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वाराणसी में SP सुरक्षा सुकीर्ति माधव की कविता 'मैं खाकी हूं...' खूब हो रही सोशल मीडिया पर वायरल

SP सुरक्षा सुकीर्ति माधव
गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी। कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों और देशव्यापी लॉकडाउन की दोहरी मार सबसे ज्यादा पुलिसकर्मियों पर पड़ी है। पुलिसकर्मियों को जहां खुद, परिवार और समाज को इस बीमारी से सुरक्षित रखना है वहीं कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी भी संभालनी है। इन चुनौतियों के बीच उत्तर प्रदेश कैडर के युवा आइपीएस अधिकारी सुकीर्ति माधव की लिखी कविता 'मैं खाकी हूं...' खूब वायरल हो रही है। सुकीर्ति माधव एक और कविता इन दिनों लिख रहे हैं जो जल्‍द ही लोगों के बीच होगी।

ट्रेनिंग के दिनों में लिखी उनकी इस कविता को नासिक के पुलिस कमिश्नर और तेज-तर्रार आईपीएस अफसर विश्वास नांगरे पाटिल ने गाया है। उनकी आवाज और सुकीर्ति की लिखी यह कविता देखते ही देखते खूब वायरल होने लगी। 2015 बैच के आइपीएस अफसर व जिले में तैनात एसपी सुरक्षा, ज्ञानवापी के सुकीर्ति माधव इतने अच्छे कवि हैं यह लोगों को पता ही ना था। लोग यह तो जानते थे कि वे एक संवेदनशील अफसर है लेकिन उनकी रचनात्मक चीजें तब सामने आई जब नासिक के कमिश्नर विश्वास नांगरे ने इसे पढ़कर सुनाया। मैं खाकी हूं यह कविता इस समय पूरे देश में छा गयी है। हर राज्य के पुलिस अफसर इस कविता को वायरल कर रहे हैं। मौजूदा सकट के समय खाकी की यह कहानी लोगों को हकीकत लग रही है।



पुलिस की बात को सुनें, हमें आपकी फिक्र है
कोरोना वायरस जैसी आपदा के दौरान भी पुलिसकर्मी हमारी और आपकी सुरक्षा में तैनात हैं। इसको लेकर आईपीएस सुकीर्ति माधव ने लोगों से अपील की कि वह पुलिस की बात सुनें और उसका पालन करें। उन्होंने कहा, 'हम अपने स्वार्थ के लिए सड़कों पर तैनात नहीं हैं। हमें आपकी फिक्र है, इसलिए जब कभी कोई पुलिसकर्मी कुछ कहे तो उसकी बात को सुनिए और मानिए। हम सभी एक कॉमन उद्देश्य के लिए काम कर रहे हैं और जल्द ही इस आपदा से भी उबर आएंगे।'



यह कविता हो रही वायरल
दिन हूं रात हूं, सांझ वाली जाती हूं, मैं खाकी हूं।
आंधी में, तूफान में, होली में, रमजान में, देश के सम्मान में,
अडिग कर्तव्यों की, अविचल परिपाटी हूं, मैं खाकी हूं।।
तैयार हूं मैं हमेशा ही, तेज धूप और बारिश, हंस के सह जाने को, सारे त्योहार सड़कों पे, भीड़ के साथ मनाने को, पत्थर और गोली भी खाने को, मैं बनी एक दूजी माटी हूं, मैं खाकी हूँ।
विघ्न विकट सब सह कर भी, सुशोभित सज्जित भाती हूं,
मुस्काती हूं, इठलाती हूं, वर्दी का गौरव पाती हूं, मैं खाकी हूं
तम में प्रकाश हूं, कठिन वक्त में आस हूं, हर वक्त मैं तुम्हारे पास हूं, बुलाओ, मैं दौड़ी चली आती है, मैं खाकी हूँ।।
भूख और थकान की वो बात ही क्या, कभी आहत हूं, कभी चोटिल हूं, और कभी तिरंगे में लिपटी, रोती सिसकती छाती हूं, मैं खाकी हूँ।।
शब्द कह पाया कुछ ही, आत्मकथा में बाकी हूं, मैं खाकी हूं।

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