भारत के पहले सैटेलाइट आर्यभट्ट को BHU ने दिया था 'ईंधन', जानिए वाराणसी से सम्बन्धों की रोचक कहानी
गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी, 'छात्रावास की छत से लगता था कि चांद महज दीदार की चीज है लेकिन दो साल बीएचयू में बिताने के बाद यह ख्याल उमड़ने लगा कि चांद का सिर्फ दीदार ही नहीं, उसे फतेह भी किया जा सकता है।' भारत के पहले सफल सैटेलाइट आर्यभट्ट को 19 अप्रैल 1975 में लांच करने के कुछ दिन बाद यह बात प्रो. यूआर राव (उडुपी रामचंद्रन राव) ने एक इंटरव्यू में यह बात कही थी।
अभियान का नेतृत्व करने वाले प्रो. राव बीएचयू के शोध कार्य से इतने प्रभावित थे कि मद्रास विश्वविद्यालय छोड़ एमएससी करने 1953 में यहां आए। उन्होंने यहीं पर अंतरिक्ष विज्ञान से जुड़े अपने शोधों को ईंधन देना शुरू किया। आर्यभट्ट का प्रक्षेपण के बाद जब बीएचयू आए तो उन्होंने एक पे्रजेंटेशन के दौरान सैटेलाइट से बीएचयू के ब्रोचा हॉस्टल की ली गई उस तस्वीर को जूम करके दिखाया जहां वह रहते थे।
जश्न में डूब गया बीएचयू
बीएचयू से एमएससी करने के ठीक 19 साल बाद आर्यभट्ट सैटेलाइट प्रो. राव के मार्गदर्शन में प्रक्षेपित करने की सूचना मिलने के बाद बीएचयू दोहरे जश्न में डूबा था। जब लोगों को पता चला कि आर्यभट्ट के कर्ता-धर्ता बीएचयू के ही पुरातन छात्र प्रो. यूआर राव हैं। आइआइटी, बीएचयू के प्रो. बीएन द्विवेदी कहते हैं कि परीक्षण की खबर पाकर परिसर में हर कोई गर्वान्वित था।
एक बुलावे पर आ जाते थे बीएचयू
प्रो. राव मद्रास विश्वविद्यालय छोड़कर 1953 में परास्नातक करने काशी हिंदू विश्वविद्यालय आए। बीएचयू के एमिरेट्स प्रोफेसर ओएन श्रीवास्तव के मुताबिक तब एमएससी में एक साल पढ़ाई और दूसरे साल केवल शोध होते थे। बीएचयू की यही खूबी उन्हें कावेरी तट से यहां खींच लाई थी। प्रो. बीएन द्विवेदी कहते हैं कि बीएचयू के किसी कार्यक्रम में आमंत्रित करने पर वे उसे महामना का बुलावा समझ कर चले आते थे और अपनी उपलब्धियों का श्रेय बीएचयू को देते थे। बीएचयू ने 1992 में उन्हें डीएससी (ऑनर्स कॉसा) सम्मान से नवाजा था।