ये हैं असंसदीय ‘एक्सप्रेशंस’, पढ़ें- सदन में किन शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकते सांसद
संसद की गरिमा को बनाए और बचाए रखने के लिए कुछ शब्दों का इस्तेमाल मना किया गया है. सिर्फ शब्द ही नहीं, बल्कि कुछ हाव-भाव के प्रदर्शन के इस्तेमाल पर भी संसद के अंदर पाबंदी है.
संसद में जारी बजट सत्र के दौरान गर्मागर्म बहस में एक बार फिर से असंसदीय शब्दों को लेकर अनुशासन की बात सुर्खियों में आ गया है. पहले कांग्रेस के लोकसभा में नेता अधीर रंजन चौधरी फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से उनके जवाब के बाद एक बार फिर सदन को इस पर ध्यान देना पड़ा है.
सदन के सदस्य कई बार बोलते हुए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर जाते हैं जिन्हें बोलने की बिल्कुल भी इजाजत नहीं होती. बाद में स्पीकर के आदेश से इन शब्दों या वाक्यों को रिकॉर्ड से बाहर निकाल दिया जाता है. संसद की गरिमा को बनाए और बचाए रखने के लिए कुछ शब्दों का इस्तेमाल मना किया गया है. सिर्फ शब्द ही नहीं, बल्कि कुछ हाव-भाव के प्रदर्शन के इस्तेमाल पर भी संसद के अंदर पाबंदी है.
संसद को कोई भी सदस्य जो कुछ भी कहते या करते हैं वह सबकुछ सदन के अनुशासन, सदस्यों की समझ और अध्यक्ष की कार्यवाही के नियंत्रण में संचालित होता है. इसके मुताबिक कोई भी सांसद, सदन के अंदर ‘अपमानजनक या असंसदीय या अभद्र या असंवेदनशील शब्द’ का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं. राज्यों की विधानसभाओं और विधान परिषद की कार्यवाही भी इसी नियम के मुताबिक संचालित किए जाते हैं.
क्या कहता है नियम
संविधान के आर्टिकल 105 (2) में साफ निर्देश है कि संसद सदस्यों को इस तरह की आजादी नहीं होती कि सदन की कार्यवाही के दौरान कोर्ट या कमिटी के सामने कुछ ऐसा-वैसा नहीं कह सकते. सदन के अंदर अनुशासन कायम रखना होता है. लोकसभा में प्रोसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनेस के नियम 380 (एक्सपंक्शन) के मुताबिक, ‘अगर अध्यक्ष को लगता है कि बहस में अपमानजनक, असंसदीय , अभद्र या असंवेदनशील शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, तो वो सदन की कार्यवाही से उन्हें हटाने के लिए आदेश दे सकता है.’
रिकॉर्ड से कैसे हटाते हैं
हिंदी या अंग्रेजी समेत विभिन्न भारतीय भाषाओं में कई ऐसे शब्द हैं, जिन्हें ‘असंसदीय’ माना गया है. लोकसभा के स्पीकर और राज्यसभा के सभापति का काम सदन की कार्यवाही के रिकॉर्ड से इन शब्दों को दूर रखना होता है. इसके लिए नियम 381 के मुताबिक, ‘सदन की कार्यवाही का जो हिस्सा हटाना होता है, उसे मार्क किया जाएगा और कार्यवाही में एक फुटनोट इस तरह से डाला जाएगा कि ‘अध्यक्ष के आदेश के मुताबिक हटाया गया’
कब लिस्ट किए गए ऐसे शब्द
इस पूरी प्रक्रिया में में मदद के लिए, लोकसभा सचिवालय ने ‘असंसदीय अभिव्यक्ति’ नाम से एक किताब भी निकाली हुई है. इस किताब को सबसे पहले साल 1999 में तैयार किया गया था. साल 2004 के आए इसके नए एडिशन में 900 पन्ने थे. इस सूची में कई शब्द और एक्सप्रेशन्स शामिल हैं जिन्हें देश की ज्यादातर भाषाओं और संस्कृतियों में असभ्य या अपमानजनक माना जाता है. इसमें कुछ ऐसे भी शब्द शामिल हैं, जिनके बारे में बहस की जा सकती है कि ये ज्यादा नुकसानदायक नहीं हैं.
लोकसभा महासचिव जीसी मल्होत्रा के मुताबिक इस किताब तैयार करने के दौरान स्वतंत्रता से पहले केंद्रीय विधानसभा, भारत की संविधान सभा, प्रोविजनल संसद, पहली से दसवीं लोकसभा और राज्यसभा, राज्यों की विधानसभा और कॉमनवेल्थ संसदों की बहसों से वो संदर्भ लिए गए थे, जिन्हें असंसदीय घोषित किया गया था. जीसी मल्होत्रा ही इस किताब की 2004 में आए एडिशन के एडिटोरियल बोर्ड के चीफ रहे थे.
किन शब्दों पर लगाई गई है पाबंदी
सदन के अंदर विभिन्न भाषाओं के शब्दों को अससंदीय करार दिया गया है. इनमें ‘शिट’, ‘बदमाशी’, ‘स्कमबैग’ और ‘बंदीकूट’, शब्दों को अगर कोई सांसद किसी और के लिए इस्तेमाल करता है तो उसे असंसदीय माना जाएगा, लेकिन अगर वो अपने लिए करता है तो ये चल सकता है. वहीं अगर कार्यवाही को कोई महिला अधिकारी संचालित कर रही हैं, तो कोई भी सांसद उन्हें ‘प्रिय अध्यक्ष’ कहकर संबोधित नहीं कर सकता है. रिश्वत, रिश्वतखोरी, ब्लैकमेल, डकैत, चोर, डैम, डार्लिंग जैसे सभी असंसदीय माने जाते हैं.
नहीं लगा सकते हैं ऐसे आरोप
सरकार या किसी दूसरे सांसद पर ‘झांसा’ देने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है. सांसदों या जो सदन की अध्यक्षता कर रहा है उसपर ‘दोहरे दिमाग’, ‘डबल स्टैंडर्ड’, ‘आलसी’, ‘घटिया’ या ‘उपद्रवी’ होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता. एक सांसद को ‘कट्टरपंथी या एक्सट्रीमिस्ट’ और ‘डाकू’ जैसे शब्दों से संबोधित नहीं किया जा सकता है. सरकार को ‘अंधी-गूंगी’ नहीं कहा जा सकता. उसके लिए ‘अली बाबा और 40 चोर’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है. किसी सांसद को ‘अजायबघर’ भेजने की सलाह देना भी अससंदीय है.
अनपढ़ सांसद के लिए ‘अंगूठा छाप’ जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. जाति, संप्रदाय, लिंग, भाषा, शारीरिक कमजोरी जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी पाबंदी के नियम में आते हैं. इसके अलावा जिन शब्दों को सदन के बाहर भी सार्वजनिक तौर पर बोलने पर मनाही है. वैसे कई शब्द भी इसके दायरे में आते हैं.