल ने रीना के हाथों पर रखी, तो उस का पूरा शरीर रोमांचित हो उठा, दिमाग में सनसनी सी दौड़ गई.
उस के हाथ कांपने लगे. बोलना चाह कर भी वह कुछ बोल न पाई. अनिल ने शांत भाव से कहा, ‘‘अलमारी में रख दो.’’
रीना की समझ में नहीं आ रहा था वह उन पैसों का क्या करे. पहली बार इतने पैसे उस के हाथ में आए थे. अंत में अपने को संयत कर उस ने पैसे अलमारी के लौकर में रख दिए. उस का मन कर रहा था गिन कर देखे. सभी पांचपांच सौ और दोदो हजार रुपए के नोट थे. 58 हजार रुपए से कम क्या होंगे? ज्यादा भी हो सकते हैं? अनिल से भी न पूछ सकी. वह सामान्य था. उस के लिए यह कोई नई बात नहीं थी.
बेटी की देखभाल के बहाने आजकल रोज ही रीना की मम्मी उस के घर आने लगी?थी. वह नवजात को तेल लगाती, नहलातीधुलाती और रीना को उस के पालनपोषण के तरीके बताती.
उस रात उसे नींद भी नहीं आई. अनिल सो गया, तो वह चुपके से उठी. अलमारी खोल कर रुपए गिने. कई बार गिने कुल 70 हजार थे. वह चकित रह गई. इतने सारे रुपए. रात में कई बार उठ कर उस ने रुपए गिने.
उसे लग रहा?था जैसे किसी साम्राज्य की वह महारानी बन गई थी. उसे दुनिया बहुत छोटी लगने लगी थी. रुपए नियमितरूप से आ रहे थे. अलमारी का लौकर भर गया, तो सूटकेस में रखने लगी. कभीकभी सोचती, इतने रुपयों का वह?क्या करेगी? घर में इतना रुपया रखना भी खतरे से खाली नहीं था. कहीं चोरीडकैती पड़ जाए, इस शंका के साथसाथ मन में एक अनमना?भय कुंडली मार कर बैठ गया. एक दिन पति से पूछा, ‘‘इतना सारा रुपया घर में पड़ा?है, क्या होगा इस का?’’
अनिल ने लापरवाही से कह दिया, ‘‘तुम अपने गहनेकपड़ों के ऊपर खर्च करो. ज्यादा होगा, तो कहीं इन्वैस्ट करने के बारे में सोचा जाएगा.’’
दूसरे ही दिन रीना अपनी मम्मी के पास गई. ‘‘मम्मी मुझे कुछ गहने खरीदने हैं. मेरे साथ ज्वैलर्स के यहां चलोगी?’’
‘‘क्यों नहीं बेटी? उस की मम्मी फौरन तैयार हो गईं. फिर दोनों बाजार गईं रीता ने अपने लिए कई हजार रुपयों के गहने खरीदे. इस के बाद भी उस के पर्स में कई हजार रुपए बचे रह गए थे. उस की मम्मी ने धीरे से पूछा, ‘‘दामादजी, खूब कमा रहे हैं?’’
‘‘हां,’’ रीना ने संक्षिप्त जवाब दिया.
‘‘तो बेटी हमारा भी खयाल रखना. तुझे तो पता है, तेरे पापा का सारा पैसा तेरी शादी में लग गया. अब हाथ खाली है. 2 बेटे बेरोजगार हैं. घरखर्च मुश्किल से चलता?है. पैंशन से क्या होता है. तुझे घर के हालात पता ही?हैं, बताने की जरूरत नहीं?है, बाकी तू समझदार?है. पैसे को जमा कर के रखोगी, तो शैतान खाएगा. कुछ पुण्य के काम में खर्च करोगी, तो बरकत होगी.’’
रीना ध्यान से मम्मी की बात सुन रही थी. वे ठीक ही कह रही थीं. पापा की कमाई में क्या बरकत हो सकती?है? उसे अभी इतना जीवन का अनुभव नहीं?था, परंतु मम्मी कह रही?थीं तो सच ही कह रही होंगी. उस ने पूछा, ‘‘मम्मी, आप को कुछ चाहिए, तो बोलिए.’’
मम्मी छोटे बच्चे की तरह इठला गईं, ‘‘तेरा मन है तो एक अंगूठी दिलवा दे. बाद में कुछ और लूंगी.’’
‘‘ठीक है,’’ रीना ने मम्मी के लिए तुरंत एक अंगूठी खरीद दी.
