प्राचीन प्लाज्मा थेरेपी से भी कोरोना का इलाज संभव, BHU प्रोफेसर ने बताया क्या है तकनीक
गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. कोविड-19 संक्रमण से लड़कर ठीक हुए मरीजों के प्लाज्मा से भी कोरोना का उपचार किया जा सकता है। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में यह विधि पुरानी व कारगर मानी जाती है। जब एंटीबायोटिक्स व टीका ईजाद नहीं हुआ था, तब इस पद्धति का उपयोग उपचार के लिए किया जाता था। बीएचयू आईएमएस के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. गोपालनाथ ने बताया कि कई बीमारियों का इसी पद्धति से इलाज किया जाता रहा है।
उन्होंने बताया कि करीब 120 साल पहले जर्मन वैज्ञानिक एमिल वान बेहरिंग ने टिटनेस और डिप्थीरिया का इलाज प्जाज्मा पद्धति से किया। आज भी इसका प्रयोग रेबीज, इबोला और नए कोरोना वायरस कोविड-19 से मिलते-जुलते रोग के उपचार में किया जाता है। जो मरीज अपनी प्रतिरोधी क्षमता से खुद ठीक हो गए हैं, उनके खून से प्लाज्मा निकालकर गंभीर रूप से संक्रमित मरीजों को देने से उनके स्वास्थ्य में सुधार हो जाता है। लेकिन इसका व्यापक उपयोग संभव नहीं है।
इस विधि से कोविड-19 के ठीक हुए एक मरीज से केवल एक ही व्यक्ति का इलाज हो पाएगा। क्योंकि शरीर में एंटीबॉडी बनाने के लिए प्लाज्मा की ज्यादा मात्रा की जरूरत होगी। प्रो. नाथ ने बताया कि कोरोना के सामान्य इलाज से करीब 80 फीसदी मरीज ठीक हो जाते हैं। कोरोना वायरस के लिए अभी कोई वैक्सीन नहीं है। मरीज के शरीर में अपने-आप एंटीबॉडी बन जाता है।
ठीक हो चुके मरीजों के प्लाज्मा में मौजूद कोरोना के वायरस का एंटीबॉडी गंभीर रूप से बीमार लोगों के लिए वरदान साबित हो सकता है। प्लाज्मा कोशिकाओं में विभाजित होता है। कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए किलर कोशिकाओं को सक्रिय करता है। यह कोशिकाएं शरीर की संक्रमित कोशिकाओं की पहचान करती हैं और उन्हें नष्ट करती हैं।
क्या है प्लाज्मा थेरेपी
प्लाज्मा में पाए जाने वाले एंटीबॉडी के आधार पर शरीर में किसी वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक विकसित करने की क्षमता होती है। शरीर में वायरस के प्रवेश करने के बाद शरीर खुद उससे लड़ने लगता है। वायरस को खत्म करने के लिए एंटीबॉडी बनाता है। वायरस खत्म करने में सफल होने पर मरीज पूरी तरह ठीक हो जाता है।