Today Breaking News

गाजीपुर: दशरथ स्वर्गवास व भरत मनावन मंचन को देखकर दर्शक हुए भावविभोर

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर सुमंत जी को रथ सहित वापस अयोध्या भेजकर श्रीराम लक्ष्मण सीता तथा निषादराज सहित वन प्रदेश स्थित चित्रकुट पहुंचते है वहाँ भारद्वाज मुनि के आश्रम पर श्रीराम विश्राम करते है। उधर श्रीराम के वियोग मे महाराज दशरथ स्वर्ग को सिधार जाते है। उसके बाद गुरूवशिष्ठ सुमंत द्वारा दूतों को भरत के ननिहाल कैकेय देश भेज कर भरत व शत्रुधन को अयोध्या का हाल-चाल बताते हुए दोनों भाईयों को रथ पर सवार होकर अति शीघ्र अयोध्या आने का आदेश देते है। जब दूत अयोध्या से रथ द्वारा कैकेय देश पहुंचते है तो दोनों भाई दूतों को देखकर संदेह में आ जाते है वे दूतो से अयोध्या का कुशल क्षेम पूछते है इसके बाद जब दूतों ने दोनों भाईयों को अति शीघ्र अयोध्या चलने की सूचना दिया, तो भरत शत्रुध्न अपने मामा, नाना से आज्ञा लेकर वेग से चलने वाले रथ पर सवार होकर थोड़ी ही देर में अयोध्या के लिए प्रस्थान कर जाते है। 

जब उनका रथ अयोध्या में प्रवेश करता है तो अयोध्यावासी भरत, शत्रुध्न दोनों भाईयो को देखकर अपना मुँह दुसरी ओर घुमा लेते है। इस दृश्य को देखकर दोनो भाई समझ जाते है कि हो सकता है कि अयोध्या में कुछ अनहोनी हो गया है इतना सोचते हुए भरत, शत्रुध्न अपने माता महारानी कैकेयी के कक्ष के द्वार पर पहुँचते है। जहा दासी मंथरा आरती की थाल लिए हुए दरवाजे पर खड़ी रहती है। दोनों भाईयों के पहुंचने पर वह खुश होकर उन दोनो की आरती करती हैं और शत्रुध्न से कहती है कि बेटा तुम अपने माता के पास जाओं वहां तुम्हारी माँ प्रतीक्षा कर रही है। इधर भरत को दासी मंथरा अपने साथ महारानी कैकेयी के कमरे में ले जाती है। वहाँ पहुँचकर भरत अपने माता को बिधवापन वेश में देखकर आवाक हो जाते है और अयोध्या में उदासी, अपने पिता महाराज दशरथ, एवं बड़े भाई श्रीराम के बारे में पूछते है कि ये लोग कहा पे है। भरत के बात को सुनकर कैकेयी कहती है कि बेटा तुम इसकी चिंता छोड़ दो और निश्चिंत होकर अयोध्या का राज पाठ सम्भालो। 

उसने बताया कि तुम्हारे पिता महाराज दशरथ स्वर्ग लोक को चले गये तथा तुम्हारे बड़े भाई राम-लक्ष्मण सीता चौदह वर्ष के लिए वनवास को चले गये। उन्ही के वियोग में महाराज दशरथ अपने शरीर को छोड़कर स्वर्ग चले गये। इतना सुनते ही भरत जी अयोध्या के राज को छोड़कर तीनो माताओं, गुरू वशिष्ठ तथा पुरवासियों के साथ अपने बड़े भाई श्रीराम को मनाने के लिए वन को प्रस्थान कर जाते है। कुछ दिन बीतने के बाद महाराज भरत चित्रकूट स्थित भारद्वाज मुनि के आश्रम के लिए चल पड़े। वहाँ पहुँचते ही लाक्ष्मण ने देखा कि भरत अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ आ रहे है इसका समाचार वे दौड़ कर अपने भाई श्रीराम से बताते है। 