फिर तो यह जैसे एक क्रम बन गया. दूसरेतीसरे महीने रीना कोई न कोई गहना गढ़वा लेती, साथ ही मां के लिए भी छोटामोटा गहना बनवाती, अपने पापा के लिए भी एक चेन और अंगूठी बनवा दी थी. भाइयों को बहन की इस उदारता का पता चला, तो वे भी रीना के आगपीछे डोलने लगे. छोटीछोटी मांगों से थोड़ाथोड़ा आगे बढ़ते गए. फिर उन की मांग मोटरसाइकिल पर जा कर रुकी. पैसा अथाह था, इसलिए रीना और अनिल ने उन की मांगें पूरी कर दीं.
कुछ दिन बीते, पैसा जमा होतेहोते लाखों पहुंच गया. रीना के पास भी इतने गहनेकपड़े हो गए कि उन के प्रति उस का मोह समाप्त हो गया?था. जीवन में विलासिता की अन्य वस्तुएं भी थीं. यों तो अनिल को औफिस की तरफ से जीप मिली हुई थी, परंतु घर में अपनी गाड़ी हो तो उस की अनुभूति ही अलग होती?है. आज बाजार में इतनी अच्छी लग्जरी गाडि़यां आ गई थीं कि चाहे तो रोज एक गाड़ी खरीद लें.
रीना का बड़ा मन था गाड़ी खरीदने का. उस ने मन की बात अनिल से कही, तो वह बोला, ‘‘गाड़ी तो कई लाख की आएगी. इन्कम कहां से दिखाएंगे?’’
‘‘इतना पैसा तो घर में ही रखा?है?’’ रीना ने मासूमियत से कहा.
‘‘मूर्ख, यह कोई वेतन का पैसा नहीं है. गाड़ी खरीदते ही इन्कमटैक्स वाले सूंघते हुए घर पहुंच जाएंगे. मैं कल औफिस में पता करता हूं कि गाड़ी खरीदने का क्या तरीका?है, ताकि बाद में कोई झंझट पैदा न हो.’’
दूसरे दिन उस ने अपने एक्स ई (अधिशासी अभियंता) से पूछा, ‘‘सर, मुझे एक गाड़ी खरीदनी है, कैसे करूं?’’
‘‘पैसा है?’’
‘‘हां?’’
‘‘उसे व्हाइट कर लिया?’’
‘‘कैसे करूं?’’
‘‘अभी तक नहीं समझ में आया? तो?क्या सारा पैसा ऐसे ही घर में रख रखा?है?’’
‘‘हां,’’ अनिल ने मूर्ख की तरह सिर हिला कर कहा. उस ने यह नहीं बताया कि उस का अधिकांश पैसा तो उस की बहनों, सालों और सासससुर ने हड़प कर लिया था.
‘‘मूर्ख, मरेगा एक दिन. आजकल एंटी करप्शन और विजिलैंस वाले बहुत सक्रिय हैं. किसी ने शिकायत कर दी तो… खैर, मैं एक सीए का फोन नंबर देता हूं. उस से बात कर के उस के औफिस चले जाओ. ध्यान रहे, फोन पर कोई बात न करना. उस के औफिस में जा कर ही बात करना.’’
अगले दिन ही वह सीए के दफ्तर में पहुंचा. अपनी समस्या बताई, तो सीए मुसकरा कर बोला, ‘‘कोई बात नहीं. काम हो जाएगा.’’ उस ने अपनी फीस बताई. अनिल ने हां की और घर चला आया.
एक हफ्ते के अंदर ही रीना के नाम से कागजों पर एक बुटीक खुल गया. यह बुटीक पिछले 3 सालों से चल रहा था. पहले 2 सालों की इन्कम मात्र इतनी थी कि उस पर कोई इन्कम टैक्स नहीं बनता?था. तीसरे साल इन्कम काफी बढ़ी हुई थी, जिस पर लगभग एक लाख रुपए इन्कम टैक्स देना था.
रीना ने फर्जी बिलों पर दस्तखत बना दिए. सीए ने बताया कि 2 महीने के अंदर रीना का पैनकार्ड भी बन जाएगा, एडवांस टैक्स के बजाय एकमुश्त टैक्स भर देंगे. रिटर्न भरने की तारीख अभी कई महीने बाद की?थी. पिछले 2 सालों के रिटर्न सीए ने कुछ जुर्माना भर कर दाखिल करवा दिए.
