गाजीपुर: कैकेयी-मंथरा संवाद व राम के वनवास के मंचन से दर्शकों का हुआ हृदय द्रवित
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर अतिप्राचीन श्रीराम लीला कमेटी हरिशंकरी की ओर से लीला के चौथे दिन 28 सितम्बर शनिवार सायं 7 बजे श्रीराम चबुतरा पर राज तिलक की तैयारी, मंथरा के कैकेयी संवाद, कोप भवन, दशरथ कैकेयी संवाद, तथा राम द्वारा विदाई मागने से सम्बन्धित लीला का मंचन किया गया। लीला के दौरान जनकपुर से बारात आने के कुछ ही दिन बीते थे कि महाराज दशरथ अपने राज दरबार में कुलगुरू वशिष्ठ एवं अपने मंत्री सुमंत के साथ सभा में बैठे थे कि वे अचानक अपने मन में सोचने लगे कि अब मेरा चौथापन आने वाला है क्यों न मै अयोध्या का राज अपने बड़े पुत्र राम को देंकर भगवत भजन में लग जाऊ। इतना सोचने के बाद वे अपने कुलगुरूं वशिष्ठ के समक्ष इस प्रस्ताव को प्रकट करते है जिसकों सुनकर महर्षि वशिष्ठ ने राम का राजतिलक करने को आज्ञा देते है।
इसके बाद गुरू के आज्ञानुसार महाराज दशरथ ने राज दरबार में सभा का आयोजन कर दिया और उपस्थित वासियों के समक्ष कहा कि मै अयोध्या का राज अपने बड़े पुत्र राम को देने की इच्छा करता हू सबने एक स्वर में कहा कि महाराज आप का विचार अति उत्तम है राम राजा लायक ही है। उन्हे अवश्य राजतिलक देना चाहिए। सबके इच्छाओं को देखते हुए दशरथ ने अपने बड़े पुत्र राम से भी इस बारे में पूछा तो श्रीराम ने कहा आपके हर आदेश का पालन किया जायेगा। इसके बाद महाराज बड़े पुत्र राम से विचार लेने के बादं अपने मंत्री सुमंत के द्वारा राजतिलक कि तैयारिया शुरू करवा देते है और पूरे अयोध्या नगरी को ध्वज पताकाओं से आकर्षित सजवा देने कि आज्ञा करते है। महाराज के आज्ञानुसार पूरा अयोध्या नगरी सज गयी तब दासी मंथरा अपने भ्रमण के दौरान अयोध्या की आकर्षित सजावटदेखी तो पुरवासियों से सजावट की जानकारी लिया।
पुरवासियों द्वारा जब पता चलता है कि कल सुबह अयोध्या का राज महाराज दशरथ अपने बड़े पुत्र राम को देंगे। इस बात को लेकर वह महारानी कैकेयी के कक्ष में जाकर राम के राजतिलक से सम्बन्धित सारी बातों को बता देती है कि महारानी जी, महाराज दशरथ अयोध्या का राज कल सुबह अपने बड़े पुत्र राम को देंगे। तुम एक काम करो अपने वस्त्रा भूषण को उतारकर फटे पुराने कपड़े को पहनकर अपने कोप भवन में जाकर जमीन पर लेट जाओ जब महाराज दशरथ को तुमको कोप भवन में जाने का समाचार मिलेगा तो वह तुम्हे अनेको प्रकार से मनाने की चेष्टा करेंगे। मगर तुम उनकी बातो में मत आना। दासी मंथरा के बात को सुनकर कैकेयी ने वैसा ही किया जो मंथरा ने बताया। वह कोप भवन में जाकर राजषि वस्त्राभूषण को उतारकर जमीन पर लेट जाती है
जब महाराज को कैकेयी को कोप भवन में फटे पुराने कपड़े पहनकर जमीन पर लेटने की सूचना मिलती है तो वह अपने महल से उठ कर कोप भवन मे उपस्थित होते है और महारानी कैकेयी से कोप भवन में क्रोधित होकर लेट जाने के सम्बन्ध मे सारी बातों से अवगत होते है महाराज के सारी बातो को सुनते हुए महारानी कैकेयी ने कहा कि महाराज आपने देवासुर संग्राम में जब आपके रथ का पहिया गड्ढे में फसा था तो आपने पहिये को निकालने के लिए काफी कोशिश की फिर भी पहिया न निकल सका तब मैने आपकी सहायता की जिससे आपके रथ का पहिया गड्ढ़े से बाहर निकला उस समय आपने खुश होकर मुझे दो वरदान देने को कहा था कि महारानी आप हमसे दो वरदान जब चाहे ले लेना, वह समय आ गया।
पहला वरदान मे महारानी ने अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राज देने से सम्बन्धित, तथा दुसरे वरदान में तापस वेषि विशेषि उदासी, चैदहबरिस राम वनवासी महाराज राम को चैदहवर्ष के लिए तपस्वी के वेश में वनवास। इतना सुनते ही महाराज दशरथ मुर्छित होकर जमीन पर गिर पड़ते है उधर राम को जब पता चलता है तो वह माता कैकेयी के कक्ष में आकर पिता जी के मूर्छित होने का कारण माता कैकेयी से पूछते है जब उन्हे माता जी से पता चला कि महाराज ने भरत को अयोध्या का राज तथा मुझे तपस्वी के वेश में बन जाने से सम्बन्धित दो दरदान पिता जी ने दिया तो वह खुश होकर वहा से निकल कर माता कौशल्या से अपने वन जाने के लिए आज्ञा लेकर पुनः सीता लक्ष्मण के साथ कैकेयी के कक्ष में आकर वहा उपस्थित होकर अपने माता कैकेयी, पिता दशरथ, कुलगुरू वशिष्ठ, गुरू माता, अरूधती के चरणों मे शीश नवा कर कोप भवन से बाहर निकल आते है।
लीला को देखकर दर्शको के आखों मे अश्रू धारा निकल गयी और श्रीराम के जयकार से लीला स्थल गुंजाय मान हो गया। इस मौके पर कमेटी के अध्यक्ष दीनानाथ गुप्ता, मंत्री ओपी तिवारी, उर्फ बच्चा, उपमंत्री लव कुमार त्रिवेदी, प्रबन्धक वीरेशराम वर्मा, स0 प्रबन्धक शिवपूजन तिवारी, (पहलवान) कोषाध्यक्ष अभय अग्रवाल, योगेश कुमार वर्मा एडवोकेट, रामजी, पाण्डेय श्रवण कुमार गुप्ता, राजकुमार शर्मा, विजय मोदनवाल, राम सिंह यादव, कृष्ण बिहारी त्रिवेदी, कुशकुमार, सुधीर अग्रवाल, मनोज तिवारी, आदि उपस्थित रहे।