यूपी: 23 दिन के मासूम को हुआ कोरोना वायरस, मां सीने से लगाने चली आई कोविड19 हास्पिटल
गाजीपुर न्यूज़ टीम, आगरा. उत्तर प्रदेश के आगरा में 23 दिन के बच्चे में भी संक्रमण की पुष्टि हुई है। जबकि उसके माता-पिता के नमूने नकारात्मक आए हैं। बच्चे के चाचा भी संक्रमित पाए गए हैं। ऐसे में सवाल उठा कि दुधमुंहे के साथ कौन रहेगा। उसकी देखभाल कौन करेगा। मां की गोद कैसे नसीब होगी। इसका फैसला मां ने पल भर में ले लिया। साफ कह दिया कि बेटे को अकेला नहीं छोड़ेगी। साथ में अस्पताल जाएगी। जो होगा सो देखा जाएगा। स्वास्थ्य विभाग और एसएन मेडिकल कालेज की टीम पर भी कोई विकल्प नहीं था। लिहाजा मां के साथ बेटे को आइसोलेशन वार्ड में ले आए। हां, उन्हें अलग से बेहद सुरक्षित जोन में रखा गया है। मां बेटे को दूध भी पिला रही है। अब एसएन के डाक्टरों के पास इलाज के नाम पर दोनों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की चुनौती है। कारण कि बेटे से मां को भी संक्रमण का पूरा खतरा है। हालांकि मां को डाक्टरों की टीम ने ठीक से समझाया है। एन-95 मास्क भी दिया गया है। बेटे को कैसे छूना है, दूध कैसे पिलाना है, अपने हाथों को सेनेटाइज करते रहना है, सब बताया गया है।
क्या चाचा से हुआ भतीजे को संक्रमण
दुधमुंहे के मां-बाप पूरी तरह स्वस्थ हैं। लेकिन चाचा को संक्रमण निकला है। उन्हें भी कहीं अन्यत्र भर्ती किया गया है। जबकि दोनों परिवारों के घर अलग-अलग और खासे दूर हैं। डाक्टर पसोपेश में हैं कि संक्रमण चाचा से भतीजे को हुआ है या भतीजे से चाचा संक्रमित हुआ है। ये सवाल खासा परेशान कर रहा है। दोनों परिवारों में बहुत जरूरत होने पर ही आवाजाही होती है। सभी अपने-अपने काम में व्यस्त रहते हैं।
खुद संक्रमित, सात साल का बेटा भी बुलाया
यह मजबूरी की एक अलग दास्तां है। फिरोजाबाद से पांच लोगों का पूरा परिवार संक्रमित है। सिर्फ सात साल का बेटा सुरक्षित था। सभी संक्रमितों को आइसोलेशन वार्ड में भर्ती किया गया। बेटे को आइसोलेशन वार्ड में रखा गया। मेडिकल कालेज ने मरीजों के सभी रिश्तेदारों को फोन किए। उनसे कहा कि परिवार का इलाज होने तक बेटे को अपने साथ रख लें। मां-बाप ने भी कइयों से गुहार लगाई। कोई भी तैयार नहीं हुआ। एक-दो दिन नर्सों और अस्पताल स्टाफ ने बेटे की देखभाल की। इस दौरान कुछ समाजसेवियों के फोन भी आए। लेकिन बच्चा सौंपने में तमाम तरह की कानूनी पेचीदगियां हैं। प्रक्रिया बहुत जटिल है। अंतत: परिवार को दिल पर पत्थर रखकर फैसला लेना पड़ा। बेटे को अपने साथ रखे जाने का अनुरोध किया। अब स्वस्थ बेटा भी उन्हीं के साथ आइसोलेशन में रह रहा है। इस वार्ड में तमाम अन्य रोगी भी भर्ती हैं। मजबूरी ऐसी है कि कोई कुछ कर ही नहीं सकता। एसएन के डाक्टर भी इस मजबूरी के आगे विवश हैं।