इस तरह अनिल के कई लाख रुपए व्हाइट हो गए. अब उस ने कार खरीद ली.
एक साल बाद रीना एक बच्ची की मां बनी. एक तीनसितारा होटल में जश्न मनाया गया. रीना और अनिल के जीवन में खुशियों के फूल खिल गए थे. दुख की कहीं कोई छाया नहीं थी.
बेटी की देखभाल के बहाने आजकल रोज ही रीना की मम्मी उस के घर आने लगी?थी. वह नवजात को तेल लगाती, नहलातीधुलाती और रीना को उस के पालनपोषण के तरीके बताती.
इसी बीच रीना के छोटे भाई की कहीं सरकारी नौकरी की बात चली. 3 लाख रुपयों की मांग?थी. उस की मम्मी ने रीना से चिरौरी की, ‘‘बेटी, तेरे भाई की जिंदगी का सवाल है. बड़ा तो लगता?है बेरोजगार ही रह जाएगा. उसे कोई प्राइवेट धंधा करवाना पड़ेगा. छोटा ही कहीं लग जाए तो…’’ आगे उन्होंने बात को रीना के समझने के लिए छोड़ दिया.
रीना अब नासमझ नहीं थी. रुपए का खेल वह अच्छी तरह समझ गई थी. रुपया जिस के पाले में होता?है, उस से हारने के लए सभी तत्पर रहते?हैं.
सीए अनिल के रुपए व्हाइट कर ही रहा?था. इस के अलावा भी काफी रुपया ब्लैक का घर में रखा हुआ?था. उस ने कहा, ‘‘मैं उन से पूछ कर बताऊंगी.’’
‘‘बेटी, तू कहेगी तो दामादजी न थोड़ी ही कहेंगे.’’
‘‘फिर भी उन से पूछना जरूरी है,
3 लाख रुपए की बात है.’’
अनिल प्रभावित नहीं हुआ. सीधे पूछा, ‘‘बताइए, कितना पैसा चाहिए?’’ सुन कर रीना के साथसाथ उस के मम्मीपापा भी हैरान रहे गए.
आजकल अनिल उसे बचत की हिदायत देने लगा था. लखनऊ में एक मकान और एक प्लौट खरीदने की बात चल रही थी. उस ने फौर्म भर दिया, बुकिंग अमाउंट दे दिया था. अलौट होते ही पूरा पैसा भरना पड़ेगा. मकान और प्लौट रीना के ही नाम?थे. अनिल की
2 नंबर की कमाई भी उस के बूटिक के नाम पर सफेद हो रही थी. फिर भी रुपएपैसे के लेनदेन में पति की सहमति आवश्यक थी. हजारदोहजार की बात हो, तो कोई आंख मूंद कर दे भी दे.
रात को सोते समय उस ने अनिल से बात की. सुन कर अनिल गंभीर हो गया. फिर बोला, ‘‘रीना, एक बात हमेशा ध्यान रखना, पैसा रिश्ते बनाता?है, तो बिगाड़ता भी है, जब तक हम देते हैं, हम बहुत प्रिय होते?हैं, परंतु जिस दिन अपना दिया हुआ मांग बैठते?हैं, उसी दिन उन के सब से बड़े शत्रु हो जाते?हैं, रिश्तों की सारी मधुरता विष बन जाती?है.’’
‘‘वे मेरे मांबाप हैं, उन की जरूरत पर काम नहीं आएंगे, तो किस के काम आएंगे,’’ रीना ने मान करते हुए कहा.
‘‘ठीक?है, समाज में रहते हुए हम सभी एकदूसरे के काम आते?हैं, परंतु पैसे का लेनदेन रिश्तों की निकटता और मधुरता को समाप्त कर देता है. हमारे पास पैसा है, परंतु इस का अर्थ यह नहीं कि लोग हमें गरीब की भैंस समझ कर दुहने लगे. तुम पहले भी इन सब को बहुतकुछ दे चुकी हो. मैं मना नहीं करता, दे दो. तुम्हारे भाई की नौकरी का सवाल है. परंतु जिस दिन भी तुम उन से एक पैसा मांग बैठोगी, उसी दिन बेटी होते हुए भी तुम उन की सब से बड़ी दुश्मन हो जाओगी.’’
‘‘मुझे नहीं लगता, ऐसा होगा.’’
अनिल हंस पड़ा, ‘‘गांठ बांध लो, एक दिन ऐसा ही होगा.’’
‘‘अच्छा, तब की तब देखी जाएगी, अभी तो 3 लाख रुपए दे दो.’’
