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CAA हिंसा: योगी सरकार को Allahabad High Court की सख्‍त हिदायत, पढ़ें आदेश की पांच खास बातें

कोर्ट ने कहा कि जिला व पुलिस प्रशासन द्वारा बैनर लगाकर लोगों की जानकारी सार्वजनिक करना संविधान के मूल्यों को नुकसान पहुंचाने जैसा है.
गाजीपुर न्यूज़ टीम, प्रयागराज. नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ राजधानी लखनऊ (Lucknow) में भड़की हिंसा के आरोपियों से वसूली के पोस्टर सार्वजनिक स्थलों पर लगाने के मामले में सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने योगी सरकार (Yogi Government) को सख्त हिदायत दी. चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर व जस्टिस राकेश सिन्हा की स्पेशल बेंच ने लखनऊ डीएम और पुलिस कमिश्नर को तत्काल सभी पोस्टर्स हटाने के निर्देश दिए हैं. साथ ही इस मामले में लखनऊ डीएम को 16 मार्च तक कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष रिपोर्ट पेश करने का भी निर्देश दिया है.

हाईकोर्ट ने कही ये बड़ी बात
रविवार को मामले का स्वत संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने इसकी सुनवाई की और फैसल सोमवार तक के लिए सुरक्षित रख लिया. आज फैसला सुनते हुए चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर व जस्टिस सिन्हा की पीठ ने कहा कि इस जनहित याचिका में एक बात बिलकुल साफ़ है कि यह व्यक्ति की निजता का हनन है, जो कि संविधान की अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है. जिसके बाद कोर्ट ने सभी बैनर और पोस्टर को हटाने का निर्देश दिया और कहा ऐसे किसी भी पोस्‍टर को न लगाया जाए जिससे किसी व्यक्ति की निजी जानकारी दी गई हो.

संवैधानिक मूल्यों का हनन
कोर्ट ने कहा कि जिला व पुलिस प्रशासन द्वारा बैनर लगाकर लोगों की जानकारी सार्वजानिक करना संविधान के मूल्यों को नुकसान पहुंचाने जैसा है. सरकारी एजेंसियों द्वारा किया गया कृत्य असंवैधानिक है.

पर्सनल डाटा सार्वजानिक करना निजता का हनन
कोर्ट ने सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता के उस दलील को भी खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि इस जनहित याचिका को इसलिए नहीं सुना जा सकता क्योंकि जिन लोगों के फोटो बैनर में दिए गए हैं, उन्होंने पहले ही वसूली की नोटिस को चुनौती दे रखी है. इस पर कोर्ट ने फौरी तौर पर यह कहा कि मामला वसूली से नहीं जुड़ा है बल्कि किसी व्यक्ति के पर्सनल डाटा को सड़क किनारे सार्वजानिक करना उसकी निजता का हनन है. 

किसी के मूलभूत अधिकारों का हनन नहीं कर सकते
महाधिवक्ता ने सरकार की तरफ से यह दलील भी दी थी कि कुछ लोगों के बैनर लगाने के पीछे सरकार की मंशा यही थी कि नागरिकों को गैर कानूनी कार्यों से दूर रखने के लिए हैं. आरोपियों की जानकारी वाले बैनर लगाना जनहित में है. लिहाजा कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए. इस पर कोर्ट ने कहा इसमें कोई शक नहीं कि सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए समय-समय पर आवश्यक कदम उठा सकती है, लेकिन किसी के मूलभूत अधिकारों का हनन कर यह नहीं किया जा सकता.

इस स्थिति में ही जानकारी की जा सकती है सार्वजानिक
कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत अगर कोई सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है तो उससे रिकवरी का प्रावधान है, लेकिन आरोपियों की निजी जानकारी को सार्वजानिक करने का प्रावधान नहीं है. कोर्ट ने कहा कि यह तभी हो सकता है जब किसी व्यक्ति के खिलाफ वारंट जारी हो और वह वारंट से बचने के लिए छिप रहा हो. उस परिस्थिति में कोर्ट के आदेश के बाद ही उसकी जानकारी सार्वजानिक की जा सकती है. इसके अलावा कानून में कोई अन्य पॉवर मौजूद नहीं है.
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