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Shivratri स्‍पेशल: काशी में गंगा किनारे पूजे जाएंगे 108 नर्मदेश्वर शिवलिंग, ये है वजह

काशी में शिवरात्रि (Shivratri) के पावन पर्व पर दो ज्योर्तिलिंगों का अनूठा मिलन देखने को मिलेगा. जबकि इस दौरान वाराणसी (Varanasi) में कई धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन भी होंगे, जिसमें शिव बारात से लेकर बाबा विश्‍वनाथ का शृंगार भी शामिल है.

शिव की नगरी काशी में इस शिवरात्रि (Shivratri) के पावन पर्व पर दो ज्योर्तिलिंगों का अनूठा मिलन देखने को मिलेगा. ये ज्योर्तिलिंग बाबा विश्वनाथ और ओंकारेश्वर हैं. जबकि हर बार की तरह इस शिवरात्रि पर वाराणसी (Varanasi) में कई धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होंगे, जिसमें शिव बारात से लेकर बाबा का शृंगार भी शामिल है. वहीं, लाखों भक्त इस अद्भुत पल का साक्षी बनने के लिए वाराणसी पहुंच रहे हैं.

बाबा विश्वनाथ की नगरी में रमेगी ओंकारेश्वर की धूनी
इस बार काशी में एक खास मिलन देखने को मिलेगा. एक ओर बाबा विश्वनाथ की नगरी में ओंकारेश्वर की धूनी रमती दिखाई देगी तो वहीं गंगा के तट पर नर्मदा की गोद से निकलेगे नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा अर्चना की जाएगी. जी हां, देश दुनिया में आस्था के केद्र कैलाश मठ में इस बार 108 नर्मदेश्वर शिवलिंग पहुंचे हैं. ये नर्मदेश्वर शिवलिंग मध्य प्रदेश में स्थित ज्योर्तिलिंग ओंकारेश्वर से आए हैं. नर्मदेश्वर शिवलिंग की खास बात ये होती है कि ये नर्मदा नदीं से निकलते हैं. शिवरात्रि के दिन इन 108 शिवलिंगों की न केवल पूजा अर्चना होगी बल्कि बड़ी संख्या में महिलाएं शिव बारात के रूप में इन्हें अपने सिर पर लेकर बाबा विश्वनाथ की नगरी में भ्रमण करेंगी. इसके बाद मठ में ही रुद्राभिषेक के बाद विशाल हवन होगा.

स्वामी आशुतोषानंद गिरी महाराज ने कही ये बात
कैलाश मठ के पीठाधीश्वर और महामंडलेश्वर स्वामी आशुतोषानंद गिरी महाराज ने बताया कि इस खास अनुष्ठान का नाम है-हर हर महादेव, घर घर महादेव और घट-घट महादेव. यानी संसार का हर प्राणि शिव को जाने और समझे. इसलिए इस बार ये आयोजन काशी में किया जा रहा है. ओंकारेश्वर के इन शिवलिंगों का काशी में पूजन किया जाएगा. उसके बाद फिर किसी ज्योर्तिलिंग के स्थान पर जाकर विशेष मुहुर्त में इनका पूजन होगा. ये एक तरह से शिवयात्रा है, जिसका पड़ाव इस बार काशी में होगा. इस विशेष अनुष्ठान में शामिल होने के लिए देश-दुनिया से भक्त काशी पहुंच चुके हैं.

नर्मदेश्वर शिवलिंग के बारे में विशेष बातें
>नर्मदेश्वर शिवलिंग केवल नर्मदा नदी में ही पाए जाते हैं
>इन्हें स्वयंभू शिवलिंग कहा जाता है. इसमें निर्गुण, निराकार, ब्रहम भगवान, शिव स्वयं प्रतिष्ठित हैं.
>नर्मदेश्वर लिंग शालग्राम शिला की तरह स्वयंप्रतिष्ठित माने जाते हैं. यानी इस शिवलिंग के प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं रहती है.
>नर्मदेश्वर शिवलिंग का एक नाम वाणलिंग भी है.
>तपस्या के बाद बाणासुर को महादेव से वरदान मिला था कि वे अमरकंटक पर्वत पर हमेशा लिंगरूप में प्रकट रहें.
>इस अमरकंटक पर्वत से नर्मदा नदी निकलती हैं, जिसके साथ पर्वत से ये पत्थर बहकर आते हैं. इसलिए आस्था के रूप में इन्हीं पत्थरों को शिवस्वरूप माना जाता है और उन्हें कहीं बाणलिंग या कहीं नर्मदेश्वर कहा जाता है.
>माना जाता है कि सहस्त्रों धातुलिंगों के पूजन का जो फल होता है, उससे सौगुना अधिक मिट्टी के लिंग के पूजन से होता है. जबकि हजारों मिट्टी के लिंगों के पूजन का जो फल है, उससे सौ गुना ज्यादा नर्मदेश्वर शिवलिंग से फल मिलता है.
>कहा जाता है कि जहां नर्मदेश्वर का वास होता है, वहां काल और यम का भय नहीं होता है.
>नर्मदेश्वर शिवलिंग कहीं भी स्थापित हो, लेकिन उसकी वेदी का मुख उत्तर दिशा की तरफ ही होना चाहिए.
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