दे देना, तुम्हारे पास ही तो रखे?हैं,’’ उस ने टालने जैसे भाव से कह कर करवट बदल ली.
3 लाख रुपए दे कर रीना के छोटे भाई की नौकरी लग गई. परंतु बड़ा वाला घर में बेकार बैठा था. मांबाप की चिंता का सब से बड़ा कारण वही था. उस की उम्र भी निकल गई थी. अब या तो वह कोई प्राइवेट जौब करता या अपना कोई व्यवसाय.
कुछ दिनों बाद पता चल गया कि वह?क्या करना चाहता था. एक दिन रीना की मम्मी सुबहसुबह आ गई. अब तक रीना की बच्ची लगभग एक साल की हो गई थी. कुछ दिनों बाद ही उस का पहला जन्मदिन आने वाला था.
रीना की मम्मी उस दिन मोनी को खूब प्यारदुलार कर रही थी. फिर जब अनिल औफिस चला गया, तो रीना से बोली, ‘‘बेटी, एक बहुत जरूरी काम?है, कहने में संकोच हो रहा है, परंतु कहे बिना भी काम नहीं चलने वाला. दामाद जी बने रहें उन की नौकरी बनी रहे. तेरे घर में ऐसे ही धनवर्षा होती रहे, तू सदा खुशियों में झूलती रहे. मोनी के मुंह में सदा चांदी का चम्मच रहे.’’
‘‘मम्मी,’’ रीना ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज बड़ी बातें कर रही हो, लगता है बहुत तगड़ी डिमांड है.’’
उस की मम्मी झेंप गई. सिर झुकाते हुए बोली, ‘‘बेटी, अपनी औलाद के लिए मांबाप को न जाने किसकिस के सामने हाथ फैलाना पड़ता है.’’
रीना ने उत्सुकता से पूछा, ‘‘अब ऐसी कौन सी जरूरत आ पड़ी?’’
‘‘अब क्या बताऊं, परेश बेकार बैठा है. 30 साल का हो गया?है. शादी करनी?है, परंतु एक बेकारबेरोजगार लड़के के हाथ में कौन बाप अपनी बेटी का हाथ देगा?’’
‘‘तो क्या उस की शादी करने जा रही हो?’’ रीना ने बीच में बात काट कर पूछा.
‘‘नहीं रे, मैं तो उस के काज के बारे में कह रही थी. कुछ करेगा नहीं, तो शादी कहां से होगी? अपने घर के पास महल्ले में ही एक दुकान खाली?है. सोचते हैं कि उस के लिए किराने की दुकान खुलवा दें.’
‘‘तो खुलवा दो,’’ रीना ने खुशीमन से कहा.
‘‘खुलवा तो दें, परंतु इतना पैसा हमारे पास कहां है? तुम कुछ मदद कर दो.’’
‘‘मदद…कितनी?’’ रीना की आवाज जैसे थम गई.
‘यही कोई 10 लाख रुपए,’’ उस की मम्मी ने भी दबे स्वर में कहा.
‘10 लाख रुपए!’’ रीना के मुंह से निकला. उसे अनिल की पिछली नसीहत याद आ गई. मन में भय व्याप्त हो गया. 10 लाख रुपए बहुत बड़ी रकम होती?है. 3 लाख पर अनिल कितना नाराज हुआ था? अब 10 लाख रुपए क्या खुशीमन से देगा? मन को कड़ा कर के उस ने कहा, ‘‘मम्मी, यह बात आप स्वयं उन से कहिए.’’
‘‘बेटी, तुम एक बार कह कर तो देखो,’’ मम्मी ने मनुहार जैसी की.
‘‘नहीं मम्मी.’’ अभी कुछ दिनों पहले ही उन्होंने लखनऊ में एक मकान बुक किया है, कैश डाउन पेमैंट पर. अलौटमैंट होते ही पूरा पैसा एकमुश्त भरना पड़ेगा. इस के अलावा 2 प्लौट लिए हैं. हर महीने उन की मोटी किस्त जाती?है. मैं पहले ही उन की नजरों में बहुत बुरी बन चुकी हूं. अब और बुरी नहीं बनूंगी,’’ रीना ने साफसाफ कह दिया.
उस की मम्मी बोली, ‘‘बेटी, तू बदल गई?है. माना कि तेरे पास पैसा है, परंतु वे दिन भूल गई जब हम तेरी जरूरतें पूरी करने के लिए क्याक्या कष्ट नहीं उठाते?थे.’’ मम्मी की आवाज में नाराजगी और गुस्सा था.
