गाजीपुर: परदादा का बायोडाटा देखकर सात समंदर पार से आए पूर्वजों की तलाश में
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर दुबिहा क्षेत्र के उतरांव गांव में शनिवार को विदेश से आए पांचवीं पीढ़ी के डेविड लखन तथा उनकी पत्नी गीता लखन अपने भाई, भतीजों तथा सगे संबंधियों को खोजते हुए पहुंचे तो उनका स्वागत करते कई परिवारों के लोग अघा नहीं रहे थे। थोड़ी देर पहले विदेशी लग रहा यह दंपती इसी गांव और माटी से जुड़ा निकला। गांव में उनके सगे निकले शिवजी यादव, भगवान यादव आदि के परिजन सहित जैसे पूरा गांव ही उनसे दो बात करने को लालायित हो गया। हालांकि डेविड और गीता गांव में करीब दो ही घंटे रहे। जब वह जाने लगे तो सभी की आंखें छलछला गईं। गांव के लिए कुछ खास करने और जल्द ही फिर आने का वादा कर विदेशी दंपती वाराणसी के लिए रवाना हो गया।
उतरांव के शिवजी यादव के परदादा के भाई लखन अहीर को 1888 में अंग्रेज गिरमिटिया मजदूर के रूप में त्रिनिदाद एंड टोबैगो ले गए थे। वहां अंग्रेजों की ओर से लाए गए इन भारतीय नागरिकों से गन्ना की खेती कराने के साथ ही गन्ना मिलों में काम करवाया जाता था। वहां से भारतीय लोग वापस नहीं आ पाए और बाद में उसी देश में बस गए और वहां के निवासी हो गए।
लखन अहीर की चौथी पीढ़ी के डेविड लखन ने अपने पूर्वजों की जानकारी प्राप्त करने की सोची और वह इसे जरूरी काम समझ कर करने लगे। हालांकि इस बीच उन्होंने वेस्टइंडीज में अपना कारोबार बढ़ा लिया और वहीं बस भी गए लेकिन पूर्वजों से मुलाकात का जुनून उनके भीतर समाया रहा।
करीब 132 वर्षों के बाद अपने परिवार के सदस्यों का पता लगाकर करीब पांच बजे टूरिस्ट वाहन से वह उतराव गांव में अपने रिश्ते में भाई शिवजी यादव और श्री भगवान यादव के घर पर पहुंचे। उनके साथ उनकी पत्नी गीता लखन तथा वाराणसी से एक गाइड भी था। गांव पहुंच कर जब वह अपने भाइयों से मिले तो दोनों ओर से प्रेम का रस फूट पड़ा। गांव का नजारा भी बदल गया था। डेविड गांव के कई लोगों से मिले। परिजनों को अपने देश बुलाया। कहा कि वह गांव के लिए भी कुछ करेंगे। करीब दो घंटे प्रवास के बाद वह फिर वाराणसी चले गए।
उतरांव गांव में दो घंटे के अपने प्रवास में ही डेविड लखन तथा गीता लखन ने लोगों से इतनी आत्मीयता बना ली कि परिजन उनसे काफी घुल मिल गए। उत्साह से भरपूर डेविड ने बताया कि 1888 में जब अंग्रेज उनके परदादा के पिता लखन अहीर को लेकर त्रिनिदाद एंड टोबैगो आए तो उस समय उनका इंग्रेशन पास बनाया गया था। उस समय वहां उनका एक बायोडाटा तैयार किया जिसमें देश के नाम के साथ ही गांव का नाम तथा कुछ अन्य विवरण भी लिखा हुआ था।
इसे देखने के बाद ही उन्हें भारत में रह रहे अपने पूर्वजों को खोजने और मिलने का ख्याल आया। इस इंग्रेशन पास के आधार पर त्रिनिदाद की सरकार से संपर्क किया और सारा रिकार्ड खंगाला, जिससे बहुत सी जानकारियां मिलीं। इसके बाद, उन्होंने भारत के एक एनजीओ के माध्यम से गाजीपुर के अभिलेखागार से संपर्क किया। इसके बाद उतरांव गांव में रह रहे सभी परिजनों के बारे में जानकारी मिली।