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गाजीपुर: लॉर्ड कार्नवालिस का यह स्मारक जनपद का गौरव है या इसका एक कलंक ?

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर के ताजमहल- लॉर्ड कार्नवालिस में तन्हा मन के साथ एइहे जान मन सबुर बा लाट साहब के कब्र बा। शहर गाज़ीपुर के ऊंट पे टांग, अविकसित, पिछड़े और उज्डे पन पर व्यंग्य है। चोट उस मर्म स्थल पर है कि यहां कुछ भी नहीं जिसमे स्मरण कर गर्व किया जा सके। बस, इतने मात्र से सब्र कर लेना पड़ता है कि चलो यहां कुछ नहीं तो लाट साहब की ऐक कबर तो है। लॉर्ड कार्नवालिस का यह स्मारक जनपद का गौरव है या इसका एक कलंक है? देखा जाए तो यह सात आठ वर्ष के अनवरत श्रम से इसे भारतीय और ब्रिटिश कलाकारों ने रुपायित किया है। मेरी नजर में एक श्रेष्ठ कलाकृति है।

यह यूरप और भारत का वेस्टर्न और पूरब का समन्वय है। यह उस महान व्यक्ति का स्मारक है जिसके महान उपकार से अब भी ग्रामीण भारत लाभान्वित है। यह लॉर्ड कार्नवालिस गांव गांव घूमकर परखकर ,बहुत पक्का , इस्तेमरारी बंदोबस्त करने वाला यदि परायेयान की भूमि से ऊपर उठकर देखें , अनुभव करे तो एक महान आत्मा का जीवन स्पर्श पाकर किया हम यहां पुलकित नहीं हो जाते है? डेढ़ दो बिगहा ,भूमि में बना यह गोल स्मारक हमे दृढ़ता का संदेश देता है,इसके हलके गुलाबी रंग के पत्थरों को देखिए,कहीं दाग़ नहीं लगा है। लौह फलक बोस विशाल घेरे को देखिए,कहीं मोर्चे का नाम निशान नहीं है। ज़मीन से सोलह सीढ़ियों को पार कर उसकी प्रशस्त ऊंचाई पर पहुंचा जा सकता है।  

इसमें,चार तरह के पत्थर है। खमभो में प्रयोग किए गए पत्थर पर नीले नीले छींटे है।फर्श का संगमरमर शुक्ल – कृष्ण वर्ण की नैसर्गिक आंख मिचोनी का सहज शिल्प प्रस्तुत करता है और मध्य स्तम्भ का दुग्ध धवल पत्थर अद्भुत चिकता है। सामने अंदर जाली में,लार्ड कार्नवालिस का आधा ऊपरी शीर्ष भाग , जिसके अगल बगल हिन्दू और मुसलमान शोकमग्न खड़े है। बीच में कमल का फूल , बाएँ पाश्र्व में पत्रमाला का शुक्षम कलात्मक बंधक,पीछे को ? और दो सिपाही बंदूक नीचे किए मुरझाए खड़े हैं। 


फूल पत्तियों की सजावट और ब्रिटिश सरकार का राजकीय चिन्ह , दाहिनी ओर पत्र बन्ध की एक माला और खूब उभरी हुई, आकर्षक शिल्प चमत्कार से युक्त। सामने अंग्रेज़ी में और पीछे फारसी में लॉर्ड कार्नवालिस के आने और दिवंगत होने आदि की सूचना और परिचय , बारह बारह विशाल खमभे, पांच गज मोटे ,लगभग 40 फुट ऊंचे मगर पांच प्रस्तर खंड वाला , एवम विशाल जुड़ाई, वह भव्य बंधान ….. मगर यह ऐसा है जो मेरी भाषा की सीमा के बाहर है। यह अनुभव होता है मगर कहा नहीं जा सकता है। 


यहां एकांत और यहां की हवा सर सराती मंद संगीत है बिल्कुल नदी की मधुर धारा की तरह , सावन की वर्षा की तरह, चांदनी के ह्रास की तरह,प्रेमियों के साएं फुस वाली मधुर वार्ता की तरह, निर्झर के विलास की तरह लेकिन एक जुदा जो लगी वह मुझे यहां शोक की कोई ध्वनि अनुभूति नहीं होती है। यह उल्लास का, विकास का और प्रगति का दम भरता मकबरा प्रतीत हो रहा है। बेशक, इस इमारत की भव्यता जो मन को बदल देती है। वह भव्यता जों इस  गुण गान के कथन पर तारीफ की निशान लगा देती है कि गाज़ीपुर एक उदास शहर है। यह इंग्लैंड के एक महान व्यक्ति,भारत के गवर्नर जनरल और कमांडर इं चीफ का समारक है।

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