‘‘मम्मी, आप तो बुरा मान गईं. परंतु आप नहीं जानतीं कि वे कितनी मेहनत से पैसा कमाते?हैं. क्या उन्हें तकलीफ नहीं होती जब हम इसे बेरहमी से लुटाने लगते?हैं.’’
‘बेटी, यह कोई लूट नहीं है. जरूरत है, इसीलए मांग रही हूं. तू खुदगर्ज हो गई है. कोई बात नहीं, मैं अब दामादजी से ही मांगूगी. तेरे सामने कभी हाथ नहीं फैलाऊंगी.’’ मां मुंह फुला कर चली गई. रीना को आज समझ में आ रहा था कि पैसों का लेनदेन रिश्तों में खटास भर देता?है. अब ऐसा ही कुछ रीना और उस के मायके के बीच होने वाला था. किसी अनहोनी की आंशका से वह डर गई. काश, उस के साथ कोई अप्रिय घटना न हो.
रीना ने अनिल को इस संबंध में कुछ नहीं बताया.
दूसरे दिन सुबह 8 बजे ही रीना के मम्मीपापा उस के घर पर आ धमके. अनिल ने हैरानी से रीना को देखा और इशारोंइशारों में पूछा, ‘‘क्या बात है?’’ रीना जानती थी, फिर भी इनकार में सिर हिला दिया, जैसे कुछ नहीं जानती थी.
चाय पीते हुए रीना के डैडी ने बहुत मधुर आवाज में अनिल से कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारे समय से हमारा समय भी जुड़ा हुआ?है. वरना बहुत कष्ट में जी रहे होते. रीना का रिश्ता तुम्हारे साथ जुड़ गया, तो हमारा समय सुधर गया.’’
अनिल समझ गया, पैसे की मांग होगी, तभी जबान में मिसरी घुल रही है. डिमांड भी छोटीमोटी नहीं होगी, वरना ससुरजी नहीं आते. सासुजी रीना से ही मांग लेतीं.
‘‘बताइए पापा जी, मैं क्या कर सकता हूं.’’ पहेलियां बुझाने का समय उस के पास नहीं था. तैयार हो कर औफिस भी जाना था उसे.
‘‘बेटा, अपने छोटे साले को तो तुम ने सही जगह पर लगवा दिया. बीच वाला बेकार?है. सरकारी नौकरी के लिए अब उस की उम्र नहीं रही. सोचता हूं, कोई छोटामोटा धंधा करवा दूं,’’ गिरधारी लाल की जबान से अभी तक मिसरी टपक रही थी.
‘‘अच्छा है,’’ अनिल ने कहा.
‘‘बस, तुम्हारा ही आसरा है. मेरे पास तो कुछ है नहीं. रिटायरमैंट के बाद जो बचा था, रीना की शादी में खर्च कर दिया.’’ यह बता कर वे जैसे अनिल के ऊपर एहसान लाद रहे?थे. बिना दहेज के शादी हुई?थी. खामखां, हीन बनने की कोशिश कर रहे थे.
अनिल प्रभावित नहीं हुआ. सीधे पूछा, ‘‘बताइए, कितना पैसा चाहिए?’’ सुन कर रीना के साथसाथ उस के मम्मीपापा भी हैरान रहे गए. वे तो समझ रहे थे, अनिल आसानी से नहीं मानेगा, परंतु…? सभी एकदूसरे का मुंह ताकने लगे.
अनिल ऊपर से जितना कठोर था, अंदर से उतना ही कोमल था. किसी को कष्ट में नहीं देख सकता था वह. गैर भी उस के सामने हाथ फैलाता, तो वह कुछ न कुछ दे देता. परंतु वह पैसे का महत्त्व भी जानता था और यह भी समझता था कि बहुत निकटसंबंधियों में पैसे का लेनदेन कटुता को भी जन्म देता था. परंतु यहां मामला उलट था. ससुरजी पहली बार उस से कुछ मांगने आए थे. मना नहीं कर सकता था. मना कर सकता था अगर पहले से ही अपनी मुट्ठी बंद कर के रखता.
उस के घर में पैसे की रेलपेल थी, इसलिए रिश्तेदार गुड़ में चींटी की तरह चिपके हुए थे. पहले दिया था, अब किस मुंह से मना करता. रीना से वह कुछ भी कह सकता था, परंतु ससुरजी को कैसे मना करता. ससुरजी भी चालाक थे, उन्हें पता था, रीना से बात नहीं बनेगी. इसीलए सीधे उस के पास आए थे.
