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गाजीपुर: महात्मा गांधी और ग़ाज़ीपुर

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर 2 अक्टूबर 1929 ईस्वी ग़ाज़ीपुर की अवाम के लिए एक महत्वपूर्ण दिन था। उस दिन महात्मा गांधी अपनी पत्नी एवं साथियों संग ग़ाज़ीपुर के गंगा गोमती के संगम पर उतरे थे। लगभग 2400 वर्ष पूर्व इस इलाके को सारनाथ से आकर  महात्मा बुद्ध ने अपने चरण रज से पवित्र किया था।दोनो युग पुरुष की वाणियों से ग़ाज़ीपुर धन्य होगया। 2 अक्टूबर 1929 का दिन था जब महात्मा गांधी औड़िहार के पास गंगा गोमती के संगम कैथी पर नाव से उतरे थे।उनके साथ पत्नी कस्तूरबा गांधी के अलावा मीरा बहन, आचार्य कृपलानी, महादेव देसाई ,देवदास गांधी और श्रीप्रकाश भी थे। वहां महात्मा गांधी की एक झलक पाने के लिए लोग बेचैन थे।वह जैसे ही नाव से उतरे लोगों ने उन्हें घेर लिया और स्थानीय कांग्रेस की शाखा मुहम्मद अली जौहर ( ज़मींदार सैदपुर , क़स्बा में इनके नाम की सड़क जौहर मार्ग ) के नेतृत्व में  मालाओं से ज़बरदस्त स्वागत किया। वहां औड़िहार के निकट बाराहरूप नामक स्थान पर उन्होंने सन्ध्या वंदन किया और बग्घी पर बैठकर सैदपुर के मिडिल स्कूल पहुंचे और वहाँ आयोजित सभा को सम्बोधित किया।

वहां देश के प्रचलित राष्ट्रीय विचारों के प्रति गांधी जी के सहयोग के लिए लोगों ने हाथ बढाये। गांधी जी न वहां मैदान में उपस्थित हज़ारों स्त्री – पुरुषों से अपने सम्बोधन में कहा ,” सभी जो उपस्थित है यह न समझिए कि आजादी यूँ ही हमे मिल जायेगी।क़ुर्बानी देनी होगी,संघर्ष करना पड़ेगा,घर से बाहर निकलना होगा। बोलिये घर से निकल कर किया आप शांति पूर्वक अपना विरोध प्रदर्शन में भाग लेंगे,हाथ उठाकर बताइए ,….बहुत महनत करनी होगी।हिम्मत मत हारियेगा।” ( आईना ए तहज़ीब ,साप्ताहिक,सैदपुर ,अंक 10,दिनाक 12 अक्टूबर,1929, इस साप्ताहिक समाचार पत्र बाबू शिवप्रसाद सरपरस्त तथा मुंशी मुहम्मद यासीन उपनाम शफ़क़,10 सितंबर 1882 को पहला संस्करण छापा था। अखबार की साइज साढ़े बारह इंच × साढ़े नौ थी।) लोगो को सम्बोधन के बाद गांधी जी को 500 रुपये की एक थैली और एक महिला द्वारा बनाये गए खादी पर लिखा मांगपत्र भेंट किया गया। उसके बाद वहाँ से महात्मा गांधी ग़ाज़ीपुर के लिए निकल चुके थे। 

उस समय भागवत मिस्र के नेतृत्व में शहर में  1916 में कांग्रेस की शाखा खुल चुकी थी। 5 दिसम्बर 1920 तक स्वामी सहजानन्द सरस्वती भी ग़ाज़ीपुर में कांग्रेस संस्था के प्रमुख कार्यकर्ता बन चुके थे। स्थानीय कांग्रेस कमेटी का कार्य उस समय गजानन्द मारवाड़ी तथा युसुफपुर के क़ाज़ी निज़मूल हक़ अंसारी सुचारू रूप से चला रहे थे।इंद्रदेव त्रपाठी और विश्वनाथ शर्मा भी जुड़ चुके थे। महात्मा गांधी के आने से पूर्व 16 अक्टूबर 1921 को सरोजिनी नायडू ,पंडित जवाहर लाल नेहरू , कानपुर की कार्यकर्ती श्रीमती सत्यवती देवी के साथ ग़ाज़ीपुर आये और ज़बरदस्त भाषण दिए और जनता ने कांग्रेस के कोष के लिए 15,000 रुपये उन्हें भेंट दिए। ग़ाज़ीपुर में बढ़ती हुई राजनीतिक चेतना को देखते हुए , शहर से इस्माईल ,केदार ,कन्हैया ,देव नारायण सिंह,विश्नाथ शर्मा,स्वामी सहजानन्द सरस्वती,गजानन्द ,इन्द्रदेव त्रिपाठी, हरिकृष्ण खेतान दफा 144 के भंग करने के लिए गिरफ्तार हो चुके थे। कुछ दिनों के बाद रिहा होगये। गांधी जी के स्वागत लिए पूरा माहौल बन चुका था। 

गांधी जी इन कांग्रेसियों के आमंत्रण  ही पर ग़ाज़ीपुर आरहे थे। नन्दगंज आते आते उनकी मोटरकार खराब होगई। बहुत प्रयास हुआ कि ठीक करदिया जाय,लेकिन सभी प्रयत्न बेकार साबित हुए। उसके बाद शिकरम ( घोड़ागाड़ी ) मंगवाई गयी जो एक स्थानीय साहूकार की थी,जिसपर वह आगे रवाना हुए।अभी कुछ ही दूर निकले थे कि एक अन्य कार की व्यवस्था करली गई। ज़िला मुख्यालय आने के बाद वह गोराबाजार में स्थित आईना कोठी में जाकर विश्राम किया और फ्रेश होकर रात आठ बजे लंका के मैदान में आयोजित जनसभा में पहुंचे। गांधी जी को सुनने के लिए अपार जनसमूह वहां एकत्रित था। 

मैदान में उमड़े जनसमूह को सम्बोधित करते हुए कहा कि , ” मैं थक गया हूँ।समय से आपकी सेवा में नही पहुंच पाया, मुझे माफ़ कीजियेगा। मार्ग में जगह जगह भाई बहन मोटर घेर लेते थे , और उनसे बातें करनी पड़ती थीं। इसी कारण हमें देर हुई। आगे उन्होंने कहा ,” जो बालविवाह को बंद करने के लिए कार्यक्रम चलाया जारहे है ,उनमे आपलोग साथ दें। आप सभी बालविवाह के कार्य को आगे बढ़ाएं। चरखा खूब मन से चलाए और खादी बनाएं। उससे बड़े लाभ हैं। कॉंग्रेस के सदस्य बनिये और बनवायें और उनकी शक्ति को बढायें। रात्रि में आईना कोठी में रुके जो एक राय बहादुर बड़े स्थानीय ज़मींदार सहाय साहब की थी। यह कोठी अब भी वहां है। लेकिन जर्जर अवस्था मे है।
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