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इनके सिर पर है अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने का जिम्मा, डिटेल में जानें कौन हैं ये

पीएम मोदी ने लोकसभा में बताया कि ट्रस्ट का नाम 'श्री राम जन्मभूमि ट्रस्ट' होगा. गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट किया कि ट्रस्ट में 15 सदस्य होंगे और उनमें से एक दलित समुदाय से होगा. 9 सदस्यों का चुनाव कर लिया गया है, जानिए इनके बारे में सब कुछ.
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बन चुका है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को लोकसभा में इसका प्लान बताया. उन्होंने बताया कि इस ट्रस्ट का नाम ‘श्री राम जन्मभूमि ट्रस्ट’ होगा. गृहमंत्री अमित शाह ने बताया कि ट्रस्ट में 15 सदस्य होंगे और उनमें से एक दलित समुदाय से होगा. ट्रस्ट में 9 सदस्यों का चुनाव कर लिया गया है, शेष 6 सदस्यों की जगह पर सरकारी अधिकारियों का चयन किया जाएगा. जिन 9 नामों का चयन हो गया है उनमें वरिष्ठ वकील के पराशरण, महंत दिनेंद्र दास, विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र, युगपुरुष परमानंद आदि प्रमुख हैं. ये 9 लोग कौन हैं और राम मंदिर से इनका नाता किस प्रकार रहा है, आइए जानते हैं.

के पराशरण
ट्रस्ट के सदस्यों में सबसे महत्वपूर्ण नाम वरिष्ठ वकील के पराशरण का है. उन्होंने राम जन्मभूमि केस की पैरवी कोर्ट में की है. अंत तक सुनवाई में वे खुद बहस करने वाले के पराशरण का इस कोर्ट केस के फैसले में खास योगदान है. पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे पुरस्कारों से सम्मानित पराशरण सेतु समुद्रम के खिलाफ केस भी लड़ चुके हैं.
सबरीमाला मंदिर के मामले में भगवान अयप्पा की तरफ से पैरवी करने वाले पराशरण की पकड़ भारतीय संविधान के साथ इतिहास और वेद पुराण पर भी अच्छी है. राम मंदिर केस में जब मंदिर का अस्तित्व साबित करने की बात आई तो उन्होंने स्कंद पुराण के श्लोकों का सहारा लिया था. राम मंदिर के लिए जमीन पर कब्जे की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई है.

कामेश्वर चौपाल
गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट करके बताया कि ट्रस्ट में एक सदस्य दलित समुदाय से आएगा. रोटी के साथ राम का नारा देने वाले कामेश्वर चौपाल इस ट्रस्ट के सदस्य बनाए गए हैं. चौपाल ने 9 नवंबर 1989 में राम मंदिर का शिलान्यास होते समय पहली ईंट रखी थी. शिलान्यास के बाद चौपाल का नाम पूरे देश में चर्चा में आ गया और वे सक्रिय रूप से राजनीति में आ गए.
कामेश्वर चौपाल की प्रसिद्धि को देखते हुए बीजेपी ने उन्हें 1991 में रोसड़ा से लोकसभा टिकट दिया. इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. बेगूसराय की बखरी विधानसभा सीट से 1995 में चुनाव लड़ा, इसमें भी विजय नहीं प्राप्त हो सकी. 2002 में बिहार विधान परिषद के सदस्य बने. 2009 में उन्होंने रोटी के साथ राम का नारा दिया.

डॉक्टर अनिल कुमार मिश्र
अंबेडकर नगर जिले के मूलनिवासी अनिल मिश्र पेशे से होम्योपैथी डॉक्टर हैं और अयोध्या में पिछले करीब चार दशकों से क्लीनिक चला रहे हैं. वह उत्तर प्रदेश होम्योपैथिक बोर्ड के रजिस्ट्रार हैं और गोंडा के जिला होम्योपैथिक ऑफिसर भी हैं. इन दोनों पदों से जल्दी ही रिटायर होने वाले हैं.
आरएसएस के अवध प्रांत प्रमुख अनिल मिश्र ने इंदिरा गांधी द्वारा देश पर लगाए गए आपातकाल का पुरजोर विरोध किया था. 1981 से आरएसएस के स्वयंसेवक रहे अनिल मिश्र ने राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई है. ट्रस्ट का सदस्य बनाने पर उन्होंने कहा कि रामलला की सेवा करने का मौका मिलना उनके लिए बहुत बड़ी बात है.

महंत दिनेंद्र दास
निर्मोही अखाड़ा की अयोध्या बैठक के मुखिया महंत दिनेंद्र दास को भी ट्रस्ट में जगह मिली है. राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद में ये भी पक्षकार थे. अयोध्या जिले के मयाबाजार के पास मठिया सरैया के मूल निवासी महंत दिनेंद्र दास को 10 साल की उम्र में आश्रम का महंत बना दिया गया था.
बीए की पढ़ाई करने ये अयोध्या आए तो यहां निर्मोही अखाड़े से जुड़ गए. 1992 में निर्मोही अखाड़ा में नागा बने, 1993 में उपसरपंच बनाए गए. सरपंच महंत भास्कर दास ने 2017 में उन्हें पावर ऑफ अटॉर्नी दी और उनके निधन के बाद पंचों ने महंत दिनेंद्र दास को ही अखाड़े का महंत बना दिया.

विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र
अयोध्या राज परिवार के विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र को राम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट का ट्रस्टी बनाया गया है. इस ट्रस्ट की घोषणा होने के बाद अयोध्या के कमिश्नर एमपी अग्रवाल ने राम जन्मभूमि रिसीवर का पद छोड़ दिया. विमलेंद्र को लोग राजा साहब और प्यार से पप्पू भैया कहते हैं.
विमलेंद्र ने 2009 में फैजाबाद से बसपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के निर्मल खत्री से हार गए थे. इसके बाद वह राजनीति से दूर हो गए. वर्तमान में वह रामायण मेला समिति के संरक्षक मंडल के सदस्य भी हैं.

शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती
बद्रीनाथ के ज्योतिष्पीठ शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती का आश्रम प्रयागराज के अलोपीबाग में है. प्रयागराज कुंभ में भी स्वामी वासुदेवानंद पर्याप्त सक्रिय रहते हैं. जौनपुर जिले में पैदा हुए वासुदेवानंद सरस्वती का नाम संन्यास लेने से पहले सोमनाथ द्विवेदी था. ज्योतिष्पीठ के स्वामी शांतानंद महाराज के वे शिष्य हैं.
कुछ समय पहले ज्योतिष्पीठ पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से शंकराचार्य के पद को लेकर विवाद के चलते चर्चा में आए थे. अभी तक यह मामला अदालत में चल रहा है. राम मंदिर आंदोलन से ये शुरआत से ही जुड़े रहे हैं और प्रमुख पार्टियों को मंदिर निर्माण के लिए मनाने में इनकी प्रमुख भूमिका रही है.

जगतगुरु माधवाचार्य स्वामी विश्व प्रसन्न तीर्थ
विश्व प्रसन्न तीर्थ जी महाराज कर्नाटक के उडुपी में स्थित पेजावर मठ के 35वें गुरु हैं. पिछले साल दिसंबर में गुरु विश्वेश तीर्थ स्वामी के निधन के बाद उन्होंने मठ की जिम्मेदारी संभाली. हिंदू दर्शन में द्वैतवाद के प्रचार में पेजावर अदोक्षाजा मठ का खास स्थान है. अयोध्या में 1990 के दशक में राम मंदिर के पक्ष में लोगों को जोड़ने में मठ ने बड़ी भूमिका निभाई.
लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा शुरू होने से पहले विश्वेश तीर्थ ने उन्हें आशीर्वाद दिया था. प्रसन्न तीर्थ के राजनैतिक रुझान के बारे में कम जानकारी मिल पाई है. दक्षिण कन्नड जिले के देवीदास भट्ट परिवार में पैदा हुए प्रसन्न तीर्थ 1988 में मठ के संपर्क में आए और अधिकांश समय विश्वेश तीर्थ की देख रेख में बिताया. 53 वर्षीय प्रसन्न तीर्थ भारी संख्या में गौशाला निर्माण के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने ट्रस्ट में चुने जाने का श्रेय अपने गुरु को दिया है.

युगपुरुष परमानंद
उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जिले के मवई धाम गांव में साल 1935 में पैदा हुए परमानंद जी महाराज विश्व हिंदू परिषद के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य हैं. राम जन्मभूमि आंदोलन से शुरुआत से ही जुड़े रहे, हरिद्वार में अपने आश्रम में रहते हुए इन्होंने मंदिर से संबंधित लगभग सभी बैठकों में हिस्सा लिया है.
परमानंद जी महाराज का अखंड परम धाम आश्रम पूरे देश में स्कूल और गोशालाएं चलाता है. आश्रम की वेबसाइट पर ये आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और पीएम मोदी के साथ तस्वीरों में देखे जा सकते हैं. स्वच्छ गंगा कैंपेन से भी जुड़े रहे हैं और इन्होंने 150 से ऊपर किताबें लिखी हैं. अपने उपदेशों में इन्होंने नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन भी किया है.

स्वामी गोविंद देव गिरि
गोविंद देव गिरि जी महाराज का जन्म 1949 में अहमदनगर जिले के बेलापुर गांव में हुआ था. धर्म क्षेत्र में आने से पहले इनका नाम किशोर मदन गोपाल व्यास हुआ करता था, 17 साल की उम्र से उपदेश देना शुरू कर दिया था. दर्शनशास्त्र से स्नातक की डिग्री लेने के बाद वाराणसी से दर्शनाचार्य की उपाधि प्राप्त की.
स्वामी गोविंद देव संस्कृत, हिंदी, मराठी, इंगलिश और गुजराती भाषा के ज्ञाता हैं. 1986 में इन्होंने गीता परिवार की स्थापना की और 16 राज्यों में बाल संस्कार केंद्र खोले. इसके चार साल बाद महर्षि वेदव्यास प्रतिष्ठान की स्थापना की और वेदों व संस्कृत की पढ़ाई के लिए 34 स्कूल खोले. धार्मिक उपदेश देने के लिए ये नेपाल, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, थाईलैंड, म्यांमार आदि देशों का दौरा कर चुके हैं.
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