गाजीपुर: जिला अस्पताल में इलाज तो दूर, ओपीडी की पर्चा जमा करना मुश्किल
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर जिला अस्पताल का ओपीडी परिसर मंगलवार को सैकड़ों मरीजों से अटा पड़ा था लेकिन आधे से अधिक चिकित्सकों के कक्ष खाली पड़े थे। कोई मरीज बेंच पर बैठा था तो कोई जगह न मिलने से दीवार व खंभे की ओट लेकर फर्श पर पड़ा था। बैठ न पाने की स्थिति में कई बीमार मरीज अपने नंबर की प्रतीक्षा में वहीं फर्श पर लुढ़क गए थे। डा. निसार अहमद व डा. तनवीर अहमद के कक्ष के दरवाजे पर मरीज चपे हुए थे। अंदर से डाक्टर साहब का कारखास आदमी मरीजों को दरवाजे से हटने के लिए हड़का रहा था। उधर मरीज थे कि उनकी सुन नहीं रहे थे। अंदर से डाक्टर का दूसरा सहयोगी जोर-जोर से नंबर के आधार पर मरीजों को नाम पुकार रहा था।
चिकित्सक से केवल परामर्श लेने के लिए मरीजों को इतनी मशक्कत करते देख अन्य लोगों को पसीना छूट रहा था। अपने कक्ष में मरीजों से घिरे उक्त दोनों डाक्टर चिकित्सकीय सलाह देने में जुटे हुए थे। उसी में मरीज डाक्टर साहब के सहयोगियों से झगड़ रहे थे। उनका नंबर पहले कैसे आ गया, उनसे पहले तो हम आए थे। दूसरा मरीज आरोप लगाता है.. हम लोगों को बाहर कर अंदर पर्ची ऊपर-नीचे कर दी जा रही है। उनकी किचकिच देख डाक्टर साहब झल्ला गए और उठ जाने की चेतावनी दी। इस पर भीड़ का तेवर कुछ नरम पड़ा। यहां हृदय रोग, बुखार, खांसी, पेट व सिर दर्द, उल्टी, दस्त, नाक, कान व गला का मरीज है, सभी का इलाज एक ही चिकित्सक कर रहे हैं। बच्चों के डाक्टर बूढ़ों व को भी उतनी ही तन्मयता से देख रहे हैं जितनी चेस्ट फीजिशियन डा. निसार अहमद सिर दर्द से पीड़ित मरीज को। यहां विशेषज्ञता का कोई मतलब नहीं, जो जहां घुस गया वहां डाक्टर को दिखा लिया।
एक बंद चिकित्सक कक्ष के बाहर अपनी बेटी के साथ सो रही रजदेपुर की लक्ष्मीना ने बताया कि वह सुबह नौ बजे का ही आयी है और डाक्टर का इंतजार करते हुए साढ़े 12 बज गए लेकिन वे अब तक नहीं आए। तभी भीड़ से एक बोला..अरे वो तो छुट्टी पर हैं, किसी दूसरे को दिखा लीजिए। इसके बाद लक्ष्मीना अपनी बीमार बेटी को लेकर डा. निसार अहमद के कक्ष की ओर बढ़ी बेटी को बाहर छोड़कर भीड़ से धक्का-मुक्की करते हुए किसी तरह अंदर घुसी और अपना पर्चा जमा करने को कहा। इस पर डाक्टर साहब को सहयोगी चिल्लाया, कोटा फुल हो गया है, अब तक कहां थीं? जो पर्ची जमा है उसे ही देखते-देखते समय समाप्त हो जाएगा। लक्ष्मीना ने काफी चिरौरी-विनती की लेकिन उसकी एक नहीं सुनी गई। कुछ यही हाल जंगीपुर से आए रामअवतार का था। पहले नंबर के चक्कर में सुबह ही पर्चा लगा दिया।
काफी समय बाद भी जब उनका नंबर नहीं आया तो दरवाजे पर ठुसे पड़े लोगों को धकियाते हुए अंदर गए और अपने पर्चे के बारे में पूछा, पता चला कि उनके नंबर पर कोई दूसरा रामअवतार दिखा कर चला गया। दोपहर दो बज गए थे और ओपीडी का समय समाप्त हो रहा था लेकिन अभी भी आधे मरीज उसी तरह पड़े हुए थे। किसी का नंबर ही नहीं आया तो किसी का पर्चा तक नहीं जमा हो पाया। वह काफी निराश दिखे और बुझे मन से लौटने लगे। गहमर से आए बुझारत काफी मायूस दिखे। पूछने पर बताया कि गहमर से आने में दो से तीन घंटे का अधिक समय लगता है। आते-आते देर हो गई, अब कह रहे हैं कि पर्चा ही नहीं जमा होगा। अब बिना इलाज कराए ही घर लौटना पड़ेगा। काफी दिन से बुखार है और भूख भी नहीं लग रही। अब इतना दम नहीं है शरीर में कि दोबारा यहां आ पाऊं।