अयोध्या के मोहम्मद शरीफ को मिला पद्मश्री, 27 वर्षों से लावारिस लाशों का कर रहे अंतिम संस्कार
मोहम्मद शरीफ को 'शरीफ चाचा' के नाम से जाना जाता है. बेटे की हत्या और फिर शव के न मिलने के बाद से वह लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करना शुरू कर दिया था.
अयोध्या. राम नगरी अयोध्या के मोहम्मद शरीफ को पद्मश्री सम्मान से नवाजा जाएगा. पुरस्कार पाने वालों की लिस्ट में उनका नाम भी शामिल है. शरीफ इस सम्मान से बेहद अभिभूत हैं और कहते हैं, 'मोदी सरकार ने मेरी सेवाओं की कद्र कर मुझे यह सम्मान दिया है. इस सरकार ने बिना किसी भेदभाव के निर्णय किया है.' लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार करके चर्चा में रहने वाले मोहम्मद शरीफ ने कहा कि मैं चाहता हूं कि यह सरकार सत्ता में बनी रहे और जैसी जनहित की योजनाएं चला रही है, उसमें और बढ़ोतरी करें.
मोहम्मद शरीफ ने पद्मश्री सम्मान देने के लिए पीएम मोदी को धन्यवाद दिया है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी जैसा पूरी दुनिया में कोई इंसान नहीं, वह एक फरिश्ते की तरह हैं जिन्होंने गरीबों के लिए और काम किया है. बता दें कि पिछले 27 सालों से हिंदू-मुस्लिम, सिख हो या इसाई किसी भी लावारिस लाश को फेंकने नहीं दिया. शरीफ के लिए हिंदू हो तो सरयू घाट पर अंतिम संस्कार और मुस्लिम हो तो कब्रिस्तान में दफन करना रोजमर्रा का काम बन गया था. शरीफ अब तक लगभग 3000 हिन्दू और 2500 मुस्लिम लावारिश शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं.
गणतंत्र दिवस के मौके पर पद्मश्री सम्मान से नवाजे जाने वाले मोहम्मद शरीफ को प्रभारी मंत्री नीलकंठ तिवारी ने सम्मानित किया. रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने भी उनके इस कार्य के लिए बधाई के पात्र मानते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया.
बेटे की हत्या ने लिया प्रण
लावारिस शवों की अंत्येष्टि के पीछे की कहानी कुछ यूं है. शरीफ का एक बेटा मेडिकल सर्विस से जुड़ा था. एक बार वह सुल्तानपुर गया था, जहां उसकी हत्या करके शव को कहीं फेंक दिया गया था. परिजन ने उसे बहुत खोजा, पर लाश नहीं मिली. उसी के बाद शरीफ ने लावारिस शवों को ढूंढ़-ढूंढ़ कर उसका अंतिम संस्कार करने का प्रण लिया था. बता दें कि आम लोगों के बीच वह 'शरीफ चाचा' के नाम से मशहूर हैं. वह कहते हैं, 'जब तक मुझ में जान है, वह लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करते रहेंगे. इस सेवा से मुझे सुकून मिलता है. मैं 27 वर्षों से इस सेवा में जुटा हूं.'