‘‘बेटा, 10 लाख रुपए दे देते, तो छोटी सी दुकान खुल जाती,’’ ससुरजी की वाणी में मधुरता के साथसाथ दीनता भी टपकने लगी. सासुजी ने इस बीच जबान भी नहीं खोली थी. बेटी के साथ भी कोई संवाद नहीं किया था. शायद अभी तक नाराज थीं.
ठीक कह रही हूं. दामादजी की अभी लंबी नौकरी है. आज नहीं तो कल, फिर से ऊपरी आमदनी वाली जगह पर लग जाएंगे. हमारे पास क्या जरिया?है? कहां से लौटाएंगे
अनिल के दिमाग में कई सारे चित्र एकसाथ कौंध गए. रीना के खाते में कुछेक लाख रुपए होंगे, जो ब्लैक से व्हाइट किए थे, कुछ लाख घर में पड़े थे. 10 लाख रुपए तो हो जाएंगे, परंतु कुछ दिनों पहले ही उस ने ‘कैश डाउन’ पर एक घर बुक किया था, अलौट होने पर एकसाथ पूरा पैसा भरना पड़ेगा. इसी साल अलौट हो जाएगा.
उस ने कहा, ‘‘आप ने पहली बार मुझ से कुछ कहा है, मना तो नहीं करूंगा, परंतु रकम छोटी नहीं?है. मेरी भी अपनी जरूरतें?हैं. समय सब का एकजैसा नहीं रहता. कल क्या होगा, कोई नहीं जानता. इसलिए मैं पहले ही कह देता हूं. थोड़ाथोड़ा कर के पैसा लौटाते रहिएगा. इसे बिना ब्याज का उधार समझिएगा, दान नहीं.’’ अनिल की स्पष्टता से सासससुर के चेहरे लटक गए, परंतु कहीं बात न बिगड़ जाए, ससुरजी जल्दी से बोले, ‘‘अरे बेटा, यह भी कोई कहने की बात?है.’’
और इस तरह रीना के दूसरे भाई की किराने की दुकान गली में खुल गई.
3 वर्षों बाद
रीना एक बेटे की मां बनी. उस की छठी खूब धूमधाम से मनाई गई. बेटी का चौथा जन्मदिन आया, तो उस का जश्न भी एक बड़े होटल में मनाया गया.
इस के बाद पता नहीं किस की नजर अनिल के सुखी परिवार पर पड़ गई. उस की शिकायत विजिलैंस और एंटी करप्शन विभाग में किसी ने कर दी. जांच शुरू हुई तो रीना के फर्जी कारोबार की भी जांच होने लगी.
अनिल के हाथ से सारे प्रोजैक्ट्स वापस ले लिए गए. उस की पोस्टिंग औफिस में कर दी गई. वहां कमाई का कोई अवसर नहीं था. वह सूखे रेगिस्तान में एकएक बूंद के लिए तरसने लगा.
उन दिनों घर का माहौल बीमार और थकाथका सा था. हर कोने में मनहूसियत और बोझिलता थी. अनिल और रीना भी आपस में कम ही बात करते. उन्हें लगता कुछ बोलेंगे, तो कहीं कुछ अप्रिय न घटित हो जाए.
ऐसे दिनों की अपेक्षा किसी ने नहीं की थी.
उन के बुरे दिन थे, परंतु उन को सांत्वना और आश्वासन देने वाला कोई नहीं था. यहां तक कि रीना के मम्मीपापा और भाई भी एक अटूट दूरी बनाए हुए थे. इस का स्पष्ट कारण भी था कि कहीं अनिल उन से पैसे वापस न मांग बैठे.
इसी बीच, उस का मकान बन कर तैयार हो गया और बिल्डर की तरफ से पूर्ण भुगतान के लिए डिमांड नोटिस आ गई. अनिल वैसे ही परेशान?था. इन्क्वारी की वजह से ऊपरी आमदनी ठप थी. वेतन से कितनी बचत होती थी, रीना का हाथ पहले की तरह खुला हुआ था. हफ्ते नहीं तो महीने में एक बार अपने और बच्चों के लिए खरीदारी करती ही?थी.
जोड़तोड़ कर के भी पैसे पूरे नहीं हो रहे थे. ठेकेदारों ने भी उस से दूरी बना रखी थी. सच भी तो है, बिना मतलब के कोई किसी को क्यों घास डालेगा. अनिल अब हर ठेकेदार के लिए एक मामूली क्लर्क के समान था.
