जंगमबाड़ी मठ में वीरशैव महाकुंभ में पहुंचे पीएम मोदी, सिद्धांत शिखामणि ग्रंथ और मोबाइल एप का विमोचन
गाजीपुर न्यूज़ टीम, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को वाराणसी दौरे पर पहुंचे। पीएम मोदी सबसे पहले जंगमबाड़ी मठ में हो रहे वीरशैव महाकुंभ में पहुंचे हैं। जंगमबाड़ी मठ में जगद्गुरु विश्वाराध्य गुरुकुल के जन्मशती समारोह के समापन कार्यक्रम में पहुंचे पीएम मोदी ने सिद्धांत शिखामणि ग्रंथ के 19 भाषाओं में अनुवाद और उसके मोबाइल एप का विमोचन किया। ‘श्रीसिद्धांत शिखामणि’ साढ़े चार सौ से अधिक पृष्ठों में है। भारतीय दर्शन के विविध पक्षों की समग्रता से परिपूर्ण इस कृति को आठवीं सदी में शिवयोगी शिवाचार्य ने संस्कृत के अनुष्टुप छंदों में की थी। यह रचना जगद्गुरु रेणुकाचार्य द्वारा महर्षि अगस्त्य को दिए गए उपदेश पर आधारित है।
इस मठ की कई विशेषताएं हैं। प्रथम मल्लिकाजुन बाबा (जंगमबाड़ी के जंगम बाबा) ने जीव से शिव तक की यात्रा के लिए पांच मार्ग बताए। प्रत्येक मार्ग के प्रतिनिधित्व के लिए 2001 ईसा पूर्व से 1690 ईसापूर्व के मध्य समय-समय पर पांच मठ स्थापित किए। मठों के ध्यान मार्ग की आराधना पद्धति की मूल धारणा को पांच रंगों से चिह्नित किया।
वीरशैव संप्रदाय के आध्यात्मिक संतप्रसाद की नींव में इन रंगों, हरा, लाल, सफेद, नीला और पीला का वही महत्व है, जो सनातनी पद्धति से किए जाने वाले किसी भौतिक निर्माण में नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा नाम की पांच ईंटों का होता है। खास बात तो यह है कि मनुष्य रूप में अपनी जीवन यात्रा को विराम देने के लिए उन्होंने 311वें वर्ष का चयन किया। इस संख्या का मूलांक भी पांच ही है।
वीरशैव संप्रदाय की पांचवीं पीठ के 86वें पीठाधीश्वर जगद्गुरु डॉ. चंद्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी ने बताया कि पंच तत्व से निर्मित संसार से मुक्ति का मार्ग भी इन्हीं पंच तत्वों में निहित है। इसलिए पांच रंगों के माध्यम से पांच पीठों के दायित्व को चिह्नित किया गया। प्रथम पीठ रम्भापुरी का प्रतिनिधि रंग हरा है, जो प्राकृतिक समृद्धि का प्रतीक है। द्वितीय पीठ के रूप में पूज्य उज्जैनी के लिए लाल रंग निर्धारित है, जो त्याग पर्याय है। तृतीय पीठ के रूप में प्रतिष्ठित केदार का रंग नीला है, जो धीरता-गंभीरता का परिचायक है। चतुर्थ पीठ श्रीशैलम् को शांति, सद्भाव और स्वच्छता का दायित्व निर्वाह करने के लिए सफेद रंग दिया गया।
रंगों के निहितर्थों के अनुरूप जीवन व्यतीत करने के बाद ज्ञान अथवा मोक्ष के लिए मनुष्य तैयार होता है। इसका प्रतीक पीला रंग है, जिससे जुड़े दायित्व का निर्वाह काशी पीठ में होता है, जो पांचवीं पीठ है। इन मठों से जुड़े संन्यासियों की पहचान उनके दंड पर लगे ध्वज के रंग से हो जाती है।