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गाजीपुर: ताड़का वध व राम सीता मिलन के भव्य मंचन से दर्शक हुए भाव विभोर

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी की ओर से लीला के दूसरे दिन 26 सितम्बर गुरूवार को सायं 7 बजे स्थानीय रामचबुतरा पर वन्दे वाणी विनायको आदर्श श्रीराम लीला मंडल के संयोजक राजा भईया तिवारी के दिशा निर्देश पर उनके कलाकारों द्वारा पूरी भव्यता के साथ ताड़का वध-राम सीता मिलन से सम्बन्धित लीला का मंचन किया गया। जिसको देखकर उपस्थित दर्शकगण भाव विभोर हो गये। मंचन के दौरान दर्शाया गया कि राजा गाधि के पुत्र महर्षि विश्वामित्र के मन में चिंता छा जाती है ऐसा मन में विचार कर श्रेष्ठ मुनि विश्वामित्र बिचार करते है कि प्रभु श्रीराम ने पृथ्वी का भार हरने के लिए अवतार ले लिया है। इसी बहाने उनके चरणों का दर्शन करू और विनती करके दोनो भाईयों को ले आऊँ। 

उन्होंने सरयू नदी में स्नान किया और राजा दशरथ के राज दरबार के गेट पर पहुंचते है। राजा दशरथ ने विश्वामित्र के आने का सामाचार सुनते ही ब्रह्मणों के समाज तथा गुरू वशिष्ठ को साथ लेकर दरवाजे पर आते है और महर्षि विश्वामित्र को आदर पूर्वक दरबार के अन्दर ले जाते है। उनका सेवा सत्कार करने के बाद कहा कि हे मुनि आपने बहुत कृपा करके मुझे दर्शन दिया। आप अपने आने का कारण बताने की कृपा करें। राजा दशरथ की मधुर वाणी को सुनकर मुनिवर ने कहा कि हे राजन असुर समूह सतावहि मोहि मै जाचन आयउ नृप तोहि। इसके अलावा उन्होंनें कहा अनुज समेत देहू रघूनाथा निशिचर बध मै होब सनाथा। मै अपने यज्ञ के रक्षा के लिए आपके पास श्रीराम और लक्ष्मण को लेने आया हूँ आप कृपा करके दोनों भाईयों को हमारे यज्ञ की रक्षा के लिए भेजने की कृपा करें। जिससे यज्ञ की रक्षा हो सके। 

इतना सुनते ही गुरू वशिष्ठ के आदेशानुसार राजा दशरथ ने राम लक्ष्मण को मुनि विश्वामित्र के हवाले कर दिया। विश्वामित्र राम लक्ष्मण को लेकर अपने आश्रम के लिए अयोघ्या से चल देते है। रास्ते में कुछ दूर जाने पर घोर जंगल पड़ा। वहाँ पर एक बृहद पद चिन्ह देखकर श्रीराम ने विश्वामित्र से पूछा कि हे मुनिवर यह पद चिन्ह किसका है। विश्वामित्र ने बताया कि हे राम यह पद चिन्ह ताड़का राक्षसी का है। वह यही कही विश्राम करती होगी। आवाज सुनते ही ताड़का राक्षसी विश्वामित्र की ओर झपटी इसके बाद विश्वामित्र के इशारा पर श्रीराम ने एक ही बाण में ताड़का का वध कर दिया। इसके बाद श्रीराम लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ आगे चले गये। जहाँ जगत को पवित्र करने वाली देव नदी गंगा पृथ्वी पर आयी थी। 

तब प्रभु ने महर्षि विश्वामित्र के साथ गंगा में स्नान करके वहा उपस्थित ब्राह्मणों को दान दिये। मुनिवर के साथ श्रीराम लक्ष्मण जनकपुर के निकट पहुंच गये। वहा जनकपुर की शोभा देखी। वहा नाना प्रकार के सुन्दर बाग बगीचे एवं रंग बिरंगे कमल खिले थे। श्रीराम विश्वामित्र मुनि के साथ जनकपुर गये। जब राजा जनक विश्वामित्र के आने की सूचना पाते है, तो वे गुरू वशिष्ठ के साथ विश्वामित्र मुनि से मिलने गये और वहां पहुंचकर दण्डवत करते है। इसके बाद मिथिला नरेश महाराज जनक श्रीराम लक्ष्मण को देखकर भाव विभोर हो जाते है उन्होने राज कुमारों का परिचय मुनिवर से पूछा। विश्वामित्र ने बताया कि हे राजन दोनो राज कुमार अयोध्या नरेश राजा दशरथ के पुत्र है। ये दोनो हमारे यज्ञ की रक्षा के लिए हमारे साथ अयोध्या से आये है। 

इतना सुनने के बाद राजा जनक प्रसन्न हो जाते है। दूसरे दिन राम ने विश्वामित्र से मधुरवचन कहा कि कहा कि हे मुनि, लक्ष्मण मिथिला नगर घूमने की इच्छा करते है इतना सुनने के बाद मुनिवर दोनो भाईयों को नगर घूमने की आज्ञा देते है। आज्ञा पाकर दोनों भाई नगर घूमने के लिए प्रस्थान कर देते है। दोनों भाई नगर के निकट पुष्प वाटिका की ओर चल देते है। वहा से मुनिवर के पूजा के लिए थोड़ा फूल लेते है। उसी समय जनक की पुत्री सीता गौरी पूजन के लिए पुष्प वाटिका में फूल तोड़ने के लिए गयी थी जहा पर राम सीता का मधुरमिलन हुआ। 

इस दृश्य को देखकर उपस्थित जन समूह जय श्री राम के नारों से लीला स्थल गूंजायमान कर दिया। इस मौके पर अध्यक्ष दीना नाथ गुप्ता, उपाध्यक्ष विनय कुमार सिंह, मंत्री ओम प्रकाश तिवारी,(बच्चा) उपमंत्री पं0 लव कुमार त्रिवेदी, मेला प्रबन्धक बीरेश राम वर्मा उपप्रबन्धक शिव पूजन तिवारी उर्फ पहलवान, कोषाध्यक्ष अभय कुमार अग्रवाल, योगेश कुमार वर्मा, मनोज कुमार तिवारी, रोहित कुमार अग्रवाल, राजेन्द्र विक्रम सिंह, राम नारायण पाण्डेय, पं0 कृष्ण बिहारी त्रिवेदी, गोपाल जी पाण्डेय, राज कुमार शर्मा, श्रवण कुमार गुप्ता, विश्वम्भर नाथ गुप्ता उर्फ लल्ली, आदि उपस्थित रहे।
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