बहुत सोचबिचार कर अंत में उस ने निर्णय लिया और रीना से कहा, ‘‘अपने पापा से पैसे के लिए कहो, वरना मकान हाथ से निकल जाएगा.’’
रीना ने आश्चर्य से कहा, ‘‘मैं? आप कहते तो शायद दे भी दें. मेरे कहने पर देंगे?’’
‘‘तुम एक बार कह कर तो देखो,’’ उस ने जोर दिया.
‘‘मैं मम्मी से कह सकती हूं.’’
‘‘ठीक है, उन्हीं से कहो.’’
दूसरे दिन रीना स्वयं मम्मी के यहां गई. कुछ देर इधरउधर की बातें करने के बाद बोली, ‘‘मम्मी, आप को तो मालूम है, इन के खिलाफ जांच चल रही?है. पता नहीं, कब तक चलेगी. इसी बीच मकान का अलौटमैंट लैटर आ गया. बकाया राशि 3 महीने के अंदर जमा करनी है. वे कह रहे थे, आप अगर कुछ रुपए वापस कर दें…’’
उस की मम्मी ने रीना को ऐसे देखा जैसे उस ने कोई अनहोनी बात कह दी थी, या उस के सिर पर सींग उग आए थे. कड़े स्वर में बोली, ‘‘हमारे पास पैसे कहां?’’
‘‘आप से पैसे नहीं मांग रही हूं. जो आप ने लिए?हैं, वह वापस मांग रही हूं,’’ रीना ने ऐसे कहा जैसे मम्मी ने उस की बात नहीं समझी?थी.
‘‘मैं भी उन्हीं पैसों की बात कर रही हूं जो तुम लोगों ने दिए थे, सब दुकान में लगा दिए. क्या मेरे पास रखे?हैं. और बिटिया, क्या हम ने वापस देने के लिए मांगे थे?’’ दामादजी की कोई पसीने की कमाई?थी? घूस में लिए थे. और कमा लेंगे.’’
‘‘क्या?’’ रीना के सिर में जैसे बम फटा हो, ‘‘यह आप क्या कह रही हो, मम्मी?’’
‘‘हां, ठीक कह रही हूं. दामादजी की अभी लंबी नौकरी है. आज नहीं तो कल, फिर से ऊपरी आमदनी वाली जगह पर लग जाएंगे. हमारे पास क्या जरिया?है? कहां से लौटाएंगे? दो पैसे की इन्कम से?घर चलाएंगे या जोड़जोड़ कर तुम्हें लौटाएंगे,’’ मम्मी ने साफ मना कर दिया.
रीना लगभग रोंआसी हो गई. उस का मम्मी से लड़ने का मन कर रहा था, परंतु उद्वेग में उस का गला भर आया और वह केवल इतना ही कह सकी, ‘‘वे मुझे घर से निकाल देंगे.’’
‘‘उस की तू चिंता मत कर. अभी तेरी शादी के 7 साल नहीं हुए हैं. अनिल ने अगर ऐसी कोई हिमाकत की तो उसे दहेज कानून में फंसा दूंगी.’’
‘‘आप ऐसा करोगी?’’ रीना ने हैरानी से पूछा.
‘‘हां, इसलिए चुपचाप अपने घर जा और आज के बाद पैसे मांगने यहां मत आना.’’
रीना के हृदय में हाहाकार मचा हुआ था. मस्तिष्क में आंधियां सी चल रही थीं. शरीर जैसे झंझावात से डांवांडोल हो रहा?था. छोटे बच्चे को गोदी में लिए जब गिरतेपड़ते वह घर पहुंची, तो ऐसे हांफ रही थी जैसे किसी वीरान रेगिस्तान में उसे जंगली जानवरों ने दौड़ा लिया था और वह बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचा कर घर तक पहुंची थी.
अनिल घर पर ही?था. उस की दशा देख कर वह समझ गया, पूछा, ‘‘उन्होंने मना कर दिया?’’
रीना ने अपने पति के चेहरे को देखा. वह बहुत मासूम और निरीह लग रहा था. रीना को उस पर तरस आया. मन हुआ उस के गले लग कर खूब रो ले, परंतु वह केवल इतना ही कह सकी, ‘‘हां’’
‘‘मैं जानता था, यही होगा. पैसा ऐसा है ही कि वह रिश्तों को बनाता कम, बिगाड़ता ज्यादा?है. यही बात मैं सदा तुम से कहता था.’’