श्रीराम ने जब लक्ष्मण से भरत के आने का समाचार सुना तो वे भी दौड़कर ज्यो ही दरवाजे के निकट आते है इतने में भरत, शत्रुध्न भी रथ को छोड़कर नंगे पाव दौड़ते हुए अपने भाई श्रीराम के चरणों से लिपट जाते है। भरत के प्रेम को देखकर श्रीराम उन्हे उठाकर अपने गले से लगा लेते है। दोनों भाईयों में समाचारों का आदान प्रदान होने लगा। जब श्रीराम ने पिता के मरने से सम्बन्धित समाचार को सुना तो शोक में डूब जाते है तो उनके कुल गुरू महर्षि वशिष्ठ श्रीराम को समझाते है कि सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेऊ मुनि नाथ हानि लाभ जीवन मरण यस अपयस विधि हाथ। हे श्रीराम भावी बड़ी प्रबल मुनि ने उदास मन हो करके कहा कि हानि लाभ जीवन मरण ये सब चीजें विधि के हाथ है जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु जरूरी है इसमें चिंता करने की कोई बात नही है तुम अपने पिता के आत्मा के निमित उन्हे गंगा तटपर चलकर तर्पण करो। गुरू की आज्ञा के अनुसार श्रीराम अपने पिता को तिलांजली देते है। 

इसके बाद महाराज भरत श्रीराम को वापस अयोध्या चलने के लिए आग्रह करते है जिसको सुनकर श्रीराम भरत से कहते है कि भरत पिता के आज्ञा के अनुसार मुझे चैदह वर्ष तक वन में ही रहने दो और तुम मेरे न आने तक अयोध्या का राज पाठ देखते रहना। श्रीराम के बात को सुनकर भरत जी कहते है कि प्रभु अयोध्या का राज आपके अधीन रहेगा जब तक आप अयोध्या नही आयेंगे तब तक मै आपका सेवक बनकर सेवा करता रहूँगा अतः आप हमें अपनी चरण पादुका देने की कृपा करे जिससे आपकी चरण पादुका को राज सिंहासन पर रखकर राजपाट देखता रहूँगा। भरत की प्रेम भरी बातों को सुनकर श्रीराम अपनी चरण पादुका (खड़ाऊ) देकर चित्रकूट से भरत को विदा करते है। दोनों भाईयों के प्रेम को देखकर श्रद्धालू भाव विभोर हो जाते है। अति प्राचीन श्रीराम लीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वावधान में राम लीला के सातवें दिन एक 1 अक्टूबर मंगलवार को सायं सात बजे श्री भरत का अयोध्या आगमन, व भरत मनावन व विदाई से सम्बन्धित लीला को मंचन सकलेनाबाद स्थित भारद्वाज मुनि के आश्रम पर मंचन किया गया। 

श्री भरत जी की शोभा यात्रा हरिशंकरी स्थित श्रीराम चबुतरा से शुरू होकर बाजे गाजे के साथ पावर हाऊस रोड, झुन्नू लाल चैराहा, आमघाट , राजकीय बालिका महाविद्यालय, चित्रगुप्त महाराज चैक, महुआ बाग चैक, पहाड़ खाँ का पोखरा होते हुए भजन कीर्तन के साथ सकलेनाबाद स्थित भारद्वाज मुनि के आश्रम पर पहुचकर लीला में परिवर्तित हो गया। इस मौके पर कमेटी के अध्यक्ष दीनानाथ गुप्ता, मंत्री ओपी तिवारी, उर्फ बच्चा, उपमंत्री लव कुमार त्रिवेदी, प्रबन्धक वीरेशराम वर्मा, स0 प्रबन्धक शिवपूजन तिवारी, (पहलवान) कोषाध्यक्ष अभय अग्रवाल, योगेश कुमार वर्मा एडवोकेट, कृष्णांश त्रिवेदी, श्रवण कुमार गुप्ता, पं0 बाल गोविन्द दत्त त्रिवेदी उर्फ राजन भैया, रोहित कुमार अग्रवाल, बाके तिवारी, राजकुमार शर्मा, राम सिंह यादव, कृष्ण बिहारी त्रिवेदी, कुशकुमार, अजय चतुर्वेदी आदि उपस्थित रहे।

'