‘‘हां, आज मैं समझ गई हूं कि पैसे के आगे सगे मांबाप भी कैसे पराए हो जाते हैं.’’
‘‘पराए तो फिर भी पैसे वापस कर देते?हैं, लेकिन अपने कभी नहीं करते. पैसे के लिए वे ईमानधर्म और रिश्ते सब खराब कर लेते?हैं.’’
‘‘अब आप क्या करोगे?’’ उस ने रांआसे स्वर में पूछा.
‘‘मैं तो किसी न किसी प्रकार पैसे का प्रबंध कर लूंगा, परंतु आज एक प्रण लेता हूं, चाहे कोई कितना भी बड़ा लालच दे, मैं घूस के पैसे को हाथ नहीं लगाऊंगा. मैं नहीं चाहता, मेरे मासूम बच्चों पर उस पैसे की छाया पड़े और वे बिगड़ जाएं. रिश्ते बिगड़ गए, तो कोई बात नहीं. फिर बन जाएंगे. परंतु अगर औलाद खराब निकल गई तो जीवनभर का रोना रहेगा.’’
‘‘मैं भी यही चाहती हूं. पैसे के कितने रंग मैं ने देख लिए. यह कैसे लोगों के मन में पाप भरता है, यह?भी देख लिया. यह सुख कम, दुख ज्यादा देता?है.’’
‘‘हां, चलो उठो. आज से हम एक नया जीवन आरंभ करेंगे, उस ने रीना की गोदी से छोटे मुन्ने को ले लिया.’’
रीना ने उस के कंधे पर अपना सिर रख दिया. उस के सारे झंझावात मिट चुके थे.?
बच्चोंके मुखसे मेरे 2 बच्चे हैं. अविना बड़ी है जो कक्षा 4 में पढ़ती है एवं अविनेश छोटा है जो कक्षा 3 में पढ़ता है. दोनों अकसर भूगोल के बारे में बातें किया करते हैं. एक दिन अविना बोली कि चीन भारतवर्ष के ऊपर है तो बेटा कहने लगा कि चीन भारतवर्ष के उत्तर में है.
बेटी ने कहा कि चीन भारतवर्ष के ऊपर है क्योंकि चिडि़या जो ऊपर उड़ती है वह चीनी भाषा बोलती है. चीं…चीं… करती है.
अविना की यह बात सुन कर वहां पर उपस्थित सभी लोग हंसी रोक न सके.
एक बार मैं ने अपने 12 वर्षीय पुत्र को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, जीवन में लायक व सफल होना बहुत आवश्यक है. इसलिए अभी परिश्रम करो, खूब पढ़ो. इस की वजह से देखना तुम्हें सब चीजें व सुख प्राप्त होगा. गाड़ी मिलेगी, बंगला, नौकरचाकर, पैसा मिलेगा. अपने पिताजी को देखो. कितने सफल रहे हैं. यही नहीं, इसी कारण तो उन्हें इतनी अच्छी पत्नी भी मिली है.’’
बेटा फौरन बोला, ‘‘क्या पापा की 2 पत्नियां हैं?’’ मैं स्वयं हंस तो पड़ी पर इस से मुझे यह समझ आया कि वह मुझे कोई बहुत अच्छी पत्नी नहीं समझता. इस किस्से को सुन कर हम अकसर अब भी हंस पड़ते हैं.
मेरा छोटा बेटा बचपन से ही तपाक से उत्तर देने का आदी है. कभीकभी उस की इस आदत की वजह से हम भी परेशानी में पड़ जाते हैं. उस को इस बारे में कई बार समझाया है पर वह अपनी आदत से मजबूर है. एक बार हमारे एक रिश्तेदार हमारे घर आए थे. ऐसे ही बातचीत के दौरान वे मेरे बेटे अवि से पूछ बैठे कि बेटा तुम को बड़े हो कर क्या बनना है.
यह सुन कर मेरे बेटे ने तपाक से उत्तर दिया कि अंकल मुझे नहीं पता कि मैं बड़ा हो कर क्या करूंगा पर मुझे इतना पता है कि मैं किसी के घर जा कर उस के बच्चों से ऐसे प्रश्न नहीं करूंगा. इतना सुनना था कि हमारे वो रिश्तेदार झेंप गए और हम मन ही मन मुसकराते हुए अवि को नसीहत देने का नाटक करने लगे.